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विदेश में काम कर रहे लोगों ने 2022 में भारत भेजी रिकॉर्ड राशि… जानें कहां खर्च हो रहा यह पैसा?…

इम्पैक्ट डेस्क.

2020 में भारतीय प्रवासी रिकॉर्ड मात्रा में पैसे घर भेज रहे थे। उस वर्ष प्रवासियों ने करीब 80 अरब डॉलर भारत भेजे। महामारी के बीच भी प्रवासियों की ओर से पैसों का आना लगातार जारी रहा। विदेशों जो पैसा भारत आ रहा था उसका अधिकांश हिस्सा खाड़ी देशों में स्थित अपनी संपत्ति बेचकर आने वालों का था। उस दौरान महामारी जोरों पर थी। तेल की कीमतें गिर रही थीं। लोगों की नौकरियां जा रही थीं। ऐसे में बाहर बसे लोग अपनी संपत्तियों को बेचकर देश लौटना मुनासिब समझ रहे थे। ये लोग पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थे कि ये लोग कभी वापस जा भी सकेंगे या नहीं। ऐसे में उम्मीद की जा रही थी कि भविष्य में विदेशों से भेजी जाने वाली राशि में कमी आएगी। हालांकि ये अनुमान गलत निकले।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में आरबीआई के आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया गया है कि इस साल प्रवासियों की ओर से भारत भेजी गई रकम रिकॉर्ड 100 अरब डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है। दुनिया भर में फैले एक करोड़ 80 लाख से अधिक प्रवासी वर्ष 2022 में रिकॉर्ड राशि अपने घर भेज सकते हैं। तो, सवाल यह है कि आखिर इस उछाल का क्या कारण है और यह पैसा कहां से आ रहा है? शुरुआत करते हैं खाड़ी देशों से भेजी जाने वाली राशि से। भारत में भेजी जाने वाली कुल राशि में इसका 30% हिस्सा है और हम यहां और तेजी देख रहे हैं। माना कि 2020 में मध्य पूर्व के देशों में कई प्रवासियों ने अपनी नौकरी खो दी, लेकिन इन देशों की अर्थव्यवस्था काफी जल्दी खुल गई। तेल की कीमतों में भी जल्द ही उछाल आई। श्रम की मांग भी बढ़ने लगी। खाड़ी देशों में मुद्रास्फीति दुनिया के अधिकांश हिस्सों की तुलना में सीमित रही। लोगों के पास खर्च करने के लिए अधिक पैसा था और उन्होंने इसका कुछ हिस्सा अपने घर यानी भारत भेजा। 

हर से आने वाली राशि में इजाफा 
प्रवासियों की ओर से देश में भेजे जाने वाले पैसे की बढ़ोतरी से जुड़ा एक अहम तथ्य यह भी है कि डॉलर के मुकाबले भारतीय मुद्रा में गिरावट आई है।  अधिकांश मध्य पूर्वी मुद्राएं डॉलर से आंकी जाती हैं, इसलिए रुपये में गिरावट के बाद अब जब प्रवासी घर पैसा भेजते हैं, यहां भारत में अब पहले की तुलना में अधिक रुपये मिलते हैं। उदाहरण के लिए, यदि लोग दो वर्ष पूर्व 1,000 डॉलर घर वापस घर भेज रहे थे तो उन्हें 70,000 रुपये मिलते थे। अब वही व्यक्ति अगर 1,000 हजार डॉलर भेज रहा है तो उसे 81,000 से 82,000 रुपये मिल जा रहे हैं। इसलिए जब भी रुपये में गिरावट आती है आम तौर पर भारतीय प्रवासी एक-एक पैसा बचाने और उसे घर भेजने के लिए जद्दोजहद में जुट जाते हैं। कई लोग तो इन मौकों का फायदा उठाने के लिए कम ब्याज दरों पर पैसे उधार तक ले लेते हैं। यही कारण है कि विदेश से आने वाली राशि में इजाफा देखने को मिलता है।

अमेरिका में बसे प्रवासी देश में भेज रहे सबसे ज्यादा पैसा
एक और कारण है जिससे विदेश से आने वाले पैसे मे इजाफा दिख रहा है। विदेश जाकर कमाने वालों का अब पैटर्न बदल गया है। खासकर कुशल भारतीयों के लिए। अब लोग बड़ी तादाद में अमेरिका और कनाडा जैसी जगहों की ओर जा रहे हैं। अमेरिका में 50 लाख भारतीयों में से 57% वहां 10 से अधिक वर्षों से रह रहे हैं। इसका मतलब है कि वे भी अब अपनी कमाई की ‘पीक’ क्षमता पर पहुंच रहे हैं। वे सेवा क्षेत्र में उच्च अर्जक हैं। 2021 और 2022 में (कुछ महीने पहले तक) विदेशों टेक के क्षेत्र में काम कर रहे लोगों ने अपनी आमदनी में वृद्धि देखी। लोगों ने बचत की और उस अतिरिक्त नकदी में से कुछ को वापस घर भेज दिया। चूंकि अमेरिका और कनाडा जैसे विकसित देशों में बसे प्रवासी खाड़ी देशों के प्रवासियों की तुलना में काफी अधिक कमाते हैं, ऐसे में पैसे घर भेजने के मामले में उनका योगदान भी अधिक होता है। 2017 के बाद से यूएस, यूके और सिंगापुर से जो राशि देश में आती है वह प्रवासियों की ओर से भारत भेजी आने वाली कुल राशि का 26% से बढ़कर 36% हो गया है। अब अमेरिका से सबसे ज्यादा पैसा भारत आ रहा है और यह संयुक्त अरब अमीरात से आगे निकल गया है।

प्रवासियों की ओर से भेजी जानी वाली राशि देश की जीडीपी का महज 3%

हालांकि यहां एक बात महत्वपूर्ण है कि विदेश से प्रवासी भारतीय जो पैसा भेजते हैं वह हमारे देश की जीडीपी का महज 3% है, इसलिए ऐसा नहीं है कि हम इस पर निर्भर हैं। हां इतना जरूर है कि विदेशी से भेजी जानी वाली यह राशि आम तौर पर नियमित भारतीय परिवारों की मदद करते हैं। यह उनके जीवन स्तर को सुधारने में मदद करता है। यह परिवारों को कर्ज से बाहर निकलने में मदद करता है। यह पैसा बच्चों की शिक्षा पर खर्च होता है। इस पैसे से उन्हें घर बनाने में मदद मिलती है। सुपरमार्केट या बेकरी जैसे छोटे व्यवसाय स्थापित करने में भी इस पैसे का योगदान होता है। तो इतना तय है कि विदेशों से प्रवासी जितना अधिक पैसा भेजेंगे, यहां उनके परिवारवालों के जीवनस्तर पर उतना अधिक सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

5 वर्षों में खाड़ी के शीर्ष 5 देशों से जो पैसा केरल पहुंचता था वह लगभग आधा हुआ 
हालांकि विदेशी से रिकॉर्ड 100 बिलियन डॉलर की राशि भेजे जाने के सिक्के का एक दूसरा पहलू भी है, उसे भी जानना जरूरी है। वह दूसरा पहलू यह है कि इस रिकॉर्ड वृद्धि से सबका भला हुआ है ऐसा नहीं है। विशेष रूप से तटवर्ती राज्य केरल के मामले में तो यही सही है। केरल से खाड़ी देशों में सबसे अधिक ब्लू-कॉलर कार्यकर्ता प्रवास करते हैं। यही वह क्षेत्र है जो केरल के खर्च का एक बड़ा हिस्सा वित्तपोषित करता है। 2014 में केरल के शुद्ध  घरेलू उत्पाद का 36% (जो मूल रूप से राज्य का विकास है) प्रवासियों की ओर से भेजे गए पैसे पर निर्भर था। लेकिन 2018 तक यह घटकर सिर्फ 19% रह गया था। हालांकि प्रवासियों पर निर्भरता की कमी बुरी बात नहीं है लेकिन ये आंकड़े बताते हैँ कि लोग खाड़ी में पहले की तरह नहीं जा रहे हैं। शायद ब्लू-कॉलर तबके के लिए अब वहां रोजगार के अवसर पहले की तरह ना मौजूद हों। आरबीआई के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2015 में 7.6 लाख लोगों ने इमिग्रेशन मंजूरी के लिए आवेदन किया था जबकि 2019 में यह घटकर केवल 3.5 लाख हो गया है। पिछले 5 वर्षों में खाड़ी के शीर्ष 5 देशों से जो पैसा केरल पहुंचता था वह लगभग आधा हो गया है।

विदेशों में महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों के कुशल श्रमिकों की मांग बढ़ी

2016-17 में केरल को देश में प्रवासियों की ओर से भेजे जानी वाली राशि का 19% प्राप्त हुआ था। लेकिन 2021 तक यह 10% तक गिर गया। इसका असर राज्य की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। केरल एक ऐसा राज्य है जो अब भी प्रवासियों की ओर से भेजे गए पैसे पर बहुत हद तक निर्भर करता है। इस साल की शुरुआत में आरबीआई ने नोट किया कि केरल सबसे ज्यादा कर्ज के बोझ वाले शीर्ष 10 राज्यों में शामिल है। ऐसे में यह बात जाहिर है कि सौ बिलियन डॉलर की जो रिकॉर्ड राशि भारत भेजी गई केरल उसका सबसे बड़ा लाभार्थी नहीं है। आईआईटी-मद्रास के एक प्रोफेसर एम सुरेश बाबू के अनुसार विदेशों में नौकरी के लिए अब जिस तरह के प्रतिभाओं की जरूरत है वह केरल से नहीं निकल रहे हैं ऐसे में केरल की जगह महाराष्ट्र और दूसरे राज्यों के कुशल श्रमिकों को विदेशों में अधिक मौके मिल रहे हैं।

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