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केजरीवाल का “मिशन छत्तीसगढ़” दौरा और सूबे की सियासत में तीसरे दल की स्थिति…

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डा. अवधेश मिश्रा।

भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से अलग होकर 26 नवंबर 2012 को देश की राजनीति में एक नई पार्टी का उदय हुआ जिसे आम आदमी पार्टी “आप” AamAadmiParty  नाम दिया गया। अरविंद केजरीवाल इसके सर्वेसर्वा बने।

बाद में दिल्ली के सीएम, देश के 4036 विधानसभा सीटों में से 161 सीट जीतने वाली आप पार्टी को 10 अप्रैल 2023 को #ECI के द्वारा राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दे दिया गया, पहले #दिल्ली फिर #पंजाब में सरकार बनाने वाली आप पार्टी #गोवा और #गुजरात के बाद अब #छत्तीसगढ़ में स्थापित होने में पुरजोर तरीके से जुटी हुई है।

02 जुलाई को अरविंद केजरीवाल @ArvindKejriwal बिलासपुर आ रहे हैं इससे पहले 05 मार्च को राजधानी #रायपुर में एक विशाल आमसभा को वो संबोधित कर चुके हैं, जानकारों की माने तो केजरीवाल की राजधानी वाले सभा में किसी भी बड़े राजनीतिक दल की प्रमुख सभाओं से भीड़ बिल्कुल भी कम नहीं थी।

रायपुर के बाद बिलासपुर में केजरीवाल की सभा का सीधा अर्थ हैं कि केजरीवाल छत्तीसगढ़ में ना केवल आप की संभावना तलाश रहे हैं बल्कि मूलतः मुंगेली निवासी संदीप पाठक @SandeepPathak04 को पंजाब से #राज्यसभा भेजकर यहां हर हाल में स्थापित होना चाहते हैं।

दरअसल #बिलासपुर संभाग राजनीति का वह केंद्र है जहां साल 2018 में आए कांग्रेस रूपी ‘सुनामी’ का ज्यादा असर नहीं देखने को मिला संभाग की कुल 24 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस 13 सीट ही जीत सकी जबकि बीजेपी 07, जोगी कांग्रेस 02 और बसपा 02 सीटें जीतने में कामयाब रही वहीं अन्य संभागों में कांग्रेस ने लगभग क्रिकेट की भाषा में कहे जाने वाला क्लीनस्वीप किया था। बात अगर संभाग के लोकसभा सीटों की करें तो  04 में से 03 बीजेपी के पास और 01 सीट कांग्रेस के पास है।

केजरीवाल से हुई चर्चा में उन्होंने इस बात पर संतुष्टि जताई कि पिछले चुनाव की तरह पार्टी इस बार भी #बस्तर संभाग में ठीक ठीक प्रदर्शन कर लेगी, अन्य चार संभाग में 02 पर दौरा हो चुका और आने वाले दिनों में शेष 02 संभाग का दौरा कर कार्यकर्ताओं को रिचार्ज करेंगे।

छत्तीसगढ़ में तीसरे दल की प्रभावी उपस्थिति हमेशा से ही रही है और 2023 में होने वाले चुनाव की तैयारियों को देखकर राजनीतिक पंडित मानते हैं कि इस साल का चुनाव 2003 के चुनाव से भी ज्यादा दिलचस्प होगा!

राज्य गठन के बाद साल 2003 में हुए पहले #विधानसभा_चुनाव के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो कांग्रेस से अगल हुए विद्याचरण शुक्ल की पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस NCPspeaks को 7.02 % वोट और 1 सीट मिली जबकि @bspindia को 4.45 % वोट के साथ 2 सीटें मिली परिणाम स्वरूप कांग्रेस को अपनी सत्ता गवानी पड़ी और भाजपा का सत्ताउदय हुआ।

बात साल 2008 की करें भाजपा को 40.35 % वोट और 50 सीटें मिली, कांग्रेस को 38.63 % वोट के साथ 38 सीटें, बसपा को 6.11 % वोट और 2 सीटें मिली जबकि पिछले चुनाव 7.02% वोट पाने वाली NCP को महज 0.52 % वोट ही मिला, अन्य दलों को 5.92 % और निर्दलीय प्रत्याशियों का 8.47 % वोट मिला।
इसी तरह से 2013 के चुनाव में भाजपा को 41.4 % वोट 49 सीटें,  कांग्रेस को 40.29 % वोट  और 39 सीटें, बसपा को 4.27 % वोट और 01 सीट मिली, निर्दलीय प्रत्याशियों को 5.3 % वोट, #छत्तीसगढ़_स्वाभिमान_मंच को 1.7 % वोट मिला जबकि #गोंडवाना_गणतंत्र_पार्टी को 1.6 प्रतिशत से ही संतुष्ट करना पड़ा।

बीते चुनाव का मसलन साल 2018 के चुनाव का जिक्र करें तो कांग्रेस 43.1 %  से अधिक वोट लेकर 67 सीटें जीतने में कामयाब रही, भाजपा को 32.8 % वोट के साथ 15 सीटें मिली जबकि जोगी और बसपा गठबंधन को रिकॉर्ड 11 फीसदी वोट मिले और 07 सीटें भी जीतने में कामयाब रही, इसमें जोगी कांग्रेस के 05 और बसपा के 02 विधायक चुनाव जीतने ने कामयाब रहें।

अब बारी 2023 के चुनाव की है और तैयारियों का जो स्तर दिख रहा है मानकर चलिए यह चुनाव 2003 के चुनाव से भी ज्यादा #दिलचस्प होगा।

लेखक के ट्विटर वॉल से साभार।

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