सरकार कहती है नक्सलवाद “नियंत्रण ” में और नक्सली “बैकफूट” पर तो हवाई हमले क्यों : मनीष कुंजाम…
हवाई हमले को लेकर आदिवासी महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष का सरकार से सवाल…
25 मई को सिलगेर से सुकमा तक महासभा करेगी पदयात्रा… (पार्ट–4)…
इंपैक्ट डेस्क.
बीजापुर। जगरगुंडा समेत पामेड़ इलाके से सटे गांवों में डोन हमले का आरोप लगा रहे हजारों ग्रामीणों के विरोध को लेकर अखिल भारतीय आदिवासी महासभा के राष्टीय अध्यक्ष और सीपीआई के संभाग सचिव मनीष कुंजाम ने सरकार से सवाल किया है। मनीष ने पूछा है कि जब सरकार खुद कहती है माओवाद पर नियंत्रण है और माओवादी बैकफूट पर है, तो डोन हमले की आवश्यकता क्यों पड़ रही है?
नक्सलवाद पर सरकार के बयान और हालातों में यह अंतर क्यों?
पत्रकारों से चर्चा में मनीष का का कहना है कि जिन इलाकों में बमबारी हुई है, खबरें उन तक देर से पहुंची जरूरी, लेकिन उन्होंने अपने स्तर पर घटना की तस्दीक की है जिसमें ग्रामीणों के आरोप सच साबित होते है, हालांकि इसमें कोई जानमाल का नुकसान नहीं हुआ, भले ही पुलिस घटना को सिरे से नकार रही हो, लेकिन हकीकत वही है, जो ग्रामीण कह रहे है। उनका कहना है कि यह आदिवासियों के जीवन से जुड़ा सवाल है, उन इलाकों में लोग आज भी भयभीत है। कब किधर क्या स्थिति निर्मित हो जाए, कहना मुश्किल है। जुडूम के वक्त भी बड़ी बड़ी घटनाएं हुई। हत्याएं, आगजनी जैसी घटनाएं हुई और अब आसमान से बमबारी, वो भी अपने ही देश के लोगों पर, यह बड़ा चिंता का विषय है। ताज्जुब तो तब होता है जब सरकार नक्सलियों पर नियंत्रण, बैकफूट पर होने का दावा करती है और दूसरी ओर आसमान से बमबारी करती है। मनीष के मुताबिक बस्तर में पांचवी अनुसूची को कड़ाई से लागू कर दिया जाए तो कार्पोरेट घरानों के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी, इसलिए सरकार पेसा कानून, पांचवी अनुसूची के मुद्दे पर चुप्पी साधे हुए है।
सरकार के ही एक मंत्री ने उनसे चर्चा में इस बात का जिक्र किया था कि अगर बस्तर में ऐसा होता है तो उनकी सरकार दोबारा सत्ता में नहीं आ पाएगी। दिवंगत महेंद्र कर्मा का जिक्र करते उनका कहना था कि छठी अनुसूची के विरोध-समर्थन की पृष्ठभूमि में चुनाव लड़े थे, तो निर्दलीय ही जीत गए थे। मनीष का आरोप है कि बस्तर के आदिवासियों को उनके संवैधानिक अधिकार नहीं मिल रहे है, जिसके वे हकदार है। जहां ग्राम सभाओं को विशेषाधिकार है, वहां ग्राम सभा की अनुमति के बिना सड़कें बन रही है, बलपूर्वक कैम्प खोले जा रहे हैं, जोकि पेसा कानून का उल्लंघन है, इसलिए तमाम मुद्दों हालातों को लेकर अखिल भारतीय आदिवासी महासभा, सीपीआई एक बड़ी जमीनी लड़ाई लड़ने जा रही है, जिसका आगाज 25 मई को सिलगेर से होगा। सिलगेर से सुकमा तक 11 दिनों की पदयात्रा हम करने जा रहे हैं, जिसके लिए प्रशासन से अनुमति मांगी गई है।
संपदाओं पर मूलवासियों का अधिकार नहीं
मनीष का आरोप है कि बस्तर में मौजूद खनिज, वन संपदाओं पर मूलवासियों का अधिकार ही खत्म कर दिया गया है। अगर संपदाओं के दोहन में मूलबांशिंदों को प्राथमिकता मिलती तो उनका जीवन संवर जाता मगर सरकार ऐसा कतई नहीं चाहती। सरकार चाहती तो तंेदूपत्ता संग्रहण का एकाधिकार वनवासियों को दिया जा सकता था। वो चाहे स्व सहायता समूहों का गठन कर ही क्यों ना हो।
आज बस्तर में बेरोजगारों की तादात लाखों में है। जिनकी कोई पूछ परख नहीं है। जबकि बेरोजगारों के भविष्य की जिम्मेदारी सरकार की है।