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राजनीति के ‘अक्षुणमणि’ हैं हत्या दोषी ‘अमरमणि त्रिपाठी’ जिनकी रिहाई की अमर कहानी जानना जरूरी है… यह हिंदुस्तान की अमर राजनीति का गंध है…!

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सुरेश महापात्र।

हमारा समाज वास्तव में किन मूल्यों पर विश्वास कर रहा है और किन राजनीतिक मूल्यों के आधार पर राजनीतिक दलों का समर्थन यह तय करना कठिन है। हम बेहद निर्मम समझ वाले लोकतंत्र के सिपाही है हमें पता है हमारे वोट से चुना जाने वाला प्रत्याशी कानून का निर्माता हो जाता है। चाहे बाहुबलि हों, गैंगस्टर हों या दलाल उद्योगपति सभी राजनीति के असल लाभान्वित हैं। यही हिंदुस्तान की राजनीति का असल गंध है जिसके पैरोकारों में प्रत्यक्ष और परोक्ष तौर पर मौन ही असल राजनीति है।

जात—पात पर बंटी देश की राजनीति में हम शुद्धता की सूचिता पर भले ही लाख बहस कर लें पर हम गंदगी को बनाए रखने में और उसे पालने—पोसने का ही काम करते रहे हैं। हमारी रगों में राष्ट्रवाद, धार्मिक आस्था, जातिय और क्षेत्रीय भावना का बड़ा गहरा समंदर है। पर इसकी आड़ में हम ना जाने कितनी बार गलत को सही साबित करने का काम करते रहे हैं।

दरअसल शुक्रवार की सुबह एक खबर बाहर आई कि सन 2002 में कवित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के दोषी उत्तरप्रदेश के बाहुबलि विधायक और मंत्री अमरमणि त्रिपाठी की रिहाई के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने आदेश जारी कर दिया। राजभवन की मुहर लगने के साथ ही इस आदेश की कॉपी सोशल मीडिया में तैरने लगी। मामला उत्तरप्रदेश से जुड़ा है तो चर्चा तो होना ही चाहिए। क्योंकि यहां के अयोध्या धाम में अगले बरस जनवरी में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्मभूमि में उनके मंदिर में प्राणप्रतिष्ठा की तैयारी चल रही है।

मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्रीराम के धाम में स्त्री हत्या के दोषी अमरमणि को राहत कथन और कर्म के बीच पाखंड के चरम का उद्घोष जैसा प्रतीत हो रहा है। बड़ी बात तो यह है कि बिल्किस बानो मामले में जिन लोगों ने यह कहते उंगलियां उठाई थीं कि पीड़िता चूंकि अन्य धर्म की हैं तो हिंदु दोषियों को जेल से समय से पहले मुक्त किया गया। यह आरोप भी समाप्त हो जाता है। देश में हिंदु हो या अन्य धर्म की पीड़िता सबके लिए राजनीति का कलेवर एक समान है। इसकी पुष्टि हो रही है। मज़ेदार बात तो यह है कि इस अमरमणि के मामले में नैतिकता के हमाम में सारे राजनीतिक दलों की गंदगी एक बराबर है। वह उत्तरप्रदेश की सभी चार प्रमुख पार्टियों (कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बीएसपी और बीजेपी) के सदस्य रह चुके हैं।

मधुमिता की बहन निधि शुक्ला ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू और उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को पत्र लिखकर इस कदम का विरोध किया है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई का हवाला दिया है। अमरमणि पर गुमराह करने का आरोप लगाया है। निधि ने कहा है कि अमरमणि ने अपनी जेल की सजा का आधे से अधिक समय गोरखपुर के सरकारी बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज में बिताया। उनकी रिहाई के बाद उन्हें अपनी जान को खतरा होने का डर है।

जेल के अंदर हों या बाहर अमरमणि त्रिपाठी को अपने 40 साल के राजनीतिक करियर में हमेशा भाग्यशाली साबित हुए हैं। सबसे बड़ी घटना गुरुगुवार को हुई, जब उत्तर प्रदेश सरकार ने हत्या के एक मामले में उनकी और उनकी पत्नी मधुमणि की रिहाई की घोषणा की। उन्होंने अपने कार्यकाल के 17 साल पूरे कर लिए थे। इस दौरान उनका अधिकांश समय विभिन्न कारणों से अस्पतालों में बीता। यूपी की राजनीति में इन दिनों एक सवाल गूंज रहा है। क्या यूपी के पूर्वमंत्री और चार बार के विधायक रहे त्रिपाठी अपना दबदबा फिर से हासिल कर सकते हैं?

अमरमणि त्रिपाठी को कभी यूपी के पूर्वांचल क्षेत्र के सबसे बड़े ब्राह्मण नेताओं में गिना जाता था। अमरमणि ने पहली बार अपनी ताकत तब साबित की जब उन्होंने इलाके के प्रभावशाली ठाकुर नेता वीरेंद्र प्रताप शाही से चुनावी दंगल में मुकाबला किया। वह शाही के खिलाफ 1981 और 1985 के विधानसभा चुनाव हार गए, लेकिन यूपी की दो प्रमुख जातियों के नेताओं के बीच मुकाबले ने उन्हें ब्राह्मण चेहरे के रूप में स्थापित कर दिया। इसके बाद वह 1989, 1996, 2002 में महाराजगंज की लक्ष्मीपुर विधानसभा सीट से चुनाव जीते। परिसीमन के बाद नौतनवा सीट से 2007 में जीत हासिल की।

योगी सरकार ने दिए रिहाई के आदेश
2003 में अमरमणि को मधुमिता शुक्ला की हत्या के लिए दोषी ठहराया गया। उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा। लेकिन, 2017 के अंत में उनके बेटे अमनमणि त्रिपाठी ने अपने प्रभाव की बदौलत नौतनवा से विधानसभा चुनाव जीता। अब योगी आदित्यनाथ की सरकार ने दोषियों की समय पूर्व रिहाई के लिए बनाई गई नीति के तहत अमरमणि और मधुमणि त्रिपाठी की समय से पूर्व रिहाई का आदेश दिया है।

अमरमणि को अब राजनीतिक दुनिया बहुत बदली हुई लग सकती है। गोरखपुर अब पूरी तरह से योगी आदित्यनाथ के कब्जे में है। यूपी में अधिकांश राजनीतिक दल भाजपा के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं। भाजपा भी आराम से एक हत्या के दोषी पर दांव लगा रही है। अमरमणि की रिहाई से ब्राह्मणों से भाजपा के संबंध और प्रगाढ़ होने की संभावना है।

विधायक से लेकर हत्या के दोषी तक अमर कथा

अमरमणि त्रिपाठी ने अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने के लिए एक असामान्य रास्ता अपनाया। 1981 में सीपीआई के टिकट पर अपना पहला चुनाव लड़ा। जल्द ही उन्होंने खुद को एक मजबूत व्यक्ति के रूप में स्थापित कर लिया। लक्ष्मीपुर से लगातार दो विधानसभा चुनाव हारने के बाद अमरमणि कांग्रेस में चले गए। 1989 में इस सीट से पार्टी के उम्मीदवार के रूप में अपना पहला चुनाव जीता। इसके बाद उन्हें दिवंगत कांग्रेस के दिग्गज ब्राह्मण नेता हरि शंकर तिवारी के करीबी के रूप में देखा जाने लगा।

इसके बावजूद, अमरमणि अधिक समय तक कांग्रेस में नहीं रहे। वह लोकतांत्रिक कांग्रेस में चले गये। 1996 में उन्होंने लोकतांत्रिक कांग्रेस के टिकट पर लक्ष्मीपुर से जीत हासिल की। जब उनकी पार्टी भाजपा में शामिल हो गई, तो अमरमणि भाजपा के मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह, राम प्रकाश गुप्गुता और राजनाथ सिंह की सरकार में मंत्री बने। 2002 के विधानसभा चुनाव के समय तक अमरमणि बसपा में थे। अपनी सीट सेदोबारा जीतने के बाद उन्हें मायावती सरकार में शामिल किया गया।

इसके एक साल बाद उभरती हिंदी कवयित्री मधुमिता शुक्ला की उनके लखनऊ स्थित आवास पर दो हमलावरों ने गोली मारकर हत्या कर दी। उसकी बहन निधि ने अमरमणि पर आरोप लगाते हुए कहा कि मधुमिता उसके साथ रिश्ते में थी और जब उसकी हत्या की गई तो वह गर्भवती थी। इस मामले में अमरमणि का नाम आने के बाद मायावती ने उन्हें बसपा से निष्कासित कर दिया और मामला सीबीआई को सौंप दिया। एजेंसी ने जांच की और अमरमणि, उनकी पत्नी और अन्य आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया। जेल में रहतेहुए अमरमणि ने 2007 का विधानसभा चुनाव सपा के टिकट पर लड़ा और जीत हासिल की।

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