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कांग्रेस के सबसे तेज धर्नुधर भूपेश को ‘अभिमन्यू’ की तरह घेरने की रणनीति का हिस्सा तो नहीं है ये ‘ईडी’ वाले छापे?

सुरेश महापात्र। हाल ही में कलेक्टर कांफ्रेंस में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सभी जिला अधिकारियों को साफ शब्दों में भ्रष्टाचार के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने का संकेत दिया था। इस कांफ्रेंस के दो दिन के बाद ही ईडी ने प्रदेश में छापा मारकर यह जता दिया कि पुराने मामलों की जांच अभी पूरी नहीं हुई है।  अब सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि आखिर केंद्रीय एजेंसियों तक खबरें किनके माध्यम से पहुंचाई जा रही हैं। कहीं 2023 से पहले कांग्रेस के सबसे मजबूत गढ़ छत्तीसगढ़ के धर्नुधर भूपेश बघेल

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Editorial

बिहार में भाजपा के लिए शंखनाद और कांग्रेस के लिए संदेश…

विशेष टिप्पणी / सुरेश महापात्र। बिहार में तमाम अटकलों के बाद मंगलवार की देररात परिणाम घोषित हो गए। इस बार बिहार में कांग्रेस परास्त हुई है। भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय दल होने का दम स्थापित कर दिया है। क्षेत्रीय राजनीतिक दल के तौर पर बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने अपने लिए युवा चेहरा तलाश लिया है। वामपंथी दलों के लिए बिहार से नवजीवन का संदेश आया है। इस चुनाव में सबसे बड़ी हार कांग्रेस की हुई है। यह निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए विचारणीय होना ही चाहिए।

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EditorialState News

सत्ता के साथ संघर्ष की पत्रकारिता और उसके दुष्प्रभाव…

सुरेश महापात्र। आज जब मैने पत्रकार कमल शुक्ला द्वारा अपनी बेटी के जन्मदिन पर लिखे पोस्ट को देखा तो मन में यकायक विचार आया कि ‘हां’ यही तो होता रहा है। पत्रकारिता के साथ। सदैव। चाहे गणेश शंकर विद्यार्थी हों या कई—कई पीढ़ियों के बाद कमल शुक्ला तक… जिसने भी सत्ता के विरूद्ध आवाज उठाई उसे बहुत कुछ सहना पड़ा। अब वक्त बदल चुका है इस तरह के मामले में अब सीधे तौर पर राजनीतिक सत्ता को रेखांकित करना चाहिए। यानी सत्ता चाहे किसी की भी क्यों ना हो वह

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EditorialState News

किसी भी अपराध के बाद सच्चाई को स्वीकारने से डरती क्यों है सरकार?

सुरेश महापात्र। मौजूदा वक्त में पूरे देश में विभिन्न राज्यों में अलग—अलग किस्म के अपराध को लेकर विवाद की स्थिति है। सभी राज्यों में सत्ता और विपक्ष अपराध के बाद हालात पर आमने—सामने खड़े हैं। मीडिया भी बंटा हुआ है। खबरों की हैडिंग और प्रस्तुतिकरण में साफ तौर पर राज्य सत्ता के हिसाब से खबरें प्रस्तुत की जा रही हैं। यही वह वजह है जिसने सबसे ज्यादा संदेह खड़ा किया है। दरअसल हमे राज्य की व्यवस्था और विवशता के बीच पुलिस की व्यवस्था को देखना होगा। संविधान में पुलिस की

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AAJ-KALEditorial

क्या सरकारों से भरोसा उठ रहा है? यदि ऐसा है तो अभी भी वक्त है सुप्रीम कोर्ट अपनी लक्ष्मण रेखा लांघ ले…

सुरेश महापात्र। 25 मार्च 2020 को भारत के प्रधानमंत्री के लॉक डाउन की घोषणा के बाद यकायक सब कुछ असमान्य नहीं हुआ। बल्कि यह क्रमश: होता रहा। जब दूसरे चरण के लॉक डाउन की बात उठी तो महानगरों में काम करने पहुंचे दिगर राज्यों के प्रवासी मजदूरों के लिए जीने की राह कठिन होने लगी। काम ठप होने से रोजगार बंद हो गया और जिन ठिकानों पर वे रहते थे वहां से खदेड़े जाने लगे। हालात बदतर होते चले गए और नई बीमारी के संक्रमण का जिस तरह से खतरा

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EditorialNazriya

हमे अपनी वही पुरानी शिक्षा पद्धति लौटा दो… जिसमें गुरूजी से डर लगता था और…

सुरेश महापात्र। शिक्षा को लेकर इतने सारे प्रयोग हो चुके हैं कि अब किसी गैरवाजिब प्रयोग की मुख़ालफ़त कर देना चाहिए। शिक्षा पद्धति में बदलाव के नाम पर सरकारों ने शिक्षा का बाजारूकरण ज्यादा किया है और हिंदी—अंग्रेजी, निजी—सरकारी स्कूल के वर्गभेद की दीवार खड़ी करने के सिवाए कुछ बेहतर नहीं किया है। आप जरा याद करें कि शिक्षा पद्धति में अब जो बदलाव किए जा रहे हैं क्या वे उस स्थिति से बेहतर हैं जो हमने 1985 से पहले देखा है? शायद नहीं! वजह साफ है कि हमे बीते

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