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‘किलोल’ की फांस में शिक्षा विभाग के आला अफसर… विधानसभा अध्यक्ष के निर्देश पर हुई जांच में विभाग ने माना आजीवन सदस्य बनाने का निर्देश गलत था!

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इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर।

विधानसभा के अंतिम सत्र में विपक्षी विधायक अजय चंद्राकर के ‘किलोल’ पत्रिका के खरीदी के सवाल पर विधानसभा अध्यक्ष ने स्कूल शिक्षा विभाग को एक सप्ताह में मामले की जांच कर रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए थे। इस मामले में स्कूल शिक्षा विभाग ने जांच पूरी कर ली है और किलोल को लेकर विभाग ने अपनी रिपोर्ट में साफ कर दिया है कि आजीवन सदस्य बनाने का निर्देश नियम विरूद्ध था।

सरकार ने किलोल बाल पत्रिका की खरीदी मामले की जांच रिपोर्ट विधानसभा को भेज दी है। इस मामले में स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डॉक्टर आलोक शुक्ला की भूमिका पर भी सवाल है। संभावना जताई जा रही है कि रिपोर्ट के आधार पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत प्रकरण को आगे की जांच के लिए विधानसभा की कमेटी को भेज भी सकते हैं।

विधानसभा के आखिरी सत्र में किलोल बाल पत्रिका खरीदी पर काफी बवाल मचा था। स्कूलों की लाइब्रेरी के लिए पुस्तकों में से एक किलोल और बाल पत्रिका की खरीदी प्रक्रिया में अनियमितता के आरोप लगे थे। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर में आरोप लगाया था कि निजी लोगों पर भी दबाव डालकर किलोल पत्रिका खरीदने के लिए मजबूर किया गया है।

विधानसभा अध्यक्ष ने विभाग से पत्रिका ख़रीदी की पूरी जानकारी हफ़्ते भर में उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे। विभाग ने पूछताछ की और खरीदी की पूरी जानकारी विधानसभा अध्यक्ष को भेज दी है। उल्लेखनीय है कि किलोल की आजीवन सदस्यता के लिए समग्र शिक्षा प्रबंध संचालक ने आदेश जारी किए थे।

बताया जा रहा है कि विभागीय रिपोर्ट स्कूल शिक्षा मंत्री रविंद्र चौबे के सामने प्रस्तुत कर दिया गया है। सीजी इम्पेक्ट इस मामले को लेकर लगातार सवाल उठाता रहा है। उल्लेखनीय है​ कि किलोल पत्रिका के प्रकाशन से लेकर खरीदी प्रक्रिया में स्कूल शिक्षा सचिव डॉ. आलोक शुक्ला की सीधी भूमिका को इम्पेक्ट ने सबसे पहले उजागर किया था।

मजेदार बात तो यह है कि विधानसभा में किलोल की खरीदी के संबंध में कम से कम चार बार सवाल उठाए गए। पर यह अंतिम बार में इस पत्रिका को लेकर तथ्यात्मक सच्चाई सामने आ सकी है। सबसे पहले किलोल का पंजीयन डा. आलोक शुक्ला के स्वामित्व पर ही था। इम्पेक्ट ने जब यह खुलासा किया और इस मामले में तकनीकी बिंदुओं को उजागर किया तो इस पत्रिका के स्वामित्व परिवर्तन के लिए ‘विंग्स टू फ्लाई’ एनजीओ के नाम कर दिया। इस पत्रिका के प्रकाशन और प्रसार से जुड़े अधिकतर लोग आज भी शिक्षा विभाग में ही कार्यरत हैं।

निशुल्क प्रकाशन वाली इस पत्रिका के नाम पर स्वामित्व परिवर्तन से पूर्व दो शासकीय कर्मचारियों के निजी खातों में राशि जमा करवाई गई। इसके बाद इसके खातों का संचालन ‘विंग्स टू फ्लाई’ नामक संस्था के अधीन कर दिया गया। महज आठ से दस रुपए वाली मासिक पत्रिका के आजीवन सदस्यता के नाम पर शिक्षा विभाग के अधीन सभी संकुलों के आ​कस्मिक निधि से राशि की वसूली करवाई गई।

मजेदार बात तो यह है कि एक संकुल के अधीन आठ से दस स्कूलों का संचालन होता है। ऐसे में किसी एक संकुल में एक बाल पत्रिका से सभी स्कूलों के बच्चों को यह पत्रिका पढ़ने के लिए कैसे उपलब्ध करवाई जा सकती है? इस सवाल का कोई जवाब मिल नहीं रहा है।

इस पत्रिका के वार्षिक सदस्यता हेतु जितनी राशि ली गई इससे अच्छी से अच्छी किताब खरीदी जा सकती थी। विभागीय जमीनी अमला इस खरीदी प्रक्रिया को लेकर संशय में रहा पर आला अफसर की दबंगई के सामने हर कोई नतमस्तक होता रहा। संभव है अब विधानसभा अध्यक्ष चरण दास महंत इस मामले की तह तक पहुंचकर जिम्मेदारों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का रास्ता खोल दें।

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