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बैलाडिला की डिपाजिट—13 में खेल : चालाकी देखिए, आईएएस को मोहरा बना दिया सरकार ने…

विशेष रिपोर्ट / सुरेश महापात्र – क्रमश: 2

हां, यह बात पूरी तरह से तथ्यात्मक है। बैलाडिला के डिपाजिट—13 के लिए जो खेल पर्दे के पीछे से खेला जा रहा था उसमें सबसे बड़ी कड़ी सीएमडी स्वयं ही थे। एक प्रकार से सरकार ने आईएएस को मोहरा बनाकर अपना काम निकाल लिया।

बस्तर के खनिज संसाधनों को पूंजीपतियों को सौंपने के पीछे भले ही सरकार की मंशा कुछ और ही हो पर एनएमडीसी के लिए सुरक्षित डिपाजिट के एईएल को सौंपने में कारण कुछ और ही प्रतीत हो रहा है।

छत्तीसगढ़ की तत्कालीन रमन सरकार ने एनसीएल का गठन ही इसलिए करवाया था ताकि सरकार अपनी इच्छा के मुताबिक किसी कंपनी को फाइनल करने का रास्ता चुन सके।

इस बात को इस तरह से समझा जा सकता है कि अगर एनएमडीसी स्वयं किसी खदान को खनन के लिए देने का प्रस्ताव रख सकती थी तो इसके लिए बकायदा किसी एक डिपोजिट के लिए विशेष नियम क्यों बनाए गए? एनएमडीसी और सीजीएमसी के द्वारा संयुक्त उपक्रम एनसीएल बनाने का उद्देश्य ही किसी चहेते के लिए रास्ता खोलने का रहा। 

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इसके लिए राज्य सरकार के स्तर पर कई प्रक्रियाओं का पालन किया जाना था। ताकि आने वाले वक्त में किसी प्रकार से कानूनी दिक्कतों का सामना ना करना पड़े। इसके लिए पूरी मेहनत की गई। सारे कागज इसी तरह से बनाए गए कि रास्ता साफ हो सके।

वास्तव में पर्दे के पीछे यह खेल 9 मई 2015 को तब शुरू हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का दंतेवाड़ा में प्रथम प्रवास हुआ। इसी मंच पर पीएम की मौजूदगी में बस्तर में दो अल्ट्रा मेगा स्टील प्लांट के लिए छत्तीसगढ़ सरकार और इस्पात मंत्रालय के मध्य एमओयू हस्ताक्षरित किए गए। ये दो प्लांट सेल और एनएमडीसी द्वारा लगाए जाने थे।

आप जरा सोचिए कि यदि छत्तीसगढ़ सरकार के पास ऐसा कोई उपक्रम था ही नहीं जो स्टील प्लांट लगा सके तो वह एमओयू में शामिल कैसे हो गया? इसके लिए यह समझना होगा कि तब एनसीएल था ही नहीं तो साझा उपक्रम के मामले में प्रदेश सरकार का अपना कदम आगे बढ़ाना क्या स्पष्ट करता है? यह मामला वास्तव में राज्य सरकार द्वारा बाद में लिए जाने वाले फैसले की बुनियाद रखने से ज्यादा कुछ भी नहीं था।

यह भी एक संयोग मात्र है कि एनएमडीसी के डिपाजिट—13 का पर्यावरण क्लीयरेंस प्रधानमंत्री के दंतेवाड़ा प्रवास से महज दो दिन पहले यानी 7 मई 2015 को दिया गया। जिसमें लीज एरिया 315.813 हेक्टेयर बताया गया है। जिसमें इस बात का उल्लेख है कि इसमें किसी भी प्रकार से खेती का जमीन शामिल नहीं है। यह पूरी तरह से वन भूमि के तहत है। यह मवेशियों के लिए चराई का क्षेत्र भी नहीं है।

बड़ी बात यह है कि जिस डिपाजिट को लेकर एनएमडीसी सक्रिय भूमिका में थी उसमें पर्यावरण क्लीयरेंस के लिए बायोडायवर्सिटी क्लाज को फालो करने में पूरे 10 माह लगा दिए। 

इसके लिए वाइल्ड लाइफ विभाग को 8 करोड़ 39 लाख 44 हजार रुपए की अदायगी करना था। जिसके लिए 1 अप्रेल 2014 को आदेश जारी किया गया। पर इसका भुगतान सीजी—कैंपा के अकाउंट में 9 फरवरी 2015 को किया गया। यानी प्रधानमंत्री के प्रवास की रूप रेखा तैयार होने के साथ ही।

वन विभाग की अंतिम क्लीयरेंस 315.813 हेक्टेयर के लिए 9 जनवरी 2017 को जारी की गई। इधर इसके बाद 4 दिसंबर 2017 को एनएमडीसी और सीजीएमसी ने डिपाजिट—13 का लीज एनसीएल को ट्रांसफर कर दिया। 

इससे पहले अगस्त में राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) के अध्यक्ष सह प्रबंध निदेशक के पद पर आईएएस एन बैजेंद्र कुमार की पदस्थापना भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय ने की। उन्होंने 31 अगस्त को प्रभार ग्रहण किया। यह पहला अवसर था जब किसी आईएएस को सीधे सीएमडी के पोस्ट पर बिठाया गया।

यानी छत्तीसगढ़ में एनएमडीसी और सीजीएमसी के संयुक्त उपक्रम एनसीएल के गठन की प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही सीएमडी के रूप में एन बैजेंद्र कुमार की पदस्थापना की गई। लोगों ने इस घटनाक्रम पर प्रसन्नता जाहिर की थी। 

ऐसा माना गया कि केंद्र सरकार ने छत्तीसगढ़ की खनिज उपलब्धता को देखते हुए यहां के कैडर के किसी आईएएस को सीएमडी के पद पर नियुक्त किया है। पर अडानी को डिपाजिट—13 पिछले दरवाजे से सौंपे जाने की घटना सामने आने के बाद यह प्रतीत हो रहा है कि यह साझा खेल था। 

एन बैजेंद्र कुमार ने 31 अगस्त को सीएमडी का पद ग्रहित किया। इसके बाद डिपाजिट-13 का पट्टा 6 नवंबर 2017 को राज्य सरकार के आदेश के बाद 4 दिसंबर, 2017 को एनसीएल लिमिटेड के पक्ष में पंजीकृत किया गया। इसकी जानकारी एनएमडीसी ने 11 दिसंबर 2017 को एक आधिकारिक बयान में दिया है।

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