पुस्तक समीक्षा

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पुस्तक समीक्षा : एक सफ़र मुकम्मल… और दिवाकर! दिवाकर तो मेरे इतने अपने हैं कि क्या कहूं…

सुधीर सक्सेना। दिवाकर मेरे मित्र हैं। लगभग समवयस्क। कविता से उनका वास्ता कम है। गद्य से ज्यादा। गद्य में भी उन्होंने कहानियां इतनी ही लिखी हैं कि उन्हें ऊंगलियों पर गिना जा सके। हां, उन्होंने संस्मरण खूब लिखे हैं। अग्रलेखों की तो गिनती ही क्या! यूं तो वह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी रहे, लेकिन यह अवधि अधिक सुदीर्घ नहीं रही। उन्हें प्रिंट मीडिया ज्यादा रास आया। प्रिंट मीडिया से उनके जुड़ाव का अंतराल चार दशकों से भी अधिक कालखण्ड में फैला हुआ है और आरोह-अवरोह भरे रोचक-रोमांचक दौरों को अपनी

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