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छत्तीसगढ़ में राजनीतिक संतुलन का असंतुलित खेल… डिप्टी सीएम बनाए जाने से सिंहदेव की शह पर सिंहदेव की मात…

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विशेष टिप्पणी। सुरेश महापात्र।

आखिरकार कांग्रेस ने ऐन विधानसभा चुनाव से पहले तास के पत्तों का घर खुले में खोल दिया है। बुधवार को दिनभर चली बैठक के बाद जो नतीजा देर शाम जगजाहिर हुआ उससे एक बात तो साफ दिखाई दे गया कि छत्तीसगढ़ में नंबर वन से नंबर पांच तक अकेले दिख रहे सीएम भूपेश बघेल के कद की माप की गई और अब उनके पास नंबर एक ही शेष है उसके बाद नंबर दो पर टीएस सिंहदेव को बिठाया गया है।

कांग्रेस में भले ही नेतृत्व बदला हो पर निर्णय लेने का तरीका जस का तस है। कांग्रेस राहुल की छाया से बाहर नहीं निकल पा रही है। भले ही यह दिखाने की कोशिश होती है कि बतौर अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे सारे फैसले ले रहे हैं पर वही बाहर दिखाई दे जाता है जो कांग्रेस की मंशा नहीं है। यदि बारिकी से समझने की कोशिश की जाए तो कांग्रेस की स्ट्राइक टाइमिंग खराब है। शॉट तो लगता है पर कैच होने का खतरा बढ़ जाता है। गेंद बाउंड्री पार जाना भी आसान नहीं रहता।

छत्तीसगढ़ में बीते दो बरस से राजनीतिक उथल—पुथल मचा हुआ है। करीब—करीब आधा दर्जन बार इसे थामने की कोशिश की गई। अब जब सब कुछ थम गया तो यकायक एक बड़ा फैसला बाहर निकलकर आया है कि अब अगले पांच महीने की सरकार में भूपेश सरकार में नंबर दो से हटाकर नंबर छह पहुंचाए गए स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम की जिम्मेदारी सौंप दी गई है।

दो लाइन के एक पत्र में कांग्रेस के महासचिव केसी वेणुगोपाल ने बताया है कि ‘कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने प्रस्ताव पर टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम के तौर पर नियुक्त किए जाने पर सहमति प्रदान की है।’

अब सवाल यह उठता है कि यह प्रस्ताव किसका था। छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठन का, छत्तीसगढ़ कांग्रेस प्रभारी का, मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का या कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी का…? छत्तीसगढ़ में संगठन में कई पदों में अध्यक्ष मोहन मरकाम द्वारा नियुक्ति को लेकर जो बवाल मचा उसका निराकरण 24 घंटे के भीतर ही सभी नियुक्तियों का निरस्त कर कर दिया गया। छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठन प्रभारी शैलजा ने सभी नियुक्तियों को निरस्त करने की घोषणा की थी। उल्लेखनीय यही है कि इन नियुक्तियों को लेकर सीएम भूपेश बघेल भी नाराज थे। तो साफ है कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस संगठन में इतना साहस नहीं है कि वह दिल्ली में चल रही बैठक में इस तरह का कोई प्रस्ताव दे सके!

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस प्रभारी शैलजा सुलझी हुई नेत्री हैं। सोनिया, राहुल, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की विश्वासपात्र भी हैं। पर छत्तीसगढ़ में शैलजा सीएम बघेल से बाहर जाकर कोई प्रस्ताव इस बैठक में देंगी इसकी संभावना कम ही है।

दिल्ली में चल रही बैठक में ज्यादातर लोग सीएम भूपेश बघेल के करीबी ही थे तो वे टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बनाने का प्रस्ताव देने की गुस्ताखी कर सकेंगे इसकी उम्मीद करना बेमानी है। ऐसे में बचे दो नेता जिनमें एक कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और दूसरे वर्तमान अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ही इस लायक हैं वो जो कहें सीएम भूपेश समेत सभी को होना मजबूरी है।

यह बात भी तय है कि राहुल गांधी के होते मल्लिकार्जुन खरगे कोई प्रस्ताव क्यों दें? तो यह साफ है कि टीएस सिंहदेव की नियुक्ति को लेकर राहुल गांधी की स्पष्ट राय के सामने सभी सहमत हुए।

तो क्या यह मान लें कि टीएस को उपमुख्यमंत्री का पद मिलने भर से सब कुछ सामान्य हो जाएगा? टीएस सिंहदेव ने जब ढाई बरस के कार्यकाल के बाद सीएम पद को लेकर जोरआजमाइश की थी तो जगजाहिर हुआ कि राज्य में सीएम और उनके समर्थक टीएस के खिलाफ लामबंद हो गए। इसके बाद माहौल गरम हो गया। दिल्ली से लेकर रायपुर तक विधायकों की दौड़ सबके सामने है। इसके बाद जिस तरह से पंचायत एवं स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव की छिछालेदरी सार्वजनिक तौर पर की गई इससे कांग्रेस के लिए लोगों ने अच्छा हो रहा है कहीं भी नहीं कहा।

अब जब टीएस सिंहदेव को डिप्टी ​सीएम बनाने की घोषणा की गई तो इसके मायने भी तलाशे जाने लगे हैं। यकायक ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस को यह लगा कि सिंहदेव को पद दिया जाना चाहिए। बड़ी बात तो यह है कि कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल के पत्र से पहले तक किसी को भनक तक नहीं थी। दोपहर बाद सभी को अंदेशा था कि आज कुछ होने वाला है पर क्या? इसका जवाब किसी के पास नहीं था।

 कोई यह मानने को तैयार ही नहीं है कि सीएम भूपेश बघेल की इच्छा से यह नियुक्ति की गई है। क्योंकि अब तक जिस तरह से भूपेश बघेल एक तरफा राजनीति करते दिखाई दे रहे थे वे क्यों अपने लिए नंबर दो की कुर्सी तैयार करवाएंगे? टीएस सिंहदेव की नियुक्ति को लेकर सीएम भूपेश बघेल ने एक ​ट्वीट किया है जिसमें उन्होंने उनके लिए ‘महाराजा साहब’ शब्द को उपयोग किया है। छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव को उनके करीबी समर्थकों के सिवा कोई महाराजा साहब का उपयोग नहीं करता है। वे खुद भी इस छवि से बाहर ही रहते हैं। ऐसे में डिप्टी सीएम के लिए ‘महाराजा साहब’ शब्द का विशेषण राजनीतिक तौर है।

सार्वजनिक तौर पर 2018 के समय पद दिखाई दे रही जय—वीरू की जोड़ी अब टूट गई है। जब पंचायत विभाग को छोड़ने का ऐलान टीएस सिंहदेव ने किया तो यह बात बाहर आई और कांग्रेस में भूपेश के करीबी विधायक और मंत्रियों ने जमकर बयानबाजी की। इससे विपक्ष भाजपा को राजनीति का मौका भी मिला पर भूपेश ने अपनी राजनीतिक परिपक्वता से इस मसले से निपट लिया। इस घटनाक्रम के बाद दूरी और भी बढ़ी।

इसका दुष्प्रभाव उन विधायकों ने साफ तौर पर झेला ओर झेल भी रहे हैं जो टीएस सिंहदेव के साथ ही खड़े रहे। दंतेवाड़ा विधायक देवती कर्मा ने टीएस सिंहदेव का खुलकर समर्थन किया वे अब भी परिणाम झेल रही हैं। उनके समर्थक साफ तौर पर आरोप लगाते हैं कि दंतेवाड़ा में प्रशासन में उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

यही हाल मंत्री जयसिंह अग्रवाल का भी है। इसके अलावा और भी कई विधायक ऐसे हैं जिन्हें प्रशासन से भारी शिकायत है। प्रशासन के अपने तर्क हो सकते हैं पर बिना सीएम की छत्रछाया के किसी प्रशासनिक अधिकारी की हिम्मत नहीं हो सकती कि वे सत्तारूढ़ पार्टी के विधायक की अनदेखी करे। ऐसे और भी कई मामले हैं। जिसे लेकर यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या डिप्टी सीएम बनने के बाद अपने समर्थक विधायकों को किसी भी तरह का राहत टीएस सिंहदेव दिला पाएंगे।

मौजूदा स्थिति में बस्तर संभाग में कांग्रेस का हाल कमजोर है। आधा दर्जन से ज्यादा सीटों पर नकारात्मक रेटिंग दिखाई दे रही है। पब्लिक में धान को लेकर मौजूदा सरकार के प्रति सकारात्मक रूझान है पर राजनीतिक तौर पर कांग्रेस की हालत कमजोर हुई है। इसके पीछे हर विधानसभा में राजनीतिक रस्साकसी ने पार्टी को कमजोर करने का काम किया है। बस्तर में करीब चार विधायक हैं जो खुले तौर पर टीएस सिंहदेव के साथ हैं। उनकी हालत साफ तौर पर समझी जा सकती है।

कमोबेश यही हालत सरगुजा इलाके में भी दिखाई दे रही ​है। वहां भी कांग्रेस को लेकर टीएस सिंहदेव की अनदेखी के कारण नकारात्मक संदेश गया है। इससे कोई इंकार नहीं कर सकता। संभव है कि टीएस बाबा को डिप्टी सीएम बनाने से थोड़ा बदलाव आ सके। इसके लिए कांग्रेस संगठन और मौजूदा सत्ताशीन भूपेश के बीच टकराव नहीं होगा इसकी क्या गारंटी?

सबसे बड़ी बात तो यही है कि यदि अपने उपमुख्यमंत्री के पद के बाद भी टीएस सिंहदेव अपने समर्थकों का भला नहीं करवा पाए तो अब उनकी ज्यादा छिछालेदरी होगी।

विधानसभा चुनाव के बाद जो व्यक्ति सीएम के लिए अगली पारी का इंतजार कर रहा था उसे पद दिया गया पर पावर? कौन देगा? सीएम भूपेश एक मंजे हुए राजनीतिज्ञ हैं वे पहले ही इस फैसले के बाद अपने नीचे के चार पायदान को खत्म करने की प्रक्रिया से सार्वजनिक नाखुशी तो दिखाएंगे नहीं। काम तो वैसा ही होता रहेगा जैसा होता रहा है। ऐसा भी नहीं है कि अब वे दबाव में आकर सिंहदेव के करीबी विधायकों को लामबंद होने का मौका दें। हो सकता है अंदरखाने में दोनों नेता बैठकर बीच का रास्ता निकाल लें पर इसकी उम्मीद कम ही है।

कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ में राजनीतिक संतुलन के लिए जो कदम उठाया है उससे असंतुलन को बढ़ावा मिलेगा यह साफ दिखाई दे रहा है। लंबे समय से चुनावी मुद्दों की तलाश में बैठी विपक्ष भाजपा के लिए यह सुनहरा अवसर है। भाजपा ने टीएस की नियुक्ति के बाद ही अपनी पहली प्रतिक्रिया में साफ कर दिया है कि वह भूपेश—टीएस को जय—वीरू तो बनने देगी ही नहीं। यदि इस डिप्टी सीएम के तौर पर पदोन्नति के बावजूद टीएस सिंहदेव अपनी छवि बचा नहीं पाए तो इस खेल में उनकी शह में उनकी ही मात भी तय है। 

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