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क्या है ‘एक देश-एक चुनाव’ का सबसे बड़ा फायदा, विधि आयोग की रिपोर्ट ने बताया…

इम्पैक्ट डेस्क.

साल 2018 में विधि आयोग की तरफ से तैयार किए मसौदा सिफारिश में ‘एक देश एक चुनाव’ की वकालत की गई थी। कहा गया था कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ किए जाते हैं, तो देश को चुनावी मोड से निकाल विकास पर ध्यान लगाया जा सकता है। फिलहाल, केंद्र सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाकर ‘वन नेशन वन इलेक्शन’ की चर्चाएं बढ़ा दी हैं।

गिनाए थे फायदे
विधि आयोग की मसौदा रिपोर्ट में कहा गया था कि एकसाथ चुनाव कराने से जनता का पैसा बचेगा, प्रशासनिक और सुरक्षाबलों की व्यवस्था पर कम दबाव पड़ेगा और साथ ही सरकार की नीतियों को बेहतर ढंग से लागू किया जा सकेगा। यह भी कहा गया था कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ होने के चलते लगातार चुनाव की प्रक्रिया से निकल देश विकास से जुड़ी गतिविधियों पर ध्यान लगा सकेगा।

चुनौतियां भी हैं
विधि आयोग की रिपोर्ट में कहा गया था कि साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन किए जाने की जरूरत है। इसमें रीप्रेजेंटेशन ऑफ दी पीपुल एक्ट 1951 प्रावधानों में भी संशोधन की बात कही गई थी, ताकि उपचुनावों को भी साथ कराया जा सके। जानकारों का मानना है कि अगर एक देश एक चुनाव लागू किया जाता है, तो संविधान के कम से कम पांच अनुच्छेदों में संशोधन करना होगा।

इंडिया टुडे से बातचीत में पूर्व लोकसभा महासचिव पीडीटी आचार्य ने कहा था कि सबसे बड़ी चुनौती सभी राजनीतिक दलों को एक मंच पर लाना होगी। दिसंबर 2022 में भारत के 22वें विधि आयोग ने राजनीतिक दलों, नौकरशाहों, जानकारों समेत अन्य के लिए 6 सवालों का एक सेट तैयार किया था। हालांकि, अब तक फाइनल रिपोर्ट पेश नहीं की गई है।

खास बात है कि साल 1951-52, 1957, 1962 और 1967 में देश में विधानसभा और लोकसभा साथ ही हुए। हालांकि, उसके बाद साल 1968 और 1969 में कुछ विधानसभाओं और 1970 में लोकसभा भंग होने से हालात बदले। साल 1983 में भारत निर्वाचन आयोग यानी ECI ने एक साथ चुनाव कराए जाने का प्रस्ताव दिया था। इसके बाद विधि आयोग की तरफ से भी 1999 की रिपोर्ट में भी एक चुनाव की बात का जिक्र किया गया था।

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