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सुप्रीम कोर्ट का फैसला, उपहार की गई जमीन पर कब्जा लेना उसे स्वीकारने जैसा

news desk.

सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में व्यवस्था दी है कि उपहार की गई संपत्ति को लेने वाला यदि उसे लिखित में स्वीकार नहीं भी करता है, तो भी वह उपहार कानूनी रूप से योग्य माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि यह स्वीकारोक्ति उपहार लेने वाले के आचरण से तय की जाएगी, न कि लिखित सबूतों से।

जस्टिस एन वी रमन्ना कि पीठ ने फैसले में राजस्थान हाई कोर्ट का निर्णय पलट दिया, जिसने उपहार को इस बिना पर खारिज कर दिया कि इसे लेने वाले ने इसे स्वीकार किया है, इसका कोई सबूत नहीं है। पीठ ने अपने फैसले में कहा कि उपहार स्वीकार कर लिया गया है, इसका अनुमान इस बात से लगता है कि उसने संपत्ति का कब्जा ले लिया है या स्वयं गिफ्ट डीड ही उसके कब्जे में है।

संपत्ति स्थानांतरण एक्ट,1882 की धारा 122 के अनुसार गिफ्ट डीड के कानूनी होने की शर्तें यह है कि यह बिना किसी पैसे लिए की गई हो और पूरी तरह से स्वैच्छिक हो। इस तरह से संपति देने से दानकर्ता का पूरी तरह संपत्ति पर अपना मालिकाना हक छोड़ना है। उपहार लेने वाला देने वाले के जीवनकाल में इस संपत्ति को कभी भी स्वीकार कर सकता है। वहीं अचल संपत्ति स्थानांतरण के बारे में धारा 123 कहती है कि यह स्थानांतरण रजिस्टर्ड डीड पर होगा, जिसमें दानकर्ता के हस्ताक्षर हों और साथ में काम से काम दो गवाहों के भी हस्ताक्षर हों।

कोर्ट ने कहा कि धारा 122 यह कहीं नहीं बताती कि उपहार कैसे स्वीकार कर लिया माना जाएगा, न ही स्वीकार करने का कोई विशेष तरीका परिभाषित करती है। कोर्ट ने कहा कि उपहार मंजूर करना इससे माना जा सकता है कि लेने वाले ने संपत्ति पर कब्जा ले लिया। या गिफ्ट डीड उसने दान करने वाले से अपने कब्जे में ले ली है। उपहार के प्रभावी होने की एक ही जरूरत है और वह यह कि इसे दान देने वाले के जीवनकाल में ही स्वीकार करना होगा। 

यह है पूरा मामला : 
याचिकाकर्ता ने राजस्थान कृषि भूमि सीलिंग एक्ट,1973 की कार्यवाही को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट की एकल पीठ ने कहा कि इस पर धारा 6 की कार्यवाही लागू नहीं होगी, क्योंकि भूमि उपहार के जरिए पुत्र को स्थानांतरित की गई है। जो सवा 17 एकड़ भूमि बच गई है, उस पर सीलिंग लागू नहीं होती। लेकिन खंडपीठ ने इस फैसले को 2008 में पलट दिया और कहा कि गिफ्ट डीड को देखने से यह कहीं नहीं लगता है कि इसे स्वीकार किया गया है, यहां तक कि इससे लगता है कि लेने वाले को पता भी नहीं है कि उसे भूमि उपहार में दी गई है।

इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई और सवाल उठाया गया कि क्या रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड कानून की निगाह में सही है। सुप्रीम कोर्ट ने अपील स्वीकार कर ली और उपहार को सही मानकर 127 बीघा जमीन दौलत सिंह के पुत्र नरपत सिंह के नाम कर दी।

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