Editorialvichar

ओपी चौधरी ने एक नई लकीर खिंची है रायगढ़ में… अगले चुनाव में पूरे प्रदेश का यही ट्रेंड बनेगा…!

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सुरेश महापात्र।

छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव में जीत—हार का फैसला सामने आने के बाद कुछ ऐसी सीटें हें जिन्हें लेकर देशभर में चर्चा हो रही है। पर एक ही ऐसी सीट है जिसे लेकर चुनावी प्रयोग का नया कान्सेप्ट अब जनता के सामने है। यह कान्सेप्ट आने वाले विधानसभा चुनावों में कम से कम छत्तीसगढ़ की शिक्षित आबादी को पूरी तरह से प्रभावित करेगा। नेताओं की जवाबदेही तय हो जाएगी।

नेताओं को केवल अपनी पार्टी के घोषणापत्र के दम पर जनता का समर्थन नहीं मिलेगा बल्कि जीत हासिल होगी तो हर उस काम के प्रति प्रतिबद्धता साबित करने की चुनौती होगी। इस तहर का नवीन प्रयोग छत्तीसगढ़ के इकलौते रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र में भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी ओम प्रकाश चौधरी ने किया। नौकरशाह से नेता बने ओपी चौधरी ने 2018 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से त्यागपत्र देकर सभी को चौंका दिया। महज 13 बरस की अफसरी में तीन जिलों के कलेक्टर बने।

सबसे पहला मौका दक्षिण छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में मिला। 2010 में वे रायपुर नगर निगम के आयुक्त पद से दंतेवाड़ा कलेक्टर बनकर पहुंचे। इस समय दक्षिण बस्तर में माओवादियों का बड़ा ग्रहण था। सुकमा को पृथक राजस्व जिला के रूप में पहचान नहीं मिली थी। उस समय अब के सुकमा जिला के तीन गांवों में आगजनी को लेकर पुलिस और प्रशासन के बीच बड़ी खाई पैदा हो गई थी। तत्कालीन कलेक्टर आर प्रसन्ना और एसएसपी एसआरपी कल्लूरी के बीच अनबन पूरे देश का ध्यान खींच रही थी।

2010 में ही अब के सुकमा जिले के ताड़मेटला में सीआरपीएफ के 76 जवानों की शहादत के बाद पूरी दुनिया में माओवादियों के आतंक को लेकर बड़ी बहस चल रही थी। दंतेवाड़ा जिला के अधिकतर गांवों में स्कूल बंद हो चुके थे। बच्चों की शिक्षा को लेकर गहरी चिंता का दौर रहा। स्कूलों में विज्ञान और अंग्रेजी के शिक्षकों की कमी और 10वीं की परीक्षा के बाद बच्चों की शिक्षा को लेकर ग्रहण जैसी स्थिति रही। उस परिस्थिति सें दंतेवाड़ा जिले को बाहर निकालने में ओपी चौधरी की कार्यकुशलता आज भी साक्षात है।

जिले की पूरी छवि बदल गई। तमाम नकारात्मक हालत के बावजूद सबसे बड़ी सकारात्मक पहल का परिणाम पूरी दुनिया के सामने आने लगा। देशभर की मीडिया में माओवादियों की समस्या के जगह पर विकासात्मक प्रयोग को लेकर चर्चा होने लगी। शिक्षा केंद्रीत योजनाओं ने जिले की पहचान बदल दी। बतौर भारतीय प्रशा​सनिक सेवा के अधिकारी के तौर पर ओपी चौधरी को राष्ट्रीय स्तर पर केंद्र सरकार ने पुरस्कृत किया। इसके बाद जांजगीर जिले में कलेक्टर बनाए गए।

वहां भी कई प्रयोग किए सारे प्रयोग सफल रहे। इसके बाद ओपी चौधरी को रायपुर जिले की कमान सौंपी गई। वे यहां कलेक्टर रहते अपने सफल कार्यकाल के जो प्रयोग किए वे आज भी चौंका रहे हैं। नालंदा परिसर इसमें से एक सबसे बड़ा उदाहरण है। यहीं से ओपी चौधरी ने नौकरशाही को छोड़ जननेता बनने की राह चुन ली।

इसके बाद उनकी जिद को जीते जिस किसी ने देखा है उसे पता है कि ओपी जमीन से पैदा हुआ है। पत्थर का सीना चीरकर भारतीय प्रशासनिक सेवा की परीक्षा को पास कर जिस तरह से पहली ही बार में सफलता हासिल की है तो हार मानने का सवाल नहीं था… शुभचिंतकों में उनके भविष्य को लेकर चिंता रही। कमोबेश सारे शुभचिंतकों की यही राय रही ​कि ओपी ने फैसला गलत ले लिया। वे आपस में बातें करते राजनीति अब अच्छे लोगों के लिए है ही नहीं। सवाल यही था कि सीधा—सादा यह युवा अच्छी खासी नौकरी छोड़ राजनीति के दलदल में क्यों उतर गया?

समस्याओं से नहीं भागने वाले अपनी जिजीविशा को अंतरमन तक समझ रखने वाले यह जानते हैं कि ‘फैसला ले लिया तो सही साबित करके दिखाओ…’ और यही वह जिद है जिसने ओपी को संभवत: डिगने से रोके रखा। जिस अफसर के कंधे की ओर उंगली दिखाना संभव नहीं था अब उसके कंधे पर ना जाने कितने हाथ लगने लगे। पहले चुनाव के खरसिया में चुनावी प्रचार अभियान के दौरान युवा ओपी को जाने अनजाने हर किसी के सामने झुकते देखकर लगता था अरे ये क्या हासिल करना चाह रहे? मन में सैकड़ों सवाल और जवाब नदारत! 2018 का परिणाम धक्क करने वाला रहा। पहली बार चुनाव में कम समय था ज्यादा प्रयोग संभव नहीं था। सो अपनी माटी की पहचान के सहारे चुनावी मैदान में जोर आजमाया। पराजित हुए पर हारे नहीं…!

पूरे पांच साल तक लगातार जमीन से जुड़े रहे। कमाई के लिए खेती को जरिया बना लिया। मुझे नहीं लगता कि ओपी चौधरी को किसी तरह की पेंशन मिल रही होगी। क्योंकि पेंशन के लिए एक वक्त निभाना होता है सरकारी सेवा में! वे हार नहीं मानने वाले में से एक हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी को अंतरमन से जीना शुरू ​कर दिया। पार्टी की हर नीति और रीति के ध्वजवाहक हो गए। मैंने अपनी एक मुलाकात में पूछा कि नागपुर का प्रशिक्षण भाजपा की असली कसौटी है? उन्होंने कहा कि वे लगातार संपर्क में हैं।

आप कल्पना कर सकते हैं कि एक ऐसा युवा जिसकी शिक्षा की दिशा अलग रही हो। जिसकी कार्यशैली बतौर कलेक्टर अलग रही हो। इसके बाद भी वह नए वातावरण में खुद को ढालने के लिए तैयार हो… बिना किसी किंतु—परंतु के… आज के समय में ऐसे लोगों को देखना संभव नहीं है पर मैनें ओपी चौधरी में इसे साफ देखा है। इनका राजनीतिक कैरियर कहां तक जाएगा? आज भी मेरे मन का यह सबसे बड़ा सवाल है। क्योंकि राजनीति को जितना मैने करीब से देखा है लगता है निष्कपटी, निर्मोही, अति दूर दृष्टा, लाभ—हानि से निश्चिंत लोग कम ही टिक पाते हैं।

पूरे पांच साल तक भारतीय जनता पार्टी के विभिन्न पदों में क्रियाशील रहे। भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने बहुत सी जिम्मेदारियों को सौंपा उन्होंने निभाया। पूरी शालीनता के साथ पार्टी के हर कैडर के साथ जुड़कर काम करते रहे। बस्तर से सरगुजा तक युवाओं के साथ जुड़े। भाजपा की नीति के वाहक हुए और अंतत: दूसरी बार भाजपा से टिकट हासिल करने में कामयाब रहे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी ओपी चौधरी के संकल्प के साथ खड़े दिखे। इन दो बड़े नायकों ने अपना भी पर्याप्त समय ओपी की निष्ठा के प्रति समर्पित किया।

इन सबके बीच ओपी चौधरी अपनी अलग ही लकीर भी खिंच रहे थे। वे जिस विधानसभा के लिए अपनी तैयारी कर रहे थे उसकी कमियां और खूबियों को अध्ययन किया। पूरी कार्ययोजना बनाई और ऐन चुनाव के समय जनता के सामने रख दिया। सिविल सेवा की परीक्षा की तरह चुनावी राजनीति की परीक्षा की ऐसी तैयारी शायद ही कभी किसी ने देखी हो। इस चुनाव के दौरान घोषणापत्र की तैयारी में भी वे टीम का हिस्सा बने रहे। पार्टी की घोषणापत्र से इतर वे अपनी कार्ययोजना को लेकर जनता के बीच पहुंच चुके थे। जिसका जवाब विपक्ष के पास नहीं था। अच्छे से जान लें यही वह लकीर है जिसमें आने वाले चुनाव में पूरे प्रदेश की चुनावी राजनीति की दिशा बदलने वाली है।

रायगढ़ के विकास के लिए एक पूरा प्लान तैयार किया गया है। जिसके बारे में जनता से रायशुमारी की है। लोगों को बताया है कि वे इसका समाधान किस तरह से करेंगे। किसी इलाके के लिए क्या प्लान है? और किस समस्या का निराकरण कैसे होगा? जनता को मुफ्त के पैसे से ज्यादा यह पसंद है कि नेता उनके लिए सोचे… उनके बच्चों के ​भविष्य के बारे में अपना नजरिया बताए!

सोचिए ओपी का यह नवीन प्रयोग 90 विधानसभा सीटों तक पहुंचेगा तो इसके क्या परिणाम होंगे? जनता अपने प्रत्याशियों से सवाल करेगी अपने इलाके के बारे में… जिसे जीत दिलाकर भेजेगी उससे हिसाब मांगने लगेगी! केवल छद्म वेश धारण कर जनता के मर्म का वोट हासिल करना किसी भी प्रत्याशी के लिए कठिन हो जाएगा… यदि आपको ऐसा नहीं लगता है तो थोड़ा इंतजार करिए ‘ओपी मॉडल आफ इलेक्शन पूरे देश में लोकतंत्र को नई दिशा दिखाने के लिए तैयार हो रहा है।’ यदि यह मॉडल लागू हो गया तो जमीन पर मुद्दे बदल जाएंगे जात—पात से परे धर्म—अधर्म को पिछे छोड़कर काबिल युवा चुनाव की तैयारियों को सिविल सेवा की परीक्षा की तरह गंभीरता से लेगा। राजनीति का पचड़ा खत्म होकर जनमानस को काबिल बनाने का काम हो जाएगा… शिक्षा की तरह!

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