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शेयर मार्केट क्रेश : इस सात लाख करोड़ डूबने का मतलब!

  • सुदीप ठाकुर.

मई, 2004 के लोकसभा चुनाव के बाद जब तकरीबन तय हो गया था कि केंद्र में वाम दलों के समर्थन से कांग्रेस की अगुआई वाली यूपीए सरकार देश की कमान संभालने जा रही है, तो 17 मई,2004 को शेयर बाजार में भूचाल आ गया था। उस दिन सेंसेक्स के 842 अंक नीचे जाने के साथ ही मुंबई शेयर बाजार के इतिहास में उस समय की सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई थी। अपने संसदीय जीवन में सबसे अधिक लोकसभा सीटें जीतने वाले वाम दलों की ओर से आया यह बयान उस समय बेहद चर्चित हुआ था, कि भाड़ में जाए शेयर बाजार!

यह वाकया सोमवार को शेयर बाजार में मचे हड़कंप के बाद याद आ गया। मुंबई शेयर बाजार का सूचकांक आज रिकॉर्ड दो हजार अंकों की गिरावट के साथ 35,634 अंकों पर आ गया है। वरना, इसी साल 17 जनवरी को यह 42,063 अंकों के साथ अपने सर्वोच्च शिखर पर था, और तब बाजार के जानकार इसके जल्द पचास हजार तक पहुंच जाने के कयास लगाने लगे थे। कुछ जानकारों ने यहां तक कहा था कि महज दो तिमाहियों के बाद सेंसेक्स यह शिखर छू लेगा।

अमूमन शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव आम लोगों को समझ नहीं आते। अर्थशास्त्रियों और सरकारों की आंकड़ों की बाजीगरी उन्हें और उलझा देती है। जबकि इसका सीधा संबंध उनकी निजी जिंदगी से जुड़ा हुआ है। इससे उनके काम धंधे और रोजगार ही नहीं, बल्कि उनसे जुड़ी कल्याणकारी योजनाएं भी प्रभावित होती हैं।

सेंसेक्स और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज निफ्टी में दर्ज की गई ताजा गिरावट के बाद अनुमान लगाया गया है कि निवेशकों के सात लाख करोड़ रुपये एक झटके में डूब गए। ध्यान रहे, पिछले हफ्ते शेयर बाजार में आई गिरावट के कारण उनके करीब पांच लाख करोड़ रुपये पहले ही डूब गए हैं।

मौजूदा गिरावट के लिए देश के पांचवें बड़े बैंक यश बैंक में सामने आए संकट, तेल उत्पादक देशों के संगठन (ओपेक) के साथ बातचीत नाकाम होने के बाद सऊदी अरब द्वारा कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाने और दाम घटाने के कारण इसके दामों में तीस फीसदी की गिरावट आने और दुनिया में तेजी से फैल रहे कोरोना वायरस के संक्रमण को जिम्मेदार माना जा रहा है।

साफ है कि वजह जो भी हो, यह खबर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए अच्छी नहीं है। निवेशक बाजार से हाथ खींच रहे हैं।

यदि सोमवार की गिरावट को ही देखें, तो शेयर बाजार में निवेशकों के सात लाख करोड़ रुपये डूब गए हैं। बेशक इनमें बड़ी संख्या संस्थागत विदेशी निवेशकों की होगी। मगर इससे हमारे और आपके हित भी जुड़े हुए हैं।

इसे जरा इस ढंग से भी समझने की कोशिश कीजिए कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश का इस साल का बजट पांच लाख 12 हजार 860 करोड़ रुपये का है। इसी तरह से महाराष्ट्र का बजट चार लाख चार हजार करोड़ रुपये का है, तमिलनाडु का तीन लाख करोड़ के आसपास, पश्चिम बंगाल का दो लाख पचपन हजार करोड़, बिहार का दो लाख ग्यारह हजार करोड़, छत्तीसगढ़ का एक लाख करोड़ और सिक्किम जैसे छोटे राज्य का बजट महज सात हजार करोड़ रुपये का है।

शिक्षा के मद में इस साल बजट में 99 हजार करोड़ रुपये रखे गए हैं। इसमें देश के सर्वोच्च प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) के लिए सात हजार करोड़ रुपये रखे गए हैं। शेयर बाजार में डूबे सात लाख करोड़ रुपये की तुलना जरा ग्रामीण रोजगार देने वाली महत्वाकांक्षी मनरेगा योजना के बजट से कीजिए। मनरेगा के लिए इस साल केंद्र सरकार ने सिर्फ 61 हजार पांच सौ करोड़ रुपये रखे हैं। यानी शेयर बाजार में जो धन डूबा है, उससे मनरेगा जैसी करीब एक दर्जन योजनाएं चलाई जा सकती हैं।

बारह सालों के बाद आज वाम दल अपने अस्तित्व को लेकर संघर्ष कर रहे हैं। उन्होंने जिस कांग्रेस पार्टी का समर्थन किया था, वह लगातार पिछले दो चुनावों से सत्ता से न केवल बाहर है, बल्कि लोकसभा में उसकी मौजूदगी दो अंकों में सिमटी हुई है। 2004 की गिरावट के लिए वाम दलों को जिम्मेदार बताया जा रहा था, क्योंकि बाजार को आशंका थी कि सरकार में उसकी मौजूदगी से देश कल्याणकारी नीतियों पर आगे चल पड़ेगा और निजीकरण की रफ्तार धीमी हो जाएगी।

पर वाम दलों ने 12 साल पहले शेयर बाजार में आई गिरावट पर जो कुछ कहा था, क्या वैसा कहना आज संभव है?

नहीं। मौजूदा सरकार को बाजार की काफी फिक्र है। वह बाजार को अर्थव्यवस्था के हितैषी की तरह देखती है। सरकार सार्वजनिक उपक्रमों से अपना हिस्सा बेचती जा रही है। उसने ईपीएफ का पैसा बाजार में लगा रखा है और अब उसने इस साल ईपीएफ की ब्याज दर में 15 बेसिस पाइंट की कटौती कर दी है।

इसलिए अब शेयर बाजार की हर उतार-चढ़ाव सिर्फ आंकड़ों का खेल नहीं रह गई है। ध्यान रहे, चाणक्य ने जो अर्थशास्त्र लिखी थी उसका संबंध राजनीति से था। आज जो राजनीति हो रही है, उसका संबंध अर्थशास्त्र से है।

—लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार/संपादक हैं

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