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छत्तीसगढ़ में ‘आप’ की दस्तक के मायने…

दिवाकर मुक्तिबोध पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रचंड विजय से उत्साहित आम आदमी पार्टी अब गुजरात, हिमाचल प्रदेश व छत्तीसगढ़ में अपने लिए नयी संभावनाएं तलाशने जुट गई है। छत्तीसगढ़ में अगले वर्ष नवंबर में राज्य विधानसभा के चुनाव हैं। कांग्रेस व भाजपा की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। आम आदमी पार्टी भी पीछे नहीं है। पार्टी के गुजरात प्रभारी व मूलत: छत्तीसगढ़ निवासी सांसद संदीप पाठक, प्रदेश प्रभारी संजीव झा व दिल्ली की आप सरकार के मंत्री गोपाल राय के हाल ही के छत्तीसगढ़ दौरे से यह स्पष्ट है कि

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खैरागढ़ उपचुनाव के बहाने यह भी तय प्रतीत होता है कि 2023 के दौरान व्यवस्था के खिलाफ चलने वाली लहर की गति भी धीमी रहेगी….

दिवाकर मुक्तिबोध छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आसानी से ‘सत्ता का कथित सेमीफाइनल ‘ जीत लिया है। खैरागढ़ उपचुनाव को वे सत्ता का सेमीफाइनल ही मानते थे। भाजपा भी इसे सेमीफाइनल मानकर चल रही थी। यहां 12 एप्रिल को मतदान हुआ और 16 को मतगणना के साथ ही यह सीट भी कांग्रेस के खाते में चली गई जो 2018 के विधानसभा चुनाव में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के पास थी। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद यह चौथा उपचुनाव था। इसके पूर्व दंतेवाड़ा , चित्रकोट व मरवाही सीट

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‘मैं अपनी पुस्तकों को बंधक मुक्त कराना चाहता हूं’ साहित्यकार विनोद कुमार शुक्ल की पीड़ा और प्रकाशकों की अकड़…

प्रफुल्ल ठाकुर। प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता व लेखक मानव कौल कुछ दिनों पूर्व देश के सबसे बड़े लेखकों में से एक विनोद कुमार शुक्ल से मिलने रायपुर उनके घर आए. बातों ही बातों में रॉयल्टी पर चर्चा होने लगी. इस पर श्री शुक्ल ने बताया कि उनकी राजकमल से 6 और वाणी प्रकाशन से आई कुल 3 किताबों की सालाना रॉयल्टी औसतन 14 हजार के आसपास मिली है. देश के सबसे बड़े लेखक को इतनी कम रॉयल्टी किसी को भी चौंका सकती है. इस बात को मानव कौल ने अपने इंस्टा

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दिल्ली को रायपुर के सम में लाने वाले राजेंद्र जी नहीं रहे…

सुदीप ठाकुर। वरिष्ठ आलोचक डॉ. राजेंद्र मिश्र नहीं रहे। उनके निधन की खबर मिलते ही बहुत सी स्मृतियां ताजा हो गईं। देशबंधु में उनका आना जाना लगा रहता था। देशबंधु ने जब साहित्य वार्षिकी शुरू करने का फैसला किया था , तब ललित सुरजन जी ने उन्हें अतिथि संपादक बनाया था। अक्षर पर्व के नाम से निकली इस वार्षिकी के संपादक थे विनोद वर्मा। देश के साहित्य जगत में यह एक बड़े धमाके की तरह था। उस समय तक दिल्ली से निकलने वाली प्रतिष्ठित पत्रिका इंडिया टुडे कई साहित्यिक वार्षिकी

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उन्होंने अपने ढंग से ख़बर ब्रेक कर दी- ज़िंदगी बहुत भरोसे लायक नहीं… पत्रकार कमाल खान अब नहीं रहे

NDTV के वरिष्ठ प्रियदर्शन के फेसबुक वाल सेकमाल खान को याद करते हुए जिसके साथ बरसों-बरस काम किया, उसके एक झटके में चले जाने का दुख बहुत तीखा होता है। लेकिन ढीठ की तरह हम लिखते जाते हैं। दोस्त और सहयोगी रहे कमाल ख़ान के लिए लिखी यह श्रद्धांजलि। ndtv.in पर। हमने कमाल को देखा है कभी उनसे लखनऊ के टुंडे कबाब पर बात हो रही थी। उन्होंने हंसी-हंसी में कहा कि आपको इससे बेहतर कबाब मिल जाएंगे, लेकिन टुंडे कबाब नहीं मिलेगा। शायद ख़ुद कमाल ख़ान पर यह बात

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सुरक्षा की चूक कहीं कवरेज की भूख मिटाने का प्रयोजन तो नहीं है, आधिकारिक बयान कहां हैं?

रविश कुमार के फेसबुक वाल से प्रधानमंत्री की सुरक्षा में चूक को लेकर बीजेपी की प्रतिक्रिया और मीडिया के डिबेट दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। ऐसा लगता है कि सूरक्षा में चूक का मुद्दा दोनों के लिए ईवेंट के लिए और फिर ईवेंट के ज़रिए डिबेट के लिए कटेंट बन कर आया है। प्रधानमंत्री कार्यालय, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार, एसपीजी की तरफ से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है। पंजाब के मुख्यमंत्री ने प्रेस कांफ्रेंस की है लेकिन पंजाब के पुलिस प्रमुख ने प्रेस कांफ्रेंस नहीं की है। बठिंडा एयरपोर्ट

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गांधी को लोग देर से समझते हैं…

सुदीप ठाकुर। कंगना बहन यह सिर्फ आपकी मुश्किल नहीं है। गांधी को लोग देर से समझते हैं। दरअसल हड्डी के ढांचे जैसी काया में नजर आने वाला यह शख्स जितना बाहर से सहज और सरल दिखता है, भीतर से उतना ही कठोर है। उन्हें समझने में अंग्रेजोंं को भी वक्त लगा था। जिन्ना वगैरह के तो बस की बात ही नहीं थी गांधी को समझना। खुद सावरकर भी कहां ठीक से समझ पाए थे गांधी को। जिन्ना और सावरकर ने गांधी को ठीक से नहीं समझा तो उसकी वजहें साफ

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दोबे की पहाड़ियों पर पत्थरों का परिवार, चट्टानों की संरचना अद्भूत… नीलम सरई के बाद बीजापुर के पर्यटन पटल पर दोबे की दस्तक…

दोबे से लौटकर। पी रंजन दास। जुड़ी हुई हैं किंवदंती, पहाड़ पर हैं देवताओं का वास बीजापुर। पहाड़ पर घास के सपाट मैदान, बीच में गुजरता नाला, इन सब के बीच दूर तक अद्भूत कलाकृतियों को संजोये पत्थरों का एक गांव । प्राकृतिक खूबसूरती और अद्भूत कलाकृतियों से युक्त पत्थरों का ऐसा झुण्ड नजर आता है दोबे की पहाड़ियों पर, जिसे पत्थरों का गांव भी कहा जाता है। बीजापुर के उसूर ब्लाक में नीलम सरई और नम्बी जलधारा के मध्य एक पहाड़ी जिसे स्थानीय लोग दोबे के नाम से जानते

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बस्तर के लोक अध्येता हरिहर वैष्णव नहीं रहे

पीयूष कुमार। बस्तर के सबसे बड़े लोक अध्येता हरिहर वैष्णव जी का निधन हो गया है। वे 66 वर्ष के थे। कोंडागांव (छत्तीसगढ़) निवासी हरिहर वैष्णव मूलतः कथाकार और कवि रहे हैं पर उनका सम्पूर्ण लेखन और शोध कर्म बस्तर पर ही केंद्रित रहा है। लोक का साहित्य उसकी वाचिक परम्परा में संरक्षित रहता है ऐसे में उसे लिपिबद्ध करना निश्चित ही महती कार्य है। इस लिहाज से बस्तर की समृद्ध लोक परम्पराओं खासतौर से हल्बी और भतरी भाषा के लोक को हरिहर जी ने विस्तार से लिपिबद्ध करके सुरक्षित

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जब कभी पलके बंद करो तो औरों के साथ वे भी हाज़िर… उनकी स्मृतियाँ हाज़िर… यह थे शरच्चंद्र माधव मुक्तिबोध

– दिवाकर मुक्तिबोध. छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-13 बबन काका को गुज़रे 37 वर्ष हो गए। जब कभी उनकी याद आती है तो एक दृश्य आँखों के सामने जीवंत हो उठता है। वे मुझसे कहते नज़र आते हैं-ज़रा, तुम्हारी टिकिट तो देना। मैं चुपचाप जेब से टिकिट निकालकर उन्हें देता और वे अपने बेटे व मुझसे छोटे प्रदीप को रेलवे की

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