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#between naxal and force सलवा जुड़ूम : बस्तर के रक्त रंजित इतिहास का वह दौर जब दोनों तरफ से निशाने पर रहे आदिवासी…

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  • सुरेश महापात्र।

युवाओं की इस भीड़ में कितने माओवादी प्लांट हो रहे थे इसका अंदाजा किसी को नहीं था। …आगे पढें

19 जून को दंतेवाड़ा जिले के भैरमगढ़ ब्लाक के कोतरापाल गांव के पास माओवादियों ने आठ ग्रामीणों की हत्या कर दी इनके माओवादियों के खिलाफ चलाए जा रहे आदिवासियों की बैठक के दौरान हमला किया था। इस हमले में करीब 100 ग्रामीण घायल भी हुए थे। इस दौरान तक ना तो नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा और ना ही सरकार का कोई प्रतिनिधि बीजापुर इलाके में चल रहे इस संघर्ष की सुध लेने पहुंचा था।

25 जून 2005 को इस घटनाक्रम के करीब 20 दिन बाद छत्तीसगढ़ विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष महेंद्र कर्मा इस इलाके में पहुंचे थे। जानकारी मिली थी कि वे मुख्यमंत्री के साथ पहुंचेंगे पर सड़क मार्ग से कर्मा अकेले ही पहुंचे। उन्होंने नेमेड़ चौक में कुटरू और भैरमगढ़ से पहुंचे ग्रामीणों और पीड़ितों से मिले। यहां बैठक की और गंभीर सलाह भी दी। उन्होंने अपने पुराने अनुभव को साझा करते हुए साफ किया कि माओवादी अपने विरोधियों को सीधे निशाने पर लेते हैं इसलिए नेतृत्वकर्ता को लेकर स्पष्ट कर दिया। इस बैठक को कव्हर करने के लिए मैं वहां मौजूद था।

इसी बैठक में इस अभियान के नामकरण को लेकर चर्चा हुई। जिसमें इसे सलवा जुड़ूम नाम दिया गया। ग्रामीणों से चर्चा करते हुए महेंद्र कर्मा ने पूछा ‘गुड़ी में पूजा विधान के बाद ग्राम पुजारी जल देता है उसे क्या कहते हैं?’ इसके बारे में बताया गया कि इसे ‘सलवा’ कहा जाता है। इसका मतलब ‘शांति पानी’। इसके बाद महेंद्र कर्मा ने इस अभियान का नाम ‘सलवा जुड़ूम’ दिया। यानी माओवादियों के अशांत इलाकों में अब शांति जल का छिड़काव अभियान शुरू किया जाएगा। यह तय कर दिया गया। महेंद्र कर्मा ने इसी बैठक में एक बात और साफ किया कि अब इस अभियान की किसी भी बैठक से पहले सोढ़ी देवा, कलमू दारा और कोरसा मंगू जिंदाबाद के नारे लगाए जाएंगे।

और इसके बाद बिल्कुल ऐसा ही किया जाने लगा। बैठक से पहले सोढ़ी देवा, कलमू दारा और कोरसा मंगू के नाम पर जिंदाबाद के नारे के साथ सलवा जुड़ूम जिंदाबाद के नारे लगाए जाने लगे। कथित तौर पर अशांत इस क्षेत्र में अशांति की नई शुरूआत भी धीमे से हो गई। सीधे तौर पर महेंद्र कर्मा इसकी अगुवाई करने लगे। पदयात्रा और बैठकों का सिलसिला शुरू हो गया। दोनों तरफ से मौतों की फेहरिस्त लंबी होने लगी।

इसके बाद सिलसिलेवार मौतों की खबरें आने लगीं। अकेले 2005 में 16 जुलाई को दंतेवाड़ा जिले के छह गांवों पर भाकपा-माओवादी के कार्यकर्ताओं पर हमले में सात ग्रामीण और दो माओवादी मारे गए। 250 से अधिक माओवादियों ने ग्रामीणों को निशाना बनाकर कुटरू, अंबेली, फरसगांव, उस्कापट्टनम, बडेकरकेली और छोटेकरकेली गांवों पर हमला किया। 19 जुलाई को दंतेवाड़ा जिले के बीजापुर गांव में नक्सलियों ने दो नागरिकों की हत्या कर दी।

21 जुलाई को माओवादियों ने गांव तुमला के सरपंच लेकम सतीश की हत्या कर दी और गांव में सलवा जुडूम अभियान का नेतृत्व करने के लिए उनके पिता को गंभीर रूप से घायल कर दिया। 28 जुलाई को सीपीआई-माओवादी के कार्यकर्ताओं ने दंतेवाड़ा जिले के करेमार्का और मुदेर गांवों पर हमला किया और सात लोगों की हत्या कर दी।

6 अगस्त को भैरमगढ़ क्षेत्र के गांव जुनवानी के माओवादियों ने आदिवासी नेता अखमू पोदामी की हत्या कर दी। 9 अगस्त को दंतेवाड़ा जिले में नक्सलियों ने राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता महेंद्र कर्मा से जुड़े दो लोगों की हत्या कर दी। 12 अगस्त को माओवादियों ने गांव बगडोंगरी के गांव सरपंच राजमन उइके को तीन अन्य लोगों के साथ अपहरण के बाद मार डाला। 16 अगस्त को बीजापुर थाना क्षेत्र के जांगला गांव के पांडरू डोंगी को माओवादियों ने अगवा कर बाद में मार दिया। माओवादियों ने उनके बेटे पर सलवा जुडूम अभियान में शामिल होने का आरोप लगाया।

28 सितंबर को माओवादियों ने गंगालूर थाना क्षेत्र के बोराडी गांव के पांडु का गला रेत कर हत्या कर दी। 29 सितंबर को बीजापुर पुलिस मुख्यालय से चार किलोमीटर दूर पांडियारापारा गांव में हुई इस घटना में माओवादियों ने महादेव मांझी को घर से निकाल कर मार डाला और दो अन्य को घायल कर दिया। 30 सितंबर: दंतेवाड़ा जिले के बीजापुर इलाके में नक्सलियों ने पांच नागरिकों की हत्या कर दी। पीड़ित सात नागरिकों के एक समूह का हिस्सा थे, जिन्हें पहले माओवादियों ने इलाके से अगवा कर लिया था।

22 अक्टूबर को माओवादियों ने बीजापुर जिला मुख्यालय के अंतर्गत ग्राम घुमरा में पूर्व सरपंच, ग्राम प्रधान हपका मंगू की गोली मारकर हत्या कर दी। मंगू ने कथित तौर पर सलवा जुडूम अभियान में भाग लिया था। 28 अक्टूबर को माओवादियों ने चेरापाल गांव निवासी जुमादी लक्ष्मैया की गोली मारकर हत्या कर द। पीड़िता ने कथित तौर पर सलवा जुडूम में भाग लिया था।

4 नवंबर को बीजापुर थाना क्षेत्र के गंगलूर थाना क्षेत्र के गोगला गांव में नक्सलियों ने एक पुजारी बुधराम की हत्या कर दी। 5 नवंबर  दंतेवाड़ा जिले के गंगालूर गांव में नक्सलियों ने एक नागरिक की गोली मारकर हत्या कर दी और तीन अन्य पर हमला कर दिया। पुलिस ने कहा कि माओवादियों ने सलवा जुडूम विरोधी अभियान में शामिल होने के कारण पुजारी बुधराम की हत्या कर दी।

11 नवंबर को सलवा जुडूम में भाग लेने के लिए माओवादियों ने बीजापुर पुलिस जिले के अंतर्गत ग्राम पडेरा के समलू और गंगलूर के हेमला बुधराम के रूप में पहचाने गए दो आदिवासियों की हत्या कर दी।

इसके बाद दंतेवाड़ा जिले में भी माओवादियों ने 15 दिसंबर को एक ग्राम प्रधान चिंतनपल्ली की उस समय हत्या कर दी, जब वह साप्ताहिक बाजार से लौट रहा था। 30 दिसंबर को दंतेवाड़ा जिले के गोरना गांव में माओवादियों ने हमला किया विरोधी अभियान में भाग लेने के लिए दो ग्रामीणों की हत्या कर दी। (नोट — इस फेहरिस्त की कुछ घटनाओं पर यह भी आरोप लगाया गया है कि माओवादियों के नाम पर उस दौरान सर्चिंग आपरेशन में शामिल फोर्स और सलवा जुड़ूम के दौरान प्रदर्शनकारियों द्वारा हत्या की गई है। जिसमें से कुछ मामलों की जांच भी चल रही है।)

9 फरवरी 2006 को दंतेवाड़ा जिले के हिरौली इलाके में माओवादियों के एक बड़े समूह ने राष्ट्रीय खनिज विकास निगम के मैग्जीन पर हमला किया इस हमले में सीआईएसएफ 8 जवान शहीद हो गए। उनकी 17 राइफलें और 50 टन अमोनियम नाइट्रेट (बारुद )लूट लिया। इसका इस्तेमाल लौह अयस्क की खदानों में विस्फोट करने के लिए किया जाता है। 

हमले के बाद इलाके की फोर्स के माध्यम से घेराबंदी बढ़ा दी गई। लूट का पता लगाने और बारुद की रिकवरी के लिए पुलिस ने अभियान तेज कर दिया था। यही वह समय था जब बैलाडिला से विशाखापटनम तक एस्सार की स्लरी पाइप लाइन का काम शुरू हो चुका था। माओवादियों के दबाव में यह इलाका एक प्रकार से फोर्स के कब्जे में शामिल होता जा रहा था।

यानी यह साफ तौर पर समझा जा सकता है। माओवादियों और सशस्त्र बलों के बीच चल रहे सीधे युद्ध में अब सीधे तौर पर आम जनता शिकार होने शुरू हो गए थे। मौतें बस आंकड़ों में तब्दील होती जा रही थी।

और हिंदुस्तान के भीतर बस्तर का एक रक्त रंजित इतिहास भी दर्ज हो रहा था। जिसमें आदिवासी ही मारे जा रहे थे… (6) आगे पढ़ें…

क्रमश:

इम्पेक्ट लगातार

between naxal and force 01

#between naxal and force सोनी सोरी के दस बरस छह महिने और 4 दिन तक से पहले बस्तर… जहां माओवादी, पुलिस और जनता निष्पक्ष नहीं हो सकती…

between naxal and force 02

#between naxal and force एस्सार का पाइप लाइन और माओवादियों का दबाव…

between naxal and force 03

#between naxal and force सोनी सोरी शिक्षिका से माओवादी समर्थक…

between naxal and force 04

#between naxal and force आदिवासियों का आक्रोश कैसे सलवा जूड़ूम में हुआ तब्दील…

between naxal and force 05

#between naxal and force माओवादियों पर दबाव और सलवा जुड़ूम का प्रभाव…
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