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तो क्या यह मान लें कि राजपत्र की अधिसूचना के बहाने भाजपा के खिलाफ अपना पहला पत्ता खेल दिया है CM भूपेश ने…!

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सुरेश महापात्र।

छत्तीसगढ़ में इन दिनों सरकार के एक कानूनी नोटिफिकेशन को लेकर जमकर चर्चा है। बीते 28 दिसंबर को राज्य सरकार ने एकअधिसूचना राजपत्र में प्रकाशित कर प्रदेश में सांप्रदायिक माहौल खराब करने वालों को लेकर बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत प्रदेश के सभी 31 जिलों के कलेक्टरों को 1 जनवरी से 31 मार्च तक ऐसे मामलों में सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा कानून एनएसए के तहत मामला पंजीबद्ध करवाने और कार्रवाई का अधिकार प्रदान किया है।

राजपत्र में कानून को आगामी तीन माह तक के लिए इस तरह से लागू किए जाने को लेकर सबसे कड़ी प्रतिक्रिया भारतीय जनता पार्टी की ओर से आ रही है। भाजपा के वरिष्ठ विधायक बृजमोहन अग्रवाल, आइएएस से भाजपा नेता बने ओम प्रकाश चौधरी और नेता प्रतिपक्ष का बयान जिस तरह से सामने आया है यह स्पष्ट है कि भाजपा अब इस नोटिफिकेशन के आधार पर अपनी राजनीति का प्रदर्शन आने वाले दिनों में करेगी। लब्बो लुआब यह है कि भाजपा ने इस कानूनी प्रावधान के तहत राज्य सरकार ने जिस तरह की व्यवस्था की है इसे ‘इमरजेंसी रिटर्न’ बताने की कोशिश की है।

छत्तीसगढ़ अमूमन सांप्रदायिक तौर पर बेहद शांत प्रदेश रहा है। यहां इक्का—दुक्का मामलों को अगर छोड़ दें तो देश के अन्य राज्यों की भांति कभी भी सांप्रदायिक वैमनस्यता का माहौल कम ही देखने को मिला है। पर बीते दो बरसों में कुछ ऐसे मामले सामने आए हैं जिनसे सरकार की चिंता बढ़ी है।

कवर्धा के मामले को ही ले लिया जाए इसमें साफ तौर पर सुनियोजित तौर पर सांप्रदायिक माहौल बिगाड़ने की कोशिश के तौर पर सरकार ने अपना रूख अख्तियार किया। यहां के मामले को लेकर सांसद संतोष पांडे और पूर्व सांसद अभिषेक सिंह समेत कई बड़े नेताओं पर मामला भी दर्ज किया गया। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इस तरह की घटनाओं को लेकर साफ तौर पर भारतीय जनता पार्टी पर आरोप लगाने से कभी नहीं चूके।र्

इसके बाद अब बीते दिसंबर की ही बात लें तो बस्तर में धर्मांतरण को लेकर रक्तपात तक की नौबत आ गई। चर्च में हमला करने के दौरान बीच बचाव में नारायणपुर एसपी को भी सिर पर चोट लगी। इस मामले को लेकर भी भाजपा सीधे राजनीति के मैदान में है। नारायणपुर के भाजपा जिला अध्यक्ष समेत करीब 17 लोगों को इस मामले में गिरफ्तार किया गया। इसके बाद पूर्व मंत्री केदार कश्यप ने जिस तरह से जमीनी संघर्ष शुरू किया है यह भी साफ दिखाई दे रहा है।

बस्तर में इस समय सभी 12 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं। संभव है आने वाले समय में कई सीटों पर परिणाम बदले। ऐसा इसलिए भी दिखाई दे रहा है क्योंकि बीते चुनाव के समय सर्वआदिवासी समाज ने भाजपा के खिलाफ एकजुटता दिखाई थी। इसके चलते कांग्रेस को एक तरफा बढ़त मिली। इस बार सर्वआदिवासी समाज कई मुद्दों को लेकर सरकार से सीधे टकरा रही है।

विधानसभा के उप सभापति मनोज मंडावी के निधन से खाली हुई सीट पर ऐन वक्त पर सर्वआदिवासी समाज की ओर से एक प्रत्याशी खड़ा किया गया। हांलाकि इससे परिणाम नहीं बदला पर आने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सर्वआदिवासी समाज का रूख साफ दिखाई दे रहा है।

बड़ा सवाल यही है कि यदि सर्वआदिवासी समाज अपने वोटबैंक के लिए किसी ऐसे मुद्दे पर सरकार को घेरे जिससे वोटों का ध्रुवीकरण आसान हो जाए जिसमें समाज स्पष्ट तौर पर अपने प्रत्याशियों के पक्ष में मजबूती के साथ उतर सके। तो इसके लिए बस्तर में ईसाई धर्मांतरण से आसान कोई मुद्दा नहीं है। यहां बड़े पैमाने पर धर्मांतरण होता रहा है। आदिवासी और वंचित समाज के लोग बड़ी आसानी से धर्मपरिवर्तन के माध्यम से अपनी पहचान लिए घूम रहे हैं।

ऐसा भी नहीं है कि धर्मांतरण के बाद ऐसे परिवारों की हालत में कोई बड़ा सुधार आया है पर बड़ी बात यही है कि गांव—गांव में गुड़ी की जगह चर्च में भीड़ लगने लगी है। आरएसएस कई अंग और गायत्री परिवार से भी आदिवासियों में धर्म को लेकर नवजागृति का प्रभाव बस्तर में साफ ​दिखाई देता है।

वहीं सर्व आदिवासी समाज के बैनर तले अब यह साफ तौर पर मांग उठने लगी है कि आदिवासी ना तो हिंदु है और ना ही उसे किसी अन्य धर्म में अपने अस्तित्व को तलाशने की दरकार है। आदिवासियों के बूढ़ा देव हैं जो गांव की गुड़ी में पहले से ही विद्यमान हैं। चर्च के खिलाफ हमले के बाद सरकार के सामने यह मुसीबत आ खड़ी हो गई कि बस्तर में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ—साथ आदिवासियों के बीच धर्मांतरण से उपजे वैमनस्यता को आगे बढ़ने से रोका जाए।

बस्तर के कद्दावर आदिवासी नेता और पांच जिलों के प्रभारी मंत्री कवासी लखमा ने हाल ही में कहा कि बीते चार सालों में धर्मांतरण नहीं हआ है बल्कि प्रदेश में बीते 15 बरस में भाजपा के शासन काल में तेंजी से धर्मांतरण हुआ और गांव—गांव में चर्च बने। उन्होंने तो साफ किया कि भूपेश सरकार बस्तर में गुड़ियों के भव्यता और सुधार के लिए काम कर रही है।

बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे के सहारे भाजपा भी इस कोशिश में जुटी है कि वह ऐसे आदिवासी वोटों को अपनी ओर आकर्षित करे जो पूरी तरह हिंदूधर्म में अपनी आस्था रख रहे हैं। इससे ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस का वोट बैंक कमजोर होगा। कांग्रेस के पास यदि धर्मांतरित आदिवासी ही शेष रह जाएंगे। ऐसे में सर्वआदिवासी समाज के एकजुट होने से भाजपा को होने वाला नुकसान भी कम होगा।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ में भाजपा की राजनीति को बड़ी बारिकी से देख रहे हैं और वे अब इसी कोशिश में जुटे दिख रहे हैं कि किसी भी तरह से छत्तीसगढ़ में भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के आधार पर अपनी वोट बैंक के लिए ऐसी राजनीति ना कर सके जिससे आने वाले चुनाव में मनोवैज्ञानिक लाभ भाजपा के पक्ष में चला जाए।

छत्तीसगढ़ में आरक्षण के मुद्दे को लेकर भाजपा ने भानुप्रतापपुर उप चुनाव के समय कांग्रेस को घेरने की कोशिश कर चुकी है। इसका काट निकालते राज्य सरकार ने जो राजनीतिक बिसात बिछाई है उससे भाजपा के लिए मुसीबत भी खड़ी हो गई है। क्योंकि ओबीसी के आरक्षण के मुद्दे को भूपेश सरकार ने सामने लाकर खड़ा कर दिया है।

आरक्षण और सांप्रदायिक माहौल के बीच में उलझे छत्तीसगढ़ियों के लिए आने वाला समय और भी कठिन होने वाला है। आरक्षण के मसले पर सरकार की ओर से प्रेसर पॉलिटिक्स की नीति दिखाई जा रही है। राज्यपाल के पास विधानसभा से पास विधेयक पहुंच कर उनकी सहमति का इंतजार कर रहा है। यदि राज्यपाल इसे स्वीकार कर लेते हैं तो भूपेश सरकार इसे अपनी उपलब्धि बताने से नहीं चूकेगी और यदि राजभवन में मामला अटका रहेगा तो इसके लिए सरकार भाजपा को सड़क पर घेरती ही रहेगी।

इसे लेकर आम मतदाता के मन में शंका है। पर इसका लाभ तो भाजपा को मिलने से रहा। ऐसे समय में आरक्षण के मुद्दे पर घिरती राज्य सरकार ने प्रदेश में कानून व्यवस्था के नाम पर सांप्रदायिक माहौल के खिलाफ माहौल बनाने से रोकने के लिए बड़ा कदम उठाया है। तो यह साफ माना जा सकता है कि आगामी चुनाव से पहले भूपेश बघेल ने अपना पहला पत्ता भाजपा की राजनीति के खिलाफ ही खेला है। सांप्रदायिकता भड़काने के नाम पर संभव है कांग्रेस सरकार सभी को चेताना चाह रही हो कि राजनीति का खेल फेयर हो… और नेताओं के चेहरे लवली बने रहें…!

सबसे बड़ी बात तो यही है कि आखिर इस नोटिफिकेशन के बाद भाजपा ही इसके खिलाफ क्यों खड़ी दिखाई दे रही है? मसला जब आप राजपत्र में प्रकाशित अधिसूचना को पढ़ेंगे तो साफ समझ में आ जाएगा कि उसमें लिखी गई बातें सीधे तौर पर भाजपा की ओर ही इशारा कर रही हैं। देखें राजपत्र

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