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आन्दोलनों से घिरती सरकार, सिलगेर से फैली चिंगारी बुरजी के बाद बेचापाल तक पहुँची… सड़क, पुल-पुलियों से लेकर सुरक्षा बलों के कैम्प पर ग्रामीणों की नाकेबन्दी…

रंजन दास।बीजापुर।

नए सुरक्षा कैम्प, सड़कें, पुल-पुलियों समेत कई फर्जी मुठभेड़ों का आरोप, न्यायिक जांच, सारकेगुड़ा, एड़समेटा गोलीकांड से जुड़े मुद्दों को लेकर बीजापुर जिले में आंदोलन की चिंगारी आग की लपटों की तरह फैलती दिख रही है। बीते सात महीनों के भीतर ना सिर्फ सिलगेर बल्कि गंगालूर इलाके के बुरजी और अब मिरतूर इलाके में बेच्चापाल के ग्रामीणों ने इलाके में बन रही सड़क और प्रस्तावित सुरक्षा बलों के कैम्पों के निर्माण पर नाकेबंदी करते आंदोलनरत् है।

करीब छह महीने पहले सुकमा-बीजापुर की सरहद पर सिलगेर में खड़ा हुआ जनआंदोलन अभी समाप्त भी नहीं हुआ कि बुरजी और अब बेच्चापाल में ग्रामीणों ने सिलगेर की तर्ज पर आंदोलन शुरू कर दिया है। आंदोलन स्थल पर मुद्दे वही गूंज रहे हैं, जिन्हें लेकर सिलगेर में ग्रामीणों ने आवाज बुलंद की थी।

बुधवार को बेच्चापाल में हजारों आदिवासियों ने नजदीकी सुरक्षा बलों के कैम्प के सामने प्रदर्शन किया। यहां करीब 15 दिनों से आंदोलन जारी है। आंदोलनकारियों ने मूल वासी बचाओ मंच के तहत् 19 सूत्रीय मांगों से संबंधित एक ज्ञापन राज्यपाल , मुख्यमंत्री के नाम भी सौंपा है।

जिसमें बेच्चापाल , दरभा पुलिस कैम्प का विरोध, पुलिस पर लूटपाट, बेरोजगारों छात्रों को प्रताड़ित करने का आरोप , मिरतूर से उर्रेपाल सड़क-पुल का विरोध, दंतेवाड़ा के नीलावाया में कथित मुठभेड़ की जांच, बेच्चापाल में स्कूली छात्रों पर थाना प्रभारी द्वारा बिजली का शॉक देकर प्रताड़ित करने का आरोप, मदपाल कथित मुठभेड़ को फर्जी ठहराते पीड़ितों को न्याय, सड़क निर्माण के दौरान फलदार, इमारती वृक्षों की अवैध कटाई पर भू स्वामी को मुआवजा, सल्फी, छिंद, ताड़ी जैसे जीविकोपार्जन वाले वृक्षों के नुकसान पर 50 हजार का मुआवजा , सड़क निर्माण के लिए मुरूम की अवैध खनन पर रोक लगाते ग्राम सभा की अनुमति को अनिवार्य करने की मांग ग्रामीणों ने रखी है।

जिले के अलग-अलग हिस्सों में जहां सरकार और प्रशासन पर विकास को बढ़ावा देना चाहती है, ग्रामीणों के लगातार विरोध से विकास कार्यों की गति धीमी पड़ चुकी है।

हालांकि सिलगेर में उपजे कड़े विरोध को शांत करने और ग्रामीणों से समन्वय स्थापित करने की मंशा से सरकार की तरफ से विधायक, सांसद के एक डेलीगेशन ने शुरूआती दौर में आंदोलनकारियों से मिलकर पहल अवश्य की थी, लेकिन सरकार की यह पहल किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई थी। सिलगेर पर अब भी सरकार, पुलिस प्रशासन की निगाहें बनी हुई है िकइस बीच गंगालूर के बुरजी और अब बेच्चापाल तक विरोध, आंदोलन की चिंगारी पहुंचने के बाद सरकार-प्रशासन के लिए मुसीबतें कम होती नहीं दिख रही है।
दिल्ली के किसान आंदोलन की तर्ज पर बीजापुर के इन हिस्सों में आंदोलन का यह स्वरूप दिन ब दिन वृहद होता नजर आ रहा है। आंदोलन स्थल पर ग्रामीणों ने तिरपाल की मदद से चौबीस घंटे ग्रामीण आंदोलन स्थल पर डटे हुए हैं। सोलर प्लेट की मदद से उनके माइक सिस्टम , फोन इत्यादि चार्ज हो रहे हैं, तो वही पाम्पलेट, बैनर भी आंदोलन स्थल पर तैयार हो रहे हैं। हालांकि सिलगेर में जब आंदोलन की शुरूआत हुई थी उस वक्त वहां प्रदर्षनकारियों की तादात हजारों में थे, लेकिन आंदोलन लंबा चलने से अब ग्रामीण अपनी दिनचर्या के हिसाब से बारी-बारी से आंदोलन पर डटे हुए हैं।
तीनों ही जगह ग्रामीणों ने तिरपाल से तंबुनुमा रहने का प्रबंध कर लिया है। जंगल से जलाउ इकट्ठा कर लाया जा रहा है और पत्थरों की मदद से दर्जनों चुल्हों पर भोजन पक रहा है। बस्तर के बीजापुर में आंदोलन की ऐसी तस्वीर पहले नजर नहीं आई थी, ऐसे में माओवादियों की जिन आधार इलाकों में सरकार सड़क-पुल पुलियों के जरिए पहुंचना चाहती है, आंदोलन के चलते सरकार-प्रशासन की मुसीबतें कम होने के बजाए और बढ़ती दिख रही है। देखना होगा कि बीजापुर के सिलगेर से खड़ा हुआ आंदोलन की इस चिंगारी को रोकने में सरकार कम तक कामयाब हो पाती है।

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