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CG IMPACT लगातार : सरकार बदल गई पर किलोल का सवाल अब तक कायम…! अब बजट सत्र में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर के सवाल से असल जवाब मिलने की उम्मीद…

सुरेश महापात्र।

कांग्रेस के कार्यकाल में विधानसभा के आखिरी सत्र में किलोल बाल पत्रिका खरीदी पर काफी बवाल मचा था। संकुल के लिए पुस्तकों में से एक किलोल और बाल पत्रिका की खरीदी प्रक्रिया में अनियमितता के आरोप लगे थे। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर में आरोप लगाया था कि निजी लोगों पर भी दबाव डालकर किलोल पत्रिका खरीदने के लिए मजबूर किया गया है।

भारत सरकार से समग्र शिक्षा अंतर्गत सभी शालाओं के लिए स्तर के हिसाब से राशि मुहैया करवाई जाती है। जिसके लिए केंद्रीकृत खरीदी समग्र शिक्षा द्वारा की जा रही है। इसकी राशि करोड़ों में हैं। जिसके तहत प्राथमिक शाला को पांच हजार रुपए प्रति शाला, मिडिल स्कूल को 13 हजार रुपए, हाईस्कूल को 15 हजार रुपए और हायर सेकेंडरी स्कूल को 20 हजार रुपए के मान से करीब 40 करोड़ रुपए की किताबें प्रतिवर्ष लाइब्रेरी में दी जा रही हैं। यदि किलोल पत्रिका इतनी ही लाभदायक है तो सभी शालाओं के लिए इस मद से खरीदी कर सप्लाई क्यों नहीं करवाई गई?

जबकि बीते सत्र में जब डा. आलोक शुक्ला शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव रहे उस दौरान ऐसी क्या जल्दबाजी रही कि संकुल स्तर पर एक—एक पत्रिका के नाम पर आकस्मिक निधि से 10—10 हजार रुपए आजीवन सदस्यता के नाम पर वसूले गए? यही सवाल हमने उठाया है। जिसका जवाब कोई देने को तैयार नहीं है। एक संकुल में पांच से दस स्कूल आते हैं। जिसमें औसत करीब पांच सौ छात्र शामिल होते हैं। यानी संकुल के लिए एक मात्र पत्रिका की खरीदी से सिवाए ‘विंग्स टू फ्लाई’ के अलावा किसी को लाभ मिलता नहीं दिख रहा है। यही हम लगातार उठा रहे हैं।

विधानसभा अध्यक्ष ने विभाग से पत्रिका ख़रीदी की पूरी जानकारी हफ़्ते भर में उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। विभाग ने पूछताछ की और खरीदी की पूरी जानकारी विधानसभा अध्यक्ष को भेज दी है। अब सरकार बदल चुकी है। पर किलोल का सवाल जहां का तहां लटका हुआ है। विधानसभा के बजट सत्र में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर ने एक बार फिर किलोल को लेकर सवाल किया है।

इस सवाल का जवाब अब बदली हुई परिस्थिति में क्या मिलता है और तो और मामले की विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष चरणदास महंत अब नेता प्रतिपक्ष हैं और सवाल उठाने वाले विधायक सत्ता पक्ष से हैं। विधानसभा अध्यक्ष के तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह हैं। यानी परिस्थितियां पूरी तरह बदल चुकी हैं। ऐसे में किलोल का कांटा शिक्षा विभाग को कितना चुभेगा यह देखना दिलचस्प होगा।

सीजीइम्पेक्ट ने 14 मई 2021 को पहली बार किलोल को लेकर एक्सक्लूसिव खबर दी थी। इसमें किलोल की आड़ में चल रहे एक बड़े खेल को उज़ागर किया था। मामला लटकता और अटकता रहा। इसे लेकर सत्ता पक्ष ने मौन साधे रखा पर उस समय विपक्ष के विधायक किलोल के सवाल को लेकर सदन में पहुंचते रहे। जवाब में सत्ता पक्ष ने इस मामले को ढांकने का ही काम किया।

दरअसल इस मामले में तत्कालीन शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डा. आलोक शुक्ला स्वयं बड़े किरदार रहे तो सत्ता का संरक्षण स्वाभाविक था। यही वजह थी कि बाल पत्रिका के नाम पर आर्थिक अनियमितता के इस बड़े मामले पर किसी ने ध्यान देने की कोशिश तक नहीं की।

बड़ी बात तो यह है कि इम्पेक्ट के सवाल उठाने के बाद शिक्षा विभाग के तत्कालीन प्रमुख सचिव डा. आलोक शुक्ला ने फेसबुक पर अपना पक्ष रखा। हमने आरएनआई के शीर्षक प्रमाणपत्र को भी प्रकाशि​त किया था। इसके बाद जब वे सवालों से​ घिरते दिखे तो सबसे पहला काम किया कि अपने नाम और पते पर दर्ज किलोल के स्वामित्व परिवर्तन की प्रक्रिया पूरी की। देखिए दोनों पंजीयन प्रमाण पत्र की आरएनआई प्रति।

स्वामित्व परिवर्तन क्यों करना पड़ा?
इस सवाल का यही जवाब है कि पूर्व में नि:शुल्क प्रसार के लिए पंजीकृत किलोल का व्यापार शुरू कर दिया गया था। इसके लिए बकायदा संकुल स्तर से वसूली की जाने लगी थी। राशि विभाग के ही उनके दो कर्मचारियों के खातें में सीधे लिए जा रहे थे। जिसकी जानकारी टेलिग्राम चैनल पर दी गई थी। इन संबंधितों के खाते में जमा की गई रकम की जांच अब तक नहीं करवाई गई है।
देखें पूर्व और वर्तमान पंजीयन की कॉपी

उल्लेखनीय है कि किलोल की आजीवन सदस्यता के लिए समग्र शिक्षा प्रबंध संचालक नरेंद्र दुग्गा ने आदेश जारी किए थे। यह मामला तब हुआ जब प्रदेश में डा. प्रेमसाय सिंह टेकाम शिक्षा मंत्री रहे। इसके बाद जब कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री की जिम्मेदारी रविंद्र चौबे को सौंपी गई तो पहली बार शिक्षा विभाग ने पूरा खेल बाहर कर दिया। इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष के निर्देश पर विभागीय रिपोर्ट स्कूल शिक्षा मंत्री रविंद्र चौबे के सामने प्रस्तुत कर दिया गया।

मजेदार बात तो यह है कि विधानसभा में किलोल की खरीदी के संबंध में कुल पांच बार सवाल उठाए गए। पर यह अंतिम बार में इस पत्रिका को लेकर तथ्यात्मक सच्चाई सामने आ सकी। सबसे पहले किलोल का पंजीयन डा. आलोक शुक्ला के स्वामित्व पर ही था। इम्पेक्ट ने जब यह खुलासा किया और इस मामले में तकनीकी बिंदुओं को उजागर किया तो इस पत्रिका के स्वामित्व परिवर्तन के लिए ‘विंग्स टू फ्लाई’ एनजीओ के नाम कर दिया। इस पत्रिका के प्रकाशन और प्रसार से जुड़े अधिकतर लोग आज भी शिक्षा विभाग में ही कार्यरत हैं।

निशुल्क प्रकाशन वाली इस पत्रिका के नाम पर स्वामित्व परिवर्तन से पूर्व दो शासकीय कर्मचारियों के निजी खातों में राशि जमा करवाई गई। इसके बाद इसके खातों का संचालन ‘विंग्स टू फ्लाई’ नामक संस्था के अधीन कर दिया गया। महज आठ से दस रुपए वाली मासिक पत्रिका के आजीवन सदस्यता के नाम पर शिक्षा विभाग के अधीन सभी संकुलों के आ​कस्मिक निधि से राशि की वसूली करवाई गई।

मजेदार बात तो यह है कि एक संकुल के अधीन आठ से दस स्कूलों का संचालन होता है। ऐसे में किसी एक संकुल में एक बाल पत्रिका से सभी स्कूलों के बच्चों को यह पत्रिका पढ़ने के लिए कैसे उपलब्ध करवाई जा सकती है? इस सवाल का कोई जवाब मिल नहीं रहा है।

इस पत्रिका के वार्षिक सदस्यता हेतु जितनी राशि ली गई इससे अच्छी से अच्छी किताब खरीदी जा सकती थी। विभागीय जमीनी अमला इस खरीदी प्रक्रिया को लेकर संशय में रहा पर आला अफसर की दबंगई के सामने हर कोई नतमस्तक होता रहा। संभव है अब विधानसभा अध्यक्ष चरण दास महंत इस मामले की तह तक पहुंचकर जिम्मेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का रास्ता खोल दें।

पूर्व में प्रकाशित सभी खबरों के लिंक ​नीचे

14 may 2021

EXCLUSIVE “किलोल” बस पत्रिका ही नहीं बल्कि अफसरी की आड़ में धंधा है…

इम्पेक्ट की खबर पर मीडिया को दी गई सफाई…

https://www.naidunia.com/chhattisgarh/raipur-controversy-over-children-magazine-killol-proud-to-be-the-editor-of-killol-does-not-do-business-under-the-guise-of-officer-shukla-6856661

Publish Date: Wed, 19 May 2021 08:33 AM

रायपुर, राज्य ब्यूरो। Controversy Over Children Magazine Killol: बच्चों के लिए मुफ्त पत्रिका किलोल का संचालन कर रहे आइएएस आलोक शुक्ला पर अफसरी की आड़ में धंधा करने का आरोप लगाया जा रहा था। इन आरोपों के बीच आइएएस शुक्ला ने करारा जवाब दिया है। शुक्ला ने कहा कि किलोल पत्रिका का संपादक मैं ही हूं और मुझे इसका गर्व है। इसे एक वेब पत्रिका के रूप में दिसंबर 2016 में प्रारंभ की थी, जब सरकार में मेरे पास कोई भी प्रभार नहीं था। इसे मैंने कड़ी मेहनत से खड़ा किया और यह पत्रिका बच्चों और शिक्षकों दोनों के बीच खासी लोकप्रिय हो गई। मैंने पत्रिका से कोई धन नहीं कमाया, बल्कि उस पर कुछ जेब से खर्च ही किया है। आज कल काम अधिक हो जाने के कारण पत्रिका का मालिकाना हक विंग्स टू फ्लाई नामक संस्था को ट्रांसफर कर दिया है। शुक्ला ने बताया कि पत्रिका के प्रति प्रेम के कारण आज भी किलोल का अवैतनिक प्रधान संपादक हूं। इस पत्रिका में न केवल छत्तीसगढ़ के बल्कि अन्य प्रदेश के लेखक भी अपनी रचनाएं भेजते हैं। कागज पर छपी पत्रिका प्रदाय करने के लिए सदस्यता शुल्क लिया जाता है, लेकिन पीडीएफ और ई-बुक के रूप में सभी के लिए निश्शुल्क उपलब्ध है। शुक्ला ने कहा कि किलोल की वेबसाइट का संचालन किया जाता है, इसलिए वेबसाइट की प्राइवेसी पालिसी में मेरा ई-मेल पता दिया गया है।
किलोल के माध्यम से मिला बच्चों का प्यार : शुक्ला ने कहा कि किलोल के माध्यम से मुझे बहुत से बच्चों और शिक्षकों का प्यार मिला है और आंतरिक खुशी मिली है। किलोल को धंधा कहने वाले, न तो बाल-साहित्य के बारे में जानते हैं और न ही बच्चों तथा शिक्षकों की आवश्यकताओं को समझते हैं। प्रेम, सद्भाव जैसे शब्द तो शायद उन्होंने सुने ही नहीं हैं। जो स्वयं धंधेबाज हैं, उन्हें ही हर चीज में धंधा नजर आता है।

20 may 2021

किलोल : प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला का जवाब गोल—मोल… आखिर पत्रिका में शिक्षा विभाग के ​अधिकारी ही क्यों? सहायक संचालक एम सुधीश की भूमिका ‘गंगाधर ही शक्तिमान’ जैसा…

26 september 2021

‘विंग्स टू फ्लाई’ अब उड़ान की तैयारी… एक सप्ताह में 5500 संकुलों से साढ़े पांच करोड़ वसूली की तैयारी… शिक्षा मंत्री बैठे रहे… संविदा अफसर ने दिया डीईओ, डीएमसी और जेडी को फरमान कोई पूछे तो कह देना ‘मैंने कहा है…!’

21 july 2023

विंग्स टू फ्लाई की उड़ान पर आज अजय चंद्राकर के सवाल का जवाब देंगे शिक्षा मंत्री… ‘किलोल’ को लेकर सीजी इम्पेक्ट ने सबसे पहले उठाया था सवाल… बाल पत्रिका का ऐसा खेल जिसमें खजाने से निकाल लिए गए करीब पांच करोड़ रुपए…

8 august 2023

‘किलोल’ की फांस में शिक्षा विभाग के आला अफसर… विधानसभा अध्यक्ष के निर्देश पर हुई जांच में विभाग ने माना आजीवन सदस्य बनाने का निर्देश गलत था!

जिस पत्रिका की आजीवन सदस्यता के लिए दबाव डाला जा रहा है। इस संबंध में कुछ जानकारी तो पाठकों को मिलना ही चाहिए… मसलन

पत्रिका की ​कीमत क्या होना चाहिए?
किलोल पत्रिका की कीमत किसी भी हाल में दस रुपए से ज्याद नहीं हो सकती।
क्यों?
इसमें प्रकाशित जानकारी और संकलन के लिए किसी भी प्रकार की राशि का उपयोग नहीं किया जा रहा है।
आन लाइन पत्रिका के लिए लागत और भी कम हो सकती है।

यदि सामान्य गणित के हिसाब से देखा जाए तो 5500 प्रति की छपाई का कुल खर्च करीब 55 हजारू रूपए मात्र बैठता है। वह भी मासिक।

जो राशि वसूली की तैयारी है तो उसके हिसाब से प्रति माह करीब एक प्रतिशत ब्याज की राशि का ही हिसाब किया जाए तो करीब साढ़े पांच लाख रुपए बैठता है।

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