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विंग्स टू फ्लाई की उड़ान पर आज अजय चंद्राकर के सवाल का जवाब देंगे शिक्षा मंत्री… ‘किलोल’ को लेकर सीजी इम्पेक्ट ने सबसे पहले उठाया था सवाल… बाल पत्रिका का ऐसा खेल जिसमें खजाने से निकाल लिए गए करीब पांच करोड़ रुपए…

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इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर।

छत्तीसगढ़ विधान सभा के अंतिम सत्र के प्रश्नकाल में भाजपा विधायक अजय चंद्राकर के तारांकित प्रश्न का जवाब दिया जाएगा। सवाल वही है जिसे लेकर सीजी इम्पेक्ट ने सबसे पहले 26 सितंबर 2021 में खुलासा किया था कि शिक्षा विभाग के आला अधिकारी अपनी निजी पत्रिका की आड़ में करोड़ों रुपए खजाने से निकालने की तैयारी कर ली थी।

श्री चंद्राकर के तारांकित प्रश्न के जवाब में सरकार ने यह बताया है कि 72 शालाओं ने अनुदान मद से और 3233 संकुलों ने संकुल अनुदान मद से अब विंग्स टू फ्लाई एनजीओ द्वारा प्रकाशित बाल पत्रिका ‘किलोल’ की आजीवन सदस्यता ले ली है।

प्रदेश में कुल करीब साढ़े पांच हजार संकुल हैं इसमें से करीब नब्बे प्रतिशत संकुलों में इस पत्रिका की आजीवन सदस्यता से करीब पांच करोड़ रुपए एनजीओ के खाते में भेज दिए गए हैं। उल्लेखनीय है कि इस पत्रिका का पंजीयन डा. आलोक शुक्ला के नाम पर आरएनआई में दर्ज किया गया था।

जिसमें इसके निशुल्क वितरण का उल्लेख किया गया था। उनके स्वामित्व काल में इस पत्रिका के नाम पर दो निजी खातों में वसूली गई सदस्यता राशि जमा की गई थी। जिन दो लोगों के खातों में इसकी राशि जमा की गई वे दोनों भी शिक्षा विभाग के कर्मचारी ही थे।

यह पूरा खेल तब शुरू हुआ जब डा. आलोक शुक्ला को राज्य सरकार ने शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव के तौर पर पदस्थ किया।

जब सीजी इम्पेक्ट ने इस संबंध में खबरें प्रकाशित की तो डा. आलोक शुक्ला ने इस पत्रिका को एनजीओ विंग्स टू फ्लाई के स्वामित्व में परिवर्तित कर दिया। मजेदार बात तो यह है कि समग्र शिक्षा कार्यालय के ही कर्मचारी और उक्त अधिकारी ही इस एनजीओ के कर्ता धर्ता हैं।

26 सितंबर 2021 को प्रमुख सचिव डा. आलोक शुक्ला की ने शिक्षा मंत्री की मौजूदगी में प्रदेश के सभी संकुलों में किलोल पत्रिका की आजीवन सदस्यता के लिए निर्देश जारी किया। जिसके संबंध में सीजी इम्पेक्ट ने खबर प्रकाशित कर दी। इसके बाद यह मामला कुछ दिनों तक टाला गया।

अंतत: 24 जनवरी 2022 को प्रबंध संचालक समग्र शिक्षा ने एक आदेश जारी कर सीआरसी अनुदान राशि व्यय करने के संबंध में दिशा निर्देश जारी किया। इसमें 25 फरवरी तक राशि को व्यय किए जाने के लिए कहा गया। इस निर्देश में बकायदा ‘किलोल’ पत्रिका की आजीवन सदस्यता 10 हजार रुपए देने के लिए निर्देशित किया गया। देखें आदेश की कॉपी।

आज इस मामले में विधान सभा में उठाए जा रहे तारांकित प्रश्न को लेकर शिक्षा विभाग के आला अधिकारियों ने पत्रिका के वाणिज्यिक उपयोग के संबंध में गोल मोल जवाब दिया है। बड़ी बात तो यह है कि जब मासिक बाल पत्रिका निशुल्क वितरण के लिए पंजीकृत की गई है तो इसके आजीवन सदस्यता के नाम पर करोड़ों रुपए कैसे वसूले गए?

इस पत्रिका के आकार प्रकार को देखने से स्पष्ट है कि इस तरह की पत्रिका की कीमत अधिकतम 10 रुपए प्रति अंक से ज्यादा नहीं होना चाहिए।

इस आधार पर एक साल की अधिकतम कीमत 120 रुपए और दस साल के लिए 1200 रुपए से ज्यादा नहीं हो सकती। इसके एवज में आजीवन के नाम पर 10—10 हजार रुपए का गणित समझ से बाहर है। सवाल तो बहुत हैं पर प्रभावशाली अधिकारी के सामने पूरा सिस्टम बौना दिखाई दे रहा है।

​किलोक के खेल को लेकर इम्पेक्ट की खबरें

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