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किलोल : प्रमुख सचिव आलोक शुक्ला का जवाब गोल—मोल… आखिर पत्रिका में शिक्षा विभाग के ​अधिकारी ही क्यों? सहायक संचालक एम सुधीश की भूमिका ‘गंगाधर ही शक्तिमान’ जैसा…

इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर।

छत्तीसगढ़ सरकार में स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव की भूमिका निभा रहे डा. आलोक शुक्ला के स्वामित्व की घरेलू बाल पत्रिका ‘किलोल’ की वार्षिक और आजीवन सदस्यता के लिए स्कूल शिक्षा विभाग में पूरी ताकत झोंक दी गई है। इस पत्रिका के प्रकाशन और संचालन से जुड़े तथ्यों को लेकर इम्पेक्ट ने सबसे पहले खबर दी थी। जिस पर प्रमुख स​चिव डा. आलोक शुक्ला ने अपने फेसबुक वाल पर जवाब दिया है। जिसमें उन्होंने बताया है —

EXCLUSIVE “किलोल” बस पत्रिका ही नहीं बल्कि अफसरी की आड़ में धंधा है…

पिछले 1-2 दिन से मेरे पास मेसेज आ रहे हैं कि किसी वेब पोर्टल पर छपा है कि‍ किलोल पत्रिका अफसरी की आड़ में धंधा है. किसी को किसी प्रकार की गलतफहमी न रहे इसलिये मैं सभी को बताना चाहता हूं कि‍ किलोल पत्रिका का संपादक मैं ही हूं और मुझे इसका गर्व है. य‍ह पत्रिका मैंने एक वेब पत्रिका के रूप में दिसंबर 2016 में प्रारंभ की थी, जब सरकार में मेरे पास कोई भी प्रभार नहीं था. इसे मैने कड़ी मेहनत, से खड़ा किया और यह पत्रिका बच्चों और शिक्षकों दोनो के बीच खासी लोकप्रिय हो गई. मैं पत्रिका को वेब पत्रिका के रूप में प्रकाशित करता रहा और यह मेरी वेबसाइट पर लगातार नि:शुल्क डाउनलोड के लिये उपलब्ध रही है और आज भी नि:शुल्क डाउनलोड के लिये उपलब्ध है. मैने पत्रिका से कोई धन नहीं कमाया बल्कि उसपर कुछ जेब से खर्च ही किया है.
 
आजकल काम अधिक हो जाने के कारण मेरे पास समय कम रहता है इसलिये मैने इस पत्रिका का मालिकाना हक वि‍न्ग्स टु फ्लाई नामक संस्था को ट्रांसफर कर दिया है. उन्होने पत्रिका के लिये एक संपादक मंडल भी बना लि‍या है परन्तु मुझसे पत्रिका का प्रधान संपादक बने रहने का आग्रह किया है. पत्रिका के प्रति प्रेम के कारण मैं आज भी किलोल का अवैतनि‍क प्रधान संपादक हूं. इस पत्रिका में न केवल छत्तीसगढ़ के बल्कि अन्य प्रदेश के लेखक भी अपनी रचनाएं भेजते हैं. पत्रिका बच्चों के लिये बेहतरीन रचनाएं प्रकाशित करती है. कागज़ पर छपी पत्रिका प्रदाय करने के लिये सदस्यता शुल्क लिया जाता है परन्तु पीडीएफ और ई-बुक के रूप में किलोल सभी के लि‍ये नि‍:शुल्क डाउनलोड के लि‍ये उपलब्ध है.

मैं पत्रिका को ट्रांसफर करने की जानकारी आर.एन.आई. को बहुत पहले ही भेज चुका हूं. उनकी वेबसाइट पर अपलोड करना उनका काम है, मेरा नहीं.

मैं किलोल के लि‍ये 2 काम नि‍:शुल्क करता  हूं – 1. कि‍लोल के अवैतनि‍क प्रधान संपादक का कार्य. 2. किलोल की वेबसाइट का नि:शुल्क संचालन. इसीलिये वेबसाइट की प्राइवेसी पॉलिसी में मेरा ई-मेल पता दिया गया है.

कि‍लोल के माध्यम से मुझे बहुत से बच्चों और शिक्षकों का प्यार मिला है और आंतरिक खुशी मिली है. किलोल को धंधा कहने वाले, न तो बाल-साहित्य के बारे में जानते हैं और न ही बच्चों तथा शिक्षकों की आवश्यकताओं समझते हैं. प्रेम, सद्भाव जैसे शब्द तो शायद उन्होने सुने ही नहीं हैं. जो स्वयं धंधेबाज हैं उन्हें ही हर चीज़ में धंधा नज़र आता है.

मुझे कि‍लोल के साथ जुड़े होने का गर्व है. किलोल में छपने वाले लेखकों और किलोल पढ़ने वाले बच्चों को भी अवश्य ही इससे जुड़े होने का गर्व होगा. आप इस लिंक पर कि‍लोल के सभी अंक नि:शुल्क ऑन लाइन पढ़ भी सकते हैं और नि:शुल्क डाउनलोड भी कर सकते हैं –

इस जवाब में डा. आलोक शुक्ला ने कई तथ्यों को इस तरह से छिपाया है जैसे –

पहले तो शिक्षक के स्तर पर शुल्क समेत सदस्यता के लिए प्रेरित किया गया। तब जब उसे निशुल्क वितरण हेतु बताया गया था। उसके बाद संस्था के स्तर पर सदस्यता के लिए प्रयास शुरू किया गया। यह सब उस दौर में किया गया जब विंग्स 2 फ्लाई अस्तित्व में ही नहीं थी। उनके स्कूल शिक्षा विभाग के पद में आते ही कैसे पर्दे के पीछे से बकायदा आन लाइन बाल पत्रिका के लिए शिक्षा विभाग से संबद्ध संस्थाओं और अधिकारी—कर्मचारियों से वार्षिक और आजीवन सदस्यता शुल्क की वसूली शुरू कर दी गई।

जिन लोगों के बचत खातों में राशि जमा करने के लिए बकायदा संदेश भेजे गए उनका स्कूल शिक्षा विभाग से ही संबंध कैसे रहा? समग्र शिक्षा में सहायक संचालक एम सुधीश ही मैसेजिंग प्लेटफार्म में बकायदा शिक्षकों और संबंधितों को स्पष्ट तौर पर सदस्यता के लिए दबाव बनाते रहे। उनकी पत्नी ही कैसे उसी एनजीओ की सचिव बन जाती हैं जिसका संबंध उसी बाल पत्रिका से होता है जिसका संबंध आपसे और एम सुधीश से है।

दर असल नई सरकार बनने के बाद जब यह संकेत मिलने लगे कि डा. शुक्ला को सरकार अपने पक्ष में लेना चाह रही है। तो उन्होंने पुरानी सरकार के समय में खाली रहते जिस 2016 बाल पत्रिका पर काम शुरू किया था उसके लिए मार्केट की तलाश का काम भी पूरा हो गया। इस काम में शिक्षा विभाग के अधिकारी और कर्मचारी का उपयोग किया गया।

डा. शुक्ला ने यह नहीं बताया कि जब यह बाल पत्रिका निशुल्क वितरण के लिए आरएनआई में पंजीकृत है तो उसके नाम पर राशि की वसूली आन लाइन सदस्यता के लिए क्यों ली गई। वैसे भी क्या डा. शुक्ला ने किसी पत्रिका के प्रकाशन से पूर्व राज्य सरकार से विभागीय अनुमति ली थी। जो कि सिविल सेवा आचरण संहिता में उल्लेखित है।

RNI CERTIFICATE इसमें निशुल्क वितरण दर्ज है

वैसे सवाल तो बहुत से हैं जिनका जवाब डा. शुक्ला को देना चाहिए।

दरअसल यह तथ्य किसी को नहीं पता कि ‘विंग्स 2 फ्लाई’ नामक संस्था 12 फरवरी 2020 को पंजीकृत हुई। इस संस्था को कैसे पता चला कि ‘स्कूलों के लिए यूथ एंड ईको क्लब के नाम पर राशि का आबंटन हो रहा है।’

इसका सरल जवाब है समग्र शिक्षा में पदस्थ डा. एम सुधीश जो कि स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डा. आलोक शुक्ला के करीबी भी हैं वे ही इस फाइल का संधारण करते रहे हैं। उनकी पत्नी को ‘विंग्स 2 फ्लाई’ एनजीओ का सेकेटरी नियु​क्त किया गया। वे इस एनजीओ के बैंक खाते में सह हस्ताक्षर कर्ता भी हैं। एवं इस संस्था के प्रमुख ताराचंद जायसवाल जिनके सेविंग खाते में तब से राशि जमा की जा रही है जब यह पत्रिका निशुल्क वितरण के लिए ही आन लाइन उपलब्ध रही। ये भी शिक्षा विभाग में ही पदस्थ हैं।

ऐसे में ‘विंग्स 2 फ्लाई’ एनजीओ की बाल पत्रिका के लिए प्रदेश के सभी डीईओ, डीएमसी, बीईओ और बीआरसी को पत्र बकायदा यूथ एंड ईको क्लब की राशि से बाल पत्रिका के लिए वार्षिक और आजीवन सदस्यता लेने के लिए पत्र बीते 7 मई को जारी किया गया। इस पत्र के बाहर आने के बाद ही सारा खेल उजागर हो सका।

समग्र शिक्षा, स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव डा. आलोक शुक्ला, विंग्स 2 फ्लाइ एनजीओ, यूथ एंड ईको क्लब इन सबके लिए समग्र शिक्षा के सहायक संचालक एम सुधीश की भूमिका ‘गंगाधर ही शक्तिमान’ जैसी है।

बाल पत्रिका के मर्म और कर्म को लेकर ना तो कभी सवाल रहा है और ना ही नासमझी पर यह जानना बेहद जरूरी है कि आखिर जिस विभाग के आला अफसर किसी पत्रिका के स्वामित्व, प्रकाशन, संपादन से जुड़े हैं और वही एनजीओ पर्दे के पीछे से सरकारी राशि को निकालने के खेल में जुटी है। तो सवाल स्वाभाविक है। सरकार की भी यह जिम्मेदारी है कि वह इस सवाल का जवाब जरूर ले। क्यों कि इस खेल में राशि बड़ी है और दिखाई देने वाली तस्वीर बेहद छोटी…

इस संबंध में समग्र शिक्षा विभाग के सहायक संचालक से उनका पक्ष लेने की कोशिश की गई पर संपर्क नहीं हो सका। उन्हें वाट्सएप पर सवाल प्रेषित किया गया है जिसका जवाब मिलने पर उसे स्थान देने की कोशिश की जाएगी।

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