क्या सरकारों से भरोसा उठ रहा है? यदि ऐसा है तो अभी भी वक्त है सुप्रीम कोर्ट अपनी लक्ष्मण रेखा लांघ ले…
- सुरेश महापात्र।
25 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री के लॉक डाउन की घोषणा के बाद यकायक सब कुछ असमान्य नहीं हुआ। बल्कि यह क्रमश: होता रहा। जब दूसरे चरण के लॉक डाउन की बात उठी तो महानगरों में काम करने पहुंचे दिगर राज्यों के प्रवासी मजदूरों के लिए जीने की राह कठिन होने लगी। काम ठप होने से रोजगार बंद हो गया और जिन ठिकानों पर वे रहते थे वहां से खदेड़े जाने लगे। हालात बदतर होते चले गए और नई बीमारी के संक्रमण का जिस तरह से खतरा प्रचार से फैला उससे जान बचाने और मौत से पहले अपने घर पहुंचने की जल्दबाजी सड़क पर दिखने लगी।
सभी देख रहे थे… पैदल चलते मजबूर मजदूरों के हुजूम को और धिक्कारते भी रहे। ये पूरे देश में कोरोना के लिए सबसे बड़े वाहक होंगे। जो वर्ग अपने घरों पर सुकून के साथ बैठकर लॉकडाउन में जी रहा था वह भी इन मजबूर मजदूरों का सबसे बड़ा आलोचक रहा। यही वक्त था जब सुप्रीम कोर्ट से स्वत: संज्ञान लेकर अपनी लक्ष्मण रेखा लांघना था पर इस घटनाक्रम में न्याय और अन्याय के बीच का फासला तलाश करने में असमर्थ रहे।
खैर कोई बात नहीं वे भी मानव ही तो हैं कोई भगवान थोड़े हैं जो गलती ना कर सकें। असल में सवाल यह खड़ा होता है कि इस कठिन मौके पर जिस व्यक्ति ने खुद को साबित किया अब लोग सरकार और कानून से सहायता नहीं मांग रहे बल्कि उस व्यक्ति से मांग रहे हैं जिसने संवेदनाएं जताई और साथ दिया…।
सोनू सूद जितने लोगों की मदद कर रहे हैं, उतने गुना उनसे मदद मांगने वाले बढ़ते जा रहे हैं। कोई इम्मीग्रेशन में मदद मांग रहा है, किसी के पास बहन के ऑपरेशन के लिए पैसे नहीं है, किसी का बाढ़ में घर बर्बाद हो गया है, किसी की किताबें बाढ़ के पानी से खराब हो गई हैं, किसी के पास पिता के श्राद्ध के लिए पैसे नहीं है।
हर कोई सोनू सूद से संपर्क कर रहा है। पहले जहां लॉकडाउन में केवल फंसे हुए लोगों को घर पहुंचाने के लिए उनकी हैल्पलाइन पर फोन आ रहे थे, अब तो ट्विटर, फेसबुक, हैल्पलाइन, ई-मेल, इंस्टाग्राम हर जगह से मदद की गुहार लग रही है। सोनू सूद फिर भी हर एक के लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनको भी पता है कि सबकी मदद (Help) करना नामुमकिन है।
एक ही दिन में 41,000 से ज्यादा हैल्प मैसेज
बीते 20 अगस्त को अपने ट्वीटर हैंडल पर जानकारी शेयर की। एक ही दिन में उनके पास 41,000 से ज्यादा हैल्प मैसेज आए, 1137 ईमेल, 19000 लोगों ने फेसबुक पर मदद मांगी, 4812 ने इंस्टाग्राम पर, 6741 ने ट्विटर के जरिए उनसे गुहार लगाईं अभी इसमें फोन करने वालों की संख्या उन्होंने नहीं दी है।
1137. mails.
— sonu sood (@SonuSood) August 20, 2020
19000. fb messages
4812. Insta messages
6741. twitter messages.
Today’s HELP messages.
On an average these are the number of requests I get for HELP. It is humanly impossible to reach out to everyone. I still try my best.
Apologies if I missed your message🙏
असल में मसला यह है कि क्या सोनू सूद तक पहुंच रही गुहार का निराकरण अब सरकार के स्तर पर करने की व्यवस्था हो। विपत्ति में जो भी साथ खड़ा होता है लोग उससे ही अपेक्षा रखते हैं। ऐसा ही अब यहां हो रहा है। देश के भीतर सभी राज्य सरकारों में तमाम तरह की व्यवस्था है जिसके बावजूद लोग प्रशासन तंत्र के बजाए सोनू सूद तक अपनी बात पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं।
बस्तर का ही मसला ले लिया जाए। यहां बीजापुर जिले में बाढ़ आई और रिपोर्टर मुकेश चंद्राकर ने न्यूज चैनल पर यह रिपोर्ट चलाई जिसमें बच्ची घर और किताबों के नष्ट होने से दुखी होकर रोने लगी। पूरे दिन यह खबर चली। पर किसी भी तंत्र ने रिएक्ट नहीं किया। इसी खबर को मुकेश चंद्राकर ने सोनू सूद को टैग कर ट्वीट कर दिया। दूसरे दिन सोनू सूद की दो लाइन की रिप्लाई ने पूरी तस्वीर ही बदल ली।
यह खबर सभी बड़े अखबारों के पहले पन्ने पर आ गई। नेशनल न्यूज चैनल पर चलने लगी और प्रशासन पीड़ित बच्ची तक पहुंचकर एक लाख रुपए का चैक थमा आया। उसकी तस्वीर लेकर पोस्ट भी कर दिया। यह अकेली किसी पीड़ित का मसला नहीं है। पर यह इकलौता मामला था जिसे सोनू सूद तक पहुचाया जा सका।
मझे वर्ष 2007 में सुपर स्टार रजनीकांत की फिल्म ‘शिवाजी द बॉस’ की कहानी याद आ रही है जिसमें सिनेमा के रूपहले पर्दे पर जो कुछ हुआ वही कमोबेश ‘सोनू सूद’ कर रहे हैं। वैसा ही भरोसा सोनू सूद पर जताया जा रहा है। पर इस सिनेमा में रिटेक बहुत से थे यदि हिंदुस्तान की राजनीति ने सोनू सूद के साथ भी वैसा ही कुछ कर दिया तो…?
यह विचार करना आपका काम है…