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अर्नब की गिरफ्तारी पर रोक… दो हफ्ते बाद होगी सुनवाई… अग्रिम जमानत के लिए सुप्रीम कोर्ट ने दिया तीन हफ्ते का समय…

न्यूज डेस्क. रायपुर।

रिपब्लिक टीवी और उसके प्रधान संपादक अर्नब गोस्वामी के विरूद्ध छत्तीसगढ़ और राजस्थान में दर्ज मामलों को लेकर अर्नब की याचिका की सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट में की गई। सुप्रीम कोर्ट ने सभी एफआईआर पर स्टे दिया। नागपुर में दायर केस को मुंबई ट्रांसफर करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई पुलिस कमिश्नर से अर्णब और उनके चैनल को सुरक्षा देने के भी निर्देश दिए।

इसमें लंबी जिरह के बाद सुको ने अर्नब को राहत देते हुए तीन हफ्ते तक अ​ग्रिम जमानत का वक्त दिया और इस मामले की सुनवाई दो हफ्ते बाद करने की तिथि मुकर्रर की। अग्रिम जमानत अर्ज़ी दाखिल करने के लिए 3 हफ्ते का समय दिया। यानी गिरफ्तारी से राहत 3 हफ्ते की मानी जाएगी।

उल्लेखनीय है कि महाराष्ट के पालघर में दो साधुओं की लिंचिंग हत्या के मामले को लेकर अर्नब गोस्वामी ने अपने टीवी न्यूज चैनल रिपब्लि भारत में एक कार्यक्रम किया जिसमें कथित तौर पर अर्नब द्वारा कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी को लेकर टिप्पणी की गई। इस टिप्पणी के खिलाफ पूरे देश में कांग्रेसी कार्यकर्ता अर्नब के खिलाफ हो गए। छत्तीसगढ़ में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव समेत करीब—करीब सभी जिलों में अर्नब के विरूद्ध करीब 105 मामले दर्ज किए गए। वहीं राजस्थान में भी ऐसे ही मामले दर्ज किए गए।

छत्तीसगढ़ में दर्ज मामले को लेकर सिविल लाइन थाना ने आगामी 5 मई को पूछताछ के लिए उपस्थि​त होने का नोटिस अर्नब गोस्वामी को भेजा है। इस मामले की गंभीरता को देखते हुए अर्नब ने सुप्रीम कोर्ट में कल अपनी याचिक दाखिल की जिसे सुको ने स्वीकार कर लिया था। इस पर आज सुबह सुनवाई शुरू हुई। अर्नब की तरफ से सुको के वकील मुकुल रोहतगी और कांग्रेस की ओर से कपिल सिब्बल व विवेक तन्खा पैरवी के लिए पेश हुए।

राजस्थान के वकील मनीष सिंघवी ने कहा कि एफआईआर में 153A और 153A गंभीर गैरजमानती धाराएं हैं। पुलिस को जांच से नहीं रोका जा सकता। वहीं छत्तीसगढ़ के वकील विवेक तनखा ने कहा ‘ब्रॉडकास्ट लाइसेंस का उल्लंघन कर सांप्रदायिक उन्माद फैलाया जा रहा है। इन्हें कोई रियायत नहीं दी जानी चाहिए।’

विवेक तनखा ने कहा कि इस कार्यक्रम से लाखों लोग इनके बयानों से प्रभावित हुए हैं। इस पर बचाव पक्ष की ओर से मुकुल रोहतगी ने कहा – सिर्फ कांग्रेस के कार्यकर्ता इससे प्रभावित हुए हैं। साधुओं की हत्या पर जब देश गुस्से में था तो एक पार्टी की चुप्पी पर सवाल क्यों न उठे? क्यों न इस चुप्पी को मिलीभगत माना जाए?

सिब्बल की दलील थी कि – यह ऐसा मामला नहीं जिसमें अनु.32 के तहत SC से दखल मांगा जाए। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने मामले की सुनवाई करते कहा – कई राज्यों में FIR हुई है। निश्चित रूप से अनुच्छेद 32 का मामला बनता है, जहां SC में याचिका लगाई जा सकती है।

कोर्ट ने कहा- हम सभी FIR में किसी भी तरह की कार्रवाई पर फिलहाल 2 हफ्ते की रोक लगा देते हैं। तब तक याचिकाकर्ता अपनी अर्ज़ी में संशोधन करें। सभी FIR को एक साथ जोड़े जाने की प्रार्थना करें। फिर आगे सुनवाई होगी। एक ही मामले की जांच कई जगह नहीं हो सकती।

अर्नब मामले में सुप्रीम कोर्ट का आदेश :-

  • नागपुर और मुंबई में दर्ज FIR साथ जोड़े गए
  • बाकी FIR को जोड़ने के लिए अर्ज़ी लगाई जाए
  • SC उसको 8 हफ्ते बाद सुनेगा
  • इस दौरान मुंबई-नागपुर FIR को छोड़ किसी पर कोई कार्रवाई नहीं
  • अर्नब 3 हफ्ते में अग्रिम जमानत अर्ज़ी लगा सकते हैं। तब तक गिरफ्तारी पर रोक

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