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छत्तीसगढ़ में पोस्टिंग घोटाले को लेकर अंदरखाने मचा है बवाल… सिस्टम में खोट का नतीजा भुगत रहे शिक्षक… क्या होंगे FIR के साइड इफेक्ट?

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इम्पेक्ट न्यूज। रायपुर।

छत्तीसगढ़ में बीते करीब तीन हफ्ते से पोस्टिंग घोटाले को लेकर जब पहले ज्वाइंट डायरेक्टर को निलंबित करने का आदेश दिया गया था तब से बीते सोमवार तक अंदरखाने में भारी हलचल है। सोमवार को दिनभर मंत्री के साथ मंथन का दौर चला। शाम को एक खबर बाहर आई कि पोस्टिंग घोटाले के आरोपी जेडी के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करवाने की तैयारी चल रही है।

डा. प्रेमसाय सिंह के कार्यकाल में यह भारी भरकम पोस्टिंग घोटाला हुआ। इस घोटाले के आड़ में अफसर, नेता और शिक्षक नेता सभी तर गए। और जब फंसने की बारी आई तो वे अफसर नप गए जिन्होंने अवैधानिक तौर पर सरकार द्वारा जारी लिस्ट का संसोधन अपने स्तर पर कर संशोधन आदेश जारी कर दिया।

राज्य के शिक्षामंत्री रविंद्र चौबे तेजतर्रार नेता हैं। उनकी राजनैतिक समझ बड़ी है। ब्यूरोक्रेट की उनके सामने नहीं चलती। वे सुनते सबकी हैं और फैसले अपने हिसाब से लेते हैं। यह तो रही मंत्री की बात। पर असल मुद्दा शिक्षकों की पदोन्नति से जुड़ा वह तथ्य है जिसके बारे में कोई बात नहीं कर रहा है।

क्या है सरकार की फांस देखें य​ह विडियो

जब एक के बाद एक चार जेडी किए गए संस्पेंड

अंदरखाने में यह बात भी चल रही है कि

  • आखिर पोस्टिंग आदेश में संशोधन की नौबत ही क्यों आई?
  • क्या पदोन्नति से पहले शिक्षकों की काउंसलिंग की प्रक्रिया का पालन किया गया?
  • यदि काउंसिलिंग की प्रक्रिया के बाद भी पदोन्नति पदस्थापना में गड़बड़ी हुई तो उसके लिए शिक्षकों पर दोहरी मार का जिम्मेदार कौन है?
  • अब जब सरकार ने इस बात का ऐलान कर दिया है कि पदोन्नति संशोधन आदेश निरस्त कर दिए गए हैं। तो इस शैक्षणिक सत्र में संबंधित संस्थाओं में प्रभावित होने वाली शिक्षा की जिम्मेदारी किसकी होगी?

इन सब बातों को जानने से पहले यह जानना आवश्यक है कि आखिर प्रदेश में कितने शिक्षकों की पदोन्नति के आदेश जारी किए गए और उनमें से कितनों के आदेश का संशोधन किया गया तो आपको यह जानकारी आश्चर्य होगा कि करीब साढ़े पांच हजार पदोन्नति के आदेश स्कल शिक्षा विभाग की ओर से जारी किए गए। इसमें से करीब 2700 आदेश में संशोधन पदस्थापना आदेश जारी किए गए।

छत्तीसगढ़ में बीते पांच साल से एक बार भी शिक्षकों की पदोन्नति पदस्थापना नहीं की गई। इसके पीछे जो भी कारण हो पर इससे कई बातों का फर्क साफ तौर पर पड़ा है। हालिया कार्रवाई के बाद करीब छह से सात जिला शिक्षा अधिकारी बदले जाएंगे। तीन संयुक्त संचालकों की पदस्थापना करनी होगी। प्रदेश में शिक्षाविभाग में चल रहे प्रभारवाद का प्रभाव कम होना फिलहाल असंभव है। भले ही सरकार के स्तर पर यह बात बार—बार की जा रही हो कि डीईओ, प्राचार्य के प्रभार खत्म कर पूर्णकालिक पदस्थापना की जाए।

एक जानकारी के अनुसार प्रदेश में करीब साढ़े पांच हजार हायर सेकेंडरी स्कूल हैं जिनमें से 90 प्रतिशत स्कूलों में प्रभारी प्राचार्य पदस्थ हैं। छत्तीसगढ़ के केवल 7 जिलों में पूर्णकालिक जिला शिक्षाअधिकारी पदस्थ हैं। यानी करीब 28 जिलों में प्रभारी डीईओ पदस्थापित हैं। पांच संयुक्त संचालकों में सभी जगह प्रभारी नियुक्त हैं। मजेदार बात तो यह है कि जब तक शिक्षा विभाग उपसंचालक के पद पर पदोन्नति या पोस्टिंग नहीं करता है तब तक उपर के पदों को भर पाना कठिन है।

पदोन्नति आदेश के संशोधन को लेकर एक मजेदार तथ्य यह भी सामने आ रहा है कि शिक्षकों की पदोन्नति आदेश के बाद शिक्षकों ने अपने मनमाफिक जगह के लिए विधायक, मंत्री, शिक्षक नेता और अधिकारी सभी के चक्कर काटते रहे। इसके बाद जारी किए गए करीब 2700 पोस्टिंग संशोधित आदेश में निश्चित तौर पर हर स्तर पर पैसे का खेला हुआ। आदेश जारी करने वाले अफसरों पर गाज गिरा दी गई है पर यह बात जब बाहर निकलेगी कि फलां—फलां नेता, मंत्री के पत्र के बाद जेडी ने आदेश जारी किए तो सरकार के पास क्या जवाब होगा?

और एक बात जो बेहद महत्वपूर्ण है कि यदि सरकार की ओर से एफआईआर की बात कही जा रही है तो इस बात का प्रमाणीकरण कैसे किया जाएगा कि पदोन्नति के संशोधन के लिए पैसों का लेनदेन हुआ। भ्रष्टाचार के मामले में एक बात तो साफ है कि पैसे लेना और देना दोनों ही अपराध की श्रेणी में आता है तो ऐसे में शिक्षक क्या इस बात के लिए सहमत हो सकेंगे कि वे कोर्ट में बताएं कि उनसे पैसे वसूले गए?

शिक्षा विभाग की सच्चाई यही है कि यहां उपर के अधिकारियों में समन्वय की कमी साफ तौर पर सतह पर दिखने लगी है। शिक्षा विभाग एक प्रकार से भ्रष्टाचार का अड्डा बनकर रह गया है। यहां कुछ अधिकारी स्पष्टतौर पर ईमानदार हैं भी तो सिस्टम उन्हें झेलने में दिक्कत महसूस कर रहा है। पूरे प्रदेश में शिक्षा के नाम पर जितनी राशि केंद्र और राज्य के बजट से लूटी गई है इसके आंकड़े चौंका सकते हैं।

समग्र शिक्षा और स्कूल शिक्षा विभाग के बीच कई ऐसे मामले हैं जिन्हें लेकर लंबे समय से खींचतान की नौबत है। केंद्र को भेजे जाने वाले आंकड़े और राज्य की जमीनी स्थिति का जब सरकार सीधे जायजा लेने लग जाए तो सरकार को भी यह मानना पड़ सकता है कि दिया तले अंधेरा वाली स्थिति है।

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