Editorial

बिहार में भाजपा के लिए शंखनाद और कांग्रेस के लिए संदेश…

  • विशेष टिप्पणी / सुरेश महापात्र।

बिहार में तमाम अटकलों के बाद मंगलवार की देररात परिणाम घोषित हो गए। इस बार बिहार में कांग्रेस परास्त हुई है। भारतीय जनता पार्टी ने राष्ट्रीय दल होने का दम स्थापित कर दिया है। क्षेत्रीय राजनीतिक दल के तौर पर बिहार में राष्ट्रीय जनता दल ने अपने लिए युवा चेहरा तलाश लिया है। वामपंथी दलों के लिए बिहार से नवजीवन का संदेश आया है। इस चुनाव में सबसे बड़ी हार कांग्रेस की हुई है। यह निश्चित तौर पर कांग्रेस के लिए विचारणीय होना ही चाहिए।

तमाम एक्जिट पोल एक बार फिर ध्वस्त हो गए। ईवीएम के आंकड़े से तय हो गया है कि फिलहाल राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का दूसरा विकल्प कोई नहीं है। विपक्ष भले ही जितने भी आरोप लगाए। पर जीत के आंकड़े यही स्थापित कर रहे हैं कि ‘मोदी है तो भाजपा में कुछ भी मुमकिन है।’ इस बार नितिश कुमार के खिलाफ एंटीइनकंबेसी और लोकजनशक्ति पार्टी का ‘खुलाघात’ रहा। जिससे जनता दल यूनाईटेड को बड़ा नुकसान पहुंचा।

बावजूद इसके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अकेले बिहार में बेड़ा पार लगाने में कामयाब रहे। देर रात तक चली काउंटिंग के बाद राजद 75 सीटों के साथ नंबर एक पर आई। 74 सीटों पर विजय पताका फहराते हुए भाजपा नंबर दो पर भले ही रही पर राष्ट्रीय स्तर पर यह स्थापित कर दिया कि अब यह पूरे देश के लिए अकेली पार्टी है जो अपने दम पर जीत हासिल कर दिखा सकती है।

इस चुनाव में कांग्रेस की सबसे ज्यादा भद पिटी है। सीटों के बंटवारे में 70 सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका राजद ने दिया। पर केवल 19 सीटों पर जीत हासिल कर चौथे नंबर पर रही। यह साफ दिख रहा है कि यदि तेजस्वी ने कांग्रेस पर ज्यादा भरोसा ना किया होता तो परिणाम बदल सकता था। यह तो रही परिणाम की बात।

बिहार में चुनाव के बाद प्रवासी मजदूरों का मुद्दा पूरी तरह से खत्म हो गया है। क्योंकि लॉकडाउन के बाद प्रवासी मजदूरों को लेकर सबसे बड़ा सवाल बिहार को लेकर ही उठा था। इस चुनाव में जैसा कि भाजपा पर आरोप लगता रहा है कि वह संवेदनशील मुद्दों के आसरे जीत हासिल करती रही है यह भी खारिज हो गया है। इस बार चुनाव में रोजगार और विकास जैसे बुनियादी सवालों पर लोगों ने मतदान किया और भाजपा व उसके गठबंधन के पक्ष में विश्वास जताया है।

बिहार चुनाव से यह स्पष्ट हो गया है कि संगठन, नेतृत्व और कार्यप्रणाली के आधार पर कांग्रेस को जनता ने पूरी तरह से नकार दिया है। कांग्रेस को अपने भीतर पुर्ननिर्माण की प्रक्रिया शुरू कर ​देना चाहिए। कांग्रेस नेतृत्व को तेजस्वी यादव से सीख लेना चाहिए कि उन्होंने अपने पिता लालू प्रसाद यादव की राजनीति से परे अपनी नई राजनीतिक सोच स्थापित करने की कोशिश की है।

तेजस्वी की उम्र फिलहाल 31 बरस से सो उनके पास अभी बहुत वक्त है। कांग्रेस के पास ऐसा करिश्मा करने के लिए कोई चेहरा दूर—दूर तक नहीं दिख रहा है। शायद बिहार के चुनाव परिणाम कांग्रेस के नेतृत्व को इस बात का संदेश देने में सफल हो कि उसके लिए अब अपने भीतर सुधार की प्रक्रिया में विलंब करना आत्मघाती हो सकता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!