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जापान और ब्रिटेन की इकॉनमी मंदी की चपेट में, अमेरिका का कर्ज उसकी जीडीपी का 125%

नई दिल्ली
 ग्लोबल इकॉनमी के लिए अच्छी खबर नहीं है। जापान के बाद ब्रिटेन की इकॉनमी भी मंदी में फंस चुके हैं। ब्रिटेन के ऑफिस ऑफ नेशनल स्टैटिस्टिक्स (ONS) के मुताबिक दिसंबर तिमाही में ब्रिटेन की इकॉनमी में 0.3% गिरावट रही। इससे पहले जुलाई से सितंबर के दौरान इसमें 0.1% की गिरावट आई है। ब्रिटेन की इकॉनमी में दिसंबर तिमाही में आई गिरावट 2021 की पहली तिमाही के बाद सबसे ज्यादा है। ब्रिटेन की इकॉनमी में पिछले करीब दो साल से ठहराव की स्थिति है। बैंक ऑफ इंग्लैंड का कहना है कि इकॉनमी के इस साल तेजी पकड़ने की उम्मीद है। ब्रिटेन के साथ-साथ जापान की इकॉनमी भी मंदी में फंस चुकी है। इसी तरह यूरोप की सबसे बड़ी इकॉनमी जर्मनी को भी संघर्ष करना पड़ रहा है। इस बीच चीन की इकॉनमी भी कई मोर्चों पर संघर्ष कर रही है।

जापान की इकॉनमी भी मंदी में फंस चुकी है। लगातार दो तिमाहियों में इकॉनमी में गिरावट को मंदी कहा जाता है। दिसंबर तिमाही में जापान की इकॉनमी में 0.4 फीसदी गिरावट रही। इससे पहले जुलाई से सितंबर तिमाही में देश की जीडीपी में 3.3% गिरावट आई थी। इसके साथ ही जापान दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं की लिस्ट में तीसरे से चौथे स्थान पर खिसक गया है। अर्थशास्त्री उम्मीद कर रहे थे कि दिसंबर तिमाही में जापान की इकॉनमी एक फीसदी की रफ्तार से बढ़ सकती है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। अक्टूबर में आईएमएफ ने कहा कि जापान को पछाड़कर जर्मनी दुनिया की तीसरी बड़ी इकॉनमी बन सकता है। बैंक ऑफ जापान ने स्पेंडिंग और इन्वेस्टमेंट को बढ़ावा देने के लिए साल 2016 में निगेटिव इंटरेस्ट रेट शुरू किया था और तबसे इसमें बदलाव नहीं किया है। इससे दुनियाभर के निवेशकों के लिए येन आकर्षित नहीं रह गया है। इससे येन की वैल्यू में और कमी आई है।

चीन का हाल
इस बीच दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी इकॉनमी चीन को भी कई मोर्चों पर संघर्ष करना पड़ रहा है। देश में बेरोजगारी चरम पर है, लोग खर्च करने के बजाय बचत करने में लगे हैं, रियल एस्टेट गहरे संकट में है, विदेशी कंपनियां और निवेशक अपना बोरिया बिस्तर समेट रहे हैं और अमेरिका के साथ तनाव कम होने का नाम नहीं ले रहा है। करीब दो दशक तक दुनिया का ग्रोथ इंजन रहे चीन से निवेशकों का मोह अब भंग होने लगा है। चीन की इकॉनमी में आने वाले वर्षों में लगातार गिरावट आने की आशंका है। माना जा रहा है कि रियल एस्टेट का संकट चीन की पूरी इकॉनमी को डुबो सकता है। चीन की जीडीपी में रियल एस्टेट की करीब 30 फीसदी हिस्सेदारी है। इस संकट का असर अब बैंकिंग सेक्टर पर भी दिखने लगा है।

अमेरिका कर्ज से बेहाल
दुनिया की सबसे बड़ी इकॉनमी वाले देश अमेरिका की भी हालत ठीक नहीं है। उसका कर्ज पिछले 24 साल में छह गुना बढ़ गया है। साल 2000 में अमेरिका पर 5.7 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज था जो अब 34.2 ट्रिलियन डॉलर पहुंच गया है। साल 2010 में यह 12.3 ट्रिलियन डॉलर और 2020 में 23.2 ट्रिलियन डॉलर था। यूएस कांग्रेस के बजट दस्तावेजों के मुताबिक अगले दशक तक देश का कर्ज 54 ट्रिलियन डॉलर पहुंचने का अनुमान है। तीन महीने में ही इसमें एक ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का इजाफा हो चुका है और यह देश की जीडीपी का करीब 125% है। पिछले तीन साल में ही देश का कर्ज 10 ट्रिलियन डॉलर से अधिक बढ़ चुका है। स्थिति यह हो गई है कि अमेरिका को रोज 1.8 अरब डॉलर ब्याज के भुगतान में खर्च करने पड़ रहे हैं।

भारत बनेगा तारणहार
दुनिया के कई बड़े देश मंदी की समस्या से जूझ रहे हैं लेकिन भारत की इकॉनमी रॉकेट की स्पीड से बढ़ रही है। IMF का कहना है कि 2026 में भारत जापान से आगे निकल जाएगा और फिर 2027 में वह जर्मनी को पछाड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनमी बन जाएगा। लेकिन जापान और जर्मनी की इकॉनमी जिस तरह संघर्ष कर रही हैं, उससे लग रहा है कि भारत को टॉप तीन में पहुंचने में इतना लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। पिछले साल भारत की इकॉनमी बड़े देशों में सबसे तेजी से बढ़ी थी और अगले दो साल भी यही स्थिति रहने का अनुमान है। भारत में युवाओं की एक बड़ी आबादी है और माना जा रहा है कि उसे अगले कई साल तक डेमोग्राफिक डिविडेंड का फायदा मिलता रहेगा। यानी अगला दशक भारत का होने जा रहा है।

 

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