between naxal and forceImpact Original

#between naxal and force आदिवासियों का आक्रोश कैसे सलवा जूड़ूम में हुआ तब्दील…

Getting your Trinity Audio player ready...
  • सुरेश महापात्र। 

पर एक बड़ा सवाल है आखिर शांत दिख रहे दक्षिण बस्तर में सब कुछ यकायक कैसे बदलने लगा… (3)  से आगे…

बस्तर में आदिवासियों के नक्सलियों के खिलाफ आक्रोश के उपजने के कारण कुछ हादसे थे। जिसकी पृष्ठभूमि पर अंदर के गांवों तक पुलिस और नक्सली दोनों के खिलाफ उत्तेजना थी। लोग यह मान रहे थे कि नक्सली काम करने दे नहीं रहे। विकास कार्यों पर अघोषित रोक लगी हुई है। सूखा राहत जैसे काम भी करने की अनुमति नहीं है। वहीं किसी भी वारदात के बाद सशस्त्र पुलिस आती है और ग्रामीणों को माओवादियों के सहयोगियों के संदेह में प्रताड़ित करती है।

इस पूरे घटनाक्रम की शुरूआत राष्ट्रीय राजमार्ग पर एक बारुदी विस्फोट से हुई थी। भैरमगढ़ से करीब छह किलोमीटर दूर बीजापुर मार्ग पर स्थित बच्छेपारा में माओवादियों ने ब्लास्ट कर सीआरपीएफ जवानों का रसद ले जा रही गाड़ी को उड़ा दिया था। उसमें सवार छह जवान शहीद हो गए थे। कई घायल थे। ब्लास्ट के बाद हथियार लूटने के लिए माओवादियों ने जमकर फायरिंग की थी और उसमें भी कुछ जवान शहीद हुए थे। 

हादसे के बाद पता चला कि रसद निकलने की जानकारी माओवादियों के पास पहले से ही थी। वे रेकी कर रहे थे। सुबह से ही ग्रामीणों के वेश में माओवादी एंबुश लगाकर बैठे थे। सूचना देने के लिए चरवाहा, स्कूली बच्चे और चिड़ीमार के रूप में नक्सली सक्रिय थे। वाहन के जद में आते ही उसे कैमरा फ्लेशगन से डेटोनेटर उपयोग कर सड़क में बिछाकर रखे गए लैंड माइन से उड़ा दिया था।

इसके बाद सीआरपीएफ के जवानों ने सर्चिंग आपरेशन के नाम पर जो कार्रवाई की उसमें इसी गांव के एक ट्रेक्टर चालक को गोली मार दिया। जिससे उसकी मौत हो गई थी। हो हल्ला मचा और क्या कार्रवाई हुई आज तक पता नहीं। ब्लास्ट के बाद हम सभी इस घटना का कव्हरेज करने के लिए भैरमगढ़ पहुंचे थे। 

वहां सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में उत्तेजित जवानों ने हम पर बंदूक तानते हुए धमकी दी कि पूरी की पूरी मैग्जीन उतार दूंगा! हम घायल जवानों की रिपोर्टिंग के लिए हास्पिटल पहुंचे थे। वरिष्ठ अफसरों की समझाईश से मामला शांत हुआ। हमें भी लगा कि अपने साथियों को गंवाने के बाद जवानों की यह उत्तेजना स्वाभाविक थी।

इसी घटना के कुछ दिन बाद हमारे पत्रकार साथियों ने रायपुर से प्रकाशित हरिभूमि में दंतेवाड़ा में हमारे पत्रकार साथी अतुल अग्रवाल की बाई लाइन खोजी खबर प्रकाशित हुई। दूसरे दिन यह खबर हाईवे चैनल में भी छपी। इस खबर को कव्हर करने के लिए विनोद सिंह साथ गए थे। इसकी ड्राफ्टिंग भी उन्होंने ही की थी। नदी पार रहने वाले चैतु ओर बुधरी को सीआरपीएफ जवानों ने मार कर जला दिया। 

यानी एक वारदात के बाद हादसों को गिनना भी कठिन हो जाता है। इसी के बाद एक और आरोप लगा कि जांगला के करीब जवानों ने कुछ ग्रामीणों को मारकर गाड़ दिया है। इस मामले को एक एनजीओ ने उठाया। इसकी भी पड़ताल की गई। पुलिस—नक्सली के बीच आरोप—प्रत्यारोप का दौर चला। हासिल सिफर रहा।

बीजापुर से आवापल्ली मार्ग पर पोंजेर नाला के करीब माओवादियों ने विस्फोट से लैंड माइन प्रोटेक्टर व्हीकल को उड़ा दिया। बस्तर में बारुदी सुरंग से बचने के लिए पहले चरण में 5 एंटी लैंड माइन व्हीकल मंगाए गए थे। इसमें सवार होकर जवान सर्चिंग के लिए बेधड़क निकल जाते थे। माओवादियों ने पूरी प्लानिंग के साथ इस व्हीकल को विस्फोट से उड़ाकर अपनी ताकत का ऐहसास करा दिया था। विस्फोट इतना खतरनाक था कि एंटी लैंड माइन व्हीकल के दो टुकड़े हो गए।

अंदर बैठे जवान जो हथियारों से लैस थे वे आपस में उलझकर मारे गए। इस हमले में डिप्टी कमांडेंट ने हथियारों को लुटने से बचा लिया था। बाकि अंदर बैठे जवान बचाए नहीं जा सके थे। सबुह—सुबह यह खबर दंतेवाड़ा पहुंची थी। खबर मिलने के बाद ही यहां से पत्रकारों का दल कव्हरेज के लिए बीजापुर रवाना हो गया। हादसा दंतेवाड़ा से करीब 120 किलोमीटर दूरी पर हुआ था। हम सभी एक बड़ी गाड़ी पर सवार होकर पहुंचे थे।

इन हादसों की श्रृंखला के बाद सीआरपीएफ, डीएफ और एसएएफ पर कार्रवाई दबाव बढ़ गया। वे गांव—गांव जाते और नक्सलियों के नाम पर ग्रामीणों की जमकर कुटाई करते। किसी गांव में फोर्स की सर्चिंग कार्रवाई के बाद नक्सली आते और मुखबिर के नाम पर गांव के संदिग्ध को जनअदालत लगाकर मारते—पीटते। यह क्रम चलता रहा। संभवत: अपने इलाके में सरकारी तंत्र को पहुंचने से रोकने के लिए माओवादियों ने बड़ी प्लानिंग की। अमूमन वे जनहितकारी कामों को रोकने के बजाए उसका फायदा उठाते थे। 

बीजापुर इलाके में दबाव इतना बढ़ा दिया कि अब ना व्यापारी, ना ठेकेदार और ना ही सरकारी मुलाजिम कोई भी उनकी अनुमति के बगैर ना घुस पाए। इसके लिए वे अपने दबाव के रणनीति पर काम करते हुए ग्रामीणों पर दबाव बनाया और इलाके के पंचायत प्रतिनिधियों को चेता दिया कि अब यहां कोई भी सरकारी काम नहीं होगा। वनोपज संग्रहण भी नहीं किया जाएगा। तेंदूपत्ता तोड़ने पर पाबंदी लगा दी। जनाक्रोश बढ़ा और खिलाफत का ऐलान हो गया।

घटनाओं के इसी क्रम के बाद आदिवासियों का आक्रोश पुलिस और माओवादियों दोनों के लिए उबलने लगा। (4) …आगे पढ़ें

क्रमश:

error: Content is protected !!