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छत्तीसगढ़ में अब तक भाजपा का खेल समझ से बाहर…! नेता, संगठन केवल मोदी—शाह के भरोसे…

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सुरेश महापात्र।

छत्तीसगढ़ में राजनीति इतनी भी कठिन नहीं है जितना भारतीय जनता पार्टी ने जटिल बना दिया है। 90 विधान सभा सीट वाले इस क्षेत्र में कांग्रेस की पहाड़ जैसी बहुमत के सामने भाजपा की जोर आजमाईश जुबानी होकर रह गई है। कुशाभाउ ठाकरे परिसर में बैठकों का दौर चल ही रहा है। 15 दिन के भीतर प्रधानमंत्री मोदी की दो—दो सभा हो चुकी है। दो दिन बाद तीसरी सभा की तैयारी है। आज पीएम मोदी की सभा से एक बात बाहर आ गई है कि यहां चुनाव में ‘मोदी का चेहरा और मोदी की गारंटी’ पर लड़ने की तैयारी है।

पीएम मोदी की सभा से पहले पिछले बार भी अमित शाह रायपुर पहुंचे थे। कुशाभाउ ठाकरे परिसर में बैठको का दौर चला। केंद्रीय मंत्री मनसुख मांडविया भी यहां पहुंचे और संगठन के साथ तालमेल कर काम संभाल रहे हैं। पर सबसे बड़ी बात टिकट को लेकर है। पहले चरण में भाजपा ने 21 नामों का ऐलान कर चौंका दिया। दो सांसदों को टिकट दिया। सीएम के सामने सांसद को खड़ा किया। और अब बारी है उन सीटों की जहां से सत्ता के सूत्र तलाशने का काम होना है।

भाजपा के एक नेता ने दबी जुबान से एक बात बताई थी अमित भाई शाह के पहले दौर की बैठक के दौरान हुए घटनाक्रम की। यह बात बाहर नहीं निकली। जिससे इन बातों के भीतर का द्वंद भी अंदर ही अंदर समाया रह गया।

आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि इस चुनावी मौसम की पहली बैठक के बाद अमित भाई शाह ने अचानक तीन बार से पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह को निर्देशित किया कि वे तत्काल 90 नए नामों की सूची दें। प्रत्यक्षदर्शी के मुताबिक डा. रमन अकबका गए। लिस्ट की बात तो दूर उनसे कुछ कहते भी नहीं बन रहा था। झुंझलाते अमित भाई शाह ने कहा ’15 साल मुख्यमंत्री रहकर आप 90 नए नाम तक नहीं दे सकते! कैसा शासन चलाया आपने?’ इस संवाद के बाद पूरे हाल में सन्नाटा छा गया। कोई कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं रहा।

भाजपा की इस समय भी यही मुसीबत है। किस विधानसभा से किस चेहरे पर दांव लगाया जाए इसके लिए संगठन प्रभारी, प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर चुके हैं। एक—एक विधानसभा क्षेत्र में दर्जनों बैठकों के बाद भी हालत जस की तस बनी हुई है। भाजपा की असली मुसीबत उनके कार्यकर्ता हैं।

15 बरस लंबी सत्ता के बाद जमीन का कार्यकर्ता बड़ा नेता बन चुका है। और नीचे दिहाड़ी मजदूरों से संगठन का काम कराने का आदि हो गया है। परिवर्तन यात्रा के प्रथम चरण के दौरान दंतेवाड़ा में यह साफ देखने को मिला जब भाजपा का झंडा थामकर मजदूर काम में जुटे थे। 

यही वह दंतेवाड़ा है जहां 2003 की परिवर्तन यात्रा के दौरान भाजपा के इस समय के दिग्गज नेता बृजमोहन अग्रवाल, राजेश मूणत बिजली के खंबों में भाजपा का झंडा बांधते देखे गए थे। बस स्टैंड के मंच पर परिवर्तन यात्रा के दौरान दंतेवाड़ा के तमाम बड़े नेता और रायपुर के बड़े चेहरे दरी बिछा रहे थे। पर अब हालत बिल्कुल इसके उलट है।

प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में दावेदारों की लिस्ट बड़ी है। हर कोई उम्मीद पाले बैठा है। संगठन की ओर से सभी दावेदारों की जमीन तलाशी का अभियान चलाया गया तो जो भाजपा नहीं चाहती वैसा ही कुछ सामने दिखाई दे रहा है। यानी चेहरा बदलने का वह खेल बिगड़ रहा है।  

छत्तीसगढ़ में भाजपा की दूसरी बड़ी मुसीबत है यहां चुनावी मुद्दा क्या हो? धान पर सरकार को घेरने की कोशिश नाकाम रही। बेरोजगारी भत्ता और बेरोजगारी को लेकर जमीन पर किया गया संघर्ष इम्पेक्टफुल नहीं रहा। शराब का मामला थोड़ा बहुत प्रभावित करता पर उसका असर भी जमीन पर दिखाई नहीं दे रहा है। ईडी के छापों के बाद यह उम्मीद बनती दिखाई दी कि हो ना हो कुछ ज्यादा बड़ा जल्द ही देखने को मिलेगा यानी ईडी सीएम को टारगेट कर स्थापित कर देगी कि करप्शन मुद्दा बन जाए। ऐसा भी माहौल अब तक देखने को नहीं मिला।

अब भाजपा के कोर वोट बैंक जो धर्म के आधार पर इसके साथ हैं उनके खून खौलाने की तमाम कोशिशें फलती—फूलती दिखाई नहीं दे सकी हैं। गाय—गोबर और भांचा राम के सहारे भूपेश ने छत्तीसगढ़ में जो राजनीति की है उसका तोड़ नहीं दिख रहा है। सोशल मीडिया का हाल यह है कि आईटी सेल की पोस्ट पर उनके स्थाई सर्मथक ही कमेंट्स और लाइक कर रहे हैं। इस तरह के पोस्ट पर आम पब्लिक का रिएक्शन नदारत है।

ऐसा हाल देखकर भी लगता है कि भाजपा को केवल अब जमीन पर ऐसे चेहरों की तलाश है जो केवल जिताउ साबित हों! छत्तीसगढ़ के संगठन प्रभारी ने इस बारे में अपनी राय भी स्पष्ट कर दी है। यानी पहले जो हल्ला मचा था टिकटों को लेकर उसके क्रियान्वयन के लिए बी प्लान है ही नहीं!

मजेदार बात तो यह है कि छत्तीसगढ़ में भाजपा ने अपने प्रचार के लिए 220 बड़े नेताओं की लिस्ट तैयार कर ली है वे 90 विधानसभा क्षेत्रों में प्रचार का जिम्मा संभालेंगे? इसका आशय यह है कि छत्तीसगढ़िया कार्यकर्ताओं पर सीधे भरोसे का संकट केंद्रीय नेतृत्व को साफ दिखाई दे रहा है। परिवर्तन यात्रा की शुरूआत के बाद से ही एक बार भी इसे लेकर आम जनमानस में माहौल बनते नहीं दिखाई दिया। जिससे साफ है कि भाजपा के भीतर उहापोह की स्थिति है। सारे नेता हर बात और हर काम के लिए केवल उपर ही ताक रहे हैं मोदी—शाह की ओर…!

मोदी—शाह पर टकटकी लगाए बैठने के पिछे बहुत बड़ा कारण यह भी है कि अब जमीन पर सभी को पता चल गया है कि टिकट को लेकर जो भी फैसला होगा वह मोदी स्टाइल में ही होगा। टिकट मिलने के बाद ही पता चलेगा कि फाइट कितनी करीबी होगी या एक तरफा जीत का कारण बन सकेगी!

आज भाजपा के स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिलासपुर में रैली हुई उसमें उन्होंने सीधे अपने नाम और काम के आधार पर वोट मांगा है। क्या छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में मोदी इफेक्ट से आम छत्तीसगढ़िया अपना वोट मोदी के चेहरे की खातिर डालने को तैयार होगा? वह भी ऐसी स्थिति में जब यहां भाजपा के 15 बरस बनाम भूपेश के पांच बरस का जब हिसाब खुलेगा तो छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया राजनीति में भाजपा चारो खाने चित्त दिखाई दे रही है।

इसकी वजह जो लोग थे वही इस समय भी भाजपा के खेवनहार बने हुए हैं। इनके सहारे भाजपा की वैतरणी कैसे पार होगी? यह तो मोदी—शाह की केमिस्ट्री ही जाने। वैसे भी इस समय भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरूण साव, नेता प्रतिपक्ष नारायण चंदेल और पूर्व मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह के अलावा दो और बड़े चेहरे डा. सरोज पांडे और सुश्री लता उसेंडी भाजपा ने सामने रखे हैं। 

विधानसभा सीटों के लिए भाजपा का गणित, छत्तीसगढ़ के भूगोल में इतिहास खंगाल रहा है। जमीन पर देखा जाए तो छत्तीसगढ़ में अब तक भाजपा का खेल समझ से बाहर है। यहां के नेता, संगठन केवल मोदी—शाह के भरोसे बैठे दिखाई दे रहे हैं। बैठक, मंथन, टिकट, मंच, तैयारी, मुद्दा सब के लिए बस उपर से निर्देश का इंतजार…

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