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केंद्र के रिमोट से चलने वाली सरकार मंत्रियों के फैसले पर अटकी…

सुरेश महापात्र।

छत्तीसगढ़ में आज सभी निर्वाचित विधायकों का शपथ ग्रहण होगा। इससे करीब एक सप्ताह पहले मुख्यमंत्री विष्णुदेव के साथ डिप्टी सीएम अरूण साव और विजय शर्मा ने शपथ ले ली थी। पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह छत्तीसगढ़ विधानसभा में अध्यक्ष का पद संभालेंगे। छह बार के विधायक रामविचार नेताम प्रोटेम स्पीकर हैं वे सभी विधायकों का शपथ ग्रहण करवाएंगे।

अब सवाल है मंत्रिमंडल का जिसे लेकर कानाफूसी से आगे बात नहीं बढ़ पा रही है। केवल और केवल सुगबुगाहट ही है। बूढ़ा तालाब के पास इंडोर स्टेडियम में तेजी के साथ तैयारी चल रही है। सोमवार को खबड़ उड़ी कि मंगलवार को मंत्रियों का शपथ होगा। दिन में विधानसभा सत्र के बाद शाम को मंत्री शपथ लेंगे।

मीडिया में चल रही खबरों से इतर राजभवन ने देर शाम को यह स्पष्ट किया कि उनके पास अब तक कोई जानकारी नहीं है। यानी केवल कयास ही चक्कर लगा रहे हैं। छत्तीसगढ़ में पहली बार इस हद तक गोपनीयता दिख रही है। सत्ता पक्ष के विधायक जो बेहद वरिष्ठ हैं वे चुप्पी साधे फैसले का इंतजार कर रहे हैं। नए विधायकों को उम्मीद जगी है कि इस बार कुछ नया होगा!

सवाल यह भी है कि मंत्रिमंडल में किसे शामिल करना है या किसे नहीं सही मायने में यह मुख्यमंत्री का विवेकाधिकार है पर छत्तीसगढ़ में अब ऐसा नहीं है। मुख्यमंत्री को अपने फैसले लेने की छूट नहीं है। छूट होती तो अब तक मंत्रिमंडल शपथ ले चुका होता।

सरकार के स्तर पर बहुत धीमे से फैसले हो रहे हैं। इसकी बड़ी वजह यह भी है कि सरकार के पास फिलहाल जो चेहरे सामने हैं उनके पास अनुभव का अभाव है। पहली कैबिनेट से पहले सरकार की तैयारी का अभाव दिखा।

सही मायने में केंद्र के रिमोट से चलने वाली इस सरकार में बहुत सारे फैसले लिए जाने हैं। सत्ता का विकेंद्रीकरण हो चुका है। छत्तीसगढ़ में पॉवर सेंटर कम से कम सात होंगे। कोई किसी से कम नहीं होगा। सारे फैसलों में सबकी सहमति मायने रखेगी। इसका परिणाम जमीनी फैसलों के दौरान दिखाई देगा। इनमें पॉवर शेयर होल्डर दिखने में एक होगा जो केवल मुखौटा होगा! भाजपा अब किसी भी राज्य में क्षत्रप नहीं चाहती। यह साफ है कि अब भाजपा में पार्टी और उसका कमल निशान ही सबसे बड़ा शेयर होल्डर रहेगा।

खबरों के लिहाज से देखें तो साफ है कि जिन खबरों को पहले आना चाहिए था वे काफी बाद में आए। सीएम विष्णुदेव साय और दोनों डिप्टी सीएम की मौजूदगी में आयोजित प्रेस वार्ता में कई बार साफ दिखाई दिया कि इसकी तैयारी नहीं थी। राजधानी में मीडिया के लोग फुसफुसाते बहुत हैं आवाज़ दूर तक सुनाई नहीं देती है। वजह यही है कि कोई नहीं चाहता कि सरकार के सामने उनकी छवि खराब हो।

हकीकत में इस समय सरकार की गति कछुए से भी धीमी है। हो सकता है लगातार पांच साल तक फास्टट्रेक पर चल रही सरकार का खुमार ना उतर पाया हो पर यह साफ है कि प्रशासनिक तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी के कार्यकर्ताओं से लेकर नेताओं तक प्रदेश की प्रशासनिक ताकतों को लेकर एक नकारात्मक छवि रही वे इंतजार कर रहे हैं कि नई सरकार अपने हिसाब से पहला फेरबदल तो कर दे। पर ऐसा होता दिखाई नहीं दे रहा है। केवल कयास ही कयास सरकार के आस—पास मंडराते दिखाई दे रहे हैं।

असल बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी जिस तरह से नई सरकार को बिठाया गया है उनकी भूमिका राज्य में सत्ता संचालन के लिए सीमित जैसी ही है। यह साफ दिखाई दे रहा है कि अब तीनों राज्यों में केंद्र के रिमोट से सरकार संचालित होगी। सीएमओ में बैठने वाले आला अफसरों तक से लेकर चपरासी तक का फैसला संभव है दिल्ली से ही हो।

यदि इनका फैसला दिल्ली से होगा तो निश्चित तौर पर मंत्रियों के नामों का फैसला भी दिल्ली से ही होगा! इसमें कोई शक किसी को नहीं है। पर ऐसा भी नहीं है कि कम से कम वर्तमान में सरकार के तीनों चेहरों को ना पता हो कि किसे शामिल किया जाना है और किसे नहीं उन्हें ना पता हो? पर वे मौन हैं केवल मुस्कुराते मीडिया के सामने आते हैं। इस बार ना—ना कहते पुराने करीब—करीब सारे बड़े चेहरों को टिकट दे दी गई। इक्का—दुक्का को छोड़ सारे जीत कर आ भी गए।

अब सब कुछ बदल डालूंगा वाली स्थिति में किसे छोड़ें और किसे पकड़ें? यह बड़ा सवाल है। सरकार को विधानसभा में जवाब भी देना है। केवल नए चेहरों के बूते विधानसभा में काम काज संभालना आसान तो नहीं है। अनुभवी चाहिए ही होंगे। वे कौन होंगे? जिन पर दिल्ली और रायपुर की सहमति है? बृजमोहन अग्रवाल प्रदेश में सबसे बड़ी लीड के सा​थ जीतकर पहुंचे हैं। आठवीं बार जीत हासिल की है। रायपुर से राजेश मूणत ने अपनी वापसी की है। कुरूद से अजय चंद्राकर भी जीतकर आए हैं।

ये पार्टी के अच्छे वक्ताओं में से एक हैं। बिलासपुर से अमर अग्रवाल और बस्तर से केदार कश्यप, विक्रम उसेंडी दोनों जीतकर पहुंचे हैं। नेता प्रतिपक्ष से हटाए जाने के बाद धरमलाल कौशिक भी विधायक चुने गए हैं। दयालदास बघेल ने मंत्री रूद्र गुरू को हराया है। पहले भी मंत्री रहे हैं। रामविचार नेताम को कौन सी भूमिका मिलेगी?

तीन महिला विधायक हैं इनमें केंद्रीय राज्य मंत्री रेणुका सिंह, भाजपा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष लता उसेंडी और उत्तर छत्तीसगढ़ से गोमती साय का नाम है। राज्य में मंत्रियों के चेहरों के लिए एक अनार सौ बीमार जैसा हाल है।

नया—पुराना का संतुलन और सरकार की जिम्मेदारी के साथ प्रदर्शन की चुनौती सबसे बड़ी है। इसकी वजह भी है इस बार जो सरकार के जो मुखिया हैं उनकी सबसे बड़ी खासियत है वे ज्यादा बोलते नहीं हैं। उनकी बात जल्द ही खत्म हो जाती है। मीडिया अपने सवाल के बाद लंबी दलीलें सुनने और लोगों तक पहुंचाने की आदी है। ऐसे में कम को ज्यादा समझने की आदत डालने की कोशिश मीडिया कर रही है।

 

 

 

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