diwakar muktibodh

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अखबारों में काम करने से हिंदी सुधरी, भाषा शैली भी ठीक हुई… अनुभव बढ़ा व घटनाओं को पत्रकार की नजर से देखने-समझने की दृष्टि भी विकसित हुई… दिवाकर मुक्तिबोध। कुछ यादें कुछ बातें-17

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-17 -दिवाकर मुक्तिबोध। पत्रकारिता को पेशा बनाऊँगा, सोचा नहीं था। कह सकते हैं इस क्षेत्र में अनायास आ गया। जब भिलाई से हायर सेकेंडरी कर रहा था, तीन बातें सोची थीं। एक -भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी नहीं करूंगा, दो- केमिस्ट्री में एमएससी करूँगा और तीसरी बात- शैक्षणिक कार्य नहीं करूंगा। पर जैसा सोचा था, वैसा नहीं

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मुझे पूरा भरोसा था कि नौकरी बजाते हुए मै बीएससी फायनल की परीक्षा पास कर लूंगा। लेकिन मैं मन का कच्चा था… अपने से ही धोखा खा गया… दिवाकर मुक्तिबोध… कुछ यादें कुछ बातें — 16

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-16 -दिवाकर मुक्तिबोध। मैं बीएससी फायनल में पहुंचा ही था कि मुझे सरकार के शिक्षा विभाग में नौकरी मिल गई। शिक्षक की। लोअर डिवीजन टीचर। खम्हारडीह शंकर नगर के मिडिल स्कूल में। यह स्कूल मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री श्यामाचरण शुक्ल के निवास से लगा हुआ था। यह बात है 1969-70 की। अब साइंस कालेज में पढाई और

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मुझे पूरा भरोसा था कि नौकरी बजाते हुए मै बीएससी फायनल की परीक्षा पास कर लूंगा। लेकिन मैं मन का कच्चा था… अपने से ही धोखा खा गया… दिवाकर मुक्तिबोध… कुछ यादें कुछ बातें — 15

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-15 -दिवाकर मुक्तिबोध। अपने से शुरू करता हूं, दो चार छोटी मोटी बातें। वैसे बचपन की अनेक घटनाएं स्मृतियों में दर्ज हैं , पर एक रह रहकर याद आती रहती है। घटना नागपुर की। मैं प्राइमरी कक्षा का छात्र था। हम मोहल्ला गणेश पेठ में रहते थे। एक दिन एक फेरीवाले ज्योतिषी महाराज घर के दरवाजे पर

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मुझे नहीं लगता इस सलीके से कोई और व्यक्ति यह काम कर सकता था जैसा रमेश भैय्या ने कर दिखाया… कुछ यादें कुछ बात… 14, दिवाकर मुक्तिबोध

दिवाकर मुक्तिबोध. छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-14 82 के हो गए हैं रमेश भैय्या। रमेश गजानन मुक्तिबोध। मेरे बडे भाई। हम भाइयों , मैं, दिलीप व गिरीश में सबसे बड़े। भिलाई स्टील प्लांट की नौकरी से रिटायर होने के बाद उन्होंने भाइयों के साथ ही रहना पसंद किया। हम चारों भाई रायपुर के सड्डू इलाके की एक कालोनी मेट्रो ग्रीन्स में

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जब कभी पलके बंद करो तो औरों के साथ वे भी हाज़िर… उनकी स्मृतियाँ हाज़िर… यह थे शरच्चंद्र माधव मुक्तिबोध

– दिवाकर मुक्तिबोध. छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-13 बबन काका को गुज़रे 37 वर्ष हो गए। जब कभी उनकी याद आती है तो एक दृश्य आँखों के सामने जीवंत हो उठता है। वे मुझसे कहते नज़र आते हैं-ज़रा, तुम्हारी टिकिट तो देना। मैं चुपचाप जेब से टिकिट निकालकर उन्हें देता और वे अपने बेटे व मुझसे छोटे प्रदीप को रेलवे की

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मुख्यमंत्री भूपेश के दो बरस के बाद… कहां पहुंचे हम!

सरकार की प्राथमिकता ग्रामीण विकास है अतः शहरों में आधारभूत संरचनाओं की चंद नयी योजनाओं को छोड़ दें तो पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के उन्हीं कामों को पूरा किया जा रहा है जो अधूरे पडे थे। दरअसल विकास कार्यों में सबसे बड़ी अडचन पैसों की है।

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दैनिक भास्कर के संघर्ष के उस दौर में दीवान जी का साथ यक़ीनन बहुत महत्वपूर्ण घटना थी… सफरनामा दिवाकर मुक्तिबोध

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-11 #बसंत दीवान : दीवान जी जैसा बहुत सीनियर, कलावंत व प्रोफेशनल फ़ोटोग्राफ़र जिनका अच्छा ख़ासा स्टूडियो है, अच्छा नाम है, नौकरी करे? कुछ समझ मे नहीं आया। लेकिन मै मन ही मन बहुत ख़ुश हुआ कि उनके विराट अनुभव का लाभ दैनिक भास्कर को मिलेगा जिसकी आसमान को छूने की कोशिशें शुरू हो गई थी। –

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70-80 के दशक में क्षेत्रीय मीडिया को खंगालने का काम कोई युवा पत्रकार कर सकेगा, ऐसा सोचना भी कठिन था लेकिन तेज़िंदर ने वह कर दिखाया… सफरनामा दिवाकर मुक्तिबोध

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-10 #तेज़िंदर_गगन : प्रख्यात उपन्यासकार, कथाकार, कवि व पत्रकार। आकाशवाणी व दूरदर्शन का एक ऐसा मस्तमौला अधिकारी जिसने नौकरी के सिलसिले में देश के तमाम बड़े शहरों की ख़ाक छानी और अंतत: अपने घर-शहर रायपुर में आकर रिटायर हुआ। तब मुलाकातों व बातचीत का दौर तेज़ हुआ और जैसा कि मैंने कहा मोबाइल पर हमारी बातचीत पुरज़ोर

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साहित्यिक बिरादरी उन्हें साहित्यकार नहीं मानती तथा पत्रकार खालिस पत्रकार का दर्जा नहीं देते… साहित्यिक पत्रकारिता में सुधीर जरूरी हस्ताक्षर है इसलिए संभव है निकट भविष्य में इस विधा में भी कोई संकलन सामने आए…

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-12 कवि-पत्रकार मित्र सुधीर सक्सेना पर संस्मरण की इस कड़ी के साथ ही ‘कुछ यादें कुछ बातें’ शृंखला पर अल्प विराम। इसी शीर्षक से कुछ और यादें जो प्रदीर्घ हैं, कुछ ठहरकर फ़ेसबुक पर नमूदार होंगी। समापन कड़ी के साथ पत्रकारिता की यादों के इस सफ़र में मुझे सबसे अच्छी बात यह लगी कि मित्रों ने प्रतिक्रिया

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आलोक तोमर को मैं व्यक्तिगत रुप से नहीं जानता. औपचारिक परिचय का सिलसिला भी कभी नहीं बना… फिर भी बतौर पत्रकार मैं भावनात्मक रुप से जुड़ा रहा… सफरनामा दिवाकर मुक्बिोध

छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-9 #आलोक तोमर के बहाने : आलोक तोमर को मैं व्यक्तिगत रुप से नहीं जानता. औपचारिक परिचय का सिलसिला भी कभी नहीं बना. हालांकि वे एकाधिक बार रायपुर आए पर खुद का परिचय देने के अजीब से संकोच की वजह से उनसे कभी नहीं मिल पाया किंतु बतौर पत्रकार मैं भावनात्मक रुप से उनसे काफी करीब रहा.

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