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भाजपा की दूसरी सूची : ‘कमल’ की झड़ चुकी ‘पंखुड़ियों’ के सहारे की रणनीति…!

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सुरेश महापात्र।

छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी ने करीब—करीब अपने सारे पत्ते खोल दिए हैं। बीते पांच बरस तक विपक्ष के तौर पर भारी भरकम सत्ता के सामने बिलबिलाती सी दिख रही पार्टी टिकट चयन के समय कसमसा कर रह गई ऐसा ही लग रहा है। पार्टी के भीतर 2018 में झड़ चुकी पंखड़ियों का बड़ा आसरा दिखाई दे रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को पूरे पांच बरस तक सत्ता से बेदखली के चलते भारी दबाव बनाकर रखा। दबाव भी ऐसा कि वे खुलकर कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं रहे। तीन बार के मुख्यमंत्री को छत्तीसगढ़ ने मोदी—शाह की जोड़ी के सामने बेबस देखा।

हार के कारणों की दरयाफ्त करने निकली टीम को जमीन से पता चला कि यह हार डा. रमन के कारण ना होकर उनके मंत्रीमंडल के कारण हुई है। लगातार सत्ता से सरकार के मंत्री इस कदर हवा में उड़ने लगे थे कि वे जमीन की समझ भी ना बना सके। 2018 में चुनाव परिणाम से पहले ही हवा का रूख बदला—बदला सा लगने लगा था, कांग्रेस को करीबी संघर्ष की आस थी पर जनता जनार्दन ने उन्हें भारी भरकम ताकत के साथ सियासत का झंडाबरदार बना दिया। तब सीएम डा. रमन को भी ठीक वैसा ही लगा होगा जैसा 2003 के परिणाम के दिन तब के सीएम अजित जोगी को लगा था कि जमीन खिसक रही थी और पता भी ना चला!

2018 के बाद लगातार भारतीय जनता पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को यह भरोसा दिलाने में जुटी रही कि इस बार उनके हिसाब से टिकटें दी जाएंगी। चंद महीनों के बाद पूरे देश में चली मोदी लहर में भाजपा ने अपने सांसदों को छत्तीसगढ़ से जीताकर थोड़ी राहत हासिल कर ली थी पर असल लड़ाई छत्तीसगढ़ में पार्टी की सरकार को लेकर रही।

कार्यकर्ताओं का समीक्षा बैठकों में गुस्सा फूटा था सभी अपने मंत्रियों को और मुख्यमंत्री के रवैये को लेकर यह आरोप लगाते रहे कि ‘अफसरशाही’ ने पूरे प्रदेश को भाजपा मुक्त करने की जिम्मेदारी ठेके पर दे दी। समीक्षा बैठक के बाद भाजपा के एक कार्यकर्ता से जब बात हुई तो उसने बताया कि ‘हमने तो साफ कह दिया कि विकास यात्रा में भीड़ लाने का ठेका जिला कलेक्टरों को दिया गया। कलेक्टरों ने अपने जनपद के सीईओ और मैदानी अमले को दे दिया तो अब जब वोट मांगने की बारी आई तो हम किस मुंह से जाते?’

उस कार्यकर्ता का गुस्सा वाजिब भी था कि मंत्रियों को लगने लगा था कि राज्य में अब कांग्रेस मुक्त होने की स्थिति है। लोग कांग्रेस पर भरोसा नहीं करेंगे। वे अपने अफसरों के साथ ही रणनीति बनाते और उसी हिसाब से काम करते। कमीशनखोरी का आलम यह हो गया कि सीएम को अपने कार्यकर्ताओं की बैठक में खुलकर कहना पड़ गया कि ‘एक साल के लिए कमीशन बंद कर दीजिए 25 साल तक सरकार को कोई हिला नहीं सकेगा!’

सीएम के इस कथन का मतलब यही था कि आम तौर पर हर काम के लिए बंगला का कमीशन बंध गया था और कार्यकर्ताओं तक को इस खेल में बख्शना भूल गए थे। जो भी काम के लिए पहुंचता उसे दशबंद अदा करने की नौबत थी। बावजूद इसके कार्यकर्ता डा. रमन सिंह के खिलाफ नहीं थे उन्हें लगता था कि वे सज्जन हैं। पर अपने मंत्रिमंडल साथियों को कंट्रोल करने की स्थिति में नहीं हैं।

उसके बाद से ही पूरे प्रदेश में इस बात को लेकर कार्यकर्ता उम्मीद से थे कि उनके राजनीतिक गुनाहगारों को 2023 में केंद्रीय संगठन निपटाएगा। इस बार सूची जारी होने से पहले कोई भी नेता कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं था। कम से कम वे मंत्री तो अपने सार्वजनिक बयान में टिकट को लेकर अपनी उम्मीदवारी भी जताने से परहेज करते यह कहते रहे कि संगठन ने सब कुछ बदलने की ठानी है। और वे इस मन:स्थिति के साथ तैयार भी थे।

पर जब टिकट की सूची लीक हुई तो भाजपा नेतृत्व ने यह कहकर टालने की कोशिश की कि यह ​अधिकृत नहीं है। इससे उम्मीद बंधी रही। पहली सूची के नामों को लेकर जिरह शुरू हुई तो कह दिया कि ये वे सीट हैं जहां भाजपा संगठन ने पहले से ही मान लिया है कि ये कमजोर सीट हैं।

दूसरी सूची के अधिकृत तौर पर जारी होने के बाद इस बात की पुष्टि हो गई कि पहले से हवा में तैर रही अ​नाधिकृत सूची ही अधिकृत सूची थी जिसे दबाकर रखा गया था। आचार संहिता लागू होते ही यह जारी कर दी गई है।

जारी की गई अधिकृत सूची के अनुसार 15 चेहरे 2018 में हारे हुए हैं। जिनमें मनेंद्रगढ़ से श्याम जायसवाल, बैकुंठपुर से भैयालाल रजवाड़े, रायगढ़ से ओपी चौधरी, पालीतानाखार से रामदयाल उईके, बिलासपुर से अमर अग्रवाल, सक्ती से खिलावन साहू, चंद्रपुर से संयोगिता जूदेव, रायपुर ग्रामीण से मोतीलाल साहू, रायपुर पश्चिम से राजेश मूणत, भिलाई नगर से प्रेम प्रकाश पांडे, नवागढ़ से दयाल दास बघेल, अंतागढ़ से विक्रम उसेंडी, कोंडागांव से लता उसेंडी, नारायणपुर से केदार कश्यप, बीजापुर से महेश गागड़ा को उम्मीदवार बनाया गया है।

3 मौजूदा सांसद भरतपुर सोनहत से रेणुका सिंह, पत्थलगांव से गोमती साय, लोरमी से अरूण साव के साथ 1 पूर्व सांसद कुनकुरी से विष्णुदेव साय को प्रत्याशी बनाया गया है।

12 मौजूदा विधायक रामपुर से ननकीराम कंवर, मुंगेली से पुन्नूलाल मोहले, तखतपुर से धर्मजीत सिंह, बिल्हा से धरमलाल कौशिक, मस्तुरी से कृष्णमूर्ति बांधी, अकलतरा से सौरभ सिंह, जांजगीर चांपा से नारायण चंदेल, भाटापारा से शिवरतन शर्मा, रायपुर दक्षिण से बृजमोहन अग्रवाल, कुरूद से अजय चंद्राकर, धमतरी से रंजना साहू और राजनांदगांव से डा. रमन सिंह को टिकट दे दी गई है। इस सूची में से बिंद्रानवागढ़ के विधायक डमरूधर दीवान की टिकट क्यों काटी गई वे जानने के लिए गुहार लगा रहे हैं।

वहीं पराजित प्रत्याशियों को टिकट दिए जाने की दौड़ में जगदलपुर के संतोष बाफना को क्यों छोड़ दिया गया? बाफना पराजय के बावजूद बीते पांच साल से जगदलपुर सीट में अपनी जमीनी मेहनत करते रहे। दंतेवाड़ा में उपचुनाव में पराजित स्व. भीमा मंडावी की पत्नी ओजस्वी मंडावी को पहले से ज्यादा वोट हासिल होने के बाद भी टिकट नहीं दिया गया? इसे लेकर भी कार्यकर्ताओं में चिंतन चल रहा है। वैसे देखा जाए तो ओजस्वी को यह एक मौका मिलना ही चाहिए था।

मौजूदा सूची में 27 नए चेहरे शामिल किए गए हैं। इसमें सामरी से उद्देश्वरी पैकरा, सीतापुर से रामकुमार टोप्पो, जशपुर से रायमुनि भगत, सारंगढ़ से शिवकुमारी चौहान, कठघोरा से प्रेमचंद पटेल, कोटा से प्रबलप्रताप सिंह जूदेव, जैजेपुर से कृष्णकांत चंद्रा, पामगढ़ से संतोष लहरे, महासमुंद से योगेश्वर राजू सिन्हा, बिलाईगढ़ से दिनेश लाल जांगड़े, बलौदाबाजार से टंकराम वर्मा, धरसीवां से अनुज शर्मा, रायपुर उत्तर से पुरंदर मिश्रा, आरंग से खुशवंत साहेब, संजारी बालोद से राकेश यादव, दुर्ग ग्रामीण से ललित चंद्राकर, दुर्ग शहर से गजेंद्र यादव, वैशाली नगर से रिकेश सेन, साजा से ईश्वर साहू, कवर्धा से विजय शर्मा, डोंगरगांव से भरत लाल वर्मा, भानुप्रतापपुर से गौतम उईके, केशकाल से नीलकंठ टेकाम, जगदलपुर से किरण देव, चित्रकोट से विनायक गोयल, दंतेवाड़ा से चैतराम अटामी और कोंटा से सोयम मुका को टिकट दे दी गई है। जो चेहरे भाजपा संगठन ने चुने हैं उसके पिछे उनका गणित क्या है यह तो आने वाला परिणाम भी बताएगा।

इसके अलावा 2 चेहरे जो 2013 में विजयी थे लैलूंगा से सु​नीती राठिया, बिंद्रानवागढ़ से गावर्धन राम मांझी। 2 चेहरे जो 2008 में विजयी थे गुंडरदेही से वीरेंद्र कुमार साहू, अहिवारा से डोमनलाल कोर्सेवाड़ा। एक चेहरा जो 2003 में विजयी था डोंगरगढ़ से विनोद खांडेकर। एक चेहरा जो 2018 में बागी था बसना से संपत अग्रवाल इन्हें टिकट दिया गया है। इसके पिछे की रणनीति तो भाजपा नेतृत्व ही जानें।

पांच सीटें बेलतरा, बेमेतरा, पंडरिया, कसडोल और अंबिकापुर की सीट की घोषणा शेष है।

पहली सूची में कुल 21 सीटों की घोषणा की गई थी इसमें 16 नए चेहरों को शामिल किया गया था। भाजपा ने अब तक कुल 85 सीटों के लिए प्रत्याशियों की घोषणा की है इसमें कुल 14 महिलाओं को शामिल किया है। दोनों सूची को मिलाकर अब तक कुल 43 नए चेहरों को मैदान में उतारा गया है।

कुूल मिलाकर भाजपा ने इस बार जो टिकट वितरण किया है उसमें नए और पुराने चेहरों का हिसाब तो अपनी जगह ​ठीक है पर दंगा प्रभावित बीरनपुर के ईश्वर साहू को साजा से टिकट देकर सांप्रादायिक ध्रुवीकरण का एंगल भी टटोलने की कोशिश की गई है। ईश्वर साहू के बेटे की मौत बीरनपुर दंगे में हुई थी। आर्थिक तौर पर कमजोर इस प्रत्याशी के लिए पार्टी ही प्रचार का अभियान संभालेगी। यह तो तय है।

अब बड़ा सवाल है कि आखिर राजेश मूणत, प्रेम प्रकाश पांडे, अमर अग्रवाल, केदार कश्यप, महेश गागड़ा, लता उसेंडी को टिकट रिपीट करने के क्या कारण हो सकते हैं? संभव है पहले हिमाचल और फिर कर्नाटक में भाजपा ने पुराने दिग्गजों को काटकर जो नुकसान उठाया है उससे ही सबक हासिल हुआ हो। दूसरा आर्थिक कारण भी संभव है। ये वे प्रभावशाली धनाड्य नेता हैं जिन्हें कई विधानसभा क्षेत्रों के व्यय के लिए तैयार कर लिया गया हो?

खैर जो भी इस टिकट वितरण के बाद यदि पार्टी को नुकसान हुआ तो यह तो तय है कि ये तथाकथित दिग्गज दुबारा अपना दावा लेकर खड़े होने की स्थिति में भी नहीं होंगे! कम से कम यह तो माना ही जा सकता है। फिलहाल पूरे प्रदेश में कमल की झड़ चुकी पंखुड़ियों के सहारे सत्ता के रण में चुनाव प्रचार की रणनीति का असर देखने के लिए महज सवा महीने का ही समय है।

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