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#NAXAL दक्षिण बस्तर में माओवादियों की किलेबन्दी, महाराष्ट्र-तेलंगाना में आधार हुआ कमजोर, माड़ के बाद बीजापुर-सुकमा सरहद से संगठन को केंद्रित करने की जुगत…

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P.Ranjan Das.Ground Report…

बीजापुर। तेलंगाना और महाराष्ट्र में संगठन पर बढ़े दबाव के बाद माओवादी दक्षिण बस्तर के बीजापुर-सुकमा के सरहदी इलाकों पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करने विवश है। 

शहीद सप्ताह के दौरान बस्तर के सघन वन और आदिवासी बहुल वाले इस इलाके में माओवादियों द्वारा आयोजित बड़ी सभा और पक्के मंच को लेकर सुरक्षा से जुड़े जानकार यही कह रहे हैं। अब तक दंडकारण्य में अबुझमाड़ को माओवादियों की अघोषित राजधानी बताया जाता रहा है, लेकिन बीते एक दशक में बीजापुर-सुकमा के सरहदी इलाके में तेज हलचल के बाद इसे माओवादियों का सुरक्षित किला समझा जाने लगा है, जिसे भेदने सुरक्षा बलों का दबाव लगातार इस इलाके में बढ़ाया जा रहा है। 

अबुझमाड़ को छोड़ सीमावर्ती तेलंगाना और महाराष्ट्र में एक दशक के भीतर स्पेशल फोर्स की कार्रवाई से माओवादियों को छत्तीसगढ़ के इस सीमावर्ती इलाके की ओर महफूज और मजबूत ठीकाना तैयार करने मजबूर होना पड़ा है। 

महाराष्ट्र में सी 60 कमांडों की ताबड़तोड़ कार्रवाई के बाद माओवाद संगठन के लिए गढ़चिरौली में पैर जमाए रखना मुश्किल हो गया, ठीक इसी तरह तेलंगाना में ग्रे हाउंड्स फोर्स ने माओवादियों पर बड़ा दबाव बनाया, नतीजतन माओवाद संगठन के शीर्ष नेताओं को संगठन को महफूज रखने बस्तर के अबुझमाड़ के अलावा सीमावर्ती सुकमा-बीजापुर के सीमांत इलाकों में गहरी पैठ जमानी पड़ रही है।

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी(नाम ना छापने की शर्त पर) का कहना है कि तेलंगाना-महाराष्ट्र में माओवादी अपनी साख बचाने में पूरी तरह से विफल हुए है, नतीजतन उन्होंने बस्तर के अबुझमाड़ के अलावा बीजापुर-सुकमा को टारगेट किए हुए हैं। इसमें भौगोलिक परिस्थितियां ही केवल उनके लिए मददगार है।

पिछले वर्षों में ग्रेहाउंड्स और सी 60 कमांडोज की कार्रवाई से माओवादियों के इंटरस्टेट कॉरीडोर को तगड़ा झटका लगा है। संगठन के दर्जनों हार्डकोर माओवादी मुठभेड़ों में मारे गए, तो वही सालभर के अंदर उनके कई शीर्ष नेताओं समेत दर्जनों माओवादियों की जानें गंभीरी बीमारी और हादसों में चली गई, जिससे माओवाद संगठन पहले के मुकाबले काफी हद तक कमजोर हो चुका है।

अंतराज्यीय सीमाओं में जहां जहां माओवादियों की पैठ थी, सुरक्षा बलों की कार्रवाई से पांव उखड़ने लगे , नतीजतन माओवादियों को बस्तर के कुछ हिस्सों को जिसे वे सुरक्षित मान रहे हैं, अपनी साख बचाने के लिए जड़े जमाने का भरसक प्रयास कर रहे हैं और यही वजह है कि शहीदी सप्ताह से जैसे आयोजन कर माओवाद संगठन अपने अस्तित्व को मजबूत बताने का प्रयास कर रहा है। 

अफसर की मानें तो माओवादियों का यह प्रोपोगेंडा उनकी मनोवैज्ञानिक युद्ध नीति का ही हिस्सा है। दूसरी ओर बीजापुर-सुकमा के सरहदी इलाकों में लगातार सुरक्षा बलों के कैम्प विस्तार से यहां भी माओवाद संगठन को चुनौतियां पेश आ रही है। 

तररेम को जगरगुंडा से जोड़ने बन रही सड़क की वजह से माओवादियों का बड़ा आधार इलाका भी अब उनके हाथ से छूटता दिख रहा है। हालांकि सुरक्षा बलों के लिए दण्डकारण्य के इस सीमावर्ती इलाके में माओवादियों की पैठ कमजोर करने और किले को भेदने की दिशा में सुरक्षा बलों के सामने अब भी चुनौतियां बरकरार है। 

बहरहाल बस्तर के इस सीमावर्ती हिस्से में माओवाद संगठन अपना आधार किस हद तक मजबूत कर पाता है या सुरक्षा बलों की कार्रवाई से माओवाद संगठन पर कितना प्रभावी होता है, यह देखने वाली बात होगी।

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