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पीएम मोदी से पहले गृहमंत्री अमित शाह का रायपुर दौरा क्यों?

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डा. अवधेश मिश्रा।

रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत, गौरीशंकर अग्रवाल, प्रेम प्रकाश पाण्डेय, सरोज पाण्डेय, अमर अग्रवाल, धरमलाल कौशिक, अजय चंद्राकर, विजय बघेल, केदार कश्यप, विक्रम उसेंडी, नारायण चंदेल, विष्णुदेव साय, विजय शर्मा, संतोष पाण्डेय, भईयालाल राजवाड़े, रेणुका सिंह…इनके अलावा और भी कुछ नाम हैं जो संभवतः छूट रहे हैं, मसला यह हैं कि यहां मौजूद नाम सिर्फ नाम है हां इन नामों की संख्या भाजपा के मौजूदा विधायकों की संख्या से कहीं ज्यादा है…

खैर हम बात कर रहे हैं #पीएममोदी के दौरे से ठीक पहले केंद्रीय गृहमंत्री #अमितशाह के दौरे की… दरअसल #छत्तीसगढ़ बीजेपी के भीतरखाने ऐसा कुछ भी नहीं चल रहा जिसे बाहर दिखाने की कोशिश की जा रही है मसलन सब कुछ ठीक नहीं है! और अगर सब ठीक होता तो बीते कुछ महीनों में अलग-अलग नेताओं के द्वारा अपने ही पार्टी के अलग-अलग नेताओं की लिखित और मौखिक शिकायत आला कमान से तो बिल्कुल भी नहीं की जाती,

बीजेपी के पांच छः धड़े यह चाहते हैं कि राज्य गठन के बाद 20-22 सालों तक जिन्हे मौका मिला अब उन्हें प्रमुख मार्गदर्शक बना दिया जाए, जबकि पुराने #वटवृक्षों की चाह हैं कि हमने पार्टी और पदाधिकारियों के लिए इतने सालों तक इतना सब कुछ किया तो हमे एक और मौका क्यों नहीं मिलना चाहिए…?

इन्ही सब झंझावत के बीच ही मामला अब इतना गंभीर हो चला हैं कि बीजेपी के सबसे बड़े चेहरे पीएम मोदी के रायपुर में होने वाली सभा के लिए आला कमान बिल्कुल भी रिस्क नहीं लेना चाह रहे! इतना ही नहीं आला कमान के नंबर दो माने जाने वाले शाह बिगड़े हुए #समीकरण के बीच किसी और को जिम्मेदारी देने के बदले खुद ही मोर्चा संभालने रायपुर आ रहे हैं।

शाह ना केवल तैयारियों की समीक्षा करेंगे बल्कि उनकी टीम के सौ से ज्यादा सदस्य पूरा कार्यक्रम संपन्न होने तक #मॉनिटरिंग कर रिपोर्ट सौंपेंगे! अब इसका सीधा मतलब समझिए कि आगामी #विधानसभाचुनाव की तैयारियों को लेकर प्रदेश बीजेपी की अंदुरूनी स्थिति क्या है? और आला कमान को इनपर कितना विश्वास है? चुनावी रणनीति कौन बनाएगा? उसे धरातल पर कौन उतरेगा? जनता कितना साथ देगी? कार्यकर्ता कितने उत्साहित होंगे? इन सब सवालों के बीच चर्चा यह भी कि आला कमान #पीएम दौरे के बाद संगठन स्तर पर बड़े बदलाव की तैयारी में है! बदलाव की चर्चा इसलिए भी तेज हो रही हैं कि #युवाजोश के संग अनुभव की टोली कई मौके पर अपना अपना रंग दिखा चुकी है!

पार्टी ने ऐसे युवाओं को सीधे प्रदेश की ही जिम्मेदारी दे दी जो खुद #टिकट के जोड़ तोड़ में पुरजोर जुटे हुए हैं, ऐसे में हो सकता है कि ये युवा नेता लड़ेंगे या लड़ाएंगे और लड़े तो अनुभव क्यों साथ दे और लड़ाएं तो अनुभव क्यों विश्वास करे? और तो और मामला यह भी कि सभी 90 विधानसभाओं में युवा बनाम अनुभव की लड़ाई अभी से दिलचस्प होने लगी है…. पार्टी इन्हीं सब उधेड़बुन में जुटी हुई हैं कि आखिरकार करें तो क्या करें?

“बिना मोदी तीन बार जीते मोदी आए तो हुई हार”
केंद्रीय बीजेपी के निर्देश पर देशभर में 30 मई से 30 जून तक एक माह के लिए संपर्क से #समर्थन तक अभियान चलाया गया जिसमें केंद्र सरकार के 09 साल पूरे होने पर प्रमुख रूप से चर्चा कर लोगों से समर्थन मांगा गया… एक माह तक चले इस लंबे अभियान का छत्तीसगढ़ के नेताओं पर असर यह हुआ कि ऊपर लिखे नामों में कुछ नेताओं ने अपने आला नेताओं के सामने ही यह चर्चा छेड़ दी कि “बिना मोदी चेहरे के हमने 2003, 2008 और 2013 में सरकार बनाई थी जबकि 2018 में पीएम मोदी के चेहरे पर आए तो हमारी #करारी_हार हुई, इसलिए हमें तो लगता हैं कि एक माह तक हमारा समय ही खराब हुआ है ।इस एक माह में हम राज्य की कांग्रेस सरकार के खिलाफ कई आंदोलन कर सकते थे क्योंकि कांग्रेस की ओर से कई मुद्दे खुद ही दिए गए थे” इस चर्चा के बाद उन नेताओं के साथ क्या हुआ यह कभी और चर्चा कर लेंगे।

मामला है तो गंभीर! यहां विषय यह हैं कि प्रदेश बीजेपी के कार्यप्रणाली से आला कमान उस हद तक संतुष्ट नहीं है, जिसका आगामी दिनों में बड़ा असर धरातल पर देखने को जरूर मिलेगा, फिलहाल तो #साव_चंदेल की जोड़ी के कामों का भी आंकलन किया जा चुका है, इस जोड़ी को कितने नंबर मिले हैं इसका भी पता जल्द ही चल जाएगा।

‘मायने और मकसद’ पीएम के दौरे से ठीक पहले शाह का दौरा अपने आप में कई सवालों और अटकलों का जवाब देने के लिए पर्याप्त जाना जा रहा है, राजनीतिक पंडित कहते हैं कि 15 सालों तक सत्ता और संगठन चलाने वालों पर अब आला कमान सीधा #विश्वास नहीं कर रहा और अगर कर रहा होता तो आज यह परिस्थिति उत्पन्न ही नहीं होती!

लेखक के फ़ेसबुक वॉल से साभार।

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