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तो क्या छत्तीसगढ़ में भाजपा ने अपनी रणनीति का ऐलान कर दिया है… आदिवासी नहीं अब ओबीसी वोटबैंक लक्ष्य…

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सुरेश महापात्र। त्वरित टिप्पणी।

छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने विश्व आदिवासी दिवस के दिन अपने संगठन का सबसे बड़ा बदलाव कर दिया है। अब प्रदेश में संगठन की कमान आदिवासी के स्थान पर पिछड़ा वर्ग के हाथ सौंप दी गई है।

विष्णु देव साय छत्तीसगढ़ में भाजपा के संगठन प्रमुख की भूमिका में थे। उनकी जगह पर बिलासपुर से सांसद अरूण साव को प्रदेश अध्यक्ष का दायित्व सौंपा गया है।

विष्णु देव साय भले ही आदिवासी वर्ग से आते हैं पर संगठन की भाषा में वे पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के खेमे के ही थे। 2018 में चुनाव के बाद रमन लगातार ज़मीनी कार्यकर्ताओं के निशाने पर रहे। रमन के रहते आदिवासी बहुल सरगुजा और बस्तर संभाग से भाजपा का सफ़ाया हो गया। प्रदेश अध्यक्ष विक्रम उसेंडी की जगह विष्णु देव साय को शिफ़्ट करने के बाद नेताप्रतिपक्ष की दौड़ में भी रमन बाजी मार ले गए।

नेता प्रतिपक्ष के तौर पर धरमलाल कौशिक को लेकर सदन के भीतर से बाहर तक कमजोरी साफ दिखाई देती है। कौशिक की जगह पर अजय चंद्राकर सत्ता के खिलाफ ज़्यादा आक्रामक दिखाई देते हैं।

बृजमोहन प्रदेश में भले ही भाजपा का बड़ा चेहरा हैं पर उनकी स्थिति कांग्रेस शासित इस राज्य में किसी मंत्री से कम क़तई नहीं है।

सत्ता के गलियारों में भी साफ़ संदेश है कि बृजमोहन के यहां से आई कोई फाइल रूकनी नहीं चाहिए। भाजपा की मजबूरी यही है कि जिनके आसरे पार्टी थी उसने डूबो दी। उपचुनाव में पूरी ताकत लगाने के बाद भी रमन ध्वस्त हो गए।

संगठन के प्रमुख के तौर पर विष्णु देव प्रासंगिक नहीं दिखाई दे रहे थे। पर चेहरा कौन हो? यह सवाल सबसे बड़ा रहा। छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने पूरी ताकत झोंकने की तैयारी कर ली है। बस्तर से सरगुजा तक हर एक विधानसभा को लेकर भाजपा जमीनी मंथन पर जुटी है। बूथ लेबल तक विधानसभा प्रभारी दस्तक देकर लोगों को उत्साहित करने का काम कर रहे हैं। बस एक कमी रही कि प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर किसे नियुक्त किया जाए?

जवाब दे दिया गया है सांसद अरूण साव की नियुक्ति का मतलब साफ है चेहरा नया और नई नेतृत्व शैली के साथ नये लक्ष्य को भेदने की तैयारी।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के भीतर ढाई साल वाले फ़ार्मूला की ख़बरों के बाद भी भाजपा संगठन एंटी गवर्मेंट का माहौल खड़ा करने में नाकामयाब रही।

दरअसल भाजपा के सामने सबसे बड़ी चुनौती मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की आक्रामक राजनीति है। वे हर बार भाजपा की रणनीति के सामने 21 ही साबित हुए। जब भी लगा भूपेश अब घिर गए तब ही कुछ ऐसा कर दिखाया कि भाजपा समेत उनके विरोधियों का दांव उल्टा पड़ गया।

छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल रूरल बेस्ड पालिसी के साथ आगे बढ़ रहे हैं। आदिवासी समाज को साधने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहे हैं। भूपेश पिछड़ा वर्ग से आते हैं और साध रहे हैं आदिवासी वर्ग को… कई ऐसे बिंदु हैं जिसमें मुख्यमंत्री भूपेश की काट भाजपा तब तक नहीं निकाल सकती जब तक वह डा. रमन के चेहरे और आसरे से पार्टी को बाहर लेकर ना चली जाए।

डा. रमन का तीसरा कार्यकाल प्रदेश में भाजपा की दुर्गति के लिए सपले बड़ा कारण रहा। रमन ने ज़मीनी कार्यकर्ताओं की जिस तरह से उपेक्षा की उससे बहुत नाराज़गी रही। जिन आदिवासी चेहरों पर रमन ने ताकत लगाई वे भी आकंठ घमंड से चकनाचूर हो गए थे।

यह मामला पार्टी की समीक्षा बैठकों में बार-बार उठा भी। पर भाजपा ने अब यह साफ कर दिया है कि वह छत्तीसगढ़ का मैदान ख़ाली छोड़ने को तैयार नहीं है।

रमन के आसरे भाजपा की राजनीति में दखल रखने वाले सारे चेहरों को यह संदेश साफ दे दिया गया है कि अब जो भी फ़ैसले लिए जाएँगे वे केंद्रीय नेतृत्व की गहन समीक्षा का परिणाम होंगे ना कि छत्तीसगढ़ में बैठे किसी एक बड़े चेहरे के फ़ैसले पर मुहर…

तो अब यह भी समझना होगा कि क्या अब आदिवासी वोटरों के लिए भाजपा कोई बडा कदम उठाने की तैयारी में है। यदि संगठन की कमान ओबीसी के हाथों में है तो यह साफ है कि भाजपा यह संदेश देना चाह रही है कि यदि आदिवासी विधायक ज़्यादा चुकर पहुंचे तो सीएम का चेहरा आदिवासी वर्ग से भी हो सकता है…

बस्तर में पेसा एक्ट को लेकर कांग्रेस सरकार पहले ही नियमावली तैयार कर चुकी है। यानि आदिवासी मतदाता के लिए सबसे बड़ी सौग़ात। यह बहुत पुरानी माँग रही है। पेसा एक्ट को लेकर सीएम भूपेश बघेल ने जगदलपुर की पिछड़ा वर्ग सम्मेलन में घोषणा की थी। यानि वे साफ़ संदेश दे रहे थे कि उन्हें इस एक्ट को लेकर कोई संशय नहीं है। ऐसे में भाजपा को आदिवासी वोटबैंक के लिए आदिवासी चेहरे का दांव खेलना पड़ सकता है… यही संकेत देने के लिए रणनीतिक फ़ैसला अरूण साव की ताजपोशी हो सकती है।

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