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‘धाकड़’ सरकार को सांसदों की जरूरत ही नहीं…

सुरेश महापात्र। जिन लोगों का जन्म मेरी तरह 1971 के बाद हुआ है उनके लिए इस वक्त सबसे बड़ा वक्त है। वे अपनी आंखों से सरकार की ताकत देख सकते हैं। क्योंकि इससे पहले जन्म लेने वाले ज्यादातर ने इंदिरा के युग को देख ही लिया होगा यह माना जा सकता है। हिंदुस्तान में कांग्रेस पर इस बात को लेकर आरोप लगता रहा है कि इसने हिंदुस्तान में 70 बरस तक अपनी सरकार चलाई। इसके साथ ही यह भी आरोप लगता रहा है कि इतने ही बरस तक नेहरू और

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जगदलपुर में #भाजपा की असल लड़ाई भाजपा से… क्या संतोष बाफना का ‘असंतोष’ गुल खिलाएगा? समझिए #जगदलपुर का असल खेल…

सुरेश महापात्र। बस्तर संभाग की 12 में से सबसे ज्यादा प्रभावशाली सीट जगदलपुर की मानी जाती रही है। इकलौती सामान्य सीट में इस बार भारतीय जनता पार्टी ने पूर्व महापौर और भाजपा के संगठन के प्रदेश महामंत्री किरणदेव को टिकट दिया है। 2018 में भी किरण टिकट की दौड़ में थे। ​तब बाफना के खिलाफ आंत​रिक एंटी इंकंबैंसी बहुत बड़ी थी। उनके खिलाफ जबरदस्त करंट था। पर भाजपा भांप नहीं पाई। इस बार भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने किरण देव को मौका दिया। बीते पांच बरस में बहुत कुछ बदल

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भाजपा की दूसरी सूची : ‘कमल’ की झड़ चुकी ‘पंखुड़ियों’ के सहारे की रणनीति…!

सुरेश महापात्र। छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने करीब—करीब अपने सारे पत्ते खोल दिए हैं। बीते पांच बरस तक विपक्ष के तौर पर भारी भरकम सत्ता के सामने बिलबिलाती सी दिख रही पार्टी टिकट चयन के समय कसमसा कर रह गई ऐसा ही लग रहा है। पार्टी के भीतर 2018 में झड़ चुकी पंखड़ियों का बड़ा आसरा दिखाई दे रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को पूरे पांच बरस तक सत्ता से बेदखली के चलते भारी दबाव बनाकर रखा। दबाव भी ऐसा कि वे खुलकर कुछ भी बोलने की

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बेहतर विकल्प हो सकते थे रमेश बैस… नेतृत्व संकट से दौर से गुज़र रही BJP के लिए यह संजीवनी रहती…!

दिवाकर मुक्तिबोध। रमेश बैस छत्तीसगढ़ की राजनीति में बड़ा जाना-पहचान नाम है. वे अभी महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं जिनका कार्यकाल अगस्त 2024 में समाप्त हो जाएगा. तब तक बैस 77 के हो जाएंगे. भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व की दृष्टि से वे भी दर्जनों अन्य की तरह मार्ग दर्शक मंडल के सदस्य बनाए जा सकते हैं जिनके प्रदीर्घ राजनीतिक अनुभवों की जरूरत पार्टी को नही है. भाजपा ने 75 पार नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने का यह बहुत अच्छा रास्ता निकाला है. उन्हें कूडेदान में फेंकने के बजाए सम्मानजनक ढंग

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‘ अर्धविराम ‘ के बहाने कुछ बातें…

दिवाकर मुक्तिबोध। दो मई को प्रेस क्लब में पत्रकार सनत चतुर्वेदी पर केन्द्रित किताब ‘अर्धविराम ‘ के लोकार्पण कार्यक्रम में मुझे शामिल होना था। समय था शाम साढे पांच बजे । आधे घंटे पहले मैं घर से निकल ही रहा था कि एकाएक मौसम बुरी तरह बिगड़ गया। तेज आंधी तूफान के साथ बरसात भी शुरू हो गई। करीब एक सवा घंटे के बाद आसमान साफ हुआ। अंधड शांत हुआ और बरसात भी थम गई पर विलंब हो चुका था लिहाजा मेरा जाना रूक गया। जबकि इस कार्यक्रम में शामिल

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रतन टाटा की सादगी की पूरी दुनिया में तारीफ… बॉडीगार्ड के बिना Nano गाड़ी से पहुंचे ताज होटल…

इम्पैक्ट डेस्क. भारत के जाने-माने उद्योगपति रतन टाटा अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं। दुनिया में यदि विनम्र व्यवसायियों की गिनती होती है तो उन्हें पहले स्थान पर रखा जाता है। इसी क्रम में एक ताजा वाकया सामने आया है जहां उनकी सादगी ने सोशल मीडिया पर लोगों का दिल जीत लिया है और लोग उन्हें ‘लीजेंड’ कह रहे हैं। आइए बताते हैं आखिर रतन टाटा एक बार फिर से क्यों सुर्खियों मे हैं। दरअसल, सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हो रहा है जिसमें टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन रतन

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दलित परिवार को श्मशान घाट के चबूतरे पर अंतिम संस्कार से रोका… 3 गिरफ्तार…

इंपैक्ट डेस्क. मध्य प्रदेश के गुना जिले में कुछ लोगों ने एक दलित परिवार को श्मशान घाट के चबूतरे पर अपने एक परिजन का अंतिम संस्कार करने से कथित तौर पर रोका गया। मामले में पुलिस ने तीन लोगों को गिरफ्तार किया है। एक अधिकारी ने सोमवार को यह जानकारी दी। जानकारी के मुताबिक, रोके जाने के बाद दलित परिवार ने श्मशान घाट में ऊंचे चबूतरे के पास ही जमीन पर रिश्तेदार का अंतिम संस्कार किया। घटना गुना जिला मुख्यालय से 62 किलोमीटर दूर कुंभराज थाना क्षेत्र के चांदपुरा गांव

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सुलगते सिलगेर पर बाहरी हवा का दबाव… 

सुरेश महापात्र। बस्तर के साथ अक्सर ऐसा ही होता रहा है। नक्सली और पुलिस यहां की दो धुरी है। जिनके इर्द-गिर्द समूचा सिस्टम संचालित होता रहा है। इस सिस्टम में पंचायत के सरपंच से लेकर जिला कलेक्टर तक शामिल हैं। पर जिन्हें सीधे तौर पर इस सिस्टम का हिस्सा होना चाहिए वे कहीं दिखते नहीं हैं। यानी बस्तर की जनता जिन्हें विधायक और सांसद चुनकर भेजती है वे नदारत रहते हैं।  नक्सली यानी माओवादियों की सेंट्रल कमेटी से लेकर जन मिलिशिया जिन्हें माओवादियों की कथित जनताना सरकार के क्षेत्र का

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हमे अपनी वही पुरानी शिक्षा पद्धति लौटा दो… जिसमें गुरूजी से डर लगता था और…

सुरेश महापात्र। शिक्षा को लेकर इतने सारे प्रयोग हो चुके हैं कि अब किसी गैरवाजिब प्रयोग की मुख़ालफ़त कर देना चाहिए। शिक्षा पद्धति में बदलाव के नाम पर सरकारों ने शिक्षा का बाजारूकरण ज्यादा किया है और हिंदी—अंग्रेजी, निजी—सरकारी स्कूल के वर्गभेद की दीवार खड़ी करने के सिवाए कुछ बेहतर नहीं किया है। आप जरा याद करें कि शिक्षा पद्धति में अब जो बदलाव किए जा रहे हैं क्या वे उस स्थिति से बेहतर हैं जो हमने 1985 से पहले देखा है? शायद नहीं! वजह साफ है कि हमे बीते

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बस्तर की नई राजनीतिक धुरी गढ़ने की तैयारी में हैं भूपेश बघेल…

सुरेश महापात्र। बस्तर में 1980 के दौर से राजनीतिक धुरी जो 2013 तक पूरी तरह से खत्म हो गई उसे नए सिरे से गढ़ने की तैयारी भूपेश बघेल कर रहे हैं। यह सुनने में भले ही अटपटा सा लगे पर यह सबसे बड़ी सच्चाई है कि बस्तर की सभी सीट हार चुकी भारतीय जनता पार्टी और सत्ता रूढ़ कांग्रेस के पास कोई एक ऐसा चेहरा नहीं है जो सभी की पसंद भले ना हो पर एक धुरी बनकर खड़ा हो सके। जिसके इर्द—गिर्द बस्तर की राजनीति घुमाई जा सके। राज्य

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