Articles By NameState News

भाजपा में वर्तमान स्थिति की बात करें तो जनता से पहले कार्यकर्ता ही हतोत्साहित…

फिल्म देखकर निकलते हुए नायक का भाव और भाजपा

मनोज व्यास।

सिनेमा देखकर निकलते हुए युवाओं को आपने देखा होगा, कैसे नायक की तरह भाव भंगिमा लिए होते हैं। धूम फिल्म देखकर निकले युवाओं की फटफटी भी हाई स्पीड बाइक की तरह लगती है। यह मायने रखता है कि सिनेमा ने युवा मन पर कितना असर किया। कुछ युवा तो अपनी फटफटी को ही मॉडिफाई करा लेते हैं और सड़क पर धुआं उड़ाते रहते हैं।

खैर, बात फटफटी की नहीं, नायक के भाव की है। छत्तीसगढ़ में 15 साल की सरकार से उतरी भाजपा के 18 महीने बाद की परिस्थिति की बात करें तो नायक का भाव अब तक बरकरार है। सरकार में मंत्री-मुख्यमंत्री से मिलना आसान नहीं होता। (यदि होता तो शायद हरदेव सिन्हा को दिलासा ही मिल जाती और उसे खुदकुशी न करनी पड़ती।

भाजपा जब सरकार में थी, तब भी ऐसे मामले आए थे। खैर… ) जब आप विपक्ष में होते हैं तो जनता से सीधे जुड़ना आपकी मजबूरी होती है, क्योंकि विपक्ष की राजनीति जनता के कंधे पर ही टिकी होती है। भाजपा में वर्तमान स्थिति की बात करें तो जनता से पहले कार्यकर्ता ही हतोत्साहित हैं। 15 साल सत्ता में रहने वाले नेताओं का कद इतना बढ़ गया कि अब उन्हें निचले स्तर के कार्यकर्ताओं की आवाज सुनाई नहीं दे रही। हर कार्यकर्ता के भीतर बगावत सुलग रही है।

ऐसा इसलिए भी क्योंकि गुटों में बंटी पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को एक साथ लेकर सरकार के खिलाफ विरोध में भी नहीं उतर पा रही, जिससे उनके विरोध को दिशा देकर इस्तेमाल किया जा सके। 15 साल बाद 15 सीटों में सिमटते ही एक बड़ा वर्ग तीन कार्यकाल मुख्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह के खिलाफ उठ खड़ा हुआ। नेतृत्व परिवर्तन की मांग हुई। राष्ट्रीय नेतृत्व ने रमन पर भरोसा किया और उनकी पसंद से धरमलाल कौशिक नेता प्रतिपक्ष बने।

विधानसभा में इसका साइड इफेक्ट कभी भी देखा जा सकता है। प्रदेश अध्यक्ष बदलने की बारी आई, तब भी यही परिस्थिति बनी। एक गुट ने दिल्ली में दावेदारों की परेड कराई, लेकिन राष्ट्रीय नेतृत्व ने फिर रमन की पसंद से विष्णुदेव साय को पार्टी अध्यक्ष बना दिया। विष्णुदेव संगठन के लिए ईमानदार हैं, लेकिन कार्यकर्ता ऐसी छवि का मुखिया नहीं चाह रहे, जो आज भी वरिष्ठ नेताओं से पूछ-पूछकर चले।

18-19 साल बाद फिर कार्यकर्ताओं में एक नारा चर्चित हो गया है- रमन की गाय-विष्णुदेव साय…कभी यही बात नंदकुमार साय के लिए कही जाती थी, लखीराम की गाय-नंदकुमार साय। विष्णुदेव की ऐसी छवि के लिए जो सबसे अहम वजह है, वह है, उनका सरल स्वभाव का होना।

दो बार प्रदेश अध्यक्ष और केंद्रीय राज्यमंत्री होने के बावजूद वे जशपुर जिले के ही नेता रहे। प्रदेश में अपनी छाप नहीं छोड़ पाए। शायद यही वजह है कि किसी आक्रामक नेता को कमान सौंपने के बजाय विष्णुदेव को चुना गया, क्योंकि अभी भी फ्रंट में रमन ही हैं।

जिस नायक के भाव की बात हो रही थी, वह इन्हीं बातों के इर्द-गिर्द ही है। रमन आज भी भाजपा का चेहरा हैं, सुरक्षा घेरे में हैं, इसलिए सुलभ नहीं, विष्णुदेव आज भी केंद्रीय मंत्री के आभामंडल में जी रहे और बिना अपॉइंटमेंट के नहीं मिल पाएंगे, सरोज पांडे राष्ट्रीय नेतृत्व का हिस्सा बनने के बाद दुर्ग जिले की राजनीति को छोड़कर बाकी के लिए सुलभ नहीं हैं।

रामविचार नेताम, बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, शिवरतन शर्मा को अघोषित बागी मान लिया गया है। बृजमोहन का तो पिछली घटनाओं के साथ सरकारी बंगले में बने रहना ही सबसे बड़ा गुनाह बना दिया गया है। इनके बाद जो नेता उभरना चाहते हैं, वे सोच भी नहीं पा रहे कि उन्हें कोई मौका मिलेगा, क्योंकि राष्ट्रीय नेतृत्व जिन पर भरोसा कर रहा, वे तो फिर अपनों को ही आगे बढ़ा रहे। जिलाध्यक्षों की नियुक्ति में सबने देखा।

जो जहां ताकतवर था और जिले का अकेला था, वहां अपना अध्यक्ष बना लिया। रायपुर, दुर्ग-भिलाई जैसे जिले इसलिए बच गए क्योंकि वहां से कई नेताओं की राजनीति चलती है। राष्ट्रीय नेतृत्व छत्तीसगढ़ को राज्य के बजाय 11 लोकसभा सीटों से तौलता है, इसलिए उन्हें इतनी रुचि भी नहीं है। जनसंघ के समय से जुड़े कार्यकर्ताओं और उनके परिवार को अपने नेताओं के नायक के भाव से बाहर आने का इंतजार है, जिससे संघर्ष में उनकी भागीदारी तय हो।

साभार : फेसबुक वॉल लिंक देखें

Note – इस कॉलम में हम सोशल मीडिया में परोसे गए पोस्ट को जस का तस साझा करते हैं… ताकि आप पढ़ सकें और सहेज सकें…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!