Articles By NameEditorialNational NewsState News

अपने ही गिरोहबंदी का शिकार होती कांग्रेस… शीर्ष नेतृत्व की निर्णय क्षमता की अग्निपरीक्षा में राहुल पास या फेल…

  • सुरेश महापात्र।

कांग्रेस हाईकमान और आलाकमान ये दो शब्द इन दिनों सुर्खियों में रहे। हाईकमान और आलाकमान शब्द का निहितार्थ साफ है कि इनके पास सब कुछ सुधारने और बिगाड़ने का अधिकार है। यह शब्द लोकतांत्रिक तो कतई नहीं है। पूरी तरह व्यक्तिवादी इस शब्द का धड़ल्ले से उपयोग कांग्रेस की परंपरा रही है। जिन्हें इन शब्दों से गुरेज हुआ वे बाहर निकल गए या निकाल दिए गए…।

जीर्ण—शीर्ण कांग्रेस को ताकत दिलाने की जिम्मेदारी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की शहादत के अरसे बाद सोनिया ने तब संभाली जब बतौर कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी ने कांग्रेस को गांधी परिवार से बाहर निकालने की कोशिश की। लंबे समय तक नेहरू—गांधी परिवार के खासमखास सीताराम केसरी को अखिल भारतीय कांग्रेस कार्यालय से कैसे निकाला गया था यह पुराने लोग तो भूले ही नहीं होंगे।

पर केसरी के निकाले जाने के बाद सोनिया ने कांग्रेस को नई मजबूती प्रदान की और अपने पैरों पर खड़ा किया। विदेशी मूल के मुद्दे को लेकर शरद पवार और पीए संगमा ने सबसे पहले साथ छोड़ा। उसके बाद नारायणदत्त तिवारी और अर्जुन सिंह भी अलग हो गए। उसके बाद कांग्रेस में हाईकमान की परंपरा शुरू हुई। सोनिया पार्टी की सर्वेसर्वा हुईं और उन्होंने कांग्रेस को एक बार फिर खड़ा कर दिया।

जिस दौरान यह सब कुछ घटित हो रहा था उस समय राहुल की उम्र करीब 22—25 साल की रही होगी। सोनिया गांधी जब 2004 में यूपीए की सरकार बनाने में कामयाब हो गईं तो उनके अध्यक्षीय कार्यकाल की यह सबसे बड़ी उपलब्धि साबित हुई। बहुमत के बावजूद सोनिया ने पीएम पद स्वीकार नहीं किया। वे यहीं से हाईकमान के तौर पर स्थापित हो गईं। वे यूपीए की चेयरपर्सन बनीं और सरकार से उपर स्थापित कर दी गईं।

सोनिया गांधी के हाईकमान बनने के बाद यह साफ हो गया था कि आने वाले समय में राहुल के हाथ में कांग्रेस की कमान सौंप दी जाएगी। यानी नेहरू और इ्ंदिरा की विरासत को राहुल के माध्यम से कांग्रेस आगे बढ़ाएगी। फिलहाल यही पूरा परिदृश्य स्पष्ट है। बस थोड़ा सा चित्र बदला है कांग्रेस की एक बड़ी तस्वीर में अब सोनिया और राहुल के साथ प्रियंका भी चस्पा हो गई हैं।

2009 में यूपीए—2 के बाद कांग्रेस के खिलाफ जो माहौल खड़ा हुआ उससे निजात मिलने की बजाय हालात लगातार बद से बदतर होते जा रहे हैं। संगठन के स्तर पर कांग्रेस पूरी तरह नेस्तनाबूद हो चुकी है। बावजूद इसके कांग्रेस देश में अब भी दूसरे नंबर की पार्टी है जिसके पास पर्याप्त जनाधार का आधार है। बस इसके लिए जमीन पर मेहनत और मिल रहे अवसर से परिणाम प्रदर्शित करने की जिम्मेदारी है।

2014 से 2019 के बीच में कांग्रेस की पूरे देश में भद पिटने से तब बच गई जब 2018 में पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भाजपा के विकल्प के तौर पर जनता ने कांग्रेस को भारी बहुमत देकर अवसर प्रदान किया। यह देशभर में खिसकते जनाधार के बाद कांग्रेस के लिए प्राणवायु के समान ही था। इसने 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीद जगाने का काम किया। कांग्रेस ने ताकत झोंकी पर परिणाम नहीं सुधरा। यहां कांग्रेस के लिए आत्मचिंतन की उम्मीद सभी कर रहे थे।

इसका मतलब निकाला गया कि कांग्रेस को उन राज्यों में जनता से दुबारा स्वीकार किया जहां वे भाजपा के लंबे शासन के बाद परिवर्तन की तलाश कर रहे थे। यानी कांग्रेस विकल्प के तौर पर खड़ी हो सकती थी। राष्ट्र के सामने भी एक बड़ा विकल्प देने की जिम्मेदारी कांग्रेस के पास थी जिसमें वह चूक कर बैठी। कांग्रेस अपने परंपरागत तौर तरीके के साथ सामने आई जिसे जनता ने अस्वीकार कर दिया। कांग्रेस यह भूल गई कि राहुल गांधी को पेश करना भाजपा के लिए पूरा मैदान तैयार करने जैसा ही हो जाएगा।

2014 के बाद से ही नेहरू, सोनिया और राहुल भाजपा के टार्गेट में रहे। सुनियोजित तरीके से जनमानस के भीतर राहुल को लेकर जो माहौल खड़ा किया गया उससे अब तक बाहर निकल पाना संभव नहीं हो सका है। ऐसे समय में 2018 के विधानसभा चुनाव के दौरान जिन राज्यों में भाजपा सत्ता से बाहर हुई उसकी क्रेडिट भले ही हाईकमान के नाम पर राहुल गांधी को देने की कोशिश की गई उससे जनता को इत्तेफाक ही नहीं रहा।

लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस का संगठन जिस तरह से नष्ट हुआ उसकी रिपेयरिंग भी सही तरीके से नहीं की गई। बावजूद इसके कांग्रेस अपने भीतर हाईकमान और आलाकमान की परंपरा को आगे बढ़ाती रही। जिसका परिणाम अब सबके सामने है। पूर्ण बहुमत के सत्ता के बावजूद राजस्थान, पंजाब अब छत्तीसगढ़ में पार्टी के भीतर का हाल जग जाहिर है। इस हालत के लिए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व सीधे तौर पर जिम्मेदार है। राज्यों में पार्टी के अंदरूनी मसलों को सही समय पर निपटारे के बजाए उसे लेंदी प्रोसेस में डालकर अटकाना, लटकाना और झुलाना पार्टी के लिए बदनामी का कारण दिख रहा है।

छत्तीसगढ़ के मामले में कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व और समूची टीम बुरी तरह फेल हुई है। हौले से शुरू हुई बात दिल्ली की सड़कों पर हंगामे तक पहुंची। हाईकमान और आलाकमान के नाम पर भीड़ रायपुर से दिल्ली आती जाती रही। अंदरखाने से लेकर बाहरखाने तक हर बात लोगों की पहुंच में रही। ​रायपुर से निकलते समय सीएम भूपेश का अंतिम बयान गौर करने लायक है ‘मुझे हाईकमान ने बुलाया है मैं दिल्ली जा रहा हूं!’ ठीक इससे पहले मीडिया में खबरें आईं कि छत्तीसगढ़ में ढाई बरस के मसले पर अंतिम फैसला लेने के लिए सीएम को बुलावा भेजा गया है।

48 घंटे के भीतर ​राज्य के मुख्यमंत्री दो बार हाईकमान से मुखातिब हुए। तमाम बातों को दबाने की नाकाम कोशिश की गई। दो लोगों के बीच हुई बात भी बाहर तैरती रही। किसी राज्य के नेतृत्व परिवर्तन को लेकर चल रहे विषय पर विकास पर चर्चा जैसी बचकानी बातें मीडिया को परोसी गईं। क्या इन सब घटनाओं का प्रभाव राज्य की राजनीति में नहीं पड़ेगा?

यदि कांग्रेस के नेता यह मान रहे हैं कि नहीं पड़ेगा तो वे जमीनी हकीकत से मुंह मोड़ रहे हैं। यह भी सीएम भूपेश बघेल का दुर्भाग्य ही होगा कि उन्होंने सत्ता संभाली उसके बाद से समूचा विश्व कोविड के प्रभाव से जुझ रहा है। यहां तक की नई गठित सरकार को अपना पहला बजट पेश करने तक का मौका नहीं मिला।

प्रदेश में आर्थिक विकास के तमाम ढिंढोरे भले ही पिटे जाएं पर जमीनी हकीकत विपरित है। पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने सुराज के नाम पर तमाम ढकोसले किए पर हालत सही नहीं थी। आज भी प्रदेश में ब्यूरोक्रेशी सबसे बड़ी समस्या है। जिलों में कलेक्टरों और जनप्रतिनिधियों के मध्य स्पष्ट तौर पर समन्वय की भारी कमी है। ब्यूरोक्रेशी अपने मुताबिक फैसले ले रहा है आप पूरे प्रदेश में सर्वे करा लीजिए करप्शन सबसे बड़ी समस्या है। सरकार के तमाम दावों के बाद भी बगैर पैसा लिए—दिए किसी का काम नहीं हो रहा।

कांग्रेसी कार्यकर्ता से लेकर सबसे निचले पायदान में पैसे के अभाव में काम नहीं होने का रोना सब रो रहे हैं। कई जिलों में दो—दो बार सरकार कलेक्टर बदल चुकी है। बावजूद इसके कुछ भी सही होता नहीं दिख रहा है। यदि ये सारे तथ्य गलत हैं तो मैं माफी मांगने को तैयार हूं। बस्तर में कांग्रेस के नेता साफ जान रहे हैं कि बीते ढाई बरस में हालत बहुत बिगड़ चुकी है। अब ऐसी स्थिति है कि चाहकर भी 2018 का परिणाम रिपीट नहीं हो सकता। कितनी सीटें बचेंगी और कैसे बचेंगी यह कोई नहीं जानता।

ऐसे समय में कांग्रेस के हाईकमान को क्या यह शोभा देता था कि वे देशभर में दो तिहाई बहुमत वाले राज्य की पूरे देश में किरकिरी करवाए। यह पूर्ण तौर पर कांग्रेस नेतृत्व की ही जिम्मेदारी थी कि बिना नेशनल ड्रामा किए वह ठोस निर्णय लेती। सीएम भूपेश को राज्य की स्थि​ति के बारे में सचेत कर ताकतवर बनाती या उन्हें सीधे तौर पर सत्ता से बाहर करती। पर ऐसा कुछ हुआ नहीं। अब भी समूचे प्रदेश में आशंका और संभावना के चलते अस्थि​​रता कायम है।

हाईकमान किसी सीएम से दिल्ली में अपने निवास पर तीन—तीन घंटे ​की दो—दो मुलाकात के बाद भी राह निकाल नहीं पाएं और अंत में हर बात के लिए मां और बहन से संवाद की खबरे बाहर निकलवाएं यह क्या कमजोरी का प्रदर्शन नहीं है? प्रियंका वाड्रा छत्तीसगढ़ की राजनीति में किस हैसियत से दखल दे रही हैं? वे महासचिव के तौर पर उत्तर प्रदेश की प्रभारी हैं तो छत्तीसगढ़ में किसी फर्जी महिला को दंतेवाड़ा के कोटे से किसी निगम, मंडल का सदस्य बनाया जाने में उनका नाम आना क्या सुशोभित होता है? क्या इसका नुकसान आगामी चुनाव में कांग्रेस को नहीं उठाना पड़ेगा?

यदि राज्य के मसलों पर एक परिवार की तीन सदस्य ही विचार करने के लिए तैनात हैं तो संगठन के तौर पर राज्य अध्यक्ष से लेकर राज्य प्रभारी व पार्टी के प्रभारी महासचिव की भूमिका को गौण करना क्या कांग्रेस के संगठन के हिसाब से उचित होगा? ऐसे बहुत से सवाल अब छत्तीसगढ़ में तैर रहे हैं। 

कांग्रेस हाईकमान के तौर पर राजनैतिक संतुलन के बजाय स्पष्ट व पारदर्शी निर्णय से स्थिर सरकार देने की जिम्मेदारी अब किसकी है? सीएम भूपेश बघेल ने दिल्ली से लेकर रायपुर तक अपना शक्ति प्रदर्शन कर दिया है। यदि उनके पास पर्याप्त जनाधार और विधायकों का भरोसा है तो ऐसी सरकार की छिछालेदरी की जिम्मेदारी क्या राहुल गांधी उठाएंगे?

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के पास फिलहाल खुद को मजबूत साबित करने का अवसर है। उनके वर्तमान के फैसले ही उनका भविष्य गढ़ेंगे। जिस तरह से कांग्रेस गिरोहबंदी का शिकार होती जा रही है उससे जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत यर्थाथ में कांग्रेस शासित राज्यों में साफ दिखाई देने लगेगी। यानी जिसके पास पैसा और ताकत है उसी के मुताबिक फैसले… पर राहुल जी यह साफ जान लें कि जनता जब मतदान करने जाती है तो इन सब बातों को भी देखती है…!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!