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विडंबना : दंतेवाड़ा ज़िला जहां हमने कुछ गाँवों को 21वीं सदी में पहुंचने से रोक दिया… बस्तर के हिस्से में ना जाने कितने ऐसे गाँव…?

मन्नू मरकाम। दंतेवाड़ा। दंतेवाड़ा ज़िले में छत्तीसगढ़ का दूसरा सबसे ज़्यादा राजस्व डिस्ट्रिक्ट मिनरल फंड से हासिल होता रहा है। राशि करोड़ों में है। यहाँ ना जाने कितने गाँव में अंधेरा कायम है, ना जाने कितने गाँव में पहुँच मार्ग का अभाव है। ना जाने कितने गाँवों को और कितने समय तक बीमार होने पर चारपाई के सहारे हास्पिटल तक पहुँच पाने की मजबूरी है… ये वे गाँव हैं जब हिंदुस्तान 21वीं सदी में खुद को पहुँचा रहा था तब ये गाँव उनके हाल में पीछे छोड़ दिए गए… मानो

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माओवादी हमलों को लेकर सभी की बेसुधगी ही हादसों का असल सबब…

सुरेश महापात्र।  हर हादसे के बाद दुख का सैलाब और आरोपों की झड़ी के बीच भावी माओवादी हमलों को लेकर सभी की बेसुधगी ही हादसों का असल सबब है। आप मौतों के बाद मातम तो मना सकते हैं… कड़ी कार्रवाई और कड़ी निंदा जैसे शब्दों का प्रयोग तो कर सकते हैं पर ऐसे हमलों को स्थाई तौर पर रोकने का इंतजाम तभी कर सकते हैं जब सुरक्षा मानकों के पालन में कोताही कतई ना की जाए…! बीते 26 अप्रेल को माओवादियों के IED ब्लास्ट की जद में आने से अरनपुर

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नारायणपुर का ब्रेहबेड़ा गांव में खुला नया पुलिस कैंप… टकराव की स्थिति… गांववालों का आरोप सुरक्षा के नाम पर दमन कर रहे जवान…

इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर। छत्तीसगढ़ के नारायणपुर जिले के कोहकामेटा ब्लॉक के ग्राम पंचायत मेटानार के आश्रित ग्राम ब्रेहबेड़ा में 1 नवंबर को पुलिस कैंप के विरोध में जुटे ग्रामीणों ने आंदोलन शुरू किया। 28 नवंबर को इन आदिवासियों को पुलिस ने आंदोलन स्थल से खदेड़ दिया। फिर दोबारा ये गांववाले एकजुट होकर 11 दिसंबर को ब्रेहबेड़ा गांव के जंगल में सड़क किनारे अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन पर बैठ गए हैं। स्थानीय आदिवासियों का आरोप है कि 16 दिसम्बर की सुबह 7 बजे से पुलिस वालों ने कैंप लगाकर इलाके को घेर

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#NAXAL दक्षिण बस्तर में माओवादियों की किलेबन्दी, महाराष्ट्र-तेलंगाना में आधार हुआ कमजोर, माड़ के बाद बीजापुर-सुकमा सरहद से संगठन को केंद्रित करने की जुगत…

P.Ranjan Das.Ground Report… बीजापुर। तेलंगाना और महाराष्ट्र में संगठन पर बढ़े दबाव के बाद माओवादी दक्षिण बस्तर के बीजापुर-सुकमा के सरहदी इलाकों पर पूरी तरह से ध्यान केंद्रित करने विवश है।  शहीद सप्ताह के दौरान बस्तर के सघन वन और आदिवासी बहुल वाले इस इलाके में माओवादियों द्वारा आयोजित बड़ी सभा और पक्के मंच को लेकर सुरक्षा से जुड़े जानकार यही कह रहे हैं। अब तक दंडकारण्य में अबुझमाड़ को माओवादियों की अघोषित राजधानी बताया जाता रहा है, लेकिन बीते एक दशक में बीजापुर-सुकमा के सरहदी इलाके में तेज हलचल

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Exclusive Story : ” कभी नक्सली कमांडर रहे मड़कम ने कहा : मुख्यमंत्री जी आपने सड़क , कैम्प और स्कूलों को सुधारकर बदल दी है नक्सल प्रभावित इलाके की तस्वीर “

” मेरे बच्चे पढ़ रहे इंग्लिश मीडियम स्कूल में और जी रहे अच्छी लाइफ स्टाइल “ मड़कम मुदराज ने मुख्यमंत्री को सुनाई आपबीती.. कहा आत्मग्लानि में किया सरेंडर…पहले एसपीओ बना और आज हूं इंस्पेक्टर मड़कम के हाथों में हथियार अब भी , लोगों की जान लेने नहीं बल्कि बचाने के लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने इंस्पेक्टर मड़कम को अपने पास बुलाकर कंधे पर हाथ रखा और बजवायी ताली रायपुर । मुख्यमंत्री जी आपने सड़क , कैम्प और स्कूलों को सुधारकर नक्सल प्रभावित इलाके की तस्वीर बदल दी है । अब

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#between naxal and force कोंटा इलाके के 2500 वर्ग किलोमीटर तक विस्तारित आधार क्षेत्र में माओवादियों की C+4 टेक्टिस से ताड़मेटला में सीआरपीएफ को सबसे बड़ा नुकसान…

सुरेश महापात्र। सलवा जुड़ूम की परिस्थितियों में मीडिया अपना काम तो कर रही थी पर उसे बहुत ज्यादा सर्तकता बरतने की स्थिति रही। इसकी बहुत सी वजहें रहीं… (11) आगे पढ़ें…   दोरनापाल से चिंतलनार होते हुए जगरगुंडा दूरी 50 किलोमीटर और दोरनापाल से एर्राबोर होकर कोंटा करीब 50 किलोमीटर यानी करीब 2500 वर्ग किलोमीटर इलाके में माओवादियों का आधार क्षेत्र फैला हुआ है। एनएच के एक ओर सबरी का प्रवाह और दूसरी ओर माओवादियों का गढ़। विशेषकर इस इलाके में माओवादियों ने अपना आधार क्षेत्र बनाया हुआ है। 6

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between naxal and force हिमांशु कुमार ने इस तरह छोड़ा दंतेवाड़ा… सोढ़ी संभो प्रकरण के साथ VCA का 18 बरस का सफर ठहर गया… 

सुरेश महापात्र। पुलिस व प्रशासन की निगाह अब इस आश्रम की हर गतिविधि पर रहने लगी…  10 से आगे पढ़ें… कोंटा इलाके के गोमपाड़ में 1 अक्टूबर 2009 को सोढ़ी संभो के बताए मुताबिक एक मामला सामने आया। जिसकी सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। दावे के मुताबिक इस महिला के साथ सुरक्षा बलों ने ना केवल दुर्व्यवहार किया बल्कि गोली भी चलाई जिससे उसके दाएं पैर में गोली लगी। याचिका में कथित तौर पर सोढ़ी संभो की ओर से बताया गया कि ‘घटना वाले दिन इंजरम कोंटा कैंप

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between naxal and force जब शुरू कर दी गई हिमांशु की घेराबंदी, ढहा दिया गया कंवलनार का आश्रम… सोढ़ी संभो मामला और माओवादियों से रिश्ते पर रार…

सुरेश महापात्र। सलवा जुड़ूम के बाद बिगड़ी हुई परिस्थितियों में किसी पुलिस अफसर का तेज तर्रार होना… दोनों ही तरह से खतरे का संकेत साबित हुआ। (9) …आगे पढ़ें   अपने तबादले से ठीक पहले राहुल शर्मा ने हिमांशु कुमार के कंवलनार आश्रम को तोड़ने में बड़ी भूमिका का निर्वाह किया। करीब 17 बरस तक दंतेवाड़ा जिले में एक एनजीओ के तौर पर काम करते हुए हिमांशु ने गोंडी बोली पर अपनी पकड़ बना ली थी। वे शुरूआती दौर में महेंद्र कर्मा के काफी नजदीकी माने जाते रहे। दंतेवाड़ा जिला के

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#between naxal and force सलवा जुड़ूम : कोया कमांडो का वह दौर और मुठभेड़, हत्याएं… बाहरी बनाम स्थानीय मीडिया की वह दास्तां…

सुरेश महापात्र। इस तरह से धीरे—धीरे समूचा दक्षिण बस्तर युद्ध क्षेत्र में तब्दील होता चला गया जहां वर्ग संघर्ष तो चल ही रहा था। पर बेशकीमती जान केवल एक ही वर्ग गवांता नजर आने लगा… से आगे (8) सलवा जुड़ूम शुरू होने के बाद दक्षिण बस्तर के बीजापुर से लेकर कोंटा तक वारदातों का दौर शुरू हो गया। पुलिस रिकार्ड में अकेले 2006 में करीब 50 और 2007 में करीब दो दर्जन से ज्यादा घटनाओं में सैकड़ों की तादात में मौतें दर्ज हैं। इन मौतों में दोनों तरफ से 99

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#between naxal and force राहत शिविर और फोर्स पर ताबड़तोड़ हमलों से सलवा जुड़ूम को लगने लगा झटका…

सुरेश महापात्र। वे हमले के दौरान चढ़ाई में उपयोग करते और हमले में किसी साथी की मौत होती तो उसे उसी सीढ़ी में उठाकर चले जाते। (7) आगे पढ़ें…   बीजापुर इलाके में सलवा जुड़ूम के प्रभाव को देखते हुए इसके सुकमा—कोंटा इलाके में विस्तार की घोषणा नेतृत्वकर्ता महेंद्र कर्मा ने कर दी। उनकी घोषणा के बाद कर्मा समर्थकों ने सबसे पहले दोरनापाल से कोंटा तक रैली निकाली। इस रैली में राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे गांवों के लोगों को माओवादियों का साथ छोड़ने और शांति का पक्ष लेने के लिए दबाव

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