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ढीली न्यायिक व्यवस्था : ‘वकीलों’ की कमी के चलते निचली अदालतों में 63 लाख केस लंबित… आपराधिक मामले सबसे अधिक…

इम्पैक्ट डेस्क.

नेशनल ज्यूडिशियल डाटा ग्रिड (एनजेडीजी) के अनुसार, 20 जनवरी तक देश भर की अधीनस्थ अदालतों में चार करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं, जिनमें से लगभग 63 लाख मामले वकील की कमी के कारण अभी भी लंबित हैं। ये मामले कम से कम 78 प्रतिशत आपराधिक और शेष 22 प्रतिशत दीवानी हैं। ऐसे 63 लाख मामलों में से 77.7 प्रतिशत या 49 लाख से अधिक सामूहिक रूप से दिल्ली, गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, यूपी और बिहार के हैं।सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में मामले लंबित हैं, लेकिन कई अन्य राज्यों की समीक्षा से इस प्रकार के हजारों अन्य मामलों का भी पता चला है।

आखिर वकीलों की कमी क्यों?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अदालतों में अधिकतर लंबित मामले की वजह वकीलों की कमी है। हालांकि मीडिया रिपोर्ट में जज की कमी पर भी सवाल उठते रहते हैं। वकीलों की कमी की वजह भी सामने आई है। जिनमें बताया गया है कि मुकदमा लड़ रहे वकीलों की मौत, वकीलों की व्यस्तता, अभियोजन द्वारा वकीलों को तय करने में देरी और मुफ्त कानूनी सेवाओं की कम पहुंच जैसे कारण भी जिम्मेदार होते हैं। निचली अदालतों में मुकदमों में होने वाली देरी सबसे बड़ी बाधाओं में से एक है।

कीलों पर बहुत अधिक बोझ
वकील अनीशा गोपी के अनुसार अक्सर वकीलों पर बहुत अधिक बोझ होता है। जिस तरह से हमारी अदालतों में रजिस्ट्री काम करती है, मुकदमों की सूची अंतिम समय में आती है और वकीलों को अक्सर किसी भी सुनवाई से चूकने के लिए मजबूर होना पड़ता है। दूसरा कारण यह है कि भारत में एक औसत मामले को पूरा होने में चार साल लगते हैं। जब मुकदमेबाजी प्रत्याशित से अधिक समय तक जारी रहती है, तो पीड़ित व्यक्ति भारी कानूनी शुल्क का भुगतान जारी रखने के लिए संसाधनों से बाहर हो सकता है।

निशुल्क कानूनी सेवाओं से एक करोड़ से अधिक लोगों को लाभ: कानून मंत्रालय
इस बीच केंद्रीय कानून मंत्रालय के अलग-अलग आंकड़ों के अनुसार, 2017-18 और 2021-22 के बीच विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा प्रदान की गई निशुल्क कानूनी सेवाओं से एक करोड़ से अधिक लोगों को लाभ हुआ है। 2021-22 में सबसे अधिक वृद्धि का अनुभव करने वाले पांच राज्य असम, झारखंड, बिहार और मध्य प्रदेश थे।

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