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प्रदेश में लुप्त हो रही जीव-जंतुओं की प्रजाति को बचाने की कवायद

भोपाल.
प्रदेश को टाइगर स्टेट का दर्जा मिलने के बाद वन विभाग प्रदेश के अन्य जीव- जंतुओं को बचाने के लिए वन विभाग की अनुसंधान शाखा पहले से कहीं ज्यादा संवेदनशील हो गया है। प्रदेश में कई ऐसे जीव- जंतु है जो संकटग्रस्त प्रजाति में शुमार होने की कगार पर है। बदलते जलवायु परिवर्तन के चलते जलीय जंतुओं के अलावा तितली, जुगनू, बिच्छु की कुछ ऐसी प्रजातियां हैं जो आने वाले समय में लोगों के  किस्सों और कहानियों में केवल सुनाई देंगे।

कमोवेश यही स्थिति वनस्पतियों को लेकर है। जिस तरह से आए दिन कंक्रीट के जंगल हमारे आस- पास तैयार हो रहे है उसका सबसे ज्यादा नुकसान वनस्पतियों के अलावा छोटे- जीव जंतुओं को उठाना पड़ रहा है। प्रदेश में एक दर्जन से ज्यादा ऐसी वनस्पति है जिन पर विलुप्त होने का संकट मंडरा रहा है। इतना सब कुछ होने के बावजूद भी अगर अन्य राज्यों से तुलना करें तो प्रदेश की स्थिति थोड़ी सी बेहतर है।

अनुसंधान शाखा की माने तो प्रदेश में जिस तरह की जैव विविधता फैली हुई है अगर इसे समय रहते हुए विभाग संरक्षित करने में कामयाब होता है तो आने वाले समय में प्रदेश में विलुप्त होने वाली प्रजातियों को आसानी के साथ बचाया जा सकता है। यही वजह है कि अनुसंधान शाखा इन दिनों जैव विविधता और पर्यावरण संरक्षण को लेकर शोध करा रहा है। अनुसंधान शाखा के अधिकारी पीके सिंह ने बताया कि जैव विविधता बढ़ाने को लेकर विभाग शोध करा रहा है। शोध का परिणाम दो से तीन साल के अंदर आने की संभावना है। शोध में अगर विभाग को बेहतर परिणाम मिला तो विभाग अपने प्रोजेक्ट को मैदान में उतारेगा। इसके साथ ही सागोन , बांस के टिशु कल्चर पर इन दिनों शोध कार्य तेजी से हो रहा है। विभाग का दावा है कि अगर शोध सफल साबित होता है तो आने वाले समय में जैव विविधता को बचाने में विभाग काफी हद्द तक सफल साबित होगा।

खनन क्षेत्रों में पौधारोपरण पर फोकस
प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में खनिज प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। बाक्साइट, मैंगनीज, तांबा, लोहा, संगमरमर सहित अन्य खनिज प्रदेश के एक दर्जन जिलों में पर्याप्त मात्रा में मिलता है। जबलपुर, कटपी, बैतुल, बालाघाट, छिंदवाड़ा, नरसिंहपुर, ग्वालियर, मुरैना, खरगोन, इंदौर, रीवा और शहडोल रेंज को लेकर अनुसंधान शाखा संवेदनशील है। अनुसंधान शाखा खनन वाले क्षेत्रों में कौन से पौधे लंबे समय तक जीवित रहेंगे ऐसे पौधों को लेकर विभाग शोध करा रहा है। अनुसंधान शाखा के अधिकारियों की माने तो पर्यावरण संरक्षण के लिए विभाग इन स्थानों को फिरसे हरा- भरा बनाने के लिए प्रयास तेज कर दिया है। दो- से तीन साल के अंदर विभाग इन स्थानों पर पौधारोपण कराएगा। जिससे पर्यावरण संतुलन बना रहे।

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