EditorialElectionMuddaState News

छत्तीसगढ़ का पहला फेस : प्रचार में कांग्रेस की आक्रामकता और भाजपा को मोदी—शाह की रणनीति का आसरा…

Getting your Trinity Audio player ready...

सुरेश महापात्र।

छत्तीसगढ़ में अब प्रथम चरण का मतदान होने में केवल नौ दिन शेष हैं। इस फेस में कुल बीस सीटों पर मतदान होगा। नवरात्रि के त्योहार के चलते प्रचार अभियान में क्वांर जैसी ठंडक बनी रही। कार्तिक माह में ठंड से ठिठुरन बढ़ने में अभी देरी है कड़ाके की ठंड से पहले पहले फेस का मतदान हो जाएगा।

छत्तीसगढ़ का किसान किस ओर मतदान करेगा इसे लेकर राजनीतिक दलों में बेचैनी है। दरअसल मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने छत्तीसगढ़ की सियासत को किसान के पिच पर लाकर रख दिया है। भाजपा—कांग्रेस के स्टार प्रचारकों के आने का दौर भी शुरू हो चुका है। पर असल में माहौल तो पहली नवंबर के बाद ही गर्म होगा।

राजनांदगांव की सभा में गृहमंत्री अमित शाह ने सांप्रदायिक भाषण दिया। संकेत साफ है कि भाजपा बीरनपुर फेस ईश्वर साहू के सहारे सांप्रदायिक तड़का से हिंदू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए कोशिश में जुटी है। हांलाकि शाह के इस भाषण के खिलाफ कांग्रेस ने सीईसी में शिकायत दर्ज करवाई है उम्मीद कम है कि इस पर केंचुआ कोई बड़ा फैसला ले सके…!

किसान से जुड़ी योजनाओं के सहारे कांग्रेस अपनी नैया पार लगाना चाहती है। पहले फेस की बीस में से करीब 10 सीटों पर धान और किसान से बड़ा मुद्दा आदिवासी भी है। बस्तर की सभी 12 सीटों पर पहले फेस में मतदान है। शेष 10 सीटों पर किसान और धान बड़ा मुद्दा हो सकता है। यहां कांग्रेस के 20 क्विंटल प्रति एकड़ और किसान ऋण की माफी की घोषणा का काट भाजपा के घोषणापत्र में दिखाई देगा। ऐसी उम्मीद भाजपा के कार्यकर्ता कर रहे हैं।

पहले चरण के लिए कुल  223 प्रत्याशी मैदान में हैं। चित्रकोट और दंतेवाड़ा में सबसे कम 7—7, राजनांदगांव में सबसे ज्यादा 29, बस्तर, कोंडागांव, बीजापुर, कोंटा में 8—8,  नारायणपुर, कांकेर और मोहला-मानपुर में 9—9, केशकाल, खुज्जी और डोंगरगढ़ में 10—10, जगदलपुर, खैरागढ़ में 11—11, डोंगरगांव में 12, अंतागढ़ में  13, भानुप्रतापपुर और पंडरिया में 14—14 और कवर्धा में 16 प्रत्याशी मैदान में हैं। कुल 5 हजार 304 मतदान केंद्रों में 40 लाख 78 हजार 681 मतदाता मतदान करेंगे।

जिसमें 19 लाख 93 हजार 937 पुरुष, 20 लाख 84 हजार 675 महिलाएं तथा 69 तृतीय लिंग के मतदाता शामिल हैं।  बड़ी बात तो यह है कि बस्तर की सभी 12 सीटों में जहां इस समय कांग्रेस का कब्जा है वहां इस बार का जनादेश क्या होगा? इसे लेकर असमंजस स्वाभाविक है। बस्तर हमेशा से कुछ ऐसा कर गुजरता है जिसकी उम्मीद राजनीतिक दल माहौल देखकर भांपने में सफल नहीं होते हैं। 

इस बीस विधानसभा सीटों में से 12 सीटों पर भाजपा ने नए चेहरों को मौका दिया है। जबकि राजनांदगांव से मौजूदा विधायक व पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के साथ चार पूर्व मंत्री विक्रम उसेंडी, लता उसेंडी, केदार कश्यप, महेश गागड़ा को मैदान पर उतारा है। वहीं एक मौजूदा सांसद विजय शर्मा कवर्धा से और एक पूर्व विधायक मोहला—मानपुर से संजीव शाह चुनावी मैदान पर हैं।

इसके विरूद्ध कांग्रेस ने छह नए चेहरों को अवसर दिया है। इसमें पंडरिया से नीलकंठ चंद्रवंशी, डोंगरगढ़ से हर्षिता बघेल, राजनांदगांव से गिरीश देवांगन, अंतागढ़ से रूपसिंह पोटाई, जगदलपुर से जतिन जायसवाल और दंतेवाड़ा से छविंद्र कर्मा को मौका दिया है। इसके अलावा तीन मंत्री कवर्धा से मो. अकबर, कोंडागांव से मोहन मरकाम और कोंटा से कवासी लखमा व एक सांसद दीपक बैज चुनावी मैदान में हैं। इसके अलावा विधायक और एक पूर्व विधायक कांकेर से शंकर ध्रुवा मैदान में हैं।

बस्तर की 12 सीटों से बाहर की आठ सीटों में कई में मुकाबला बेहद रोचक है। यहां प्रदेश के कद्दावर चेहरों पर दांव लगा है। प्रचार अभियान की गति पकड़ने के साथ ही मैदानी मुद्दों पर भी बात शुरू होगी। इन इलाकों में कांग्रेस—भाजपा के घोषणापत्र का सीधा असर भी दिखाई देगा। सामान्य तौर पर देखा जाए तो इन शेष आठ सीटों पर भी कांग्रेस और भाजपा के बीच ही सीधी टक्कर दिखाई दे रही है। 2018 में इसमें से केवल दो सीटों पर भाजपा को जीत हासिल हुई थी। इनमें राजनांदगांव से डा. रमन और दंतेवाड़ा से स्व. भीमा मंडावी ही विजयी रहे थे।

आदिवासी बहुल इस इलाके की जगदलपुर की सीट सामान्य है यहां कांग्रेस के जतिन जायसवाल की सीधी टक्कर भाजपा के किरण देव से है। जगदलपुर की सीट इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि यह समूचे बस्तर का केंद्र है। जगदलपुर की लाल बाग में पीएम मोदी की दो, अमित शाह की एक और राहुल व प्रियंका की एक—एक सभा इस दरमियान हो चुकी है।

जगदलपुर में नगरनार इस्पात संयंत्र का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में किया। यहां उत्पादन प्रारंभ हो चुका है। इस प्लांट के विनिवेश को लेकर विरोध के स्वर हैं। सही मायने में देखा जाए तो नगरनार के विनिवेश के पक्ष में ना तो कांग्रेस है और ना ही भाजपा के स्थानीय नेता। 

केंद्र में भाजपा की सरकार है तो स्वाभाविक है यदि विनिवेश को लेकर कोई भी कदम उठेगा तो यह भाजपा के उन नेताओं को भी टीस देगा। प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी सभा में साफ नहीं कहा कि इस प्लांट का विनिवेश केंद्र सरकार नहीं करेगी! उन्होंने चुनावी जुमले की तरह आम जनता को भ्रम में डालने की कोशिश की।

पीएम मोदी के लौटने के बाद भाजपा नेताओं को आम जनता से विनिवेश को लेकर किए जा रहे सवालों का जवाब देने में दिक्कत हुई। इसी का नतीजा रहा जब बस्तर में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह जगदलपुर में भाषण दिया तो साफ कहा कि ‘नगरनार स्टील प्लांट का विनिवेश नहीं किया जाएगा! इसमें बस्तर की जनता का हक है और यह बना रहेगा!’ इससे साफ समझा जा सकता है कि नगरनार को लेकर भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व बस्तर को भांप चुका है कि यदि इसमें चुनावी अभियान के दौरान कोई गड़बड़ी हुई तो मामला बिगड़ सकता है।

कांग्रेस नगरनार स्टील प्लांट के विनिवेश के खिलाफ है। कांग्रेस के आह्वान पर पीएम मोदी के आगमन के दिन बस्तर बंद कर दिया था। इसके दो प्रभाव सामने आए पहला पीएम मोदी की सभा ऐतिहासिक तौर पर सफल हो गई। भाजपा के लिए लालबाग मैदान में मौजूद भीड़ ने उनके आत्मविश्वास को बढ़ाने का काम किया है। इससे पूरे बस्तर में भाजपा के कार्यकर्ताओं को बल मिला।

इसके बाद धान, किसान, गोबर और गोठान को लेकर कांग्रेस की रीति—नीति से कांग्रेस बस्तर को साधने की कोशिश कर रही है। बस्तर में आदिवासियों के धर्मांतरण का एक मुद्दा हाल ही में उठा था पर वह चुनावी राजनीति में प्रभावकारी रह पाएगा इसे लेकर संदेह है। 

इसकी बड़ी वजह इस मामले में कांग्रेस का पूरी तरह से न्यूट्रल रहना भी है। कांग्रेस ने भाजपा की रणनीति में फंसने की जगह खुद पर धर्मांतरण का के पक्ष—विपक्ष का दाग लगाने से बचाने में लगी रही। ना कोई बयान दिया और ना ही किसी तरह का पॉलिटिकल एक्शन लिया। जो किया पुलिस और प्रशासन ने।

माओवादियों के मोर्चा पर कांग्रेस और भाजपा की सीधी लड़ाई है। यहां एक बार फिर माओवादियों ने चुनाव बहिष्कार की घोषणा की है। यह सही है कि जमीन पर माओवादी अपनी ही कई वजहों से काफी कमजोर हुए हैं। उनका नेटवर्क काफी हद तक टूटा है। ‘जंगल के भीतर मोर नाचा किसने देखा’ जैसी हालत माओवादियों की हो गई है। बहरहाल इस बार बहिष्कार के बावजूद शिफ्ट किए जाने वाले मतदान केंद्रों की संख्या आधी के करीब रह गई है।

सुरक्षा के चलते अंदरूनी इलाकों में इस बार भी राजनीतिक दलों का प्रचार अभियान परवान नहीं चढ़ सकेगा। बस्तर की सभी नक्सल प्रभावित सीटों पर निर्वाचन आयोग की निगरानी और सुरक्षा में राजनीतिक दलों को प्रचार करने की स्थिति रहेगी। सो जहां सुरक्षा का मसला ज्यादा गंभीर होगा वहां संभवत: प्रचार की अनुमति भी ना मिले।

यदि सीधी नज़र डालें तो कोंटा, अंतागढ़ और भानुप्रतापुर को छोड़ किसी भी विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबला दिखाई नहीं दे रहा है। भले ही आम आदमी पार्टी, हमर राज पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, सीपीआई और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रत्याशी मैदान में हैं पर लगता नहीं कि वे ज्यादातर सीटों पर थोड़ा बहुत वोट काटने से ज्यादा करिश्मा कर दिखाएं।

कोंटा में तीसरे ध्रुव में सीपीआई समर्थित निर्दलीय मनीष कुंजाम एक बड़ा चेहरा हैं। उन्हें सीपीआई का सिंबाल हासिल नहीं हो सका इसलिए निर्दलीय फाइट में हैं। यहां मंत्री कवासी लखमा के खिलाफ भाजपा से सोयम मुका हैं। भाजपा जमीन पर जोर लगा रही है। यहां का मुकाबला हमेशा ही रोचक रहता है। 

एक तरफा जीत कभी किसी को हासिल नहीं हुई। इस विधानसभा क्षेत्र से कवासी लखमा छठवीं बार चुनाव मैदान में हैं। उनकी जीत या हार दोनों में इतिहास रचेगा। इस विधानसभा क्षेत्र में मंत्री कवासी लखमा को एंटी इंकंबेंसी से खतरा तो है पर सीपीआई का सिंबाल ना होना और आम आदमी पार्टी का केंडिडेट नहीं होने से उन्हें प्राणवायु मिलती दिख रही है।

अंतागढ़ में कांग्रेस से विधायक अनूप नाग टिकट नहीं मिलने के बाद निर्दलीय मैदान में जोर लगा रहे हैं। मौजूदा विधायक हैं तो यह उम्मीद करना ही चाहिए कि वे अपना करिश्मा कर कांग्रेस प्रत्याशी के लिए चुनौती तो पेश कर ही सकते हैं। इस विधानसभा सीट से पूर्व सांसद विक्रम उसेंडी भाजपा प्रत्याशी है। यहां का मुकाबला भी त्रिकोणीय दिखाई दे रहा है।

भानुप्रतापपुर सीट से कांग्रेस ने उपचुनाव में स्व. मनोज मंडावी की पत्नी सावित्री मंडावी को प्रत्याशी बनाया था। इस सीट में पहली बार सर्व आदिवासी समाज ने एकजुट होकर ताकत लगाई थी। पर्दे के पिछे वरिष्ठ आदिवासी नेता अरविंद नेताम थे। उपचुनाव के दौरान भी यहां मुकाबला त्रिकोणीय था। अब अरविंद नेताम हमर राज पार्टी बनाकर सीधे प्रत्याशी उतार रहे हैं तो इस बार भी यही स्थिति रहने के साफ आसार हैं। इस सीट पर नेताम का गणित ही जीत—हार का फैसला करेगा।

फिलहाल चुनावी मौसम में गर्मी का इंतजार सभी को है। जैसे—जैसे मतदान का समय करीब आएगा। वैसे—वैसे बयानबाजी में गर्मी भी आएगी। कांग्रेस की ओर से इस बार प्रचार की शुरूआत काफी आक्रामक दिखाई दे रही है। कांग्रेस अडानी को मुद्दा बना रही है। वहीं किसानों के लिए कर्जमाफी का ऐलान कर मतदाताओं को 2018 की ओर शिफ्ट करने की कोशिश कांग्रेस की रणनीति साफ है। ईडी—आईटी के रेड को भी कांग्रेस मुद्दा बनाने की फिराक में दिख रही है। 

क्योंकि भ्रष्टाचार के तमाम आरोपों के बाद भी वैसा माहौल बन नहीं पा रहा है जैसी आस विपक्ष की भाजपा की रही। इसकी बड़ी वजह है कि भाजपा की ओर से राज्य से कोई मुद्दा तय नहीं है। चुनावी रणनीति को लेकर सभी मोदी—शाह के आसरे बैठे दिखाई दे रहे हैं। उम्मीद कम ही है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा के नेता मोदी—शाह की गोद से बाहर निकलकर मैदानी मुद्दों को लेकर मतदाताओं के सामने खड़े हों…

error: Content is protected !!