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ELECTION 2023 : बस्तर की बारह खड़ी में चुनौती अड़ी… फिलहाल कांग्रेस की स्थिति पहले जैसी नहीं… कई नए मुद्दों में घिर रहे प्रत्याशी… बैज, लखमा, मरकाम की राह पथ​रीली…

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धर्मांतरण, रोजगार, भ्रष्टाचार का मुद्दा भूपेश की घोषणाओं पर भारी

सुरेश महापात्र।

चित्रकोट में दीपक की लौ…

आज हम बस्तर की सभी 12 सीटों का आंकलन बताने जा रहे हैं। चुनाव से पहले बेहद मजबूत दिखाई दे रही कांग्रेस की स्थिति अब पहले जैसी नहीं दिखाई दे रही है सांसद दीपक बैज के सामने अब राजनीतिक समीकरण काफी बदला हुआ दिखाई दे रहा है। धर्मांतरण के बाद उपजे हालात उनकी मुसीबत की वजह तो बन ही रहे हैं। साथ ही लगातार चुनाव जीतने का दंभ उनके लिए नुकसानदायी होता जा रहा है। ऐसा जमीन पर कहीं कोई विश्वास नहीं कर रहा कि बैज सीएम फेस हो सकते हैं। उनके सामने भारतीय जनता पार्टी के विनायक गोयल मैदान पर हैंं। चेहरा नया है विधानसभा के दृष्टिकोण से पर वे तोकापाल जनपद पंचायत के अध्यक्ष हैं। ऐसे में अब चित्रकोट की राजनीति का एक सिरा लोहंडीगुड़ा के गर्दा गांव से शुरू होकर कोड़ेनार की पहाड़ी के दूसरी तरफ बसे तोकापाल पहुंच रहा है। जहां से विनायक गोयल निवासी हैं।

2018 में चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र से दीपक बैज ने चुनाव जीता था। तब प्रत्याशी लच्छूराम कश्यप रहे। इसके बाद लोकसभा चुनाव में उनके सामने बैदूराम कश्यप मैदान पर रहे। उपचुनाव में भी लच्छूराम कश्यप को भाजपा ने मैदान में उतारा था। लच्छूराम भी लोहंडीगुड़ा ब्लाक के निवासी रहे। इससे पहले 2008 में बैदूराम कश्यप विधायक चुने गए वे तोकापाल ब्लाक के निवासी हैं। परिस्थितियों का यदि निष्कर्ष निकाला जाए तो 2013 में बैदू के खिलाफ दीपक बैज की जीत में झीरम नक्सली हमले का साया रहा।

दरभा ब्लाक चित्रकोट विधानसभा के क्षेत्र में आता है। इसके बाद 2018 के चुनाव में सत्ता विरोधी लहर में दीपक को जीत मिली थी। तब लच्छू पराजित हुए थे। इसके बाद दीपक को 2019 में लोकसभा सीट से उतारा गया तो वे दिनेश कश्यप को हराने में कामयाब हो गए। दीपक बैज प्रतिभाशाली और अतिमहत्वाकांक्षी युवा हैं। जिनके सामने उन्होंने राजनीति का ककहरा सीखा उन्हें ही राजनीति में सबक सिखाने के खेल में शामिल हो गए। जगदलपुर में राजनीति की हवा बड़ी तेजी से बदलती है।

दीपक का लौ इस हवा में रूख देखकर बरकरार रहते हुए अपनी ज्योत को तेज करने की कोशिश में भी जुटा। तो खटक की भनक उन्हें अब तक नहीं है। चित्रकोट में उपचुनाव के विजयी रजमन बेंजाम की टिकट काटकर वे अपने नाम कराने में सफल तो हो गए। पर इस बीच चित्रकोट में धर्मांतरण को लेकर सुलग रही आग ने राजनीति को नुकसान पहुंचाना शुरू कर दिया। अब जैसे—जैसे चुनाव करीब आ रहा है वैसे—वैसे धुआं भी गहराता दिख रहा है।

चित्रकोट में यदि जातिगत समीकरण देखें तो मुरिया, महारा और धर्मांतरित आदिवासियों की तादात भी बड़ी है। वहीं एक पेच ऐसा भी है जहां अरविंद नेताम के हमर राज समर्थकों का भी है। वे वो लोग हैं जो स्वयं को केवल आदिवासी ही मानते हैं। इस विधानसभा क्षेत्र में सबसे बड़ा लोचा धर्मांतरित (ईसाई) आदिवासियों के मतों को लेकर है जो इस दौरान कांग्रेस की भूमिका से नाराज दिखाई दे रहे हैं। एक प्रकार से देखा जाए तो कांग्रेस का वोटबैंक बन चुके ईसाई धर्मांतरित आदिवासियों का वोट यदि शिफ्ट होता है तो दीपक के प्रज्वलित रहने के लिए तेल की कमी पड़ सकती है। यही वजह है कि अब जब चुनाव सिर पर है तो दीपक बैज ने धर्मांतरण के मसले पर पहली बार अपनी जुबान से भाजपा को घेरने की कोशिश की कि भाजपा सरगुजा में ईसाईयों को गले लगा रही है तो उन्हें यहां बस्तर में तकलीफ क्यों है? आशय आप समझिए हमने तो बस आपको बताया है कि सात नवंबर आते तक कांग्रेस के पक्ष में चल रही हवा का रूख क्या होता दिख रहा है।

सही मायने में देखा जाए तो बस्तर में कांग्रेस का समीकरण लगातार बिगड़ रहा है… पहले से बेहद तकलीफ में कांग्रेस दिखाई दे रही है… जमीन पर देखने पर साफ दिखाई दे रहा है कि लखमा, कर्मा, मरकाम, कश्यप का संकट क्या है।

कोंटा में कांटा चूभने का डर…

कोंटा विधानसभा सीट बस्तर की दूसरी सबसे महत्वपूर्ण सीट है। यहां आबकारी मंत्री कवासी लखमा छठवीं बार मैदान में हैं। कोंटा में तीन हिस्से हैं एक शहरी इलाका, दूसरा कस्बाई समेत सड़क से सटे ग्रामीण इलाके और तीसरा अंदरवालों के हिस्से। इन तीनों हिस्सों में हर बार वोटिंग को लेकर एक गणित साफ रही है कि शहर में विशेषकर सुकमा जिला मुख्यालय में कवासी लखमा को कभी बहुत ज्याद बढ़त हासिल नहीं हुई। एक बेहद चालाक रणनीतिकार की तरह लखमा पांच बार से कभी सीपीआई का गढ़ रहे कोंटा में अजेय रहे हैं। इस बार उनके मंत्री बनने के बाद शुरूआती दिनों में सबकुछ तो ठीक ही रहा पर कार्यकाल के अंतिम दो बरस में बहुत कुछ जमीन पर बदलने लगा। फर्जी एनकाउंटर और जेल में बंद ग्रामीणों की रिहाई यहां बड़ा मुद्दा है। दरभागुड़ा, गोरली, रेड्डीपाल, गादीरास समेत अन्य इलाकों में आदिवासी विरोध कर रहे हैं। यहां भी धर्मांतरित आदिवासी और आदिवासियों के बीच टकराव है।

प्रशासन के भीतर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार को लेकर मंत्री लखमा और पुत्र हरीश के खिलाफ कई जगहों पर अब सार्वजनिक तौर पर नारेबाजी हो रही है। शहर में माहौल तेजी से बदला है। लखमा की यह धारणा की उन्हें हमेशा से ग्रामीण इलाके ने विधायक बनाया है इसे बड़ी चुनौती मिलती दिख रही है। चिंतलनार से एक प्रत्याशी चुनाव मैदान पर है यह वही इलाका है जहां से कवासी का जनाधान काफी मजबूत रहा। बता रहे हैं कि तमाम कोशिशों के बाद भी इस प्रत्याशी ने नाम वापस नहीं लिया। ये जेसीसी(जे) का प्रत्याशी है।

दूसरा कोण कोंटा इलाके में है जहां से भारतीय जनता पार्टी के सोयम मुका चुनाव मैदान में हैं। सीपीआई के मनीष कुंजाम इस बार निर्दलीय चुनाव चिन्ह के साथ चुनाव लड़ रहे हैं। इससे लखमा की फायदा मिलने की उम्मीद बढ़ी थी जिसकी भरपाई चिंतलनार के प्रत्याशी के कर दी है। ऐसा दिखाई दे रहा है। घेराबंदी जबरदस्त है ऐसे में इस बार कवासी लखमा जिन्हें उनके प्रेमी दादी कहते हैं उनकी झोली में इतिहास का दर्ज कराना लिखा है। चाहे वे जीतें या हारें!

दंतेवाड़ा में ‘चक्रव्यूह’ में फंसे कर्मा…

दक्षिण बस्तर की तीसरी महत्वपूर्ण सीट है दंतेवाड़ा। यहां दिग्गज कांग्रेसी नेता शहीद महेंद्र कर्मा के पुत्र छविंद्र कर्मा मैदान में हैं। इससे पहले उपचुनाव में जीत हासिल करने के बाद देवती कर्मा विधायक रहीं। 2018 में देवती कर्मा भारतीय जनता पार्टी के भीमा मंडावी से चुनाव हार गईं थी वह भी कांग्रेस के पक्ष में चले प्रदेश व्यापी लहर के दौरान। सीएम भूपेश बघेल और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने एड़ी चोटी का जोर लगाया तो यह सीट भीमा मंडावी की शहादत के बाद उपचुनाव में कांग्रेस के हिस्से में लौट आई। इसके बाद राजनीति बदली और बदले की राजनीति का दौर भी शुरू हुआ। टीएस सिंहदेव के डिप्टी सीएम बनने से पहले जब ढाई बरस के सीएम को लेकर दिल्ली की दौड़ चल रही थी तब देवती ने सिंहदेव के साथ रहना चुना।

हासिल यह हुआ कि धीरे—धीरे परिस्थितियों में बड़ा बदलाव आया। देवती के खिलाफ माहौल बनाने का दौर शुरू हो गया। पर गीदम, दंतेवाड़ा, बचेली और किरंदुल शहर के साथ कुआकोंडा, कटेकल्याण और बारसूर इलाके में अलग—अलग माहौल दिखने लगा। दरअसल जिला पंचायत के चुनाव में टाईब्रेकर में तुलिका कर्मा अध्यक्ष निर्वाचित हुईं। उपाध्यक्ष भी कांग्रेस के हिस्से में गया। यहां सुभाष सुराना उपाध्यक्ष चुने गए। भाजपा बढ़त के बावजूद जिला पंचायत में परास्त हो गई।

देवती कर्मा की छोटी पुत्री तुलिका ने कांग्रेस सर्मथन ना मिलने पर बागी होकर चुनाव लड़ा और विजयी रहीं। अध्यक्ष भी चुन ली गईं। इनकी दूसरी बेटी सुलोचना भी जिला पंचायत सदस्य हैं। छविंद्र कर्मा को राज्य मंत्री का दर्जा देकर पादप बोर्ड का उपाध्यक्ष मनोनित किया गया। दंतेवाड़ा में कुल सात उम्मीदवार मैदान में हैं। यहां सीपीआई और आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी भी चुनावी दांव में हैं। आआप के बल्लू भवानी फरसपाल निवासी हैं। जो कर्मा परिवार का गृहक्षेत्र है। आम आदमी पार्टी ने पिछले चुनाव में करीब साढ़े चार हजार वोट हासिल किए थे। सीपीआई ने अपना वोट शिफ्ट किया था। यह साफ दिखाई दिया था उपचुनाव के दौरान। इस बार ऐसी नौबत शायद ही आए।

यहां बेरोजगारी भी बड़ा मुद्दा है, खासकर NMDC प्लांट में। एनएमडीसी में रोजगार के साथ लाल पानी को लेकर हमेशा से विवाद बना रहा है। यहां डिपाजिट 13 में खनन के मामले में भी विरोध के बाद जो माहौल बना है उससे भाजपा के लिए सहज स्थिति नहीं है। क्योंकि अडानी को लेकर भाजपा ने ​हमेशा डिफेंसिव रोल अदा किया है। 

कांग्रेस नेता अमूलकर नाग भी टिकट नहीं मिलने पर निर्दलीय खड़े हो गए हैं। इससे कांग्रेस थोड़ी परेशान है। इस बार दंतेवाड़ा से 19 लोगों ने कांग्रेस की टिकट के लिए दावा किया था। इसमें ये भी शामिल थे। अमूलकर को कांग्रेस जिला अध्यक्ष ने छह साल के लिए निष्काषित कर दिया है। यहां कर्मा परिवार पर परिवारवाद का आरोप बड़ा है। कुल मिलाकर पूरे कर्मा परिवार के इर्दगिर्द वायुमंडल मंडराता रहा। यह एंटी इंकंबेंसी तो था ही साथ ही जिला प्रशासन में हुए बदलाव को सीएम भूपेश के द्वारा निपटाने के तौर पर देखा गया। यहां कई बार जमीन पर जिला प्रशासन के साथ कर्मा परिवार की तल्खी के प्रकरण लोगों के जहन में हैं।

शिकायतों के बाद भी सीएम हाउस ने देवती कर्मा की सुनवाई नहीं की। कांग्रेस के संगठन में दो फांक जैसे हालात हो गए जब एक हिस्सा प्रशासन के पक्ष में दूसरा कर्मा परिवार के पक्ष में खड़ा दिखाई देने लगा। राजनीति में बने रहने के लिए आर्थिक आधार सबसे ज्यादा आवश्यक होता है तो रेत के खेल को लेकर भी किरंदूल—बचेली में घमासान मचा। इसके अलावा डीएमएफ को लेकर हो रहे निर्माण भी दंतेवाड़ा के लिए एक बड़ा मुद्दा है। मजेदार बात तो यह है कि विपक्ष में बैठी भाजपा जिस बात से खुश है उसी बात से कर्मा परिवार नाराज दिखाई दे रहा है। कुल मिलाकर दंतेवाड़ा में बिछे राजनीतिक चौसर में यदि कर्मा परिवार की नैय्या पार लग जाती है तो केवल और केवल उनके पास माईं यानी माता दंतेश्वरी का आशीर्वाद ही काम आएगा… 

दस साल बनाम् पांच साल की जिरह…

दक्षिण पश्चिम बस्तर जिला बीजापुर में पूर्व मंत्री महेश गागड़ा भाजपा के प्रत्याशी हैं और वर्तमान विधायक विक्रम मंडावी कांग्रेस की टिकट से एक बार फिर लड़ रहे हैं। यहां दस साल बनाम पांच साल की लड़ाई है। बीजापुर में भ्रष्टाचार सबसे बड़ा मुद्दा है जिसे लेकर भारतीय जनता पार्टी तो निशाना बना ही रही है। वहीं कांग्रेस के कभी बेहद करीबी रहे अब निष्काषित नेता अजय सिंह हमलवार हैं। अजय भाजपा के पक्ष में साफ खड़े दिख रहे हैं। उन्हें जिला प्रशासन ने जिला बदर घोषित कर दिया है। सो यह भी एक इमोशनल फैक्टर हो सकता है। चुनावी मैदान में भाजपा अपने दस साल के काम को जनता के बीच लेकर पहुंच रही है और कांग्रेस से पांच का हिसाब मांग रही है।

बीजापुर जिले में महेश गागड़ा पर चुनाव हारने के बाद अपने इलाके से दूर रहने का भी आरोप है। वहीं कांग्रेस विधायक विक्रम मंडावी के खिलाफ ठेकेदारी में हिस्सेदारी का आरोप है। यहां जेसीसी जे रामदत्त जुर्री बिरियाभूमि भैरमगढ़ के हैं। बसपा से अजय कुड़ियम बीजापुर के हैं। अशोक तलांडी हमर राज पार्टी भोपालपटनम, निर्दलीय अर्जुन गोटे उसूर, आमआदमी पार्टी ने कांग्रेस को समर्थन दे दिया है। अब यहां हालत यह है कि आम आदमी पार्टी ने काफी मेहनत किया था जगदलपुर की अरविंद केजरीवाल की सभा में बड़ी भीड़ वहां पहुंची थी।

कांग्रेस के लिए यह बड़ी चुनौती थी। जिसे निपटा लिया गया है माना जा रहा है। यहां धर्मांतरण कोई बड़ा मुद्दा नहीं दिखाई दे रहा है। नागेश के इनकाउंटर के बाद चुनाव बहिष्कार के ऐलान से कांग्रेसी खेमे में बेचैनी है। क्योंकि यहां ग्रामीणों वोटों को लेकर कांग्रेस आश्वस्त है। यदि अंदरूनी इलाकों में वोटिंग प्रभावित होती है तो कांग्रेस के लिए मुसीबत और भाजपा की राह आसान हो सकती है।  

शहर की सियासत, गांव के वोटर…

जगदलपुर की सियासत में भाजपा और कांग्रेस से दोनों सितारे पहली बार विधायक की दावेदारी जता रहे हैं। जगदलपुर विधानसभा क्षेत्र में नगरनार का पूरा इलाका, दरभा घाट से नीचे कांग्रेस घाटी का इलाका, तोकापाल और लोहंडीगुड़ा ब्लाक के साथ बस्तर विधानसभा क्षेत्र का एक बड़ हिस्सा सटा हुआ है। यहां भी शहरी, कस्बाई और ग्रामीण तीन हिस्से में वोटर और उनका मिजाज बंटा हुआ है। यहां प्रत्यक्षतौर पर कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से ही दिखाई दे रहा है। कांग्रेस ने पूर्व महापौर जतिन जायसवाल को उम्मीदवार बनाया है। यह प्रत्याशी चयन कांग्रेस के लिहाज से चौंकाने वाला रहा। यहां रेखचंद जैन विधायक हैं और कांग्रेस से हैं। इन्होंने करीब 25 हजार वोटों से भाजपा के संतोष बाफना को परास्त किया था।

बाफना ने टिकट कटने के बाद ही बाहर का रूख कर लिया है। वहीं रेखचंद कांग्रेस प्रत्याशी के साथ मैदान में चुनाव प्रचार कर रहे हैं। भाजपा के किरण देव लंबे समय तक संगठन के विभिन्न पदों पर रहे हैं। कई विधानसभा चुनाव में संचालक भी रहे। संगठन के लिहाज से बड़े नेता हैं। विधायकी के अवसर की तलाश में रहे इस बार टिकट मिली है तो उम्मीदें भी बढ़ीं हैं। कांग्रेस के टिकट से पहले देव की जीत साफ दिखाई दे रही थी पर चुनाव करीब पहुंचते जायसवाल के मैदान में आने के बाद रंगत बदली हुई है। ये भी जगदलपुर के पूर्व महापौर हैं। ऐसे में दोनो पूर्व महापौर का शहर में मेलजोल स्वाभाविक है। दोनों के अपने सकारात्मक और नकारात्मक पहलू हैं। यानी लड़ाई कांटे की हो चुकी है।

यहां इलाके के हिसाब से वोटिंग के प्रतिशत के आधार पर परिणाम प्रभावित होगा यह तय दिखाई दे रहा है। यानी कस्बाई क्षेत्र के मुद्दे, ग्रामीण क्षेत्र की स्थिति और शहर का मिजाज तीनों से प्रत्याशियों का जुझना पड़ेगा। यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि यहां भी जेसीसी जे के प्रत्याशी नवनीत चांद से कांग्रेस का गणित प्रभावित होगा। जगदलपुर में भाजपा के लिए संगठन के तौर पर बाफना गुट के साथी, राजमहल के कारण शहर के मतदाताओं का रूख, बाफना विरोधी भाजपा संगठन के ताकतवर लॉबी का शहर में प्रभाव भी वोटिंग के दौरान प्रभाव डालेगा ऐसी धारणा है। जायसवाल के लिए कांग्रेस की पूर्व छवि, उनका व्यवहार और कार्यकाल के अलावा रेखचंद के काम का प्रभाव मतदान के दौरान असर डालेगा।

बस्तर में चौसर की बिसात, रिश्तेदार आमने—सामने…

बस्तर विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस के सबसे मजबूत प्रत्याशी लखेश्वर बघेल मैदान में हैं। वे बस्तर विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष रहे। कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला रहा। वे कांग्रेस की गुटीय राजनीति से दूर अपने ग्रामीण क्षेत्र से सतत जुड़े रहे। उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने उनके छोटे भाई के साढ़ू मनीराम कश्यप को टिकट दिया है। यहां और भी प्रत्याशी हैं पर प्रत्यक्ष तौर पर कांग्रेस—भाजपा के बीच सीधी टक्कर दिखाई दे रही है। किसी समय बस्तर विधानसभा क्षेत्र में भानपुरी का इलाका भी शामिल हुआ करता था। तब बलिराम कश्यप यहां से विधायक चुने गए और मंत्री भी रहे। इसके बाद एक समय बदलाव की हवा चली और कांग्रेस के अंतुराम कश्यप ने बलिराम कश्यप को पराजित कर दिया था।

परिसीमन के बाद भानपुरी का इलाका नारायणपुर विधानसभा क्षेत्र में समाहित हो गया। बस्तर विधानसभा क्षेत्र में नगरनार स्टील प्लांट से सटा जगदलपुर विधानसभा क्षेत्र का इलाका और जगदलपुर शहर की आबादी के साथ उड़ीसा सीमा सटा हुआ है। बकावंड, करपावंड, बस्तर समूचा क्षेत्र ग्रामीण है। यहां के 85 प्रतिशत मतदाता ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं। बस्तर विधानसभा क्षेत्र में दो जिला पंचायत सदस्य का इलाका शामिल है।

इसमें से एक में वर्तमान में भाजपा के प्रत्याशी मनीराम कश्यप सदस्य हैं और दूसरे में कांग्रेस का कब्जा है। डा. सुभाउ कश्यप भी भाजपा की टिकट से यहां से विधायक चुने जा चुके हैं। इसके बाद लगातार दो बार लखेश्वर बघेल ने जीत दर्ज की है। इस चुनाव में लखेश्वर की प्रतिष्ठा दांव पर है। वे माता हिंगलाजिन के पुजारी हैं। इस इलाके में उन्हें अधिकतर लोग पुजारी के तौर पर उनका सम्मान करते हैं। सो मनीराम कश्यप और लखेश्वर बघेल के लिए यह चुनाव काफी रोचक हो सकता है। 

कोंडागांव में दो परंपरागत पारंगत प्रतिद्वंदी…

कोंडागांव विधानसभा क्षेत्र में दो परंपरागत प्रतिद्वंदी आमने—सामने हैं। यहां धर्मांतरण, भ्रष्टाचार, विकास और लता बनाम मोहन के कार्यकाल की बहस बड़ी है। भ्रष्टाचार का मुद्दा स्वयं मोहन मरकाम ने विधानसभा के पटल पर उठाया था। अब उनकी जवाबदेही की स्थिति है। सो जनता के सामने यह साफ है कि भ्रष्टाचार के मामले में चाहे प्रशासन हो या सरकार दोनों निशाने पर है। वह भी खुद मोहन मरकाम की ही देन है। इधर लता उसेंडी भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं। वे पहले दो बार विधायक और मंत्री रहीं। इसके बाद भाजपा के तीसरे कार्यकाल में चुनाव हारने के बाद भी केबिनेट मंत्री का दर्जा लेकर पावर में रहीं। यहां उन्हें दो बार पराजित करने वाले मोहन मरकाम प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष रहे।

इसके बाद उन्हें करीब आठ माह पहले आदिम जाति कल्याण विकास विभाग मंत्री बनाया गया। मंत्री बनने से पहले मोहन मरकाम भले ही पीसीसी अध्यक्ष के तौर पर सफल कार्यकाल वाले रहे। पर उनका अपने इलाके से जनाधार खतरे में पड़ता दिखने लगा था। इधर लगातार दो बार चुनाव हारने के बाद लता उसेंडी यह मानकर चल रहीं थीं कि अब उनकी भी टिकट तय नहीं है। ऐसे में लता भी पूरे कार्यकाल भर एक तरह से निष्क्रिय रहीं। जब संगठन में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया तो काम करने की साथ यह लगने लगा कि हो ना हो 2024 में बस्तर से इस बार लता उसेंडी को सांसदी की टिकट का रास्ता दिखाया जा रहा है।

पर चौंकाने वाला परिणाम यह रहा कि पूर्व मंत्री केदार कश्यप, महेश गागड़ा के साथ लता उसेंडी को भी एक मौका दे दिया गया। जमीन में हालत दोनों प्रत्याशियों की एक जैसी दिखाई दे रही है। मरकाम की कमजोरी और लता की कमजोरी के बीच सीधी टक्कर है। दोनों के पास दस—दस साल के कार्यकाल का अनुभव है। सो दोनों के बीच अपनी उपलब्ध्यिों को बताकर जनता को रिझाने का मौका है। भाजपा के भीतर एंटीइनबेंसी का खतरा टल चुका है और यह अब कांग्रेस के हिस्से में साफ दिखाई दे रहा है। इस सीट पर जबरदस्त मुकाबला है।

नारायणपुर में केदार का नारायण—नारायण…

बस्तर में सबसे स्पष्ट किसी विधानसभा की तस्वीर है तो वह है नारायणपुर। अबूझमाड़ का यह इलाका इस समय राजनीतिक तौर पर पूरी तरह बूझा जा रहा है। माओवादियों के गढ़ में भाजपा की मजबूती की वजह धर्मांतरण से उपजा विवाद है। यहां पूर्व मंत्री केदार कश्यप के सामने उनके ही इलाके के चंदन कश्यप खड़े हैं। नारायणपुर इलाके में मौजूदा विधायक को लेकर एक नकारात्मक माहौल काफी पहले से खड़ा है। इसके बीच वहां धर्मांतरण को लेकर उपजे विवाद में उनकी निष्क्रियता को लेकर दूसरा पक्ष आक्रोशित है।

भाजपा ने इस मामले को हाथों हाथ लिया पर कांग्रेस समान दूरी बनाकर मामले को ठंडा होने का इंतजार किया। परिणाम यही रहा कि आदिवासियों के तीन फांक हुए पहला जो भारतीय जनता पार्टी के साथ खड़ा है हिंदु वोटों के लिए ध्रुवीकरण करते हुए ईसाई धर्मांतरित आदिवासियों के खिलाफ दिख रहा है। दूसरा वह है जो अरविंद नेताम के सर्वआदिवासी समाज के बैनर तले सक्रिय रहा। तीसरा वह जो आदिवासी होकर ईसाई धर्म को स्वीकार कर चुका है। जिनके खिलाफ जनाक्रोश भड़का और मारपीट की गई। दोनों पक्षों में मारपीट भी हुई इसके बाद जिला प्रशासन ने भाजपा समर्थकों को उपद्रवी पहचानकर गिरफ्तार किया।

जिन लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया उनकी जमानत पर रिहाई के बाद जिस तरह से स्वागत हुआ है इससे समझा जा सकता है धर्मांतरण को लेकर नारायणपुर में कैसा माहौल रहा होगा! भाजपा के जिला अध्यक्ष सलाम की गिरफ्तारी के बाद प्रदर्शन कर रहे पूर्व मंत्री केदार कश्यप के आंसू की कीमत पार्टी ने लौटा दी है। उन्हें टिकट देकर उम्मीदवार बनाया है। नारायणपुर में भले ही कोई भी क्यों ना खड़ा हो पर माहौल अब पूरी तरह से बदला हुआ दिखाई दे रहा है। कांग्रेस ने यदि नारायणपुर से किसी को प्रत्याशी घोषित किया होता तो परिस्थितियां कुछ और हो सकती थीं। 

अफसर से नेता बने नीलकंठ ने फंसाया पेंच…

बस्तर संभाग के केशकाल सीट से कांग्रेस की टिकट विधायक संतराम नेताम के हिस्से गई है। यहां से भारतीय जनता पार्टी ने कोंडागांव जिले के पूर्व कलेक्टर और पूर्व आईएएस नीलकंठ टेकाम को प्रत्याशी घोषित किया है। बताया जा रहा है कि केशकाल इलाके में कोंडागांव का कलेक्टर रहते टेकाम ने काफी काम किया है। वहां वे पहले से अपनी तैयारी कर रहे थे। इसके बाद वीआरएस को लेकर अपना आवेदन राज्य सरकार को सौंपा पर सरकार ने वीआरएस में अडंगा लगा दिया।

इसके बाद वे त्यागपत्र सौंप दिया। करीब दो माह पहले उनकी भाजपा में सदस्यता स्वीकार की गई। केशकाल में एक बड़ी सभा हुई इसमें भाजपा के आला नेता शामिल हुए। इस दिन अपनी जमीनी पकड़ दिखाते नीलकंठ टेकाम ने मोटर साइकिल रैली निकालकर शक्ति प्रदर्शन किया। इसके बाद भाजपा ने उन्हें अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया। शुरूआती दिनों में नीलकंठ की टिकट को लेकर स्थानीय विरोध भी हुआ पर धीरे—धीरे मामला शांत हो चुका है।

इधर कांग्रेस के संतराम नेताम की छवि भी फिलहाल बुरी नहीं बताई जा रही है। यहां से पहले फूलोदेवी नेताम कांग्रेस की विधायक चुनी गईं थी। वे इस समय राज्यसभा सदस्य हैं। केशकाल कांग्रेस के लिए ज्यादा चुनौतीपूर्ण नहीं रहा है। पर भाजपा ने यहां से एक मजबूत प्रत्याशी को मैदान में उतारकर जमीन पर लड़ाई रोचक बना दिया है।

विधायक नाग के बगावत से भाजपा की राह…

अंतागढ़ में कांग्रेस MLA अनूप नाग ने टिकट न मिलने से निर्दलीय मैदान पर हैं। यहां भाजपा से विक्रम उसेंडी पूर्व सांसद पर दांव खेला है। वे इस इलाके से विधायक भी रहे हैं। अंतागढ़ सीट पर विक्रम के सांसद चुने जाने के बाद उपचुनाव में कांग्रेस के मंतुराम पवार का एन वक्त पर नाम वापसी कांड को शायद ही कोई भूला हो। यहां इसके बाद अनूप नाग को टिकट ​दी गई वे विजयी रहे। पर इस बार इनकी टिकट काट दी गई। ऐसे में भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है। अंतागढ़ में भाजपा की स्थिति को मजबूत माना जा सकता है। इस सीट पर भाजपा को वैतरणी पार लगाने का काम कांग्रेस के बागी के हिस्से ही जाएगा।

भानुप्रतापपुर में अरविंद की परीक्षा…

भानुप्रतापपुर में इस बार अरविंद नेताम की हमर राज पार्टी का गणित देखने को मिलेगा। उपचुनाव में सर्व आदिवासी समाज के बैनर से एकजुट होकर कांग्रेस के खिलाफ प्रत्याशी खड़ा करने के बाद वहां करीब 23 हजार मत पाने से वे उत्साहित हैं। यहां नेताम के तमाम विरोध के बावजूद कांग्रेस की सावित्री मंडावी ने जीत हासिल की। इस इलाके में खदान के चलते बंजर होती जमीन का मुद्दा तो है ही साथ ही  भानुप्रतापुर को पृथक जिला बनाने की मांग उठती रही है। इस बार भी इस मुद्दे को लेकर माहौल है।

कांकेर के चाणक्य राजेश की चुनौती बड़ी…

बस्तर संभाग के अंतिम छोर पर कांकेर विधानसभा क्षेत्र आता है। यहां कांग्रेस के खेवनहार कांग्रेस महासचिव राजेश तिवारी हैं। कभी अरविंद नेताम के बेहद करीबी थी। चुनावी राजनीति में रहे 1994 से 1999 तक अविभाजित बस्तर जिला पंचायत के उपाध्यक्ष रहे। केंद्रीय कृषि राज्य मंत्री अरविंद नेताम के सबसे ताकतवर राजनीतिक साथी इस समय में कांकेर में कांग्रेस के महामहिम की भूमिका में हैं। यह शुरू से ही तय था कि कांकेर की सीट से उनकी पसंद के व्यक्ति को ही टिकट मिलेगी। शंकर ध्रुवा इस समय चुनावी मैदान पर हैं।

उनके खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने नए चेहरे आसाराम नेताम को टिकट दिया है। इससे पहले पूर्व कलेक्टर शिशुपाल सोरी कांग्रेस की टिकट पर चुनाव लड़े और विजयी रहे। उन्हें संसदीय सचिव का दर्जा भी दिया गया। कांग्रेस के लिए कांकेर की राजनीति बेहद टेढ़ी है। यहां कांग्रेस का पर्याय राजेश तिवारी हैं।

हांलाकि कांकेर के कई ऐसे काम इस दौर में हुए जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी उनमें शहर के मुख्य मार्ग का चौड़ीकरण भी एक है। उपर—नीचे वाले मेन रोड का भी काया कल्प ​कर दिया गया है। विकास तो ठीक पर कांकेर में भ्रष्टाचार को लेकर भी बड़ा हल्ला रहा है। इस इलाके में अरविंद नेताम की हमर राज पार्टी की भूमिका कांग्रेस के लिए बेहद महत्वपूर्ण होने वाली है। हांलाकि वे यदि वोट काटते भी हैं तो इसमें भाजपा और कांग्रेस दोनों के हिस्से शामिल होंगे। दोनों चेहरों के बदलने के बाद कांकेर का चुनाव मजेदार हो गया है।

बस्तर के सभी सीटों के आंकलन के आधार पर इम्पेक्ट को फिलहाल आज की स्थिति में कांग्रेस के लिए अच्छी स्थिति दिखाई नहीं दे रही है। अभी चुनाव प्रचार का दो चरण बचा हुआ है। दोनों राजनीतिक दलों के घोषणापत्र जारी होना शेष है। कांग्रेस ने इस समय तक धान की कीमत, धान की प्रतिएकड़ मात्रा 20 क्विंटल करने, कृषि ऋण माफ करने, केजी से पीजी तक की शिक्षा फ्री करने जैसी घोषणाएं की हैं। भाजपा ने केवल यह जताया है कि वह कुछ शानदार बड़े घो​षणाओं के साथ संकल्पपत्र जारी करेगी। भाजपा के स्टार प्रचारकों की सभाओं और कांग्रेस के आक्रमण का दौर चल रहा है। जमीन के बाहर और भीतर जो कुछ दिख रहा है उससे तय है कि इस बार बस्तर में कम से कम कांग्रेस को छह से सात सीटों का नुकसान संभव है। वहीं शून्य से कुछ भी पाने की स्थिति में भाजपा के लिए यह अच्छी खबर हो सकती है।

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