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अतुल्य दंतेवाड़ा : कारिडोर की फाइलें मंत्रालय तलब… ENC को पांच दिन में जांच कर रिपोर्ट देने के निर्देश… आरईएस के EE रायपुर पहुंचे… AS और TS की पड़ताल भी देखें…

इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर।

सुनियोजित सिंडिकैट द्वारा करप्शन का सबसे बड़ा मामला माता दंतेश्वरी की धरा दंतेवाड़ा में रचा गया। इसके सूत्रधार तत्कालीन कांग्रेस सरकार के मुखिया थे या जिले के प्रधान अब​ यह जांच में ही सामने आएगा। लगातार खबरों को लेकर आखिरकार अतिरिक्त मुख्य सचिव सुब्रत साहू ने दंतेवाड़ा कारिडोर के मामले की जांच के निर्देश ग्रामीण यांत्रिकी विभाग के ईएनसी यानी विभाग प्रमुख को ही दे दिया है। इन्हें पांच दिन के भीतर पूरे मामले की जांच कर रिपोर्ट देने के लिए कहा गया है। इधर जांच की इस कार्यवाही से पहले ही दंतेवाड़ा ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के प्रभारी कार्यपालन अभियंता आरके ठाकुर को मय दस्तावेज मंत्रालय तलब किया गया है।

दोपहर बाद मिले इस निर्देश के बाद दंतेवाड़ा में हड़कंप मचा रहा। निर्वाचन संबंधित प्रशिक्षण के लिए दिल्ली पहुंचे कलेक्टर को पल—पल की जानकारी उनके करीबी जनपद सीईओ मोहनीश देवांगन देते रहे। इसके बाद फाइलों के संधारण का काम शुरू किया गया। इस काम को पूरा करने के लिए एक अदद जनपद सीईओ भी डीएमएफ की शाखा में सारा दिन मौजूद रहे। कलेक्टोरेट से दस्तावेज लीक के मामले को लेकर भी पड़ताल चली। इसके बाद जिले के मुखिया ने कथित तौर पर संबंधित शाखा के एक बाबू के साथ शाब्दिक दुर्व्यवहार किया। बताया जा रहा है कि अति किस्म के अभद्र शब्दों के साथ उसे चेतावनी तक दे दी गई। बताया जा रहा है कि उक्त बाबू ने पत्रकार मित्र को अपनी आपबीती भी सुनाई।

यह बताने का आशय यही है कि दरअसल पूरा खेल दस्तावेजों की गोपनीयता के आधार पर ही खेला गया है। जिले के किसी भी व्यक्ति के पास ना तो डीएमएफ से संबंधित किसी भी तरह की स्वीकृति या प्रशासकीय स्वीकृति और तकनीकी स्वीकृति के दस्तावेज उपलब्ध हैं। और ना ही ऐसा होने दिया गया। यहां तक कि जिन कार्य एजेंसियों को ठेके पर काम सौंपा गया उन्हें भी दस्तावेज नहीं दिया गया। इसकी पुूष्टि करते पूर्व में दंतेवाड़ा कारिडोर के लिए नियुक्त आर्किटेक्ट रोहित मुदलियार तक को वर्कआर्डर की कॉपी तक नहीं दी गई।

बल्कि काम शुरू होने के कुछ ही समय बाद श्री मुदलियार को काम से हटाकर काम के एवज में किए गए प्रारंभिक भुगतान की राशि की वसूली की नोटिस थमा दी गई। मजेदार बात तो यह है कि इम्पेक्ट से चर्चा में श्री मु​दलियार ने पूरी वस्तुस्थिति से अवगत कराते बताया कि डिजाइन के साथ किस तरह से छेड़छाड़ की गई। इसकी लागत बढ़ाने के लिए किस तरह से खेल किया गया। अपने चेहते को काम दिलाने के लिए किस तरह से तकनीकी स्वीकृति के दस्तावेजों की अनदेखी की गई।

मजेदार बात तो यह है कि जिस कार्य को एक साथ पूरा किया जाना है। उसका तकनीकी तौर पर एक ही नक्शा बनाया गया है। उसी नक्शे और प्लान के आधार पर तकनीकी स्वीकृति दी गई है। तकनीकी स्वीकृति के दौरान कार्य की लागत सीमा से ज्यादा होने के कारण होने वाली असुविधा से बचने के लिए ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के कार्यपालन अभियंता के माध्यम से उसी नक्शे के आधार पर 26 पार्ट की तकनीसी स्वीकृति की एक ही फाइल तैयार की गई। यानी एक ही कार्यवाही के तहत पार्ट वन से पार्ट 26 का जिक्र कर तकनीकी स्वीकृति दर्शा दी गई। जबकि नक्शा केवल एक ही है।

यदि किसी कार्य को 26 पार्ट में किया जाना होता है तो हर पार्ट का नक्शा अलग—अलग होगा और उसी आधार पर उसका वैल्यूवेशन किया जाना होता है। जब यह फाइल जिला निर्माण समिति के पास पहुंची तो सबसे पहले समिति को इसी पर शक किया जाना चाहिए था। इसके बाद जिला कलेक्टर को प्रशासकीय स्वीकृति प्रदान करने से पूर्व इस पर शक करना चाहिए था। कि कहीं अपने किसी चेहते ठेकेदार के लिए कार्यपालन अभियंता कागज में कलेक्टर की कलम तो नहीं फंसा रहे? पर ऐसा नहीं करना साफ दिखला रहा है कि इस काम में महोदय के निर्देश का पालन कार्यपालन अभियंता ने किया। वैसे भी किसी भी जिले में ग्रामीण यांत्रिकी विभाग के कार्यपालन अभियंता की भूमिका किसी ​कलेक्टर और जिला पंचायत सीईओ के सामने किंचित मात्र की होती है।

मामला केवल रिवर फ्रंट के दस्तावेजों को लेकर ही नहीं है। बल्कि डीएमएफ के तहत करवाए जा रहे सभी निर्माण कार्यों में इसी तरह का खेल किया गया है। विचारणीय तथ्य तो यह है कि प्रशासकीय आदेश की कॉपी में क्षेत्रीय विधायक को भी प्रतिलिपि देना दर्शाया गया है पर यह कॉपी आज तक तत्कालीन विधायक के पास नहीं पहुंची है।

दक्षिण बस्तर की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि यहां असल में अमीर धरती के गरीब लोग रहते हैं। रिवरफ्रंट सौंदर्यीकरण योजना को किस तरह से खनन प्रभावित इलाके के प्रभावितों के हितों से जोड़कर दिखाया गया है यह देखने के बाद शर्म आ रही है कि इतने निक्रिष्ट किस्म के प्रशासनिक तौर पर गरीब, आदिवासियों के हितों से परे रिवर फ्रंट जैसी योजना को अपने आभामंडल वाली परियोजना से जोड़कर दिखाने की कोशिश की गई है। सूत्रों ने बताया कि मीडिया की खबरों के बाद डिप्टी सीएम अरूण साव ने कलेक्टर विनीत नंदनवार से बात की। इस पर बताया जा रहा है कि श्री नंदनवार ने उन्हें अपने सफाई में कहा कि वे पूर्व कलेक्टर दीपक सोनी के कार्यकाल के काम को पूरा करवा रहे हैं।

दक्षिण बस्तर में लोगों के भीतर जबरदस्त आक्रोश इसी बात को लेकर है कि जिला कलेक्टर ने उनकी मासूमियत का बेजा इस्तेमाल किया है। बड़ी बात तो यह है कि जिले में अरबों के विकास कार्यों को अंजाम दिया जा रहा है। वहां जिन वस्तुओं पर राशि व्यय की जा रही है उनमें ज्यादातर बेहद महंगी नान एसओआर वाली सामग्री है। जिसका भुगतान अनाप—शनाप निकालने का जुगाड़ा क्या केवल किसी कार्यपालन अभियंता के हद पर संभव है। यह बड़ा सवाल है।

संभव है कि एसीएस सुब्रत साहू के निर्देश पर ईएनसी ग्रामीण यांत्रिकी सेवा इस मामले की तह तक पहुंचेंगे और इस निर्माण में बरती जा रही अनियमितता को दूर करने में सफल हो सकेंगे। इधर दंतेवाड़ा ​कारिडोर परियोजना की मीडिया खबरों के बाद समूचा जिला प्रशासन सकते में है। जांच पर आंच डालने की तैयारी रायपुर में बैठे महारथियों के हवाले सौंप दी गई है।

दंतेवाड़ा जिले की अकूत डीएमएफ राशि से होने वाले लाभ को कहां लगाया गया है। इसे लेकर भी दंतेवाड़ा जिले में बड़ी चर्चा है। बताया जा रहा है कि अनाम 50 एकड़ जमीन की खरीदी में करोड़ों रूपए की डील बस्तर जिला के बस्तर ब्लॉक में की गई है। इसके अलावा पंडरीपानी इलाके में ऐसी ही एक अनाम डील 15 एकड़ जमीन की गई है। वहीं रायपुर में स्वर्णभूमि नामक किसी परियोजना में धनराशि का उपयोग किया गया है। इसमें केतन पटेल के नाम के अगल—बगल वाले हिस्से में दो और नाम हैं। संभव है जांच में नाम भी सामने आ जाएगा।

बताते हैं कि विधानसभा रोड पर एक बेहद जन्नतद्वार कॉलोनी है इसमें अंबानी टाइप लोगों के लिए ही जुगाड़ हो सकता है इसमें दंतेवाड़ा जिले के गरीब आदिवासियों का हिस्सा भी लगाया गया है। ये पैसे किसने और कितने लगाए गए हैं यह तो प्रवर्तन निदेशालय की जांच में ही सामने आ सकता है। दरअसल ज्यादातर सौदे अनाम किस्म के हैं उसमें नगद की लेन—देन को प्राथमिकता के आधार पर पूरा किया गया है।

जिले में वाट्सएप कॉल
दंतेवाड़ा जिले के सभी शरीफ और ईमानदार लोगों में इतना भय है कि उनकी कॉल को कोई सुन रहा है तर्ज वाली स्थिति है। हर कोई अफसर से लेकर आम आदमी तक वाट्सएप कॉल पर बात कर रहा है। ऐसा नहीं है कि सभी पर माओवादियों के समर्थन जैसा मामला है। बल्कि अंदर से जो खबर आई है ​उसके मुताबिक महोदय के निवेदन पर ऐसे टेप किए जा रह हैं और समय—समय पर उन्हें सुनाए भी जा रहे हैं। महोदय स्वयं वाट्सएप कॉल पर ही बात करना पसंद करते हैं। एक मीडियामित्र ने बताया कि उन्हें यह जानकारी पुलिस विभाग के ही एक साथी ने दी। इसके पीछे की कहानी बताते मीडियामित्र ने बताया कि यह सब उस दौर में शुरू किया गया जब असल में डीएमएफ को लेकर खेल शुरू किया गया। वैसे छत्तीसगढ़ के पुलिस महानिदेशक महोदय ही बेहतर बता सकते हैं कि क्या इस तरह से कॉल रिकार्ड करना न्यायोचित है?

आधादर्जन से ज्यादा मीडियाकर्मी ब्लॉक
महोदय ने जैसे ही देखा कि मीडिया में ताबड़तोड़ नकारात्म खबरें बाहर आने लगीं तो उन्होंने पहले तो समझाने की कोशिश की। इसके बाद जब बात नहीं बनीं तो ब्लॉक करना शुरू कर दिया। इस समय दंतेवाड़ा जिले के आधा दर्जन से ज्यादा मीडियाकर्मियों ने स्वयं को ब्लॉक किए जाने की पुष्टि कर दी है।

कौन हैं मोहनीश देवांगन?
जिला कलेक्टर जब भी कहीं बाहर होते हैं तो जिले में प्रभारी कलेक्टर भले ही कोई भी हो पर असल में भरत जैसी वफादारी निभाने के लिए कुआकोंडा सीईओ मोहनीश देवांगन की जिम्मेदारी होती है। इनके साथ पारिवारिक रिश्ता तो है ही साथ ही विश्वसनीयता ऐसी है कि इन दोनों के वाट्एप चैट की रिकार्ड देख ली जाए तो सारा मामला खुल सकता है। बुधवार को जैसे ही मीडिया मे रिपोर्ट आनी शुरू हुई दिल्ली में बैठे महोदय को वाट्सएप से स्क्रीनशॉट और लिंक शेयर किए गए। इसके बाद दस्तावेज की किसी कॉपी की स्क्रीन शॉट दिल्ली में बैठे महोदय तक भेजी गई। फिर पता साजी शुरू की गई कि विभीषण कौन है? इसक बाद शक के आधार पर एक अदने से बाबू के साथ जो हुआ उसे बता पाना कठिन है।

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