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पांव में गोली लगी, जख्म पर पैंट बांधकर लड़ते शहीद हुए जाँबाज…

तर्रेम से लौटकर गणेश मिश्रा की रिपोर्ट।

बूलेट प्रूफ जैकेट और हेलमेट से लैस नक्सलियों के चक्रव्यूह में घिर गए

सात घंटे में 22 जवानों की शहादत, दर्जनभर माओवादियों को मार गिराने का दावा

हमले से पहले गांव खाली कराया, तीन तरफा घेराबंदी कर एम्बुश में फंसाया

बीजापुर। शनिवार को सिलगेर इलाके के जीरा गांव में नक्सलियों से मुठभेड़ में मारे गए जवानों के शव घटना के 24 घंटे बाद रेस्क्यू आपरेशन चलाकर निकाला गया।

घटना स्थल से शव को एयर लिफट किया गया। वायु सेना के एमआई 17 हेलिकाॅप्टर की मदद इसमें ली गई। इलाके को जवानों की रेस्क्यू टीम द्वारा पूरी तरह से महफूज करने के बाद हेलिकाॅप्टर को जीरा गांव के नजदीक उतारा गया।

पूरे रेस्क्यू के दौरान जवानों के शव कहीं खेत तो कहीं पेड़ों के नीचे और तो और मकानों के इर्द गिर्द क्षत विक्षत अवस्था में पड़े मिले। नक्सलियों की मौजूदगी को भांपते पूरे दिन जमीन के साथ आसमान से भी सुरक्षा बलों ने नजरें बनाई रखी।

तर्रेम-सिलगेर को जोड़ती सड़क से महज दस किमी के दायरे में ही नक्सलियों ने पूरी वारदात को अंजाम दिया। घटना स्थल को देख यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि पूरे हमले को अंजाम देने नक्सलियों ने लम्बे समय से प्लानिंग कर रखी थी।

प्लानिंग इतनी ठोस थी कि एम्बुश में फंसे जवान खुद को बचा नहीं पाए और एक-एक कर नक्सलियों की गोलियों के शिकार हुए। जबकि नक्सलियों की मौजूदगी की इनपुट पर ही सुकमा और बीजापुर जिले से यह ज्वाइंट आपरेशन प्लान था, लेकिन नक्सलियों की गुरिल्ला वार नीति जवानों की एंटी नक्सल आपरेशन पर भारी पड़ गई।

नक्सलियों को घेरने मुठभेड़ से एक दिन पहले तर्रेम से 760, उसूर से 200, पामेड़ से 195, सुकमा के मिनपा से 483, नरसापुरम से 420 जवानों की संयुक्त पार्टी को इलाके में आपरेशन के लिए उतारा गया था, जिसमें तर्रेम से निकली पार्टी को नक्सलियों ने एम्बुष में फंसा लिया।

जिस जीरा गांव का जिक्र मुठभेड़ स्थल के लिए किया जा रहा है दरअसल नक्सलियों ने इस गांव को भी अपने एम्बुष के लिए चुन रखा था। तीन तरफ से जवानों की घेराबंदी की प्लानिंग नक्सलियों की थी।

जिसमें जीरा गांव से कुछ किमी दूर सबसे पहले जवानों का सामना नक्सलियों से हुआ, यहां जवानों पर नक्सलियों की ताबड़तोड़ गोलियांे का जवानों ने बहादुरी से जबाव तो दिया, लेकिन नक्सलियों से घिर चुके जवानों को बैकअप पार्टी की मदद नहीं मिल पाने से जवान धीरे-धीरे नक्सलियों के एम्बुश में फंसते चले गए।

गांव से कुछ किमी दूर पश्चिम दिशा में कुछ जवानों की शहादत और घायल जवानों को बाहर निकालने की जद्दोजहद में साथी जवान भी फंसते चले गए। नक्सली गोलीबारी के बीच घायल साथियों को बाहर लाने की कोशिश कर रहे कुछ जवानों को गांव में बसे मकानों के आस-पास नक्सलियों ने अपना निशाना बनाया। गांव से बाहर खेतों में पेड़ों की ओट लेकर मुकाबला करने के बाद भी खुद को बचा नहीं पाए।

मौजूदगी को बनाया चारा

तर्रेम इलाके में नक्सलियों की मौजूदगी की सुरक्षा एजेंसियों की पुख्ता इनपुट जरूर थी, लेकिन नक्सलियों ने पुलिस की इस इनपुट को ही हमले के लिए आधार बनाया। सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार माहभर पहले ही इलाके में हथियारबंद नक्सलियों का बड़ा जत्था सिलगेर के आगे सड़क काटता नजर आया था, जिसकी डोन से ली गई तस्वीर सुरक्षा एजेंसियों के पास थी, संभवतः नकसलियों की इस जमघट के मद्देनजर उनकी मौजूदगी पता कर आपरेशन की योजना बनाई गई थी मगर यह आपरेशन नक्सलियों की रणनीति के आगे फेल हो गयी।

जिस इलाके में मुठभेड़ हुई है वह नक्सलियों की फर्स्ट बटालियन का कार्यक्षेत्र है। 20 दिन पहले यूएवी की तस्वीरों से यह पता चला था कि यहां बड़ी संख्या में नक्सली मौजूद है।

देशी लॉन्चर से लेकर यूबीजीएल से हमला

कोबरा, डीआरजी और स्पेषल टाॅस्क फोर्स के जवानों को एम्बुश में फंसाने नक्सलियों ने ना सिर्फ हमले की तगड़ी योजना बनाई थी, बल्कि हमले में कुशल प्रशिक्षत लाल लड़ाकों को आगे रखा गया था।

सूत्र हमले का मास्टरमाइंड हिड़मा को बता रहे हैं। वारदात के वक्त हिड़मा की मौजूदगी मौके पर ही थी, वह नक्सलियों की एम्बुश टीम को पीछे से लीड कर रहा था।

जवानों पर इंसास, एके 47, एलएमजी, यूबीजीएल जैसे आधुनिक हथियारों से गोलीबारी के अलावा देशी लांचर, एचई बम तक नक्सलियों द्वारा दागे गए थे।

गांव खाली कराकर लगाया एम्बुश

वारदात करने से पहले नक्सलियों जीरा गांव में जवानों द्वारा पोजिशन लिए जाने की आशंका से घटना से पहले ही गांव के मकानों को खाली करा दिया गया था।

मुठभेड़ के 24 घंटे बाद संवाददाता जब जीरा गांव पहुंचा तो मकानों के दरवाजों में ताले जड़े हुए थे और मकानों के ठीक सामने ही जवानों के शव पड़े हुए थे। हालांकि मुठभेड़ की शुरूआत जीरा गांव से कुछ किमी पहले पष्चिम दिषा में हुई थी, लेकिन हताहत कुछ जवान एम्बुष से बाहर निकलने की कोषिष में गांव में दाखिल हुए, जहां गांव को पहले से नक्सलियों ने घेर रखा था। जिसका खामियाजा जवानों को भुगतना पड़ा।

वर्चस्व को बनाये रखने खूनी खेल

जीरा गांव में जवानों से मुठभेड़ की योजना के पीछे नक्सलियों की गुरिल्ला नीति के अलावा सायक्लोजिकल वार का हिस्सा भी माना जा रहा है।

तर्रेम, सिलगेर इलाके में जवानों द्वारा नक्सलियों के आधार इलाके में कसते षिकंजे से नक्सली ना सिर्फ बौखलाए हुए थे, बल्कि खुद को कमजोर भी महसूस करने लगे थे। ऐसे में संगठन के मनोबल को उंचा रखने और आधार इलाके में अपनी पैठ का अहसास कराने के इरादे से नक्सलियों से इस पूरी घटना को अंजाम दिया। नक्सल मामलों के जानकार इसे एक तरह से सायक्लोजिकल वार का हिस्सा बता रहे हैं।

मुठभेड़ के अंत मे हुई हिड़मा की एंट्री

शनिवार को सुबह तकरीबन 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक चले इस मुठभेड़ में नए और चैकाने वाले तथ्य और जानकारियां निकल आ रहे हैं। मुठभेड़ में शामिल प्रत्यक्षदर्शी जवानों की मानें तो नक्सलियों के चक्रव्यूह में घिर चुके 442 जवानों पर जो नक्सली गोलियां दाग रहे थे वो सामान्य नहीं बल्कि प्रशिक्षित नक्सली थे। वे स्वचलित हथियारों के साथ बुलेट प्रुफ जैकेट और हेलमेट लगाकर जवानों के साथ आमने सामने की लड़ाई लड़ रहे थे।

हालांकि इस मुठभेड़ के बाद जवानों ने भी 10 से 12 नक्सलियों को मारने का दावा किया है। वही दूसरी ओर यह खबर है कि करीब सात घंटे चले इस मुठभेड़ में नक्सलियों की ओर से बटालियन नंबर वन का कमांडर हिड़मा नेतृत्व कर रहा था, परंतु मुठभेड़ के दौरान वह मुठभेड़ स्थल से काफी दूर था।

जानकारी के अनुसार मुठभेड़ के अंतिम समय नक्सली कमांडर हिड़मा करीब 40 नक्सलियों के साथ मुठभेड़ स्थल पहुंचा था और जीवित बचे जवानों की हत्या कर वापस लौट गया। एक प्रत्यक्षदर्शी जवान की मानें तो नक्सलियों ने सबसे पीछे वाले टीम को निशाना बनाया था।

नक्सली अपने साथ बड़े बड़े डंडे लेकर चल रहे थे और जैसे ही कोई नक्सली मारा जाता या घायल होता तो अन्य माओवादी उस घायल और मारे गए नक्सली के शव को डंडे के सहारे लेकर निकल रहे थे और यही वजह रही कि मारे गए अन्य माओवादियों के शव बरामद नहीं हो पाए।

इस मुठभेड़ में एक महिला माओवादी का शव इंसास रायफल के साथ बरामद किया गया है। जिसकी शिनाख्त पामेड़ एलजीएस कमांडर माड़वी बनोजा के रूप में की गई है।

आईजी बस्तर पी सुंदरराज का दावा है कि इस मुठभेड़ में 12 से अधिक माओवादी मारे गए हैं और 16 से अधिक घायल हैं। जिन्हें उनके साथी दो-तीन टैक्टरों में जब्बामरका और गोमगुड़ा गांव की ओर लेकर गए हैं।

ये जवान हुए शहीद

शनिवार को हुए मुठभेड़ में कुल 22 जवान शहीद हुए हैं, जबकि एक जवान अभी भी लापता बताया जा रहा है। शहीद जवानों में से डीआरजी के 8 जवान, एसटीएफ के 6 जवान, कोबरा बटालियन के 9 जवान और बस्तर बटालियन का एक जवान शामिल है। जिनमें उपनिरीक्षक दीपक भारद्वाज, प्रधान आरक्षक रमेश कुमार जुर्री, नारायण सोढ़ी, आरक्षक रमेश कोरसा, सुभाष नायक, किशोर एडिक, संकुराम सोढ़ी, भोसाराम करटामी, एसटीएफ से श्रवण कश्यप, रामदास कोर्राम, जगत राम कंवर, सुखसिंह फरस, रमाशंकर पैंकरा, शंकरनाथ नाग, कोबरा 210 बटालियन से निरीक्षक दिलीप कुमार दास, राजकुमार यादव, शंभु राय, धर्मदेव कुमार, सखामुरी मुराली कृष्ण, रघु जगदीश, बबलू रंभा और बस्तर बटालियन से समैया माड़वी शाामिल है, जबकि कोबरा बटालियन का जवान राकेश्वर सिंह मनहास लापता बताया जा रहा है।

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