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एक बरस पूरा हुआ… महामहिम की पुरानी छवि को तोड़कर जमीन से जुड़ी दिखीं राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके…

विशेष आलेख। सचिन शर्मा।

राज्यपाल के बारे में सामान्य जनता का यह अनुभव रहा है कि वे प्रोटोकाल से भरे हुए विशिष्ट समारोहों में ही हिस्सा लेते हैं। इनसे मिल पाना आम जनता के लिए लगभग असंभव सा है।

राज्य के प्रथम नागरिक के रूप में वे केवल राज्य की बुनियादी पेचीदगियों से भरी समस्याओं कोे हल करने फाइलों में ही उलझे रहते होंगे। शायद यह भ्रम दूसरे राज्यों में अब भी होगा लेकिन छत्तीसगढ़ की आम जनता का यह मिथक उसी समय टूट गया जब अखबारों में छप रही गरियाबंद जिले के ग्राम सूपेबेड़ा में किडनी पीड़ित परिवारों की तकलीफों की खबर पढ़कर राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उइके सारे निर्धारित कार्यक्रमों को रद्द कर गांव वालों से मिलने पहुंच गई।

अधिकारियों को समस्या हल करने निर्देशित किया और मंच से ही अपना मोबाइल नंबर ग्रामवासियों को साझा किया। उनकी पहल पर स्वास्थ्य एवं पंचायत मंत्री ने मंच से ही 24 करोड़ के कार्यों की घोषणा की जो करीब 15 वर्षों से लंबित था। साथ राज्यपाल ने 132 के.वी. विद्युत सब स्टेशन को प्रारंभ करने के निर्देश दिए।

जाहिर है कि प्रथम नागरिक के रूप में राज्यपाल का यह बुनियादी दायित्व होता है कि राज्य की परिस्थितियों पर बारीक नजर रखें और पूरी संवेदनशीलता के साथ आम जनता की तकलीफों को हल करने की दिशा में आवश्यक कदम उठाने कार्यपालिका को निर्देशित करें।

सुश्री उइके 29 जुलाई 2019 को पदभार ग्रहण किया और साल भर के भीतर ही अनेक ऐतिहासिक निर्णय लिये। जिस राजभवन में अति विशिष्ट लोगों को भी मिलने से पहले लंबी प्रक्रिया से गुजरना होता था, वहां पर प्रदेश की सबसे पिछड़ी जनजाति के सदस्य आए। बिना किसी प्रक्रिया का पालन किए, उन्हें अंदर बुलाया और उनकी तकलीफों को सुना।

उनका मसला 2008 से उलझा हुआ था। राज्यपाल के संज्ञान में आते ही यह मसला भी सुलझ गया। राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अपने कार्यकाल में उन्होंने जनजातियों की समस्याओं को निकटता से जाना था। छत्तीसगढ़ की अधिकतर आबादी जनजातीय है। इस बड़ी आबादी की समस्याओं को दूर करने उन्होंने इन क्षेत्रों का दौरा किया।

दौरे के दौरान उन्होंने कई सामान्य धारणाओं को भी ध्वस्त कर दिया। मसलन राज्यपाल अमूमन जिलास्तरीय अधिकारियों की बैठक नहीं लेते। राज्यपाल ने नारायणपुर के अधिकारियों की बैठक ली और यह मैसेज दिया कि राज्यपाल से जुड़े हुए अंग्रेजों के जमाने के प्रोटोकाल को ध्वस्त करने की जरूरत है जहां सत्तातंत्र हमेशा आम जनता से दूरी बनाकर रखता था ताकि वे जनता से विशिष्ट दिख सकें। उन्होंने सीधे अधिकारियों के सामने जनता की समस्याओं को रखा और पूछा कि इनके समाधान के लिए किस दिशा में काम कर रहे हैं।

राज्य के प्रथम नागरिक होने की हैसियत से और परिवार का मुखिया होने के नाते उन्होंने कार्यपालिका को निर्देश दिए और सुझाव दिये। इन सुझावों पर प्रभावी अमल किया गया और प्रदेश के नागरिकों के लिए निरंतर बेहतरी का रास्ता तैयार होता चला गया।

कुलाधिपति होने के नाते छात्र-छात्राओं की चिंता भी उनके बुनियादी चिंतन का प्रमुख सरोकार रही। न केवल उन्होंने इन छात्र-छात्राओं को सुना अपितु उनकी समस्याओं का समाधान किया। जो आवेदन राजभवन आते हैं, उनकी निगरानी के लिए ट्रैकिंग सिस्टम भी तैयार किया ताकि मुकम्मल रूप से उनके आवेदनों पर कार्रवाई हो सके। छत्तीसगढ़ की ज्वलंत समस्या नक्सलवाद को समझने के लिए दंतेवाड़ा में जाकर स्वयं आत्मसमर्पित नक्सलियों से मुलाकात भी की।

राज्यपाल ने आत्मसमर्पित नक्सलियों के पुनर्वास के लिए पक्के मकान बनाने को कहा, जिसकी मुख्यमंत्री ने घोषण भी की। साथ ही राज्यपाल ने नक्सल क्षेत्रों में बंद स्कूलों को फिर से शुरू करने का भी सुझाव दिया। यही नहीं नक्सल हमले में घायल सैनिकों से मुलाकात कर उनकी हौसला अफजाई की। वे जरूरतमंदों की मदद के लिए हमेशा पहल करती रही हैं। शहीद सैनिकों के परिवारवालों का सम्मान किया और मदद भी की।
कोरोना काल में राज्यपाल के रूप में उन्होंने असाधारण संवेदनशीलता का परिचय दिया है।

उन्होंने इस संबंध में मुख्य सचिव सहित अन्य अधिकारियों की दो बार बैठक ली और आवश्यक निर्देश दिए। वे राहत कैंपों में गई। कोरोना वारियर्स से मुलाकात की, फोन कर उन्हें सराहा। बेहतर कार्य कर रहे कलेक्टरों का उत्साहवर्धन किया। प्रवासी श्रमिकों की दूसरे राज्यों में फंसे होने की जानकारी मिलने पर उनके छत्तीसगढ़ पहुंचने में मदद की। कोटा में फंसे बच्चे और तीर्थ स्थान में फंसे बुजुर्गों ने मदद के लिए निवेदन किया तो केन्द्रीय गृहमंत्री श्री शाह को पत्र लिखा और फलस्वरूप कुछ दिनों बाद उनकी वापसी भी संभव हुई।

यही नहीं केंद्र और राज्य के बीच कोरोना काल में समन्वय में महत्वपूर्ण भागीदारी उन्होंने निभाई और इस कार्य की प्रशंसा राष्ट्रपति एवं उपराष्ट्रपति महोदय ने भी की। यही नहीं जब दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे मंडल के अन्तर्गत गेज परिवर्तन कार्य के लिए अधिग्रहित जमीन के किसानों को भारतीय रेलवे द्वारा नौकरी देने में विलंब होने पर राज्यपाल ने स्वयं हस्तक्षेप किया और उन्हें कुछ महीने के भीतर ही नौकरी मिल गई।

सुश्री उइके राज्यपाल के रूप में राज्य से जुड़े बड़े बुनियादी दायित्व तो निभाती ही हैं लेकिन छोटे-छोटे सरोकारों से जुड़ना उन्हें और भी बड़ा बना देता है। किसी कैंसर पीड़ित का सफल इलाज करा देना, किसी सजायाफ्यता कैदी के परिवारजनों की दिक्कत को देखकर उसकी सजा कम कर देना, किसी बच्ची के जलने की सूचना मिलने पर स्वतः उनके पिता के खाते में मदद राशि पहुंचाकर सहायता देना, उनकी मानवीयता का हर दिन नया चेहरा हमारे सामने आता है जो हमें प्रेरित भी करता है और उनके समर्पण के प्रति अभिभूत भी कर देता है।

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