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ट्विटर से समझें सोशल मीडिया प्लेटफार्म की हकीकत… मस्क की नई पालिसी ने सब कुछ खोल दिया है…

विशेष टिप्पणी / सुरेश महापात्र। बीते करीब दो—तीन महीनों से सोशल मीडिया के सबसे महंगे प्लेटफार्म​ ट्विटर को लेकर दुनिया भर में चर्चा है। कोई भी ऐसी मीडिया नहीं है जहां इसकी चर्चा ना हो रही हो। दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क ने ट्विटर को 44 बिलियन डॉलर में खरीदने के बाद उसका आधिपत्य भी हासिल कर लिया है। एलन मस्क ना केवल दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं बल्कि उनके अपने ट्विट्स पर मिलने वाले हिट्स इस बात को साबित करते हैं कि उनकी पहुंच कहां तक

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घट गया राज्य पुरस्कारों का महत्व… इन पुरस्कारों की यदि गरिमा स्थापित करनी हो तो प्रक्रिया में कुछ परिवर्तन करने होंगे…

दिवाकर मुक्तिबोध। आगामी एक नवंबर को नये राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ के 22 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे। प्रत्येक वर्ष राज्योत्सव में सांस्कृतिक आयोजनों के अलावा किसी न किसी रूप में राज्य के विकास में विशेष योगदान देने वाले विद्वानों को राज्य अलंकरण से पुरस्कृत किया जाता है। प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कार्यकाल में 16 पुरस्कार दिए जाते थे जो भाजपा के पंद्रह वर्षों के शासन में बढकर बाइस हुए और अब कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार में इनकी संख्या बढाकर 36 कर दी गई हैं। यानी

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कांग्रेस के सबसे तेज धर्नुधर भूपेश को ‘अभिमन्यू’ की तरह घेरने की रणनीति का हिस्सा तो नहीं है ये ‘ईडी’ वाले छापे?

सुरेश महापात्र। हाल ही में कलेक्टर कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सभी जिला अधिकारियों को साफ शब्दों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का संकेत दिया था। इस कांफ्रेंस के दो दिन के बाद ही ईडी ने प्रदेश में छापा मारकर यह जता दिया कि पुराने मामलों की जांच अभी पूरी नहीं हुई है।  अब सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर केंद्रीय एजेंसियों तक खबरें किनके माध्यम से पहुंचाई जा रही हैं। कहीं 2023 से पहले कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ छत्तीसगढ़ के धर्नुधर भूपेश बघेल

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तो क्या छत्तीसगढ़ में भाजपा ने अपनी रणनीति का ऐलान कर दिया है… आदिवासी नहीं अब ओबीसी वोटबैंक लक्ष्य…

सुरेश महापात्र। त्वरित टिप्पणी। छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने विश्व आदिवासी दिवस के दिन अपने संगठन का सबसे बड़ा बदलाव कर दिया है। अब प्रदेश में संगठन की कमान आदिवासी के स्थान पर पिछड़ा वर्ग के हाथ सौंप दी गई है। विष्णु देव साय छत्तीसगढ़ में भाजपा के संगठन प्रमुख की भूमिका में थे। उनकी जगह पर बिलासपुर से सांसद अरूण साव को प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया है। विष्णु देव साय भले ही आदिवासी वर्ग से आते हैं पर संगठन की भाषा में वे पूर्व मुख्यमंत्री डा.

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Editorial

पत्रकार, नक्सली और पुलिस… बस्तर में विवाद

सुरेश महापात्र। बस्तर में इन दिनों पत्रकारिता को लेकर माओवादी चुनौती की बड़ी चर्चा है। पत्रकार और समाजसेवी के नाम माओवादियों की सब डिविजन कमेटी का पर्चा मिलने के बाद पत्रकार आक्रोशित हैं। दक्षिण—पश्चिम बस्तर के माओवादी गढ़ गंगालूर और बुरगुम में पत्रकारों ने धरना दिया और माओवादियों के पत्र के खिलाफ आवाज बुलंद की। वैसे यह पहला मौका नहीं है जब बस्तर में पत्रकार माओवादियों के निशाने पर आए हों। पहले भी ऐसा हो चुका है। दो पत्रकारों की माओवादियों ने पूर्व में हत्या भी कर दी है। जिसमे

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Editorial

बिहार में भाजपा के लिए शंखनाद और कांग्रेस के लिए संदेश…

विशेष टिप्पणी / सुरेश महापात्र। बिहार में तमाम अटकलों के बाद मंगलवार की देररात परिणाम घोषित हो गए। इस बार बिहार में कांग्रेस परास्त हुई है। भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय दल होने का दम स्थापित कर दिया है। क्षेत्रीय राजनीतिक दल के तौर पर बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने अपने लिए युवा चेहरा तलाश लिया है। वामपंथी दलों के लिए बिहार से नवजीवन का संदेश आया है। इस चुनाव में सबसे बड़ी हार कांग्रेस की हुई है। यह निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए विचारणीय होना ही चाहिए।

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किसी भी अपराध के बाद सच्चाई को स्वीकारने से डरती क्यों है सरकार?

सुरेश महापात्र। मौजूदा वक्त में पूरे देश में विभिन्न राज्यों में अलग—अलग किस्म के अपराध को लेकर विवाद की स्थिति है। सभी राज्यों में सत्ता और विपक्ष अपराध के बाद हालात पर आमने—सामने खड़े हैं। मीडिया भी बंटा हुआ है। खबरों की हैडिंग और प्रस्तुतिकरण में साफ तौर पर राज्य सत्ता के हिसाब से खबरें प्रस्तुत की जा रही हैं। यही वह वजह है जिसने सबसे ज्यादा संदेह खड़ा किया है। दरअसल हमे राज्य की व्यवस्था और विवशता के बीच पुलिस की व्यवस्था को देखना होगा। संविधान में पुलिस की

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बापू के सत्ता केंद्र आज कहां हैं?

गांधी जयंती पर विशेष सुदीप ठाकुर। मार्च के दूसरे हफ्ते में कोविड-19 महामारी के शुरुआती मामले आते ही प्रधानमंत्री मोदी ने अचानक ‘जनता कर्फ्यू’ का एलान किया था और उसके दो दिन-तीन बाद पूरे देश में लॉकडाउन लागू कर दिया गया था। इससे देशभर की सड़कों पर जो दृश्य नजर आया था, उसे विभाजन के बाद की दूसरी बड़ी त्रासदी के रूप में दर्ज किया गया। बड़े शहरों और महानगरों से लाखों प्रवासी मजदूर जो भी साधन मिला उससे या पैदल ही अपने गांव-घर की ओर चल पड़े थे। विभाजन

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सत्यजीत भट्टाचार्य – बस्तर में रंगकर्म के एक युग का अवसान

राजीव रंजन प्रसाद। विनम्र श्रद्धांजलि आप रचनात्मकता को कम से कम शब्दों में कैसे पारिभाषित कर सकते हैं? इस प्रश्न के लिये मेरा उत्तर है – सत्यजीत भट्टाचार्य। बस्तर की पृष्ठभूमि से रंगकर्म को आधुनिक बनाकर देश-विदेश में चर्चित कर देने वाले सत्यजीत अपने चर्चित नाम बापी दा से अधिक जाने जाते थे। वे अपने आप में नितांत जटिल चरित्र थे, चटखीले रंगों की टीशर्ट, भरे भरे बालों वाला सर और दाढी से ढका पूरा चेहरा; पहली बार की मुलाकात से आप न व्यक्ति का अंदाजा लगा सकते थे, न

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क्या सरकारों से भरोसा उठ रहा है? यदि ऐसा है तो अभी भी वक्त है सुप्रीम कोर्ट अपनी लक्ष्मण रेखा लांघ ले…

सुरेश महापात्र। 25 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री के लॉक डाउन की घोषणा के बाद यकायक सब कुछ असमान्य नहीं हुआ। बल्कि यह क्रमश: होता रहा। जब दूसरे चरण के लॉक डाउन की बात उठी तो महानगरों में काम करने पहुंचे दिगर राज्यों के प्रवासी मजदूरों के लिए जीने की राह कठिन होने लगी। काम ठप होने से रोजगार बंद हो गया और जिन ठिकानों पर वे रहते थे वहां से खदेड़े जाने लगे। हालात बदतर होते चले गए और नई बीमारी के संक्रमण का जिस तरह से खतरा

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