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‘महोदय’ को गुस्सा आ गया तो कपड़े की तरह बदल दिए वर्क आर्डर… करप्शन की सैकड़ों कहानियों में कुछ ऐसी कि रोंगटे खड़े हो जाएं…

इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर।

दंतेश्वरी कारिडोर की परियोजना में फिलहाल 26 टुकड़ों में एस और टीएस को लेकर जांच चल रही है। यह मामला महज करीब 40 से 50 करोड़ के बीच का है। शायद यह बात किसी को पता ही नहीं कि जिले में करीब एक हजार करोड़ के काम स्वीकृत किए गए। गांव, गरीब और किसान से लेकर आम से लेकर बड़े ठेकेदार के लिए खौफ का दूसरा नाम ‘महोदय’ बन गए। कहानी ऐसी कि चेहरे में मायूसी और गरीबी से उठा एक संघर्षशील युवा… और हरकतें ऐसी कि शर्म को भी शर्मिंदा होने की नौबत आ जाए।अतुल्य दंतेवाड़ा की इस कहानी में कलेक्टोरेट पूरा तिलस्मी महल जैसा दिखाई देता है। किससे मिलना है और किससे नहीं मिलना है। यह पहले से ही तय। वेटिंग रूम में लगे सीसी टीवी कैमरों से हर किसी पर नज़र। चैंबर के बाहर लाल और हरी लाइट। जिसमें दरबान के लिए साफ संदेश कि अंदर पर्ची जाए या मुलाकाती…। कोई नहीं जानता कि चैंबर के भीतर व्यस्तता है या महोदय इंताजार करने वाले की बेचैनी का आनंद ले रहे हैं।

कहने का आशय बस यही है कि एक सुंदर दंतेवाड़ा के सपने में पैसा पनपाने की ललक ने पूरे इलाके में एक नया दलदल तैयार ​करवा दिया है। इसमें कौन डूब रहा है और कौन उबर रहा है यह आप सोच भी नहीं सकते। जिले में जिला निर्माण समिति है। इसमें आला अफसरों की पूरी लिस्ट है। डीएमएफ के लिए एक समिति है इसमें सांसद की मौजूदगी या सहमति से काम स्वीकृत किए जा सकते हैं। जुलाई 2022 के बाद डीएमएफ न्यास की बैठक ही नहीं हुई है। यदि सांसद दीपक बैज ने अपने घर से फाइलों में चिड़िया बिठाएं हों तो वे जानें।

बात तो यह भी बाहर निकल रही है कि 2016 के बाद से 2023 तक डीएमएफ की जमा राशि का ब्याज करीब 58 करोड़ रुपए का है। इसके उपयोग से पहले राज्य के वित्त विभाग की सहमति की गाइड लाइन है। विभागीय सूत्र तो दावा कर रहे हैं कि बिना वित्त विभाग की सहमति के ही इस राशि का भी उपयोग किया गया है। मजेदार बात तो यह है कि जिस काम को कई टुकड़ों में बांटकर टीएस और एएस की बात सामने आ रही है इसी काम में इस फंड का उपयोग किया गया है। 

जिसे चाहा निपटा दिया, जिसे चाहा ठिकाने लगा दिया। दर्जनों लोगों के आर्थिक तौर पर बर्बादी की एक पूरी तफसील जिसे लिख पाना भी नामुमकिन। किसी को ऐसी धमकी कि फलां अखबार में एक खबर भी आई तो करोड़ों के भुगतान की फाइल कचरे के डिब्बे में डाल देंगे! तो किसी को ऐसी धमकी कि फलां को सेट नहीं कर पाए तो ले लेना हमसे एनओसी!

अब ऐसे दर्जनों मामलों की जानकारी हमे पीड़ित स्वयं दे रहे हैं। पीड़ितों का बस यही कहना है कि डीएमएफ में काम के लोभ में हमने अपना सर्वस्व लगा दिया अब सड़क पर हैं। लाखों का कर्ज सिर पर है। रिकवरी की नोटिसों के जवाब में क्या लिखें और कैसे सफाई पेश करें यह समझ से परे है। यदि एक साथ इतने सारे लोग गलत हो सकते हैं तो क्या यह संदेह नहीं किया जाना चाहिए कि ऐसे कई कामों को छीना गया उसके वर्कआर्डर और पेमेंट केआर इंटरप्राइजेस के खाते में ही क्यों जारी किए गए?

मामला बस इतना ही नहीं है बल्कि जब सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई तो जन सूचना अधिकारी ने कहा कि महोदय से मिल लें। महोदय से मिले तो इधर—उधर की बात के बाद एक काम का प्रस्ताव। किसी ने लोभ में काम ले लिया तो वर्क आर्डर भी ​नहीं दिया। वर्क आर्डर दे दिया तो बिना बताए काम निरस्त कर दिया। फिर दूसरे को वर्क आर्डर थमा दिया।

कई मामलों में तो ऐसा भी बताया जा रहा है कि पहले जिसे वर्क आर्डर दिया उसने काम शुरू करा दिया और अपने 25 लाख फंसा दिए। फिर उसे बिना बताए उसके वर्क आर्डर को निरस्त कर केआर इंटरप्राइजेस के नाम वर्क आर्डर जारी कर दिया और पहले वर्क आर्डर पर किए गए काम का उसे चैक भी थमा दिया। संभवत: यह मामला आने वाले दिनों में न्यायालय तक भी पहुंचेगा।

एक तालाब का टेंडर पास करने के लिए पहले नगद राशि ले ली गई। उसके लिए एफडीआर भी जमा करवा दिए। बात बाहर निकली तो काम शुरू होने के कुछ समय बाद ही काम निरस्त कर दिया। उसके बाद उस काम का वर्कआर्डर दूसरे से नगद राशि लेकर एफडीआर जमा करवाकर उसे दे दिया। फिर बात बनीं नहीं तो उसी काम का तीसरी बार वर्क आर्डर केआर इंटरप्राइजेस के नाम जारी कर दिया। उसके नाम से चैक भी काट दिया गया।

आरईएस के प्रभारी कार्यपालन अभियंता दरअसल अधिकारी नहीं वर्कआर्डर जारी करने और निरस्त करने के साथ चैक काटने की मशीन की तरह उपयोगी साबित होते रहे। नियम—कायदों की बात तो दूर दहशत का ऐसा माहौल कि कोई जुबान खोलने तक को तैयार नहीं। वैसे भी आर्थिक तौर पर फंसे हुए लोगों की औकात बौनी हो जाती है। इसलिए सबसे आसान फार्मूला यही रहा कि पहले काम दो… काम शुरू होने के कुछ समय बाद निरस्त कर दो… यदि एडवांस जारी किया गया है तो रिकवरी निकाल दो… यदि जारी नहीं किया है तो तब तक फंसाए रखो जब तक पूरा काम ना निकल जाए।

दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय में एक 60 लाख की बिल्डिंग का काम आदिम जाति कल्याण विभाग के माध्यम से हो रहा था। स्लेब ​बीम तक का काम हो चुूका था। स्लेब डालने की तैयारी चल रही थी। इसी बीच महोदय रात को पहुंचे और देखा और उस निर्माणाधीन भवन को सुबह तक जमीन में मिलाने का आदेश जारी कर दिया। विभाग के अफसर को काटो तो खून नहीं वाली स्थिति। उसने अपने बर्बाद होने का हवाला दिया तो महोदय ने कहा मैंने जब कहा ​है तो कम से कम एक दीवार तो गिरानी ही होगी।

कांग्रेस का एक नेता टेंडर में काम ले चुका था। मेंडका डबरा मैदान में एक कार्यक्रम के दौरान उस युवा नेता ने अव्यवस्था को लेकर शिकायत कर दी। कि पानी नहीं है और जो स्क्रीन लगाई गई है उसके छोटे होने के कारण दूर तक दिखाई नहीं दे रहा है। महोदय ने अपने मोबाइल से एक टेक्सट मैसेज किसी अफसर को भेज दिया। उस युवा नेता के सारे काम निरस्त कर दिए गए।

जिले में कोई ऐसा काम नहीं है जिसमें वर्क आर्डर को लेकर छुपा—छुपी का खेल ना खेला गया हो। जब भी उपर शिकायत हुई तो मासूम चेहरा के ​साथ गरीबी से उठे संघर्षशील युवा की कहानी से क्या नेता और क्या अफसर सभी को चासनी से लक—दक करने की कोशिश की गई।

अंत में यह जान लें कि दंतेश्वरी कारिडोर में मंदिर के मुख्यद्वार के लिए जो नक्शा पहले स्वीकृत किया गया था उसमें किसकी सहमति से परिवर्तन किया गया। यह भी महोदय ही बता पाएंगे क्योंकि स्वीकृत डिजाइन और भौतिक तौर पर लगाई गई डिजाइन में गुणवत्ता, कीमत और वजन का बड़ा अंतर है। नींव को मजबूत किए जाने के पीछे जो वजह थी उसे तो निर्माण एजेंसी ने ताक पर ही रख दिया है।

ये डिजाइन लगाई गई है।

पूर्व में लगाया गया शेड और साथ में दी गई वह तस्वीर जिसे भारी—भरकम कालम पर स्थापित किया जाना था। जिसे नहीं किया गया। इसकी जगह पर टेंसिंग शीट लगाकर काम की इतिश्री कर ली गई है।

आने वाले अंकों में उन कामों का भौतिक सत्यापन जिसमें तार फेंसिंग, पौध रोपण और बोर खुदाई के नाम पर डीएमएफ के कान्सेप्ट को तार—तार कर दिया गया है।

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