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छत्तीसगढ़ में बड़े प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस-भाजपा के उम्मीदवार तय… अब तक कोई अंडर करंट नहीं…

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दिवाकर मुक्तिबोध।

छत्तीसगढ़ में अगले महीने दो चरणों में 07 एवं 17 नवंबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस व भाजपा के उम्मीदवारों की स्थिति लगभग स्पष्ट हो गई है. सत्तारूढ़ कांग्रेस के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल अपने गृह क्षेत्र पाटन से चुनाव लड़ रहे हैं जबकि पूर्व मुख्यमंत्री व भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉक्टर रमन सिंह ने पूर्व की तरह राजनांदगांव से अपना नामांकन दाखिल किया है. प्रदेश के दोनों दिग्गजों के चुनाव परिणाम में कोई उलटफेर होगा,

इसकी उम्मीद नहीं के बराबर है अलबत्ता रमन सिंह के मुकाबले भूपेश बघेल कुछ कडे़ मुकाबले में फंसे हैं. उनके खिलाफ उनके भतीजे और भाजपाई सांसद विजय बघेल है जबकि रमन सिंह के विरुद्ध कांग्रेस ने  गिरीश देवांगन के रूप में अपेक्षाकृत कमजोर प्रत्याशी को मैदान में उतारा है.

यहां उल्लेखनीय है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में रमन सिंह को घेरने के लिए कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी व भाजपा की पूर्व सांसद  करूणा शुक्ला को टिकिट दी थी. लेकिन कांग्रेस की लहर के बावजूद वे चुनाव हार गईं. ऐसे में सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि राजनांदगांव में अंतिम स्थिति क्या रहेगी.

बहरहाल इस बार अधिकांश सीटों पर कड़े मुकाबले के आसार हैं. 2023 के चुनाव में 2018 जैसी हालत नहीं हैं. कोई अंडर करेंट नहीं है.सत्तारूढ़ दल का कामकाज जनता के सामने है और विपक्ष की भूमिका भी.तब 15 साल के भाजपा शासन के खिलाफ जबरदस्त माहौल बन गया था जिसका नतीजा बहुत बुरी पराजय के रूप में सामने आया. भाजपा सिर्फ 15 सीटें हासिल कर सकी.

इतनी बुरी पराजय की कल्पना उसे नहीं थी और न ही कांग्रेस को उम्मीद थी कि उसका परचम इस कदर लहराएगा. भाजपा के लिए सदमा इतना भयावह था कि चार वर्षों तक पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं के हौसले पस्त रहे. इस अवधि में कांग्रेस को एक तरह से खुला मैदान मिला जिसका उपयोग मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने अपने योजनागत कार्यों व लोक संस्कृति के संवर्धन के जरिए सत्ता विरोधी लहर को कमतर करने में किया. फिर भी चुनाव के इस अंतिम वर्ष में जो राजनीतिक वातावरण बना है, वह कांग्रेस को एड़ी-चोटी का जोर एक करने के लिए मजबूर कर रहा है. 

एक दृष्टि से देखा जाए तो यह भाजपा की सफलता है कि उसने वापसी की. अब वह जोरदार मुकाबले में है. ऐसे में चुनावी रणभूमि में मौजूद छोटे-बड़े अन्य राजनीतिक दल इसमें अपनी जमीनी पक़ड़ के हिसाब से तड़का लगाएंगे. वे भले ही दो-चार सीटों से आगे न बढ़ पाएं पर वे कांग्रेस व भाजपा के वोट शेयर को अवश्य प्रभावित करेंगे.

अतीत में भी ऐसा होता रहा है. पिछले चुनाव में छत्तीसगढ़ जनता पार्टी जोगी, बसपा व गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने कई सीटों पर दोनों प्रमुख पार्टियों का खेल बिगाड़ा था. इस बार भी इन तीन दलों के अलावा आम आदमी पार्टी तथा अरविंद नेताम की हमर समाज पार्टी भी मैदान में है.

अरविंद पार्टी पहली बार चुनाव में उतरी है. उसके टारगेट में मुख्यतः राज्य की 29 आदिवासी सीटें हैं. इनमें  से 27 सीटें अभी कांग्रेस के कब्ज़े में हैं. पिछले चुनाव में बसपा व जोगी कांग्रेस के गठबंधन ने करीब 11 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे. अजीत जोगी नहीं रहे लिहाज़ा पार्टी में पहले जैसी ताकत भी नहीं रही. अब गठबंधन बसपा व गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के बीच है. यदि ये सभी पार्टियां कुल जमा 13-14 प्रतिशत भी वोट हासिल कर लेती है तो समझा जा सकता है कि चुनाव परिणाम  किसी हद तक प्रभावित होंगे.

इस चुनाव में कई हाइ प्रोफाइल सीटें हैं जहां हार-जीत का फासला या तो बहुत कम या काफी अधिक मतों से हो सकता है. जैसे निर्वाचन क्षेत्र साजा में बघेल सरकार के वरिष्ठ मंत्री रविन्द्र चौबे के विरुद्ध भाजपा ने जिस प्रत्याशी को खड़ा किया है, वह न तो भाजपा कार्यकर्ता है और न ही उसका कोई राजनीतिक आधार है. यहां  पार्टी ने उस ईश्वर साहू को टिकिट दी है जिसका बेटा भुवनेश्वर साहू बेमेतरा जिले के बिरनपुर गांव में इसी वर्ष 15 अप्रैल को घटित साम्प्रदायिक हिंसा में मारा गया था. वोटों के ध्रुवीकरण की दृष्टि से भाजपा ने यह साम्प्रदायिक कार्ड खेला.

 इसी तरह कवर्धा में राज्य के वरिष्ठ मंत्री मोहम्मद अकबर के खिलाफ विजय शर्मा को टिकिट दी गई है.  दो वर्ष पूर्व 03 अप्रैल 2021 कवर्धा में घटित एक घटना को साम्प्रदायिक रंग देने के आरोप में  विजय शर्मा को गिरफ्तार किया गया था. अतीत में तात्कालिक उत्तेजना से घटित चंद घटनाओं को छोड़ दें तो छत्तीसगढ़ का इतिहास आपसी भाईचारे एवं सदभाव का रहा है जो अक्षुण्ण है. हालांकि समय-समय पर इसे खुरचने की कोशिश होती रही है.

ताजा उदाहरण देखें. केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह 6 अक्टूबर को राजनांदगांव में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह के नामांकन दाखिले के लिए दौरान विशेष रूप से उपस्थित थे. उन्होंने चुनावी सभा को संबोधित किया. उन्होंने अपने भाषण में बिरनपुर की घटना का उल्लेख करते हुए जो कहा वह सामाजिक सदभाव को बिगाड़ने की श्रेणी में आता है. इससे यह संकेत मिलता है कि भाजपा ने कवर्धा-बेमेतरा जिले के मतदाताओं को साम्प्रदायिकता के आधार पर प्रभावित करने की चाल चली है. और इस उद्देश्य के लिए मोहरे के तौर पर ईश्वर साहू का इस्तेमाल किया गया है.

इसी साम्प्रदायिक नज़रिए से भाजपा ने कवर्धा में विजय शर्मा को टिकिट देकर कांग्रेस के कद्दावर नेता मोहम्मद अकबर की राह में कांटे बिछाने की कोशिश की हैं. हालांकि शर्मा मजबूत प्रत्याशी माने जाते हैं.  किंतु यह ध्यान रखना होगा कि अकबर ने पिछला चुनाव भारी भरकम मतों से जीता था. 

उन्होंने भाजपा उम्मीदवार अशोक साहू को करीब 60 हजार वोटों से हराकर कीर्तिमान बनाया. इस कीर्तिमान को ध्वस्त कर अपनी लकीर खींचना भाजपा के लिए लगभग नामुमकिन सा है फिर भी उसने यहां नया प्रत्याशी देकर जीत की उम्मीद बांध रखी है।

इस बार चुनाव में सर्वाधिक दिलचस्प नजा़रा रायपुर दक्षिण में पेश होगा जहां धर्म व राजनीति के  दो महागुरूओं के बीच भिडंत है. कांग्रेस ने यहां से दूधाधारी मठ के महंत रामसुंदर दास को भाजपा के बृजमोहन अग्रवाल के विरुद्ध टिकिट दी है जो लगातार सात चुनावों में जीत दर्ज करते रहे हैं.

यह उनका गढ़ अभेद्य है. इस गढ़ को ढहाने की चुनौती पूर्व विधायक रामसुंदर दास को दी गई जिनके बृजमोहन अग्रवाल से एक तरह से पारिवारिक संबंध है. बृजमोहन की उन पर अपार श्रद्धा है.

उनके साथ ऐसे मधुर संबंधों के चलते महंत रायपुर दक्षिण से लड़ने के इच्छुक नहीं थे लेकिन कांग्रेस ने रणनीति के तहत उन्हें टिकिट दी जबकि टिकिट के प्रमुख दावेदार कन्हैया अग्रवाल ने पिछले चुनाव में बृजमोहन को नाको चने चबवा दिये थे. अब यह देखना महत्वपूर्ण रहेगा कि संबंधों से परे यह चुनाव कौन कितनी गंभीरता से लड़ता है.

जाहिर है इस दफे चुनाव में कांग्रेस को उम्मीदवारों के चयन में भारी मशक्कत करनी पड़ी है. चयन में राज्य के पांच बड़े नेताओं के समूह  मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, उप मुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव, विधानसभा अध्यक्ष चरण दास महंत, प्रदेश अध्यक्ष सांसद दीपक बैज तथा गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू में कौन कितना भारी पड़ा , यह अलग विषय है लेकिन डिप्टी सीएम टीएस सिंहदेव को एक मामले में अवश्य संतोष होगा कि उन्होंने रामानुजगंज से उस विधायक का पत्ता साफ कर दिया जिसने उन पर घृणित आरोप लगाए थे.

टीएस ने सार्वजनिक रूप से एलान किया था कि उन पर तथा परिजनों पर झूठा लांछन लगाने वाले को वे कभी माफ नहीं करेंगे. उन्होंने माफ नहीं किया. ये बृहस्पति सिंह हैं इस क्षेत्र से लगातार दो बार चुनाव जीतने वाले विधायक. टिकिट कटने के बाद अब वे बागी तेवर दिखा रहे हैं.

  • लेखक छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ संपादक एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं।
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