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ट्विटर से समझें सोशल मीडिया प्लेटफार्म की हकीकत… मस्क की नई पालिसी ने सब कुछ खोल दिया है…

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विशेष टिप्पणी / सुरेश महापात्र।

बीते करीब दो—तीन महीनों से सोशल मीडिया के सबसे महंगे प्लेटफार्म​ ट्विटर को लेकर दुनिया भर में चर्चा है। कोई भी ऐसी मीडिया नहीं है जहां इसकी चर्चा ना हो रही हो। दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क ने ट्विटर को 44 बिलियन डॉलर में खरीदने के बाद उसका आधिपत्य भी हासिल कर लिया है।

एलन मस्क ना केवल दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति हैं बल्कि उनके अपने ट्विट्स पर मिलने वाले हिट्स इस बात को साबित करते हैं कि उनकी पहुंच कहां तक है। मस्क ने अपने आधिपत्य में लेने के बाद ही इसके मुख्य कर्ताधर्ता पराग अग्रवाल को बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद हजारों की तादात में कर्मचारियों की छंटनी और हर दिन नए आदेशों से बौखलाए कर्मचारियों का सामूहिक इस्तीफा बहुत कुछ कह रहा है।

विशेष पहचान देने वाले ब्लू टिक की व्यवस्था के लिए प्रतिमाह 8 डॉलर के भुगतान वसूली की व्यवस्था लागू कर दी गई है। इसे लेकर भी दुनियाभर में ट्विटर के यूजर्स के बीच बड़ी बहस चल रही है। मस्क ने पहले साफ किया था कि इस प्लेटफार्म का उपयोग वे पैसे बनाने के लिए नहीं करने वाले पर उनका हर कदम साफ—साफ इसके माध्यम से पैसे कमाने वाला ही साबित होता दिख रहा है।

पर मस्क इससे अपने उद्देश्य से पीछे हटे हों ऐसा तो कतई नहीं दिख रहा है। बीती रात ट्विटर के नए मालिक एलन मस्क ने नई पॉलिसी जारी की है। इसे लेकर उनका यह ट्विट सुर्खियों में है। उन्होंने कहा है कि ‘ट्विटर में अभिव्यक्ति की आजादी होगी पर पहुंच की नहीं…!’ इसके साथ ही उन्होंने यह भी साफ किया है कि ‘नफरती और वैमन्यसता फैलाने वाली ट्विट को डीबूस्ट और डिमोनेटाइज किया जाएगा।’ मतलब साफ है कि आने वाले दिनों में सोशल मीडिया के इस प्लेटफार्म में बहुत कुछ बदला हुआ मिलेगा।

सवाल यह है कि मस्क के सोशल मीडिया के इस प्लेटफार्म को लेने मात्र से दुनिया में किस तरह का बदलाव आएगा? ट्विटर ने अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंफ के अकाउंट को सस्पेंड कर दिया था। वजह थी कि चुनाव के बाद अमेरिका में तो माहौल बिगड़ा उसके लिए ट्विटर ने उन्हें दोषी माना था।

अब मस्क ने एक पोल जारी किया है जिसमें उन्होंने डोनाल्ड ट्रंप के अकाउंट को एक्टिवेट करने के लिए लोगों से राय मांगी है। जिसमें अब तक करीब ढाई मिलियन लोगों ने हिस्सा लिया है इसमें करीब साठ प्रतिशत की राय ‘हां’ में है। यदि इस पोल के बाद ट्रंप का अकाउंट एक्टिवेट होगा तो साफ है कि यह ट्विटर के साथ—साथ सोशल मीडिया के लिए नए युग जैसा होगा।

सवाल यह नहीं है कि ट्रंप के अकाउंट के एक्टिवेट होने मात्र से दुनिया में कुछ सही या गलत नहीं हो जाएगा। बल्कि मस्क ने जिस तरह की पॉलिसी जारी की है उससे साफ है कि दुनिया में शक्तिशाली व्यक्ति के पास दुनिया में पहुंच का रास्ता आसान होगा और पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक व्यवस्था को कुछ शक्तिशाली लोग अपने प्रभाव व पहुंच के दम पर चलाते नजर आ सकते हैं।

आज दुनियाभर में सोशल मीडिया के प्लेटफार्म को लेकर हर राजनैतिक दल की स्थिति मजबूरी जैसी हो गई है। साफ है कि जिस राजनैतिक विचारधारा के मस्क समर्थक होंगे उसके लिए राह आसान होगी। यह कतई लोकतांत्रिक नहीं होगा। इस तथ्य को पूरे गंभीरता के साथ समझना होगा। क्योंकि बीते करीब पांच बरस से सोशल मीडिया के प्लेटफार्म के पहुंच को लेकर भारी बहस का दौर हिंदुस्तान में चल रहा है। हिंदुस्तान की राजनीति में फेसबुक, ट्विटर, वाट्सएप और इंस्टाग्राम जैसे प्लेटफार्म का उपयोग भ्रम फैलाने के लिए बड़े पैमाने में हो रहा है। इन माध्यमों से प्रसारित हो रहे ‘झूठ और सच’ को लेकर सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जाहिर कर चुका है।

यह तय करना काफी कठिन हो गया है कि सोशल मीडिया में विस्तार पा रही बातें कितनी सच्ची और कितनी झूठी हैं! इसका इस्तेमाल विशेषकर राजनीतिक दलों के आईटी सेल के द्वारा किया जा रहा है। इसी आईटी सेल के ट्रोल्स को लेकर भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म में बहुत से लोग अपनी मंशा जाहिर करने तक से कतरा रहे हैं।

इन प्लेटफार्म के माध्यम से भले ही अभिव्यक्ति की आजादी की कितनी भी दलील दी जाए पर यह व्यवस्था कर पाना किसी भी प्लेटफार्म के लिए संभव नहीं है कि वह किस कंटेट को गलत या सही मानें! इसका नतीजा यही होगा कि यदि शक्तिशाली माध्यम से झूठ परोस दिया गया तो वह झूठ सच के सामने आने तक पूरी दुनिया में अपना राज कर सकेगा।

हिंदुस्तान की सबसे बड़ी मुसीबत उसका अपना इतिहास है। इसकी अपनी सनातन संस्कृति और हिंदु पौराणिक कथाओं के साथ विभिन्न धार्मिक चिंतनों के बीच स्वीकार्यता और अस्वीकार्यता का सदियों पुराना इतिहास है। यहां इसी चिंतन के सहारे राजनीतिक विचार प्रचार या दुष्प्रचार के शिकार हो रहे हैं। यहां की राजनीतिक समझ में इतिहास को अपने—अपने तरीके से परोसने और व्याख्या करने के कारण यह तय करना काफी हद तक कठिन हो गया है कि कौन कितना सच कह रहा है?

हिंदुस्तान में हेट स्पीच की सबसे बड़ी वजहों में से उपरोक्त एक सबसे गंभीर है। बहुधर्मी, बहुभाषी, बहु संस्कृति, बहु क्षेत्रीय और भौगोलिक परिस्थितियों से परिपूर्ण इस राष्ट्र में आजादी के पूर्व और आजादी के बाद के कई चिंतनों को लेकर बहुत सारी भ्रांतियां हैं। इसका सीधा प्रभाव यहां चुनाव में साफ तौर पर दिखता भी है। ऐसे समय में यदि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर हर तरह के झूठ के लिए रास्ते खोल दिए जाएंगे तो यहां नफ़रत के विस्तार के लिए अनुकूल माहौल बन जाएगा। जिसका परिणाम और भी ज्यादा घातक होगा। इस बात का चिंतन भी करना जरूरी है।

सोशल मीडिया प्लेटफार्म के मालिक यदि इसे केवल पैसे कमाने का जरिया बनाने का प्रयास करेंगे तो इसके नतीजे बेहद घातक हो सकते हैं। एलन मस्क ने अपनी पालिसी में एक बात तो साफ किया है कि ‘ट्विटर पर सबके लिए बोलने की पहुंच होगी पर उसके प्रसार की पहुंच का दायरा कंपनी के पास होगा।’ यदि इस बात का वे कड़ाई से पालन करना चाहेंगे तो इसके लिए हर देश के लिए उन्हें ‘सच—झूठ’ को परखने वालों की एक टीम तैनात करनी होगी। वह भी बिना किसी विचारधारा के समर्थन के निष्पक्ष तौर पर निर्णय लेने वालों के तौर पर… जो कि आसान तो कतई नहीं है…।

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