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बस्तर के 12 सीटों का गणित : बदलाव के साफ संकेत… पीएम के दौरे से पहले ही कई सीटों पर चुनौती से घिरती दिख रही है कांग्रेस…

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सुरेश महापात्र। 

विधानसभा चुनाव के करीब आते आते बस्तर की राजनीतिक फिज़ा में हवा का रूख बदलने लगा है। 2018 में भारी जीत के बाद कांग्रेस के लिए अब कड़ी चुनौती उसकी अपनी ही परफारमेंस को रिपीट करने को लेकर है। बस्तर में आदिवासी सीटों को साधने के लिए भाजपा ने जमीन पर मेहनत कितनी की है कितनी हवा में है इसका अंदाजा लगाना फिलहाल कठिन है। बस्तर में धर्म केंद्रित राजनीति के लिए संभावनाएं इस बार बढ़ती दिखाई दे रही है। धर्मांतरण और घर वापसी को लेकर बस्तर के कम से कम चार विधानसभा क्षेत्रों में माहौल बिगड़ा हुआ है।  

इस बीच बस्तर में आदिवासी नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम का अपना अलग राजनैतिक दल बनाकर खड़ा होना किसके लिए क्या नतीजा लेकर आएगा यह स्पष्ट तौर पर नहीं कहा जा सकता। पर धर्मांतरण का मुद्दा गहराने के साथ ही कांग्रेस को विपक्ष लगातार निशाना बना रहा है। बड़ी बात यह है कि धर्मांतरण और घरवापसी को लेकर कांग्रेस नेता कुछ भी कहने को तैयार नहीं है।

आगामी 3 अक्टूबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बस्तर प्रवास है। यहां जगदलपुर के लाल बाग में बड़ी सभा की तैयारी जोर—शोर से चल रही है। बस्तर में इस वक्त भाजपा ने केवल दो प्रत्याशियों के नाम घोषित किए हैं। संभव है पीएम की सभा से ठीक पहले सारे प्रत्याशी घोषित कर पीएम की रैली में प्रस्तुत भी कर दिया जाए। 

इधर आदिवासी बहुल बस्तर की 12 विधानसभा सीटों में इस समय कांग्रेस के विधायक हैं। कम से कम छह सीटों पर प्रत्याशियों के नामों को लेकर जद्दोजहद जमीन पर दिखाई दे रहा है। इसमें कांकेर, अंतागढ़, नारायणपुर, चित्रकोट, जगदलपुर और दंतेवाड़ा की सीट है। यहां के नाम फंसे हुए हैं। 

एक प्रकार से मान लिया जाए फिलहाल इन सीटों पर कांग्रेस की स्थिति आने वाले चेहरों पर निर्भर है। इसके अलावा केशकाल, भानुप्रतापुर, कोंडागांव, बस्तर, कोंटा और बीजापुर की सीटों पर परफारमेंस के आधार पर कांग्रेस को लाभ—हानि के आसार हैं।

विधानसभा चुनाव के दौरान बस्तर में इस बार एक मुद्दा तेजी से गरमा रहा है वह है आदिवासियों के धर्म परिवर्तन को लेकर। इसे लेकर सबसे बड़ा पेच यही है कि आदिवासियों के बीच में तीन अवधारणाएं काम कर रही हैं एक आदिवासियों का कोई पृथक धर्म नहीं है वे स्वयं को केवल आदिवासी घोषित करने की मुहिम का हिस्सा हैं। दूसरा वर्ग आदिवासी होकर स्वयं को हिंदुओं में शामिल करता रहा है। तीसरा वर्ग ऐसे आदिवासी परिवार हैं जिन्होंने ईसाई धर्म में स्वयं को शामिल कर लिया है।

मुख्यत: लड़ाई तीसरे वर्ग के साथ ही हो रही है। यानि ईसाई धर्मांतरित आदिवासियों को लेकर बस्तर का माहौल लगातार गर्म हो रहा है। यदा—कदा गांव—गांव में इस मुद्दे को लेकर संघर्ष की स्थिति बनती जा रही है। वैसे भी तमिलनाडू के उपमुख्यमंत्री स्टालिन के सनातन विरोधी बयान के बाद भाजपा सनातन धर्म के मुद्दे के साथ जिस तरह से खड़ी है उससे साफ है कि बस्तर में आदिवासियों के धर्मांतरण को लेकर चल रहे विवाद को इस रैली में हवा दी जाए। केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया और भाजपा के छत्तीसगढ़ प्रभारी ओम माथुर जगदलपुर में डेरा डालकर पीएम की रैली की तैयारियों को अंतिम रूप दे रहे हैं। इस रैली में एक लाख की भीड़ जुटाने का लक्ष्य है। 

बस्तर की वर्तमान में जमीनी सच्चाई यही है कि यहां कई गांव ऐसे हैं जहां ईसाई धर्मांतरित आदिवासियों पर लगातार धर्म वापसी के लिए दबाव बढ़ता जा रहा है। चर्च पर होने वाली प्रार्थना सभा को लेकर भी भारी विरोध हो रहा है। आदिवासियों के कई ऐसे परिवार सामने आए हैं जिनमें एक ही परिवार के एक हिस्से ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है और दूसरा स्वयं को हिंदु के तौर पर मान्यता प्रदान कर रहा है। ऐसे घरों में धर्म को लेकर होने वाले झगड़ा अब गांव से निकलकर थाना, कोर्ट तक पहुंच रहा है।

झगड़े का परिणाम यह है कि अब बस्तर में धर्मांतरित आदिवासियों के लिए आर्थिक पाबंदियां लगाई जाने लगी हैं। ईसाई धर्म स्वीकार करने वाले आदिवासियों के खेतों में काम करने के लिए पाबंदी है। उनके लिए तरह की बाधाएं खड़ी की जा रही है। ऐसे परिवारों में किसी के मृत होने पर उसके अंतिम संस्कार के लिए कब्रिस्तान में जगह भी नहीं दी जा रही है। कई गांवों में चर्च पर ताला भी लगा दिया गया है।

बस्तर में आदिवासियों में मृतक को दफनाने और अंत्येष्ठि कर जलाने की दो पद्धतियां हैं। कुछ आदिवासी समाज में मृतक को दफनाया जाता है और कुछ में हिंदुओं की तरह अग्नि में जलाने की उनकी अपनी प्रक्रिया है।

सबसे ज्यादा दिक्कत ईसाई धर्म अख्तियार करने वाले आदिवासियों को दफनाने की प्रक्रिया के दौरान हो रही है। ऐसे कम से कम दर्जनभर मामले बाहर आ चुके हैं। मृतक के अंतिम संस्कार को लेकर कई गांवों में तनाव की स्थिति निर्मित हो चुकी है। यही वह राजनीतिक पहलू है जिसके सहारे आदिवासी नेता अरविंद नेताम और भाजपा अपने वोट बैंक को साधने की कोशिश में जुट गए हैं।

इन सबका परिणाम भी अब निकलकर सामने आने लगा है। बस्तर में धर्मांतरित आदिवासियों के कई परिवारों की घर वापसी का कार्यक्रम भी चल रहा है। घर वापसी के ऐसे कई विडियो सामने आए हैं। पर यह घर वापसी भाजपा के दिवंगत नेता दिलीप सिंह जूदेव की घर वापसी की प्रक्रिया टाईप नहीं है।

बल्कि गांव के गायता और पुजारी आदिवासियों की परंपरा के अनुसार अपने अनुष्ठान के बाद जल छिड़ककर धर्मांतरित परिवारों की वापसी करवाते दिखाई दे रहे हैं। इस विडियों में साफ दिखाई दे रहा है कि पूजा विधान के पश्चात आदिवासी परिवार की घर वापसी करवाई जा रही है।

आने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान इस विवाद का प्रभाव देखते हुए भारतीय जनता पार्टी मुखर है। भाजपा बस्तर में धर्मांतरण के मुद्दे पर आक्रामक है। यही वजह है कि नारायणपुर में ऐसे ही एक मामले में हुए विवाद के बाद भारी झड़प हुई थी जिसमें एसपी भी घायल हुए थे। जनवरी 2023 की इस घटना के बाद समूचे बस्तर में आदिवासियों की सियासत को वोट बैंक के नजरिए से परिवर्तित करने की तैयारी चल रही है। 

मजेदार बात तो यह है कि भाजपा की इस मुहिम की हवा आदिवासियों के दूसरे गुट से निकल रही है जिसमें वे इन आदिवासियों को केवल आदिवासी मान्यता के अनुरूप चलने के लिए प्रेरित करने में जुटे हैं। यानी यदि दूसरा गुट ऐसे आदिवासियों के वोट बैंक को साध लेता है तो बस्तर की राजनीतिक फ़िज़ा निश्चित तौर पर बदल जाएगी। 

इसके बाद भाजपा और कांग्रेस के भीतर से कितने वोट किसे शिफ्ट होंगे यह कहना कठिन है। इसके बाद बस्तर में वोटों का चुनावी गणित भी प्रभावित होगा। फिलहाल बस्तर में भाजपा अपनी वापसी के लिए पूरी ताकत झोंक रही है। इस बार कांकेर, कोंडागांव, नारायणपुर और जगदलपुर की सीट पर कांग्रेस के लिए राह फिलहाल कठिन लग रही है। 

यह नहीं भूलना चाहिए कि दंतेवाड़ा विधानसभा की सीट पर उप चुनाव में सरकार की ताकत से कांग्रेस की वापसी हो पाई थी। यहां भाजपा संगठन द्वारा तय किए जाने वाले चेहरे पर सबकी निगाह है। कोंटा विधानसभा में कवासी लखमा के मंत्री बन जाने के बाद एंटी इनकंबैंसी का खतरा बढ़ा है। सिलगेर, ताड़मेटला, मिनपा में मुठभेड़ में चल रहे आदिवासियों के विरोध प्रदर्शन का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। सीपीआई एक बार फिर पूरी ताकत लगा रही है। 

कोंटा विधानसभा क्षेत्र में भ्रष्टाचार भी एक बड़ा मुद्दा है। प्रशासन के खिलाफ सबसे बड़ा प्रदर्शन सुकमा में सर्वआदिवासी समाज के बैनर तले किया गया था। धार्मिक मामलों को लेकर सुकमा में कई बार तनाव की स्थिति निर्मित हुई। इनका दुष्प्रभाव कवासी लखमा के हिस्से जाना तय है। चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस की सियासत पीसीसी अध्यक्ष दीपक बैज के आसरे है। यहां राजमन बेंजाम रिपीट होंगे या चेहरा बदलेगा इस पर भी सियासी गणित दिखाई देगा। 

एक बात तो साफ दिख रही है कि चित्रकोट में भाजपा बैदूराम और लच्छू कश्यप को तो टिकट देने से रही। यहां से नया चेहरा ही भाजपा की वैतरणी के लिए सबसे बड़ा आसरा होगा। चित्रकोट विधानसभा क्षेत्र में आदिवासियों के धर्मांतरण और घर वापसी कार्यक्रम तेजी से संचालित हो रहा है।

इस इलाके में अरविंद नेताम के कान्सेप्ट वोट भी एक इलाके में अपना प्रभाव रखता हैं। इसलिए चित्रकोट की जमीनी स्थिति कम से कम कांग्रेस के लिए आसान तो नहीं दिखाई दे रही है। सही मायने से देखा जाए तो बस्तर, बीजापुर, केशकाल को छोड़ किसी भी सीट पर कांग्रेस दावा करने की हालत में नहीं है।

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