अखबारों में काम करने से हिंदी सुधरी, भाषा शैली भी ठीक हुई… अनुभव बढ़ा व घटनाओं को पत्रकार की नजर से देखने-समझने की दृष्टि भी विकसित हुई… दिवाकर मुक्तिबोध। कुछ यादें कुछ बातें-17
छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के आधार स्तंभों में से एक दिवाकर जी… ने पत्रकारिता को पढ़ा है, जिया है और अब भी जी रहे हैं… वे अपना सफ़रनामा लिख रहे हैं… कुछ यादें कुछ बातें-17 -दिवाकर मुक्तिबोध। पत्रकारिता को पेशा बनाऊँगा, सोचा नहीं था। कह सकते हैं इस क्षेत्र में अनायास आ गया। जब भिलाई से हायर सेकेंडरी कर रहा था, तीन बातें सोची थीं। एक -भिलाई स्टील प्लांट में नौकरी नहीं करूंगा, दो- केमिस्ट्री में एमएससी करूँगा और तीसरी बात- शैक्षणिक कार्य नहीं करूंगा। पर जैसा सोचा था, वैसा नहीं
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