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पीएम मोदी से पहले गृहमंत्री अमित शाह का रायपुर दौरा क्यों?

डा. अवधेश मिश्रा। रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, गौरीशंकर अग्रवाल, प्रेम प्रकाश पाण्डेय, सरोज पाण्डेय, अमर अग्रवाल, धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, विजय बघेल, केदार कश्यप, विक्रम उसेंडी, नारायण चंदेल, विष्णुदेव साय, विजय शर्मा, संतोष पाण्डेय, भईयालाल राजवाड़े, रेणुका सिंह…इनके अलावा और भी कुछ नाम हैं जो संभवतः छूट रहे हैं, मसला यह हैं कि यहां मौजूद नाम सिर्फ नाम है हां इन नामों की संख्या भाजपा के मौजूदा विधायकों की संख्या से कहीं ज्यादा है… खैर हम बात कर रहे हैं #पीएममोदी के दौरे से ठीक पहले केंद्रीय गृहमंत्री

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DEMONETISETION 2.0 : ऐसी करंसी जो आम लोगों में चलन से बाहर ही थी उनका चलन रोक दिया जाना अच्छा ही है… पर सरकार की जवाबदेही तो बनती ही है…

सुरेश महापात्र। लोकतंत्र में जनता के पास सबसे बड़ा ​हथियार अपने लिए सरकार चुनना होता है। इस सरकार की जवाबदेही होती है कि वह जनहित के कामों को संचालित करे और समूची व्यवस्था की जिम्मेदारी ले। करीब तीन दशक के बाद हिंदुस्तान में पहली बार पूर्ण बहुमत की सरकार ने मई 2014 में सत्ता की बागडोर संभाली। पूरे देश में भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर हाहाकार मचा हुआ था। जनता भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रही थी। जनलोकपाल बिल को लेकर अन्ना हजारे के आंदोलन के बाद देश

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EditorialMuddaState News

दक्षिण में #कांग्रेस का अढ़ई साल का फार्मुला कहीं कांग्रेस को फुस्स ना कर दे… तीन राज्यों में फार्मुले का हश्र देखकर तो सीखा जा सकता है…

सुरेश महापात्र। पूरे देश में मोदी लहर का दौर है। शहरी आबादी में मोदी की ख्याति का कोई तोड़ अब तक विपक्ष ढूंढ नहीं पाई है। 2023 में पांच राज्यों के चुनाव के बाद 2024 में लोकसभा चुनाव तय है। ऐसे समय में पहले हिमांचल फिर कर्नाटक में कांग्रेस की भारी जीत से कांग्रेस के लिए संजीवनी बूटी सरीका परिणाम माना जा सकता है। कर्नाटक में कांग्रेस ने सत्तारूढ़ भाजपा को बुरी तरह पराजित किया है। यह परिणाम इसलिए भी बेहद महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस पर लगाए जा रहे राजनैतिक

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भाजपा की नयी कवायद पुराने हटेंगे नये आएंगे…

दिवाकर मुक्तिबोध। छत्तीसगढ़ विधानसभा के इसी वर्ष नवंबर में प्रस्तावित विधानसभा चुनाव के संदर्भ में काफी समय से यह चर्चा है कि भारतीय जनता पार्टी अधिकांश सीटों पर नये चेहरों को मौका देगी। विधानसभा में सीटों की कुल संख्या 90 है और वर्तमान में भाजपा के केवल 14 विधायक हैं। इन 14 विधायकों में हर किसी को पुन: टिकिट मिल ही जाएगी ,कहना मुश्किल है। यानी इनमें से भी कुछ का पत्ता कटने की संभावना है। शेष 86 सीटों में अधिकांशतः नये चेहरे होंगे अलबत्ता उन प्रत्याशियों पर पुनः दांव

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EditorialMuddaState News

अगर नहीं संभले तो सांप्रदायिकता की आग में सब कुछ खाक हो जाएगा…

मुद्दे की बात… सुरेश महापात्र। छत्तीसगढ़ में ऐसा पहली—पहली बार होता दिख रहा है जब बेमेतरा जिला के साजा विधानसभा क्षेत्र के बिरनपुर जैसे छोटे से गांव से निकली सांप्रदायिकता की चिंगारी समूचे प्रदेश को अपने आगोश में लेते दिख रही है। छत्तीसगढ़ में करीब छह माह बाद विधानसभा चुनाव की तारीख तय है। ऐसे समय में बिरनपुर की यह चिंगारी और भी ज्यादा खतरनाक है। धार्मिक त्योहारों के दौरान छत्तीसगढ़ हमेशा से शांत ही रहा है। पर बीते कुछ समय से दिखाई दे रहा है कि धार्मिक जुलूस और

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सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार द्वारा छह साल पहले रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले को 4:1 के बहुमत से बरकरार रखा… फ़ैसले को समझें… जस्टिस नागरत्ना ने किन बिंदुओं से तय किया कि विमुद्रीकरण की प्रक्रिया ग़ैरक़ानूनी है…

इम्पेक्ट न्यूज़ डेस्क। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत ने माना कि, केंद्र सरकार की 8 नवंबर, 2016 की नोटबंदी की अधिसूचना वैध है और आनुपातिकता की कसौटी पर खरी उतरती है। न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने अपने असहमतिपूर्ण विचार में कहा कि “हालांकि विमुद्रीकरण सुविचारित था, इसे कानूनी आधार पर (न कि उद्देश्यों के आधार पर) गैरकानूनी घोषित किया जाना चाहिए।” जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामासुब्रमण्यन और बीवी नागरत्ना वाले 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने, 7 दिसंबर, 2022 को, नोटबंदी की

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वर्मी—कुर्मी, #ED-CD और सिंहदेव—हसदेव फार्मुला के 2023 का मैदान मारने की तैयारी में लगी भाजपा को भानुप्रतापपुर में झटका… देहव्यापार के इस संगीन मामले में छत्तीसगढ़ सरकार पर भी आंच…!

भानुप्रतापपुर के विधायक मनोज मंडावी के निधन से खाली हुई सीट पर उपचुनाव चल रहा है। इस उपचुनाव को भारतीय जनता पार्टी ने अपने लिए 2023 के चुनाव की बुनियाद रखने वाला बनाने की तैयारी की थी। इस तैयारी को फिलहाल भाजपा के प्रत्याशी ब्रम्हानंद नेताम पर लगे बलात्कार के आरोप से झटका लगा है। भाजपा बावजूद इसके मैदान छोड़ने की बजाय ज्यादा आक्रामक होकर मैदान में उतर रही है। पार्टी के कर्ताधर्ता साफ—साफ यह बता रहे हैं कि किसी व्यक्ति के बारे में लोगों की राय ज्यादा महत्वपूर्ण होती

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घट गया राज्य पुरस्कारों का महत्व… इन पुरस्कारों की यदि गरिमा स्थापित करनी हो तो प्रक्रिया में कुछ परिवर्तन करने होंगे…

दिवाकर मुक्तिबोध। आगामी एक नवंबर को नये राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ के 22 वर्ष पूर्ण हो जाएंगे। प्रत्येक वर्ष राज्योत्सव में सांस्कृतिक आयोजनों के अलावा किसी न किसी रूप में राज्य के विकास में विशेष योगदान देने वाले विद्वानों को राज्य अलंकरण से पुरस्कृत किया जाता है। प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री अजीत जोगी के कार्यकाल में 16 पुरस्कार दिए जाते थे जो भाजपा के पंद्रह वर्षों के शासन में बढकर बाइस हुए और अब कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार में इनकी संख्या बढाकर 36 कर दी गई हैं। यानी

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जसम सम्मेलन के बहाने कुछ बातें : जिस सांस्कृतिक जनक्रांति की बात की जाती है वह सभी वर्गों के लोगों को, सभी मेहनतकशों को शामिल किए बिना सफल नहीं हो सकती…

दिवाकर मुक्तिबोध। बस्तर के आदिवासियों के हितों के लिए वर्षों से संघर्षरत सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने जन संस्कृति मंच के राष्ट्रीय सम्मेलन में जो विचार व्यक्त किए हैं, वे फासीवाद के मुद्दे पर बौद्धिक तबके की कथित सक्रियता पर सवाल खडे करते हैं। उन्होंने कहा-फासीवाद का सबसे पहले हमला आदिवासियों पर होता है। वे उसका सामना करते हैं। बाद में किसान व मजदूर मुकाबला करते हैं। गरीब व निम्न वर्ग पर जब हमला होता है तो वह अपने तरीक़े से उसके खिलाफ संघर्ष करता है लेकिन हम और आप

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अ—घोषित तौर पर घोषित कांग्रेस का #मुखौटा… तो क्या #हाईकमान के नाम ‘खड़उ’ के सहारे कांग्रेस ही नई रणनीति…

विशेष टिप्पणी। सुरेश महापात्र। हिंदुस्तान की राजनीति में सत्ता प्रमुख के लिए मुखौटा शब्द का इस्तेमाल पहली बार राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के गोविंदाचार्य ने 16 सितंबर सन 1997 में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार अटल बिहारी बाजपेई के लिए किया था। 6 अक्टूबर 1997 को संघ के विचारक भानुप्रताप शुक्ल ने एक लेख लिखा जिसका शीर्षक था ‘वाजपेयी मुखौटा हैं, गोविंदाचार्य!’ तब से ही हिंदुस्तान की राजनीति में अक्सर संगठन और सत्ता के प्रमुखों के चेहरों में लगाए गए मुखौटों को लेकर चर्चा आम बात रही है। फिलहाल भारतीय जनता

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